I रुबाई 2.5.16
रुबाई छंद
1
देखो सुंदर सुंदर सपने,मैं झोली में भर लाया।
सुखमय जीवन करने के मैं,वादे भी ले कर आया।
मन की बात सदा बोलूँगा,सुनने की मत तुम बोलो।
दुनिया की मैं सैर करूँगा,उड़ना मुझे बहुत भाया।
'ललित'
क्रमश:
रुबाई
2
धरती सूखी अम्बर सूखा,ताल तलैया सूखे हैं।
गैस कनेक्शन मैं करवा दूँ,मानव चाहे भूखे हैं।
आमदनी कुछ भी हो लेकिन,
शौचालय बनवा डाले।
पानी का कुछ पता नहीं है,
शौचालय अब रूखे हैं।
'ललित'
रुबाई
3
तीसरा भाग
सपने सच करना है मुश्किल,जनता को अब बहलाओ।
छोटी छोटी खुशियाँ देकर,खूब उन्हें तुम गिनवाओ।
भोली ये जनता है इसको,याद नहीं कुछ रहता है।
जो वादे वो भूल चुकी है,भूल उन्हें अब तुम जाओ।
रुबाई
4
चाँद छुपा बदली के पीछे,धरती को यूँ तड़पाए।
कान्हा जैसे राधा को छू,छेड़छाड़ कर भड़काए।
राधा-कान्हा की मस्ती को,सखियाँ छुप-छुप कर देखें।
साँवल श्याम किशोरी राधा,चाँद न आगे बढ़ पाए।
ललित
रुबाई
5
मात पिता के चरणों में ही,सुख का सागर बहता है।
वहीं डाल दो डेरा अपना,वहीं कन्हैया रहता है।
उन चरणों की सेवा करके,भार मुक्त हो
जाओगे।
कान लगा कर सुनो जरा तुम,उनका दिल क्या कहता है?
'ललित'
रुबाई
6
पत्थर की छत-दीवारों से,मकान न्यारा बन जाए।
रहते हैं जब सभी प्रेम से,तब सुंदर घर बन पाए।
प्यारा सबसे वो घर जिसमें,प्यारी सी इक मुनिया हो।
आँगन में तुलसी-वन हो जो,याद प्रभू की दिलवाए।
रुबाई
7
पानी की ये मारा मारी,मानव को है तरसाए।
मानव ने जब काटे जंगल,इन्दर जल क्यूँ बरसाए।
धरती,अम्बर,वायु बेचे,पानी भी क्यूँ कर बेचा?
अपनी करतूतों पे मानव,मन ही मन क्यूँ घबराए?
'ललित'
रुबाई
8
मैंने अपनी तनहाई को,कविताओं में जब ढाला।
सारी पीड़ा बाहर निकली,शांत हुई अंतर ज्वाला।
मात शारदे दे देती है,रोज अनोखी सुर तालें।
मन आनंद उमगता है जब,बन जाती कविता आला।
'ललित'
9
रुबाई की पुकार
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सूना सूना पटल पुकारे,रचनाकारों अब आओ।
लिख डालो मन के भावों को,
और पटल को महकाओ।
'काव्य सृजन' की निर्मल गंगा,
अविरल बहती रहती है।
डुबकी रोज लगाकर इसमें,
नया सृजन कर सुख पाओ।
'ललित'
राम नाम का जप जो निशि-दिन,मन में करता रहता है।
रुबाई
10
कौन किसी का मीत यहाँ पर,कौन किसी का अपना है।
सबकी अपनी अपनी दुनिया,अपना अपना सपना है।
साथी पर जब पीर पडे तो,मोड सभी मुख जाते हैं।
गाँठ बाँध लो दुख आए तो,राम नाम ही जपना है।
'ललित'
सुप्रभात
रुबाई
KD & RG 20.1.17
11
छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा।
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।
रुबाई
12
माँ तेरे दामन की खुशबू,मन को शीतल कर जाए।
तेरे ये दो नैना मुझ पर,स्नेह सुधा नित बरसाएँ।
पथ में जो काँटे बिखरे माँ,दूर उन्हें तुम कर देना।
तेरे आँचल की छाया माँ,मन में खुशियाँ भर जाए।
माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस 'आद्या' का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।
'ललित'
रुबाई
13
देश प्रेम की ज्वाला जिनके,सीने में तब धधकी थी।
वो जाँबाज तुम्हीं थे जिन ने,अंग्रेजों की भद की थी।
देश तुम्हारे बलिदानों को,भूल नहीं अब पायेगा।
संसद में जब बम था फेंका,देश प्रेम की हद की थी।
'ललित'
रुबाई
14
बीडी के कश यार लगाऊँ,दो पल फुरसत जब होती।
साजन को बीडी दे देती,दिल की बातें तब होती।
बीडी दिल में आग लगाए,पर सुकून भी देती है।
बीडी बिन दो दिल मिल पाएं,ऐसी रातें कब होती।
'ललित'
रुबाई
15
तेरा जलवा जब से देखा,जादू सा मुझ पर छाया।
तेरी सूरत इतनी प्यारी,दिल पर काबू कब पाया।
नजरों के आगे रहती है,हरदम ही मूरत तेरी।
तेरा ही मुख देखा जब भी,शीशे के सम्मुख आया।
'ललित'
रुबाई
16
राही मैं अनजान डगर का,चलना है फितरत मेरी।
मंजिल दूर सफर मुश्किल है,साथ चले किस्मत मेरी।
