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------मनहरण घनाक्षरी छंद विधान-----
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1.यह एक वर्णिक छंद है।
2.इस छंद में वर्णों (अक्षरों) की गणना (गिनती) की जाती है।
3.इसमें आधे वर्ण को नहीं गिना जाता है..जैसे 'तृष्णा' इसकी गणना दो वर्ण के रूप में ही की जाएगी।
4. इसमें 8, 8, 8, 7 कुल 31 वर्ण होते हैं।
5. कुल 8 पंक्तियाँ और 16 चरण होते हैं जिनमें 1,2,3,5,6,7,9,10,11,13,14,15 चरण 8 ,8 वर्ण के होते हैं तथा 4,8,12 एवं 16 वां चरण 7 वर्ण के होते हैं इन्हीं चरणों में समतुकान्त मिलाने होते हैं..।
अंत में लघु गुरू वर्ण होते हैं लय की सुगमता के लिए...
6.चार समतुकान्त होते हैं
***** उदाहरण *****
मनहरण घनाक्षरी छंद
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जो न बोलो सत्य कटु,
मीठा सच तो बोल दो।
नहीं जो किसी को डसे,
वो सच तो बोलिए।
लेते हुए राम नाम,
होते रहें सारे काम।
जग के रचयिता को,
भूल तो न डोलिए।
गीता और रामायण,
ऋषियों की बात मान।
मनीषियों के बोल को,
झूठ से न तोलिए।
जिंदगी के कारवाँ में,
जिसका भी मिले साथ।
हँसी के दो बोल बोल
प्रेम रस घोलिए।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
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मनहरण घनाक्षरी रचनाएँ
1
शहर
कैसी ये हवाएँ चली।
भूले सब गाँव गली।
शहर की आबोहवा
रास बड़ी आ रही।
कंकरीट के ये जाल।
अँधियारे ये विशाल।
आड़ में जिनकी शर्मो
हया खोती जा रही।
द्वार द्वार के है पास।
जानकारी नहीं खास।
पड़ोसी न आए रास।
प्राईवेसी खा रही।
पूरी हुई अब साध।
पाप नहीं अपराध।
पापों की नगरिया ये।
सबको लुभा रही।
ललित किशोर 'ललित'
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02.10.2018
2.
राधा जी
राधा जी का प्यारा नाम।
जपे जा तू आठों याम।
कभी न कभी तो श्याम।
तेरे पीछे आएगा।
राधा जी सुखों का धाम।
पीछे-पीछे चले श्याम।
राधा जी का नाम तुझे।
श्याम से मिलाएगा।
दुनिया से मिले घाव।
भँवर में फँसी नाव।
राधा-राधा जप तुझे।
दुख न सताएगा।
राधा का गुलाम श्याम।
उसे प्यारा राधा नाम।
राधा-राधा जपे जा तू।
भव तर जाएगा।
ललित किशोर 'ललित'
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[02/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
3.
भ्रूण हत्या
मैया तू है एक नारी।
फिर काहे मैं बिसारी।
जग में आने दे मुझे।
कच्ची हूँ अभी कली।
तेरे जैसे नैन-नक्श।
और पापा जैसा अक्स।
सुंदर परी मैं ऐसी।
जैसे साँचे में ढली।
देखना है जग मुझे।
चढ़ने हैं नग मुझे।
जरा पकने दे अभी।
पकी नहीं ये फली।
काम बड़े करूँगी मैं।
देश-हित लड़ूँगी मैं।
सिद्ध कर दूँगी बेटे
से है बिटिया भली।
ललित किशोर 'ललित'
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[02/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
4.
रूप-रंग
रूप रंग का खुमार
उतरेगा कब यार।
वृद्धावस्था जिंदगी में
घुसी चली आ रही।
हो रहे सफेद बाल
खिंचने लगी है खाल।
नौजवानी खूब तेरे
दिल पे है छा रही।
धुँधला गई है आँख
मन को लगे हैं पाँख।
कामनाएँ नित नई
मन को लुभा रही।
अब तो समझ यार
जिंदगी के दिन चार।
कर ले भजन वर्ना
नाव डूबी जा रही।
ललित किशोर 'ललित'
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07/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
5.
अशांतिवास
दिल में अशांतिवास
शांति क्यों नहीं है पास?
