माँ

माँ

1
रुबाई

माँ तेरे दामन की खुशबू,मन को शीतल कर जाए।
तेरे ये दो नैना मुझ पर,स्नेह सुधा नित बरसाएँ।
पथ में जो काँटे बिखरे माँ,दूर उन्हें तुम कर देना।
तेरे आँचल की छाया माँ,मन में खुशियाँ भर जाए।
माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।

ललित किशोर 'ललित'
कोटा
2
ताटंक छंद

माँ की याद में

माँ मैं मूरख समझ न पाया,तेरे दिल की बातों को।
मेरी राह तका करती थी,क्यूँ सर्दी की रातों को?
मेरे सारे सपनों को माँ,तू ही तो पर देती थी।
मेरी हर इक चिन्ता को तू,आँचल में भर लेती थी।
आज अकेला भटक रहा हूँ,मैं इस जग के मेले में।
तेरी कमी अखरती है माँ,जब भी पड़ूँ झमेले में।
माँ तेरी यादों में मेरी,आँखें नीर बहाती हैं।
तेरी सीखें अब भी मुझको,राह सदा दिखलाती हैं।

ललित किशोर 'ललित'
कोटा

3
ताटंक छंद
कन्या भ्रूण हत्या

माँ तू नारी होकर इतनी,निष्ठुर क्यूँ बन जाती है।
कन्या की आहट सुन तेरी,चिन्ता क्यूँ बढ़ जाती है।
तेरी हिम्मत से ही माता,युग परिवर्तन आएगा।
तू आवाज उठाएगी तो,कोई दबा नहीं पाएगा।
4
ताटंक छंद
कन्या भ्रूण हत्या

माँ मै तुझ सी प्यारी सूरत,लेकर जग में आऊँगी।
किलकारी से घर भर दूँगी,पैंजनियाँ छनकाऊँगी।
तेरी गोद हरी कर दूँगी,साँस मुझे भी लेने दे।
जीवन रूपी रथ की ऐ माँ,रास मुझे भी लेने दे।
जब तू मुझको छूती है माँ,अपने मन की आँखों से।
मन करता है उड़ जाऊँ मैं,तेरे मन की पाँखों से।
माँ इतना ही वादा कर ले,मुझको जग में लाएगी।
किसी दुष्ट की बातों में आ,मुझको नहीं गिराएगी।
5
ताटंक छंद
गर्भवती माँ की संवेदना

मेरे अन्दर पनप रही जो,एक कली अरमानों की।
नजर न लगने दूँगी उसको,इन बेदर्द सयानों की।
बेटी मेरी माँ बनने की,आस तभी पूरी होगी।
गोदी में खेलेगी जब तू,नहीं तनिक दूरी होगी।
लड़ जाऊँगी मैं दुनिया से,बेटी तुझे बचाने को।
सीखूँगी सब दाँव पेंच मैं,ताण्डव नाच नचाने को।
मेरे आँगन में किलकारी,भरने तू ही आएगी।
तेरी जान बचाने में ये,जान भले ही जाएगी।
'ललित'
नारी शक्ति
6
ताटंक छंद
नारी शोषण

मन ही मन में खुश होकर हम, नारा खूब लगाते हैं।
जहाँ होय नारी की पूजा ,देव वहीं रम जाते हैं।
नारा देने वाले ने यह,सपने में कब सोचा है।
नारी के अधिकारों को तो,हर युग में ही नोंचा है।
7
ताटंक छंद
बेटी

बेटी बनकर जन्मी हो तुम,बेटा बनकर जी जाओ।
अपनी रक्षा करने के गुर,घुट्टी में ही पी जाओ।
हार किसी से नहीं मानना,आगे बढ़ते जाना है।
जिसने मन में ठानी उसके,कदमों तले जमाना है।
8
हरि गीतिका

माँ की याद

माँ आज तेरी याद में मन,चाहता है डूबना।
हर ओर खुशियाँ तैरती पर,मन न चाहे झूमना।
वो डाँट के आँखे दिखाना,वो झिड़कना प्यार से।
फिर लाड से मुझको मनाना,चूमना मनुहार से।
हर बात आती याद जैसे,बात हो कल रात की।
क्यों मैं न तेरा प्यार समझा,कलयुगी सुत पातकी।
इस लाडले की जिन्दगी की,डोर तूने थी बुनी।
पर कब कहाँ बातें तुम्हारी,गौर से मैंने सुनी।

'ललित'

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