अक्टूबर 2019 की रचनाएँ

अक्टूबर 2019 की रचनाएँ


दोहा

मैया तेरे द्वार पर,है भक्तों की भीड़।
समय मिले तो आ जरा,मैया मेरे नीड़।

ललित

मुक्तक 16-14
किश्ती

डूब  गई   जब  किश्ती  मेरी,नदी  किनारे  आए वो।
दुखती  रग   को  और दुखाने,ले  पतवारें        आए  वो।
हर सुख-दुख में साथ निभाने,का जो दावा करते थे।
चाँद  छुपा  था जब  बादल में,ले कुछ तारे आए वो।

ललित

सोरठा
जय माता दी
फूलों के गलहार,लाया हूँ माँ प्यार से।
कर लेना स्वीकार,विनती है ये आप से।

चुनरी गोटेदार,काजल बिंदी चूड़ियाँ।
करने को श्रृंगार,महँदी भी है साथ माँ।

धूप दीप से मात,नित्य करूँ मैं आरती।
हर लेना हर घात,माता मेरे भाग्य से।

चना-घूघरी और,ले आया हूँ लापसी।
प्रेम-सहित हर कौर,कर लेना स्वीकर माँ।

ललित

मुक्तक
मरहम
जिसने जितना साथ निभाया,चार-पलों के
जीवन में।
वही बड़ा उपकार मान लो,उसका तुम अपने मन में।
अपने-अपने घाव सभी के,हैं अपने-अपने मरहम।
दिल के गहरे घाव भरे वो,मरहम है अपने-पन में।

ललित

02.10.19
कुण्डलिया
अम्बे माँ
माता अम्बे मैं करूँ,विनती ये कर-जोड़।
काम-क्रोध-मद-लोभ से,मेरे मन को मोड़।

मेरे मन को मोड़,ईश के ध्यान-भजन में।
मायावी संसार,न झाँके मेरे मन में।

कहे 'ललित' हे मात,न कोई तुझ सा दाता।
तुझसे ही सब ज्ञान,मिला है अम्बे माता।

ललित

समान/सनाई छंद
माँ जगदम्बा
जय-जय-जय-जय माँ जगदम्बा,
जय-जय-जय-हे मात भवानी।
जय-जय-जय-जय हे माँ दुर्गा। 
जय-जय-जय शिव की पट-रानी।

पाट दिए सारे नद-नाले।
फेरी सब वृक्षों पर आरी।
आस लिए आए दर तेरे।
पीर पड़ी भक्तों पर भारी।

प्लास्टिक-मोबाइल का जादू।
काट नहीं ये मानव पाया।
इस प्लास्टिक से पीछा छूटे।
दिखला दो कुछ ऐसी माया।

ललित

ताटंक छंद
मैया जगदम्बा
मैया जगदम्बा जगजननी,चरण-शरण मैं हूँ आया।
पूजन-अर्चन नहीं जानता,पुष्प-हार मैं हूँ लाया।
भूल हुई हो जो भी मुझसे,माफ ज़रा कर दो माता।
मेरी खाली झोली अपनी,किरपा से भर दो माता।

ललित


14.10.19
मदिरा सवैया छंद
वार्णिक छंद
7 भगण + अंत में एक गुरु वर्ण
अर्थात 211×7 + गुरु वर्ण
चार सम तुकांत
12 वें वर्ण के बाद यति दर्शाएँ।

मदिरा सवैया छंद
डोलती नाव
डोल उठे जब नाव प्रभो रहना तब आप
कृपालु हरे।
पाप विनाशक मोहन नाम जपे उसका
भव-ताप टरे। 
हो तुम एक हमार प्रभो अब कौन हमें भव-पार करे।
कृष्ण करो किरपा इतनी भव सागर से यह नाव तरे।

ललित

मदिरा सवैया छंद
शत्रु-मित्र
कौन बने कब शत्रु यहाँ अरु कौन बने कब मित्र यहाँ?
मेल बने अनमोल यहाँ कब मेल कहाय विचित्र यहाँ?
बात बड़ी असमंजस की कब मानव खोय चरित्र यहाँ?
मात-पिता तज पुत्र चले जब वो बनता खुद पितृ यहाँ?

ललित

मदिरा सवैया छंद
जग छोड़ चले
कौन कहाँ कब छोड़ चले जग,जीवन से मुख मोड़ चले?
तोड़ चले जग के सब बंधन,मित्र-सखा कब छोड़ चले?
अंध भविष्य न जान सके नर,वो सब के दिल तोड़ चले।
याद करें उसके गुण को सब,जो तज वैभव-होड़ चले।

ललित

मदिरा सवैया छंद
रवि पावन
भोर भए हरता जग का तम पावन वो रवि क्या कहना?

मोहन की मुरलीधर की मनमोहन की छवि क्या कहना?

शांति-प्रदायक शुद्धि-प्रसारक अग्नि-मयी हवि क्या कहना?

छंद नए नित जो सिखलावत 'राज' गुरू कवि क्या कहना?

ललित

ताटंक छंद
हँसते-गाते
जीवन के हर दोराहे पर,साथ सदा तुमको पाया।
हरदम मेरे साथ चली हो,तुम बनकर मेरा साया।
अब बासठ का हुआ यार मैं,उन्सठ की तुम हो प्यारी।
हँसते-गाते प्यार जताते,जीने की अब है बारी।

ललित

मदिरा सवैया छंद
मानव-जीवन
पाकर मानव जीवन धन्य हुआ यह जीव 
हँसे जग में।
यज्ञ नहीं जप-ध्यान नहीं भटके यह जीव फँसे जग में।
ईश्वर ने जब जन्म दिया धरती पर मानव के तन में।
क्यों न जपे तब नाम अहर्निश मोहन का मन ही मन में?

