सोरठा सृजन

16.5.16
सोरठा
समीक्षा हेतु
1
गौसेवा की बात,समझाऊँ कैसे यहाँ।
गौ में हैं साक्षात,सारे देवी देवता।

मणि जी करें प्रणाम,गौमाता को सर्वदा।
पायेंगें परिणाम,सुख-शांति और सम्पदा।
ललित

सोरठा
समीक्षा हेतु
2
देख देश का हाल,नेता खुश होने लगे।
खूब गलेगी दाल,जनता प्यासी मर रही।

जनता की औकात,नेता समझेंगें तभी।
पड़ें जूत औ' लात,चौराहे के बीच में।

सोरठा
समीक्षा हेतु
3
होगी उसकी भैंस,लाठी जिसके हाथ में।
नेताओं की रेस,अंधों की चौपाल में।

खुल जाएंगें राज,महाकाल के राज में।
गरजेंगें जब 'राज',क्षिप्रा जी के तीर पे।
ललित

सोरठा
समीक्षा हेतु
4
दया-धर्म के काम,निशिदिन तुम करते रहो।
अपना लेंगें राम,सुमिरन जो चलता रहे।

नैना नीर बहायँ,बेटी को करते विदा।
काहे तू पछताय,पढा-लिखा जब है दिया।
ललित

सोरठा
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
1
जैसा तेरा नाम,वैसा कर दे काम भी।
मुरलीधर घनश्याम, मधुर बजाकर बाँसुरी।

राधा तकती राह,मधुवन में घनश्याम की।
सखियाँ करती डाह,राधा के वश श्याम हैं।

ललित

सोरठा
समीक्षा हेतु
1
इस दिल के जजबात,समझेगा कैसे जहाँ।
कविता में हर बात,लिखना सम्भव है नहीं।

लिखते जैसे 'राज',अंतर में गोते लगा।
हम सब करते नाज,सौरभ फैली चहुँ दिशा।
ललित
सोरठा
समीक्षा हेतु
2
साजन तेरी याद,मन को मथ मथ डालती।
मन होना आजाद,चाहे ऐसी प्रीत से।

कान्हा तेरा प्यार,जीवन को महका रहा।
वारूँ सब संसार,मुरली की हर तान पे।

ललित
केडी आरजी28.1.17
सोरठा

बाँकी सी वो चाल,राधा को प्यारी लगे।
घुँघराले हैं बाल,मोर मुकुट सुंदर सजे।

चंचल वो चितचोर,राधा का चित ले गया।
ग्वाल-बाल हर ओर,कान्हा को ढूँढत फिरें।

ललित
सोरठा
समीक्षा हेतु
1
छज्जे पर जो काग,काँव काँव करता रहा।
फूटे उसके भाग,कंकरीट बढता गया।
नजर न आता आज,कौआ घर की डाल पे।
कौन बताए  राज,आने वाले का भला।
कोयल की वो कूक,हमें न सुनने को  मिले।
मन में उठती हूक,वन-उपवन सूने पड़े।

'ललित'

सोरठा
समीक्षा हेतु
2
मकड़ी से लो सीख,सदा गिर गिर कर उठना।
चींटी तोड़े लीक,नहीं ऐसा हो सकता।

पानी में रह आप,मगर से बैर न करना।
मछली देती श्राप,सूखे सब सरवर नदी।

गौ माता के रोज,प्रात में दर्शन करना।
पाना हो जो ओज,चरण रज सिर पर रखना।

'ललित'

सोरठा
समीक्षा हेतु
1
भूला तेरा नाम,ऐसा मन सुख में रमा।
बैठा दिल को थाम,आई जब दुख की घड़ी।

जग में तेरा नाम,लेता जो सुख में रहा।
कभी न आई शाम,जीवन भर सुख से जिया।
ललित

सोरठा

राकेश जी के सुझाव से सहित परिष्कृत

नैन बहायें नीर,सूखी सब नदियाँ पड़ी।
सूरज देता चीर,आपा धरती खो रही।
संग चाँदनी ताप,ऐसा है घुल मिल गया।
दोपहरी सी आप,जलती है अब चाँदनी।
ललित

सोरठा

ठण्डी मीठी बात,गर्मी में सूझे नहीं।
सावन की बरसात,सपनों में गुम हो गई।

सजनी साजन द्वार,प्यासी है कब से खड़ी।
पानी की मनुहार,साजन अब कैसे करे।

'ललित'

सोरठा

हल्की कर दो धूप,सूरज जी इस देश में।
झुलस रहा है रूप,बालाएं मुँह ढाँकती।

काले दिखते लाल,गोरे काले हो रहे।
कर दो बंद धमाल,नेताओं के देश में।

'ललित'

सोरठा

धरती हुलसत जात,पात-पात बिलखत रहे।
कण-कण आग समात,सूरज है इतरा रहा।

चाँद हुआ है लाल,मुरझाई अब चाँदनी।
गोरी के वो बाल,गर्मी से बल खा रहे।

'ललित'
सोरठा
केडी आरजी27.1.17

कान्हा जाता हार,राधा की मनुहार से।
छेड़े मन के तार,मुरली की हर तान से।

सखियाँ जाती झूम,मोहन की छवि देखके।
गोकुल में है धूम,लीलाधर के नाम की।

'ललित'

सूरज
सॉरी
विषय से परे

गर्मी तो ए यार,सूरज की अर्द्धांगिनी।
करती है बौछार,शीतलता की चाँदनी।

धूप नहीं कहलाय,सूरज की प्यारी कभी।
चाँद सदा इतराय,बाहों में है चाँदनी।

'ललित'

सूरज का ये ताप,समझाता है प्यार से।
सुनले रेे पदचाप,प्रलय की  समझदार तू।

धरती का हर रोम,शाप है तुझे दे रहा।
मुरझाया है सोम,चाँदनी रूप खो रही।

वन करते संताप,देख कर

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