गली-गली खोजता हूँ
शांति नहीं मिलती।
तांडव है चारों ओर।
दानव मचाएँ शोर।
खूब सींचूँ दिल की ये
कली नहीं खिलती।
नैन बंद कर देखा
टेढी मिली भाग्य-रेखा।
लाख करूँ जतन ये
रेखा नहीं हिलती।
पड़ गई एक बार
यदि दिल में दरार।
किसी सुई-धागे से वो
कभी नहीं सिलती।
ललित किशोर 'ललित'
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[07/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
6.
माली
माली को पुष्पों से प्यार
फूलों से ही है बहार।
रानियों का ये श्रृंगार
सुमनों से जिन्दगी।
सौरभ फूलों का सार
खुशबू बढ़ाए प्यार।
सुमनों से हार जाती
काँटों की दरिंदगी।
सब की यही है चाह।
फूलों से भरी हो राह।
सुमन हैं दुनिया में।
सबकी पसन्दगी।
वन-उपवन बाग
बाँसुरी के सब राग।
करते हैं फूलों से ही
कान्हा जी की बन्दगी।
ललित किशोर 'ललित'
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[07/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
7.
बागबाँ
भूलकर भूख-प्यास।
छोड़कर रंग-रास।
बागबाँ रहा था सदा
बाग को सँवारता।
कलियों पे था निखार
बागबाँ हुआ निसार।
प्यार भरी अँखियों से
बाग को निहारता।
कलियाँ जो बनी फूल।
बागबाँ को गई भूल।
बाग और बागबाँ से
दिल में न प्यार था।
सूना हुआ सारा बाग।
फूल सब गए भाग।
बागबाँ तो सुमनों की
खुशी पे निसार था।
ललित किशोर 'ललित'
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[08/10/2018
मनहरण घनाक्षरी
8.
राम-नाम
चाहे जपो राम नाम।
चाहे कहो सीताराम।
राम जी का ध्यान धर
सारे काम करिए।
चाहे जपो राधा नाम।
चाहे कहो राधेश्याम।
राधा-कृष्ण चरणों में
ध्यान नित धरिए।
नारायण जपो नाम
धन-धान्य-लक्ष्मी धाम।
आती-जाती साँस सँग
पुण्य-झोली भरिए।
दुखागर मृत्युलोक
प्रभु चरणों में ढोक।
विनती प्रभु से करो।
सारे दुख हरिए।
ललित किशोर 'ललित'
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9.
7.9.15
मनहरण घनाक्षरी
थाम ले गुरू का हाथ
एक वो ही देंगें साथ।
हाथ वो रखें जो माथ
पाप कट जाएँगें।
काम,क्रोध,लोभ,मोह
विष के समान त्याग।
राम नाम सुख धाम
धुन वो सुनाएँगें।
भाई,बंधु,पितु,मात
कोई नहीं देगा साथ।
हरि के हजार हाथ
काम वो ही आएँगें।
चल दे प्रभू की ओर
सारे बंधनों को तोड़।
साँस की जो टूटे डोर
जोड़ वो ही पाएँगें।
ललित किशोर 'ललित'
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10
8.9.15
मनहरण घनाक्षरी
लोकतंत्र का निखार,
चाहता है देश आज।
सारी रीति-नीतियों में,
बदलाव चाहिए।
काले धन का हो नाश
भ्रष्ट तंत्र का विनाश।
रामराज की है चाह,
दृढभाव चाहिए।
देश में करे पढाई,
नौकरी विदेश पाई।
देश में विभूतियों का,
ठहराव चाहिए।
नारी होय पूजनीय,
लोक में सराहनीय।
वक्त को बदल देगी,
सदभाव चाहिए।
ललित किशोर 'ललित'
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11.
9.9.15
सूने सूने अँगना में,
मेरी प्यारी बगिया में।
आई इक नन्ही परी,
घर महका दिया।
बोलती है तुतलाती,
चलती है इठलाती।
फुदक-फुदक आती,
पग लहका दिया।
कूकती है कोयल सी,
झूमती है बदरा सी।
चुलबुली चिड़िया सी,
मन चहका दिया।
चमके ज्यूँ चँदनियाँ,
पहने है पैंजनियाँ।
पराई हूँ यही बोल,
मन दहका दिया।
ललित किशोर 'ललित'
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12.
9.9.15
मनहरण घनाक्षरी
बेटी
मैया मैं दुलारी तेरी,
सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,
कभी न सताऊँगी।
कलेजे का टुकड़ा हूँ,
तेरा ही तो मुखड़ा हूँ
घर में आने दे मुझे,
सदा मुसकाऊँगी।
तू जो मुख मोड़ लेगी,
मेरा दम तोड़ देगी।
समझ न पाऊँ तुझे,
कैसे भूल पाऊँगी।
तू भी जब आई होगी,
तेरी कोई माई होगी।
जैसे पाल लिया तुझे,
मैं भी पल जाऊँगी।
ललित किशोर 'ललित'
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13.
