सिंहावलोकन घनाक्षरी रचनाएँ

02.11.15

सिंहावलोकन घनाक्षरी

1
भजन

कभी जगदीश प्यारा,
सिंह जैसा दिखता है।
हिरणकशिपु को ज्यों,
नरसिंह दीखा था।

नरसिंह दीखा नाथ,
मौत जैसे हो साक्षात ।
काल के कराल हाथ,
विकराल चीखा था,

विकराल चीखा काल,
नखों से करे प्रहार।
गोद बैठाल वो तो,
वार किया तीखा था।

वार किया तीखा नोंच,
दिन  था न वो थी रात।
असुर को दिया मार,
चींटी के सरीखा था।

ललित

सिंहावलोकन घनाक्षरी
2
जिन्दगी

जिन्दगी के दिन चार,
             हँस के गुजारो यार।
गमों से कभी भी आप,
             दिल न लगाईये।
दिल न लगाईये जी,
              सदा मुसकुराईये।
प्यार के दो मीठे बोल,
              बोलते ही जाईये।
बोलते ही जाईये जी,
               प्रेम-रस घोल-घोल।
किसी के भी दोष आप,
                कभी न दिखाईये।
कभी न दिखाईये जी,
                गुण बस गिनाईये।
बहारों की दुनिया में,
                 पुरवा बहाईये।
ललित

 सिंहावलोकन घनाक्षरी
3
प्यार

प्यार मनुहार चाहे,नैनों में खुमार चाहे।
प्रीत बेशुमार चाहे,बात न भुलाईये।

बात न भुलाईये जी,प्यार से ही जिन्दगी है।
प्रेम बड़ी बन्दगी है,दीप ये जलाईये।

दीप ये जलाईये जी,मन उजियार होवे।
प्रभु से ही प्यार होवे,बात मान जाईये।

बात मान जाईये जी,झूठा ये संसार सारा।
झूठा यहाँ प्यार सारा,ईश को मनाईये।

ललित

3.11.15

सिंहावलोकन घनाक्षरी
4
वक्त

वक्त के हजार हाथ,
वक्त कहे सुनो बात।
वक्त के ही सदा साथ,
हाथ तो मिलाईये।

हाथ तो मिलाईये जी,
वक्त बड़ा कारसाज।
वक्त करे परवाज,
भूल तो न जाईये।

भूल तो न जाईये जी,
वक्त-वक्त की ये बात।
वक्त संग दिन-रात,
कदम बढ़ाइये।

कदम बढ़ाइये जी,
चाहे खुशी हो या ग़म,
हरदम रहो सम।
सदा मुस्कुराइये।

'ललित'

सिंहावलोकन घनाक्षरी
5
शारदा

शारदा का होवे साथ,
मन में हों जजबात।
थाम पेन कागजात,
लिखते ही रहना।

लिखते ही रहना वो,
जो भी देखो भेद-भाव।
दुखियों के हरे घाव
लखते ही रहना।

लखते ही रहना वो,
कुरीति समाज में जो।
आईना समाज के तो,
बनते ही रहना।

बनते ही रहना जो,
होवे बड़ा आततायी।
सदा उसकी कलाई,
खोलते ही रहना।

ललित
राधा गोविंद 15.2.17
सिंहावलोकन घनाक्षरी
6
प्रार्थना

थक गये अब नाथ,
नैया खेते मेरे हाथ।
आप ही सँभालो अब,
पतवार नाव की।

पतवार नाव की लो.
थाम करकमलों में।
झलक दिखादो जरा,
दयालु स्वभाव की।

दयालु स्वभाव की वो,
छवि तारणहार की।
दवा आज दे दो प्रभु,
मेरे हर घाव की।

मेरे हर घाव की वो,
दवा राम नाम की जो।
लगन लगा दो तव,
चरणों में चाव की।

ललित

04.11.15

सिंहावलोकन घनाक्षरी

7
प्रार्थना
स्वामी राम सुख दास जी के द्वारा
बतायी गयी प्रार्थना को सिंहावलोकन घनाक्षरी छंद में प्रस्तुत करने का तुच्छ प्रयास किया है।

प्रार्थना यही है नाथ,
लगो मुझे प्यारे आप।
एक यही मेरी माँग,
हाथ मेरा थामना।

हाथ मेरा थामना यूँ,
चाह करूँ स्वर्ग की तो।
नर्क मुझे भेज देना,
ये है मनोकामना।

ये है मनोकामना जी,
नहीं मिले मुझे चैन।
होय नहीं जब तक,
आप से ही सामना।

आप से ही सामना जी,
आप सिवा कौन मेरा।
कहूँ कासे,कौन सुने,
विनती महामना।

ललित

क्रमश:

सिंहावलोकन घनाक्षरी
8

प्रार्थना
भाग २

जाऊँ कहाँ दीनानाथ,
कोई नहीं देता साथ।
कर्त्तव्य विमूढ मन,
न यहाँ कोई मेरा।

यहाँ कोई नहीं मेरा,
जिन्हें मानता था मेरा।
उन से ही धोखा खाया,
जीवन है अंधेरा।

जीवन अंधेरा आज,
अनाथों के तुम नाथ।
पतित पावन प्रभु,
कर दो ना सवेरा।

कर दो सवेरा नाथ,
पापी कैसा तेरा दास।
जानते हो तुम तो ये,
लख चौरासी फेरा।

ललित
क्रमश:

