विष्णुपदछंद विधान एवँ रचनाएँ(जनवरी 2020)

जनवरी 2020

विष्णुपद छंद विधान

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      ------विष्णुपद छंद विधान------
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विधान 

1. यह चार पंक्तियों वाला मात्रिक छंद है।

2. इसमें 16, 10 = कुल 26 मात्राएँ तथा 16, 10 पर यति चिन्ह होता है।

3. अंत गुरु वर्ण से होता है

4. दो-दो पंक्तियों में तुकांत सुमेलित किए जाते हैं।

5. लय-माधुर्य और छंद की सुंदरता बढाने के लिए अंत में दो लघु वर्ण और एक गुरु वर्ण रखना चाहिएँ।



             **** उदाहरण ****
                  विष्णुपद छंद
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जीवन   की   तस्वीर   निराली,सतरंगी  गहरी।
कभी बोलती-सुनती दिखती,और कभी बहरी।
रंग-बिरंगी  तितली  सी  ये,कभी  बहुत चहके।
और कभी  ये  अपनी  रंगत ,बदले  रह  रहके।

**********रचनाकार*************
          ललित किशोर 'ललित'
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विष्णु पद छंद रचनाएँ
1.
16-10

भरी हुई है पूरी जिनके,पापों की गगरी।
जय-जयकार करे उनकी ही,ये माया- नगरी।
वे ही दानी कहलाते जो,जन-धन हैं हरते।
पुण्यों का वो करें तमाशा,दान-यज्ञ करते।

ललित
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विष्णु पद छंद
16-10

2.


जहरीले कुछ शब्द नुकीले,घाव करें गहरे।
दीवाना दिल टीस भरे उन, घावों में ठहरे।दिल की दीवारों में छुपकर,दर्द हँसा करता।
मरहम तीर चला कर हारे,दर्द नहीं मरता।

ललित
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विष्णु पद छंद
3.

कैसे-कैसे रंग अनोखे,रँगते जीवन को।
नीले-पीले-लाल-सुनहरे,हरते जो मन को।
कुछ गहरे कुछ हल्के-फुल्के,
कुछ इँगलिश झलकें।
कुछ सुख बरसाते हैं कुछ से,दर्द सदा छलकें।

ललित
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विष्णु पद छंद
4.

प्यार सभी को इस जीवन में,कहाँ भला मिलता?
सौरभ की क्या बात करें,इक फूल नहीं खिलता।
भूले से भी फूल खिले तो,कंटक साथ खिलें।
कंटक से जो नहीं डरे नर,खुशबू उसे मिले।

ललित
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विष्णु पद छंद
5.
चम-चम-चम-चम ओस चमकती,फूल- कली चहके।
पत्ता-पत्ता डाली-डाली,सौरभ से महके।
कुहरे की झीनी सी चादर,कलियों को ढकती।
कलियाँ फिर घूँघट-पट खोले,मुक्तावलि तकतीं।

ललित
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विष्णु पद छंद
6.

पायल के घुँघरू सी छम-छम,करती दौड़ रही।
झूम-झूम कर नदिया सारे,बंधन तोड़ बही।
सागर से मिलने की मन में,हर-पल हूक उठे।
मधुर-मिलन की मधुर धुनों में,कोयल कूक उठे।

ललित
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विष्णु पद छंद
7.
पर्वत की ऊँची चोटी पर,बादल झूम रहे।
मतवाले दो पागल-प्रेमी,वन में घूम रहे। 
काले-काले बदरा से कुछ,बूँदें टपक रही।
चमक-चमक कर चम-चम-चम-चम,बिजली चमक रही।

ललित 
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विष्णु पद छंद
8.

महावीर बजरंग-बली की,प्यारी सूरत है।
उसके दिल में सिया-राम की,मनहर मूरत है ।
राम-नाम का जाप निरंतर,रसना पर रखता।
अमर हुआ अपनी सेवा का,अब तक फल चखता।
 
ललित
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12.1.2020

विष्णुपद छंद
9.
पतझड़  के   सूखे   पत्तों  सम, कुछ  नर-नार दिखें।
अलग डालियों से होकर जो,निज नव-भाग्य लिखें।
पवन-वेग  के  संग  अकेले, नभ  में वो उड़ते।
उन के दिल के तार नहीं फिर,डाली से जुड़ते।

ललित
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विष्णुपद छंद
10.

तात-मात की परी-लाडली,जब ससुराल चली।
आँखों में आँसू भर देखे,वो मासूम कली।
उसकी आँखों से बहता हर,आँसू यही कहे।
माँ-पापा-भैया क्यों मुझको,पर-घर भेज रहे?

