तोटक छंद रचनाएँ


तोटक छंद रचनाएँ
14.03.16

वाह वाह वाह
इस तोटक से हम आज शुरू
करते सुप्रभात प्रणाम गुरू।
नवलेखन लो हम हैं करते।
कुछ और नया दम हैं भरते।।

ललित

तोटक छंद
आज की प्रथम प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

शिव वानर का अवतार धरे।।
दुख दारुण ताप मिटावन को।
धरती पर पाप नसावन को।।

हनुमान करें हरि से विनती।
सिय राम जपूँ बिन ही गिनती।
प्रभु और न चाह रहे मन में।
दिन रात रमूँ बस कीर्तन में।

'ललित,

तोटक छंद
आज की प्रथम प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

धर रूप मनोहर आज उगा।
रवि पूरब से नव प्रीत जगा।।
सब ताप हरे नव जीवन दे।
तम घोर हरे हरि की धुन दे।।

ललित

तोटक छंद
आज की द्वितीय प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

सुर साज सजे बजता तबला।
अब नार कहो न कहो अबला।।
करती सच आज सभी सपने।
फिर साथ चलें न चलें अपने।।

ललित

तोटक छंद
आज की तृतीय प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

मुख माखन हैं लिपटाय लिये।
झट से मटकी गुड़काय दिये।।
अब कान्ह खड़े मुसकाय रहे।
सब गोपन को नचवाय रहे।

'ललित'

तोटक छंद
आज की चतुर्थ प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

बुनते बुनते मन के सपने।
कुछ यों पथ में बिछड़े अपने।।
अब हाथ नहीं कुछ साथ नहीं।
रस रंग भरी कुछ बात नहीं।।

'ललित'

तोटक छंद
आज की पंचम प्रस्तुति
समीक्षा हेतु

कब कौन कहे अपना मुझको।
सब यार कहें सपना मुझको।
इस जीवन की बस रीत यही।
मन से अपने सब मीत नहीं।

ललित

16.03.16

तोटक छंद
प्सतम प्रयास
समीक्षा हेतु

चल आज उठा पतवार नई।
हर बार मिले इक धार नई।।
यह नाव पुरातन पार करा।।
सपने सच हों इस बार जरा।

ललित

तोटक छंद
दूसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

हिलती डुलती हर नाव चले।
गिरती पड़ती मकड़ी उछले।।
यह नाव हिले परवाह नहीं।
पतवार भले गिर जाय कहीं।।

जब नाम जपे दिनरात यहाँ।
तब पार लगे यह नाव वहाँ।।
हरि की मरजी खुश हो सह ले।
जब नाव हिले सुमिरो पहले।।

'ललित'

कुछ फूल चढें हरि मस्तक हैं।
कुछ धूल चखें
दुख के दिन देख रहो चुप ही।

तोटक छंद
तीसरा प्रयास
समीक्षा हेतु

सबके अपने अपने दुख हैं।
दुख में सब चाह रहे सुख हैं।।
सुख और कहीं गर पा न सको।
करके उपकार गहो उसको।

'ललित'

तोटक छंद
चतुर्थ प्रयास
समीक्षा हेतु

कब कौन यहाँ दुख है सुनता।
हर नींव सुखों पर है चुनता।।
दुख भोग खुदी खुद तू अपना।
मत देख सहायक का सपना।।

ललित

17.03.16

तोटक छंद
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु

पट खोल जरा अपने मन का।
हर रोम जगा अपने तन का।।
हरि नाम जपे हर रोम जहाँ।
खुद आन बसें घन श्याम वहाँ।।

उस गोप सखा मनमोहन की।
छवि श्यामल की मनभावन
की।।
भरले मन में अरु नैनन में।
वह पार करे इक ही छन में।।

ललि

तोटक छंद
समीक्षा हेतु

अब खोज जरा इक राह नई।
दुनिया यह दारुण दु:ख मई।।
जग को बिसरा मन को मथ ले।
हरि नाम भरा अपना पथ ले।

ललित

महका महका घर आँगन है।
हर फूल दिखे मनभावन है।।

तोटक छंद
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
जीवन दर्शन

कुछ पुष्प चढें हरि मस्तक हैं।
कुछ कंटक ज्यों अति घातक हैं।।
जब प्रेम मिले हर फूल खिले।
मन मंदिर में मत पाल गिले।।