10.9.15
मनहरण घनाक्षरी
वक्त
वक्त कभी रुके नहीं,
वक्त कभी झुके नहीं।
वक्त को सँवारने से,
बनें ज़िन्दगानियाँ।
वक्त से ही भोर चले,
वक्त से ही साँझ ढले।
वक्त की बहार से ये,
झूमती जवानियाँ।
वक्त से ही यार मिलें,
वक्त से ही रूठ चलें।
वक्त की शरारतों से,
बनें ये कहानियाँ।
वक्त से मिला के हाथ,
वक्त के चले जो साथ।
रोक ले वो हौसलों से,
वक्त की रवानियाँ।
ललित किशोर 'ललित'
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14.
10.9.15
मनहरण घनाक्षरी
💔💔💔💔💔💔💔💔
नार अलबेली थी वो,
साथ मेरे खेली थी वो।
मेरी प्रीत तोड़ कर,
महलों की हो गई।
जिसने कहा था मुझे,
भूलूँगी कभी न तुझे।
वो ही मुझे भूल कर,
सपनों में खो गई।
प्रेम की ये डोर ऐसी,
पतंग की डोर जैसी।
बादलों से होड़ कर,
पीर वो पिरो गई।
खुद गर्ज प्रीत थी वो,
मेरी मनमीत थी जो।
लोक-लाज छोड़ कर,
नैया ही डुबो गई।
ललित किशोर 'ललित'
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15.
11.9.15
मनहरण घनाक्षरी
चाँदनी ने दाग सारे,
धो दिये चँदा के प्यारे।
चुप हो रहा आईना,
वे नजारे मौन हैं।
चाँदनी का दिल जला,
चाँद सितारों में चला।
आसमाँ चुप हो रहा,
वे सितारे मौन हैं।
चाँदनी जो फिर गई,
इशारा वो कर गई।
चाँद घायल हो रहा,
वे बहारें मौन हैं।
चाँद से होकर खफा,
होती चाँदनी जो दफा।
बेसुध हो रहा चाँद,
देव सारे मौन हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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16
11.9.15
मनहरण घनाक्षरी
फूलों ने हँस ये कहा,
जिन्दगी है कह-कहा।
हँसते-हँसाते रहो,
जीने की यही कला।
झरने भी रुन-झुन,
कहते चलें गुन-गुन।
सदा गीत गाते रहो,
टलेगी वहीं बला।
भँवरा ये कहे सुनो,
कलियों की राह चुनो।
प्रेम-रस पीते रहो,
जिन्दगी यूँ ही चला।
पेड़ हवा छाया देते,
फल और फूल देते।
खुशियाँ लुटाते रहो,
करो सब का भला।
ललित किशोर 'ललित'
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17
12.9.15
मनहरण घनाक्षरी
खुशी हर दम देते,
सभी गम हर लेते।
राम ने भी करी पूजा,
जग में माँ-बाप की।
मात-पिता के अपने,
सच कर सभी सपने।
खुशियाँ मिलेंगीं तुझे,
यहाँ बिना माप की।
गम सब हर ले तु,
बन जा खुशी का सेतु।
जिन्दगी बसर करें,
यहाँ बिना ताप की।
करते जो बदनाम,
मात-पिता का नाम।
सुनते वो बद दुआ,
उनके विलाप की।
ललित किशोर 'ललित'
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18
13.9.15
मनहरण घनाक्षरी
राम-केवट प्रसंग
सुनी मम श्रवणों की,
रज तव चरणों की।
मानुष बनाय दिया,
पाहन जो छू लिया।
नाव पे किरपा करो,
या में पग मत धरो।
बन जाए मुनि-नारी,
पावन जादू किया।
पग जो पखार लूँगा,
पार मैं उतार दूँगा।
दशरथ राज की सौं,
दाम जो कछू लिया।
केवट की गुहार है,
उतराई उधार है।
भव से लगाना पार,
नाम जबहू लिया।
ललित किशोर 'ललित'
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19.