हार जीत से डरना मैंने, जीवन में है कब सीखा।
मेरा प्यार जहाँ मिल जाए,वो होगी जन्नत मेरी।
'ललित'
रुबाई
17
भाई भतीजे नाम के वो,प्यार सदा जो दिखलाएं।
काम पड़े ठेंगा दिखलाते,अनुभव हम को सिखलाए।
दोस्त मगर हमने जो पाया,हमको जाँ से
वो प्यारा।
हरदम साथ निभाता है वो,जीवन में सब सुख लाए।
'ललित'
रुबाई
18
वृक्षों पर झूमें लतिकाएं,पत्ता पत्ता हर्षाए।
स्नेह मिलन की शीतल बूँदें,वन-उपवन में बरसाएं।
लेकिन मानव का पागल मन,काम वासना का भूखा।
प्रीत नहीं सच्ची कर पाए,भाव प्रणय के दर्शाए।
'ललित'
रुबाई
19
वन-उपवन सावन मनभावन,फिर भी लगता मन सूना।
साजन के बिन आँगन सूना,शोर करे पायल दूना।
विरहन की अँखियन मेंं आँसू,बदरा आँसू बरसाएं।
स्वप्न मिलन के दिखला कर वो,चला गया साजन पूना।
'ललित'
रुबाई
20
कितने भी ऊँचे उड़ लो तुम,नीचे इक दिन आना है।
झरना ये संदेशा देता,धरती एक ठिकाना है।
ऊँचाई पर जब तुम पहुँचो,एक नजर नीचे डालो।
नीचे जो बंदे बैठे हैं,उनको ऊपर लाना है।
'ललित'
रुबाई
21
चाँद चँदनिया का ये रिश्ता,जग में है सबसे न्यारा।
दाग भरा दामन है फिर भी,प्रीतम है सबसे प्यारा।
शीतलता पैदा होती जब,चाँद चाँदनी मिलते हैं।
इन दोनों के स्नेह मिलन से,रौशन होता जग सारा।
'ललित'
रुबाई
22
फूल और काँटों का रिश्ता,मानव नहीं समझ पाये।
पुष्पों की रक्षा करते ये,काँटे ही हरदम आये।
कंटक से फूलों की शोभा,आजीवन हमदम काँटे।
काँटों में जो फूल खिले वो,कहीं न फिर ठोकर खाये।
'ललित'
23
हंगामे संसद में होते,सड़कों पर नारे बाजी।
हैवानों जैसे लड़ते हैं,पंडित-मुल्ला औ' काजी।
जनता की आवाज दबी ज्यों,नक्कारों में हो तूती।
नेताओं की भेंट चढा है,भारत देश हमारा जी।
'ललित'
रुबाई
24
फँसा हुआ ये लोकतंत्र है,कैसे झंझावातों में।
उलझी सारी जनता है इन,नेताओं की बातों में।
भारत माता के चरणों में,नित जो शीश
झुकाते हों।
उनको देश बचाना होगा,इन मुश्किल हालातों में।
'ललित'
रुबाई
25
अब तो समझो देश वासियों,दो रोटी हो तुम खाते ।
फिर इन नेताओं की झूठी,बातों में क्यूँ तुम आते।
देश प्रेम की आशा भी क्यों,मक्कारों से रखते हो।
इनके झूठे सपनों में क्यों,ऐसे खो हो तुम जाते ।
'ललित'
रुबाई
26
चलो देश में आजादी की,फिर से अलख जगाते हैं।
लूट रहे जो आज देश को,उनको दूर भगाते हैं।
राम राज्य का सपना अब हम,सच करके दिखलाएंगें।
भ्रष्टाचारी शासन में हम,मिल कर सेंध लगाते हैं।
ललित
रुबाई
27
कोई मर जाता है मानव,कोई मार दिया जावे।
किसने मारा कैसे मारा,गुपचुप ही सब बतियावें।
मात पिता सुत बन्धु सखा सब,लगा मुखौटे हैं बैठे।
ऐसे निष्ठुर मानव देखे,कहते लाज मुझे आवे।
रिश्ते धूल चाटते देखे,मानव में दानव देखा।
पैसे की माया ने ऐसी,रिश्तों में खींची रेखा।
दौलत ने वो नाच नचाया,सुत भी रास नहीं आया।
देखा निर्मम बापू जिसने,बेटे का मेटा लेखा।
रुबाई
28
डूबी जीवन नैया उसकी,उथले उथले पानी में।
जीवन भर जो रहा तैरता,यौवन की नादानी में।
जीने की जो कला सीख ले,नदिया के उन धारों से।
क्यों डूबेगी नौका उसकी,किसी नदी अनजानी में?
रुबाई
29
नील गगन में उड़ता था जो,मानव कर आपा धापी।
गिरा धरा पर वो इक पल में,ऊँचाई जब हरि नापी।
उड़लो कितने भी ऊँचे तुम,मगर न छोड़ो धरती को।
पंख लगाकर उड़ सकता है,हरि के नामों का जापी।
'ललित'
रुबाई
30
प्रेम-प्यार औ' दया धर्म के,यारी औ' दुश्वारी के।
कई मुखौटे देखे सुंदर,नेता और पुजारी के।
भाव हीन मुखड़ों पर चिकने,भाव लिए जो फिरते हैं।
लोग हुए हैं कायल अब तो,उनकी इस मक्कारी के।
'ललित'
ई मेल 13.8.16
फूल महकते जब बगिया में,झूमे खुश होकर माली।
गजरे में कुछ गुँथ जाएंगें,पहने कोई मतवाली।
कुछ माला में बँध महकेंगें,मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे।
मरने वाले की अर्थी की,कुछ हर लेंगे बदहाली।
'ललित'