'ललित'

तोटक छंद
द्वितीय प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

ईश वंदना

प्रभु राम निवास करो मन में।
मन के सब ताप हरो छन में।।
तव नाम जपूँ नित ही मुख से।
हरि आप निहाल करो सुख से।।

तन का हर रोम उदास प्रभो।
भरदो जीवन की आस प्रभो।।
जग में न दिखे कुछ सार मुझे।
भव से कर दो अब पार मुझे।।

'ललित'

तोटक छंद
तृतीय प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

प्रभु नाम सदा जपता रहता।
फिर क्यूँ जग में खपता रहता।।
जगदीश कहा मुख से जब ही।
तम का फिर नाश हुआ तब ही।।

इस जीवन का अब सार यही।
करले हरि से अब प्यार सही।।
कर थाम लिया प्रभु ने जिसका।
हर काम महान हुआ उसका।।

'ललित'

तोटक छंद
प्रथम प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

हर द्वार जहाँ मुनियाँ चहकें।
हर आँगन में कलियाँ महकें।।
हर बालक रौशन नाम करे।
लड़की नभ में परवाज भरे।।

अब देख रहा कल का सपना।
यह भारत देश जवाँ अपना।।
चुप भारत माँ अब आदर हो।
हर धर्म कहे न निरादर हो।।

ललित

तोटक छंद

क्रिकेट जीत

जहँ ज्ञान सुधा अविराम बही।
यह भारत देश महान वही।।
हर खेल यहाँ पर जीत लिया।
हर दुश्मन को भयभीत किया।।

'ललित'

तोटक छंद

क्रिकेट जीत

मुँह तोड़ जवाब दिया तुमको।
अब याद सदा रखना हमको।।
कुछ शर्म करो अब डूब रहो।
'जय भारत माँ' अब खूब कहो।।

'ललित'

तोटक छंद
प्रथम प्रयास

अब आज मुझे इस जीवन से।
कुछ सीख मिली तुलसीवन से।।
हर आँगन पावन धाम  करो।
उपकार भरा कुछ काम करो।।

'ललित'

तोटक छंद
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु

जिसके घर में बिटिया चहके।
घर स्वर्ग समान सदा महके।।
वह चंचल वायु समान रहे।
बन शीतल प्रेम प्रवाह बहे।

जब मात पिता पर पीर परे।
तब वो बिटिया तदबीर करे।।
मत सोच कभी घटिया रखना।
लछमी सम ही बिटिया रखना।।

'ललित'

तोटक छंद
तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु

जब यौवन बीत गया सुख से।
तब राम नहीं निकला मुख से।।
अब वृद्ध हुआ तब याद करे।
उस ईश्वर से फरियाद करे।।

मत जीवन व्यर्थ गवाँ अपना।
मत राम बिसार लखे सपना।।
जब नाव फँसे मँझधार कभी।
प्रभु राम करें उस पार तभी।।

'ललित'

तोटक छंद
चतुर्थ प्रयास
समीक्षा हेतु

कुछ और नहीं मुझको कहना।
मत आज कहो मुझको बहना।।
जब लाज लुटे चुप हो रहते।
तब घाव हरे दिल के बहते।।

'ललित'

तोटक छंद

सुप्रभात

तम आज अचानक भाग लिया।
जब सूरज ने सुप्रकाश किया।।
सब भूल गये रजनी तम की।
जब भोर भए किरणें चमकी।।

ललित
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तोटक छंद
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु

कुछ लोग सदा मुख मोड़ चलें।
कुछ प्रेम भरे दिल तोड़ चलें।
हँसते हँसते कुछ यों कहते।
हम प्यार भरे दिल में रहते।।

ललित

तोटक छंद
द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु

नभ लाल गुलाल अबीर उड़े।
मन से मन के सब तार जुड़े।।
मनमीत गले मिल आज रहे।
अब बीच नहीं कुछ राज रहे।।

सब के दिल फाग विराज रहा।
किसके मन में अब खाज रहा।
यह प्रीत भरी ऋतु है कहती।
मन मंदिर प्रीत सदा बहती।।

'ललित'

मन चंचल डूब रहा सुख में।

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छद श्री सम्मान