सिंहावलोकन घनाक्षरी
9
प्रार्थना
भाग ३

एक आप ही आधार,
निराधार के हो नाथ।
प्रभु आप ही साधन,
साधनहीन के हो।

साधन हीन के आप,
दीनबंधु करतार,
सारे हर लो विकार,
मालिक दीन के हो।

सिंहावलोकन घनाक्षरी
10
शादी

जिसने करी न शादी,
उम्र होने आई आधी।
उसकी तो मानो यारों,
मति गयी मारी है।

मति गयी मारी है वो,
फिरे ब्रम्हचारी जैसे।
बिना नारी बरबाद,
जिन्दगी ही सारी है।

जिन्दगी ही सारी है वो,
कर रहा चूल्हा-चौका।
यार-बाजी में ही देखो,
जिन्दगी गुजारी है।

जिन्दगी गुजारी है ये,
पड़ोसी की मेख देख।
वहाँ दिखती जो रोज,
प्यारी एक नारी है।

ललित

सिंहावलोकन घनाक्षरी

11
नारी

नारी से ही ये समाज,
नारी से ही शोभे-साज।
नारी से ही जिन्दगी में,
प्यार की रवानियाँ।

प्यार की रवानियाँ जो,
जीवन सरस करें।
मधुर सुहास भरें,
प्रेम की दिवानियाँ।

प्रेम की दिवानियाँ ये,
प्रेम रस बरसाये।
सजन को हरषाये,
घर की ये रानियाँ।

घर की ये रानियाँ जो,
घर को सजा के रखें।
खुश रहें जहाँ सभी,
सास-देवरानियाँ।

ललित

06.11.15
12
सिंहावलोकन घनाक्षरी

दिवाली स्पेशल
एक दिवाली ऐसी भी
भाग १

बूढ़े मात-पिता आज,
हुए देखो मोहताज।
दूर से ही देख रहे,
घर में दिवालियाँ।

घर में दिवालियाँ जो,
मना रहे सुत सभी।
हँस-हँस बात करें,
बजा रहे तालियाँ।

बजा रहे तालियाँ वो,
बच्चे भी चहक रहे।
दूर से ही दिख रही,
मिष्ठानों की थालियाँ।

मिष्ठानों की थालियाँ वो,
घाव हरे कर रहीं।
मात-पिता याद करें,
सुत की वो गालियाँ।

ललित
क्रमश:

सिंहावलोकन घनाक्षरी

13

दिवाली स्पेशल
भाग २

नये-नये वसनों में,
नये-नये गहनों में।
सज रहे सारे आज,
जैसे राजा-रानियाँ।

जैसे राजा-रानियाँ वो,
घर में उजाला करें।
मात-पिता मन में हैं,
गहरी वीरानियाँ।

गहरी वीरानियाँ ये,
आँखों में ही दिख रही।
ढूँढ रही अपनों में,
अपनी निशानियाँ।

अपनी निशानियाँ जो,
भूल गयी अपनों को।
खोज रहे उनमें ही,
अपनी जवानियाँ।

ललित

सिंहावलोकन घनाक्षरी

14

मायावी दुनिया

चल रही फेस-बुक,
और वाट्सेप पर।
आज देखो दुनिया ये,
और सब यारियाँ।

और सब यारियाँ जो,
टिकी झूठ पर सदा।
उनमें फँसी हैं देखो,
आज सब नारियाँ।

आज सब नारियाँ ये,
और नर भूल रहे।
सीधा-सादा जीवन औ'
प्यारी फुलवारियाँ।

प्यारी फुलवारियाँ जो,
महकायें जीवन को।
आन लाईन करते,
सारी खरीदारियाँ।

ललित

सिंहावलोकन घनाक्षरी

15

जन्म दिन शुभकामना

दिन ये हजार बार,
आये बार बार भाभी।
नयी नयी खुशियाँ भी,
लाये ये अपार जी।

लाये ये अपार सदा,
धन-धान्य पूर रहे।
घर में भी छायी रहे,
सदा ही बहार जी।

सदा ही बहार रहे,
बगिया में आपकी।
चँदा और चाँदनी सा,
बना रहे प्यार जी।

बना रहे प्यार ऐसा,
कान्हा और राधा जैसा।
खुशियों से भरा रहे,
आपका संसार जी।

ललित
सिंहावलोकन घनाक्षरी
प्रार्थना

थक गये अब नाथ,
नैया खेते मेरे हाथ।
आप ही सँभालो अब,
पतवार नाव की।

पतवार नाव की लो.
थाम करकमलों में।
झलक दिखादो जरा,
दयालु स्वभाव की।

दयालु स्वभाव की वो,
छवि तारणहार की।
दवा आज दे दो प्रभु,
मेरे हर घाव की।

मेरे हर घाव की वो,
दवा राम नाम की जो।
लगन लगा दो तव
चरणों में चाव की।

ललित

शुभ दीपावली

दीवाली हजार बार,
आये बार-बार-बार।
नयी नयी खुशियाँ भी,
लाये ये अपार जी।

लाये ये अपार सदा,
धन-धान्य पूर रहे।
घर में भी छायी रहे,
सदा ही बहार जी।

सदा ही बहार रहे,
बगिया में आपकी।
चँदा और चाँदनी सा,
बना रहे प्यार जी।

बना रहे प्यार ऐसा,
कान्हा और राधा जैसा।
खुशियों से भरा रहे,
आपका संसार जी।

ललित किशोर 'ललित'

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