ललित

मदिरा सवैया छंद
तप्त-दिल
तप्त बड़ा दिल का तल है मन सोच रहा यह बात बड़ी।
बीत गए सुख-शांति भरे दिन, क्यों न कटे
यह दुःख-घड़ी?
वक्त रहा शुभ साथ नहीं तब,वक्त बुरा यह क्यों न टले?
बीत गया उजला दिन क्यों तम-घोर-घना 
दिल को कुचले?

ललित

मदिरा सवैया छंद
माँ
याद करें तुमको हम माँ घिरती जब राह घने तम से।
छाँव न हो सुख की मन में जब प्राण थकें गहरे ग़म से।
शांति न हो मन बेकल हो तब पीर तुम्हीं हरती छम से।
दूर भले कितनी तुम हो पर नेह सदा रखतीं हम से।

ललित

मदिरा सवैया छंद
वृषभानुसुता
लाल गुलाब खिले बगिया व्रज-नंदन-कानन डोल गया।

देख गुलाब सुगंध भरे वृषभानुसुता मन डोल गया।

भूल गया मुरली मुरलीधर वो मनमोहन डोल गया।

बंद हुए नयना-पट सौरभ से सगरा तन डोल गया।

ललित

मदिरा सवैया छंद
यौवन
सावन बीत चला सजना अरु,भूल गया कँगना बजना।
प्रीत बड़ी हमको तुमसे तुम, भूल गये हमको सजना।

सून पड़ा मन का अँगना हम भूल गए सजना-धजना।
यौवन के दिन चार पिया इस यौवन में हमको तज ना।

ललित

मदिरा सवैया छंद
व्यस्त-नर
व्यस्त हुआ नर मस्त हुआ अरु
यौवन में तन पस्त हुआ।

पस्त हुआ भटके  नर वो धन-वैभव
पाकर मस्त हुआ।

मस्त हुआ अपनी धुन में अपने सपनों सँग व्यस्त हुआ।

व्यस्त हुआ दिन-रात भगे नहिं फुर्सत काम-परस्त हुआ।

ललित

मुक्तक
मोबाइल
फूल-बहारों का मौसम ही,जीवन में चहुँ ओर रहे।
दीवाली खुशियाँ ले आए,हँसी-खुशी का दौर रहे।
माँ शारद की कृपा रहे औ',लक्ष्मी जी धन-धान्य भरें।
शांति रहे घर में मोबाइल,का ही केवल शोर रहे।

ललित किशोर 'ललित'


मदिरा सवैया छंद
शुभ दीपावली

मौसम फूल-बहार भरा घर-बाहर में चहुँ ओर रहे।
दीप करें घर-आँगन रौशन,और खुशी हर भोर रहे।
शारद-मातु कृपालु रहें अरु श्री घर में हर ठौर रहें।
शांति रहे मन-जीवन में नित ईश्वर-पूजन जोर   रहे।

ललित

दीपावली-शुभकामना

मंगलमय शुभकामना,के जितने संदेश।
मित्र मिले हैं आपको,दीवाली के पेश।
दीवाली के पेश,सभी शुभ-फल दे जाएँ।
रिद्धि-सद्धि गणनाथ,सहित माँ लक्ष्मी आएँ।

ललित किशोर

मुक्तक
दीवाली
कुछ यंत्रों का कुछ मंत्रों का,शोर मचाए दीवाली।
कुछ दीपक को कुछ बिजली को,नाच नचाए दीवाली।
सब मित्रों से सब रिश्तों से,स्नेह दिलाए दीवाली।
मन में नई उमंगों की इक,ज्योत जलाए दीवाली।

ललित

🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃
शारद माँ
शारद  माँ   तैरा   दो  नाव।
लेखन  के  दे दो नव-भाव।
बुद्धि और मन हों इक ठौर।
छंद-सृजन  होवे नित भोर।

🌹🍃ललित🍃🌹

गीत का प्रयास
🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃
उलझी डोर
जीवन की है उलझी डोर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

सुलझा दो कुछ ऐसे श्याम।
लगें सँवरने बिगड़े काम।
सुमिरन होवे आठों याम।
मन मेरा पाए विश्राम।
प्यारी सी होवे इक भोर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

श्याम करो ऐसी तदबीर।
चिंता की टूटे तस्वीर।
जय श्री कृष्णा जय श्री राम।
थके न जिव्हा जपते नाम।
मन मेरा बैठे इक ठौर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

बाधाओं की तपती धूप।
कंटक जिसमें पलें अनूप।
छाँव ज़रा सी कर दो नाथ।
रख कर मेरे सिर पर हाथ।
फिर आए खुशियों का दौर।
श्याम तुम्हीं पकड़ो इक छोर।

🌹🍃ललित🍃🌹

🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃
राधे-श्याम
सुंदर मनहर प्यारा नाम।
राधे-कृष्णा राधे-श्याम।

जो नर जपता सुबहो-शाम।
उसका मन पाए विश्राम।
भजनों की गंगा में डूब।
मस्त हुआ वो नाचे खूब।
नटवर-नागर जप अविराम।
राधे-कृष्णा राधे-श्याम।
ललित

🍃🌹जयकारी छंद🌹🍃

खुशियाँ
मिलती जो खुशियाँ अविराम।
दुख का कहीं न होता नाम।
खुशियों का क्या रहता मोल?
थोड़े से दुख से मत डोल।

ललित


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