22.11.16
मनहरण
रुक गया देश वहाँ
आठ को था खड़ा जहाँ।
छोड़ सब काम काज
लाईन लगा रहा।
लगा रहा जयकारे
मन में उठे है हूक।
सूनी सूनी अँखियों मे
कामना जगा रहा।
खड़ी हैं दुल्हन आज
भूल सब लोकलाज।
अंत हीन लाईनों में
नोट दे दगा रहा।
सड़क किनारे वाला
भिखारी भी देखो आज।
पाँच सौ के नोट वाले
सेठ को भगा रहा।
ललित किशोर 'ललित'
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20.
मनहरण घनाक्षरी
नोट बंदी के कारण बेबस एक बाप
के मन की बात
नोट नहीं पास आज
बचे कैसे मेरी लाज।
सात फेरे बिटिया के
कैसे करवाऊँगा।
तार तार जोड़ी थी जो
जिंदगी की जमा पूँजी।
दो हजारी नोटों में वो
कैसे बदलाऊँगा।
पतनी विमूढ़ हुई
आँखें फाड़ फाड़ देखे।
उसकी आँखों मे आँसू
कैसे देख पाऊँगा।
घोर अँधियारी रात
कैसे पीले होंगे हाथ।
लाडली के माथ बिंदी
कैसे लगवाऊँगा।
ललित किशोर 'ललित'
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21.
मनहरण घनाक्षरी
जनता का पैसा छीन
हा-हा कर हँस रहा।
बैठ गया कौन आज?
कोई न बता रहा।
किसका था दोष कौन
सजा का हकदार था?
समझ न आए बात
कोई न बता रहा।
पूछ रही ये जमीन
पूछ रहा आसमान।
काहे को मचा बवाल?
कोई न बता रहा।
सूँघ रहा पत्रकार
देख रहा चित्रकार।
जनता की पीर आज
कोई न बता रहा।
पूछे हर नौनिहाल
पूछे हर बदहाल।
मैंने किया क्या कसूर?
कोई न बता रहा।
पूछे बिटिया का बाप
कौन अब देगा साथ?
कैसे होगें पीले हाथ?
कोई न बता रहा।
ललित किशोर 'ललित'
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22.
समसामयिक प्रार्थना
थक गये अब नाथ,
नैया खेते मेरे हाथ।
आप ही सँभालो अब,
पतवार नाव की।
पतवार नाव की लो.
थाम करकमलों में।
झलक दिखादो जरा,
दयालु स्वभाव की।
दयालु स्वभाव की वो,
छवि तारणहार की।
दवा आज दे दो प्रभु,
मेरे हर घाव की।
मेरे हर घाव की वो,
दवा राम नाम की जो।
लगन लगा दो तव
चरणों में चाव की।
ललित किशोर 'ललित'
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23.
मनहरण घनाक्षरी
बेटी
मैया मैं दुलारी तेरी,
सुनले अरज मेरी।
जग में आने दे मुझे,
सुनले पुकार माँ।
कलेजे का टुकड़ा हूँ,
तेरा ही तो मुखड़ा हूँ।
मेरी हर धड़कन
करे है गुहार माँ।
तू जो मुख मोड़ लेगी,
मेरा दम तोड़ देगी।
दुनिया में होगा तेरा
कहाँ से उद्धार माँ।
सीने से लगाना मुझे
नहीं दुख दूँगी तुझे।
तेरी बगिया में ले
आऊँगी बहार माँ।
ललित किशोर 'ललित'
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24.
मनहरण
नारी
नारी से ही ये समाज
नारी से ही शोभें साज।
वनिता ही घर को है
ढंग से सँवारती।
किसी को लगा हो मर्ज
घर पे चढ़ा हो कर्ज।
हर दुविधा से सदा
नारी ही उबारती।
देती सारे सुख वार
पाले सारा परिवार।
सदा प्यार से पति को
नारी ही निहारती।
नारी है शक्ति की देवी
वही है भक्ति की देवी।
यमराज से भी यहाँ
नारी नहीं हारती।
ललित किशोर 'ललित'
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25.
मनहरण घनाक्षरी
तेज धूप और छाँव
धूल भरे गली गाँव
और भूले मात पिता
सुत परदेश में।
सदाचार लोकलाज
भूल जिंदगी के साज
जी रहे हैं पूत आज
नये परिवेश में।
प्यार भरी सुर ताल
बीवी और ससुराल
खुश है इसी में लाल
पिता पशोपेश में।
काम काज का है बोझ
कैसे याद रखें रोज।
कोई याद करे उन्हें
आज भी स्वदेश में।
ललित किशोर 'ललित'
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