ललित
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विष्णुपद छंद
11.
हर सुबहा सूरज के स्वागत,में धरती महके।
मधुर-मधुर कलरव करते सब,पक्षी भी चहकें।
आत्मा को गहराई तक जो,उत्साहित करती।
पूरब की वो लाली दिल में,नव-उमंग भरती।

ललित

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विष्णुपद छंद
12.
डोल रही है नाव कन्हैया,नदिया है गहरी।
कौन सुने अब पीर जिया की,दुनिया है बहरी?
नैया की पतवार थाम लो,तुम पल-दो-पल को।
या इस गहरी नदिया से कुछ,कम कर दो जल को।

ललित
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विष्णुपद छंद
13.

जीवन की बगिया में चाहो,हरियाली भरना।
स्नान-ध्यान करके हर सुबहा,सूर्य-दर्श
करना।
सूर्य-देव का स्वागत करना,इक लोटा जल से।
भाग्य खुलेंगें जग जीतोगे,विद्या-यश-बल से।

ललित

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विष्णुपद छंद
14.
भाग-दौड़ में जीवन की नर,इतना दौड़ रहा।
लोकाचार-धर्म-संस्कृति को,पीछे छोड़ रहा।
हाय कहाँ तक दौड़ेगा ये,दौड़ेगा कितना?
खुद अपनी निजता से ही मुख,मोड़ेगा कितना?

ललित
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विष्णुपद छंद
15.
दिल की बातें दिल के भीतर,अक्सर छुप रहतीं।
दिल कुछ कहना चाहे भी तो,अँखियाँ चुप रहतीं।
आँखों में ही छुप रहते हैं,अक्सर ग़म जिनके।
अधरों पर मुस्कान सदा ही,रहती है उनके।

ललित
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विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस का प्रयास
16.
रिम-झिम रिम-झिम मावठ बरसे,गोरी के अँगना।
छप्पर पर ओले बजते ज्यों,खनक रहा कँगना।
शीतल पवन भेदती तन को,मनवा बहक रहा।
ठिठुराती सर्दी में बैरी,साजन चहक रहा।

ललित किशोर 'ललित'
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विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस 
17.
सरवर के पानी में चंदा,ऐसे चमक रहा।
अलसाई सजनी का मुखड़ा,जैसे दमक रहा।
रात चाँदनी उपवन सूना,राह तके सजनी।
आ जा जल्दी आ जा साजन,महकाएँ रजनी।

ललित किशोर'ललित'
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विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस 
18.
नदी किनारे बैठी है जो,सुंदर सी लड़की।
नजर मिली जब उससे मेरी,हर धड़कन धड़की।
अधर मधुर मुस्कान भरे वो,नैना तीर भरे।
नाक नुकीली ठोड़ी का तिल,दिल को चीर धरे।

ललित किशोर 'ललित'
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19.
विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस 

घुँघराले केशों वाली इक,चंचल शोख कली।
कटि पर मटकी अटका पनघट,गज की चाल चली।
जल में मटकी उल्टी पटकी,मछली देख डरी।
सिमटी-सकुचाई-घबराई,मटकी नहीं भरी।

ललितकिशोर'ललित'
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20.
विष्णुपद छंद
श्रृंगार रस

राधा की वेणी को माधव,मुड़-मुड़ देख रहे।
वेणी के पुष्पों से हर-पल,प्रीत-सुगंध बहे।
प्रीत-सुगंध भरी मुरली को,कान्हा अधर धरें।
प्यार भरी धुन से वंशी व्रज-जन को धन्य करे।

ललित किशोर 'ललित'
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विष्णुपद छंद
21.
जीवन के पथ में कुछ कंटक,कुछ-कुछ फूल मिलें।
कंटक भी कुछ ऐसे पनपें,बनकर शूल मिलें।
शूल हटाकर राह बना लो,गीता-ज्ञान कहे।
हँसते-गाते जीवन जी लो,खुद भगवान कहे।

ललित
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विष्णुपद छंद
22.
सोच सदा ऊँची हो अपनी,ऊँचे हों सपने।
लक्ष्य रखो पूरे करने का,स्वप्न सभी अपने।
अपनी पूरी क्षमता से फिर,उद्यम आप करो।
आएँ जो बाधाएँ पथ में,उनसे नहीं डरो।

ललित
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विष्णुपद छंद
23.
तर्कहीन शंका से चिंता,उठती है मन में।
चिंता करना छोड़ ज़रा तुम,डूबो चिंतन में।
वह संशय-सागर वास्तव में,है कितना गहरा।
दिशाहीन चिंता पर कैसे,रखना है पहरा।

ललित
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विष्णुपद छंद
मुस्कान
24.
फूलों से मुस्कान चुराकर,अधरों पर रख लो।
मदमाती सौरभ को अपने,नथुनों से चख लो।
मुस्काने वाले को हरदम,मुस्कानें मिलती।
खुशबू बिखराने वाले की,नींव नहीं हिलती।
 
ललित किशोर 'ललित'
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