कुकुभ छंद
नज़रें
1
नज़रों से वो करे इशारे,नज़रों पर जो मरता है।
नज़रें उसकी कातिल जैसी,नज़रों से दिल हरता है।
नज़रों का सब खेला यारों,नज़रों में प्रिय बसता है।
प्रिय के दिल में बस जाने का,नज़रों से ही रस्ता है।
2
अपनों के प्रति ममता-आदर,नज़रें ही तो दिखलाएं।
नज़रें अपनी कभी न बदलो,गुरुजन ये ही सिखलाएं।
नज़रों से सम्मान सभी का,कर सकते हैं हम भारी।
नज़रों से अपमान किया तो,दिल पर चलती बस आरी।
3
कुछ लोगों की घातक नज़रें,बच्चों को हैं लग जाती।
नज़र उतारे मैया उसकी,नींदों से जग जग जाती।
काला टीका लगा उसे वो,खूब बलैयाँ फिर लेती।
नज़र लगे न लाल को मेरे,लाख दुआएँ फिर देती।
4
मनख-मनख की नज़रों में भी,फर्क बड़ा ही दिखता है।
नज़र आसमाँ में रख कोई,पैर ज़मीं पर रखता है।
नज़र रखे धरती पर कोई,करनी ऊँची करता है।
पर उपकार करे वह जग में,झोली सबकी भरता है।
5
काम कभी ऐसा मत करना,नज़र झुकानी पड़ जाए।
एक बार नज़रों से गिरकर,कभी नहीं फिर उठ पाए।
नज़र रखो अपनी करनी पर,करनी ऐसी कर जाओ।
याद करे दुनिया वर्षों तक,नज़र मोड़ जब मर जाओ।
'ललित' क्रमश:
नज़रें(कुकुभ छंद) भाग -2
1
जैसा चश्मा नज़रों पर हो,दुनिया वैसी दिखती है।
काम-वासना के चश्मे से,कामी जैसी दिखती है।
नज़रों में इक प्रभु की छवि हो,चश्मा हो भगवद् गीता ।
भगवद् गीता जिसने पढ़ ली,समझो उसने जग जीता।
2
नज़र बचा कर चोरी करता,गोपी का माखन कान्हा।
नजर मिलाकर चोरी करता,हर गोपी का मन कान्हा।
कान्हा ऐसी किरपा करदो,नज़रों में तुम बस जाओ।
पलक बन्द हों फिर भी कान्हा,नज़र सदा बस तुम आओ।
3
कुछ शातिर ऐसे होते हैं,मन के भाव न दिखलाएं।
मन में उनके भाव छुपे जो,आँखों में न नज़र आयें।
नज़रों से सुर जैसे दिखते,अंतर्मन आसुर होता।
ऐसे मानव दानव ही हैं,जिनका अंतर्मन सोता।
4
मात पिता की नज़रों से जो,स्नेह सुतों को मिलता है।
उसी प्यार से जीवन बनता,बच्चों का दिल खिलता है।
मात पिता फिर प्यार ढूँढते,उन बच्चों की नज़रों में।
लेकिन प्यार कहाँ मिलता हैअंधे,गूंगे,बहरों में।
5
शैल,समन्दर,वन उपवन सब,धरती,अम्बर अरु तारे।
सूरज,चँदा,धूप,चाँदनी,अगन,वायु, सरवर सारे।
नज़र किये हैं नारायण ने,साधन ये जीवन दाता।
कितना समझाया है इसको,पर मानव न समझ पाता।
'ललित'
काम कभी ऐसा मत करना,नज़र झुकानी पड़ जाए।
एक बार नज़रों से गिरकर,कभी नहीं फिर उठ पाए।
नज़र रखो अपनी करनी पर,करनी ऐसी कर जाओ।
याद करे दुनिया वर्षों तक,नज़र मोड़ जब मर जाओ।
जैसा चश्मा नज़रों पर हो,दुनिया वैसी दिखती है।
काम-वासना के चश्मे से,कामी जैसी दिखती है।
नज़रों में इक प्रभु की छवि हो,चश्मा हो भगवद् गीता ।
भगवद् गीता जिसने पढ़ ली,समझो उसने जग जीता।
मात पिता की नज़रों से जो,स्नेह सुतों को मिलता है।
उसी प्यार से जीवन बनता,बच्चों का दिल खिलता है।
मात पिता फिर प्यार ढूँढते,उन बच्चों की नज़रों में।
लेकिन प्यार कहाँ मिलता हैअंधे,गूंगे,बहरों में।
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