छंद मुक्त रचनाएं 3

छंद मुक्त रचनाएं 3

1

साया

मैं अपने साये के पीछे भागता रहा,
ना समझ पाया क्या मुगालता रहा।
इक दिन ऐसा भी आया जिन्दगी में,
साया पीछे छूटा औ' मैं भागता रहा।

भीड में खुद को ही अकेला पाया
तब कहीं जाकर ये समझ या।
अकेले चलना पडेगा जिन्दगी में
साथ नहीं देता अपना ही साया ।

'ललित'

2

विधाता

वो शातिर एक खिलाडी है
            शतरंज का खेल खिलाता है।
बना शतरंज के प्यादे
              सभी को नाच नचाता है।
देता है एक को शह पे शह
              दूजे को मात दिलाता है।
देता है एक को गम ही गम
               दूजे को खुशी दिलाता है
देता है एक को युवा मौत
               दूजे को खाट - सुलाता है।
देता है एक को कंचन- तन
               दूजे को रूप छकाता है।
देता है एक को सजन -संग
                दूजे को विरह रुलाता है।
देता है एक को रतन -धन
                दूजे को फाके कराता है।
देता है एक को आरक्षण
                 दूजे को सवर्ण बनाता है।
देता है एक को राज-सदन
                 दूजे को वोटर बनाता है।
देता है एक को फाड छपर
                 दूजे को सडक पे लाता है।
देता है एक को सपूत
                 दूजे को कपूत रुलाता है।
समझ न पाये जो नर-मन
                  ऐसे वो खेल खिलाता है।
समझ न पाये ज्ञानी जन
                   मजा उसे क्या आता है?
देता सब को  कर्मों का फल
                  उस एक का नाम विधाता है।

'ललित'

3

पहली गजल

 आया जब तन पर बुढापा
                        दिल लगाने लग गये।
याद करते थे खुदा को
                         अब भुलाने लग गये।
पैर लटके कबर में
                      सबको हँसाने लग गये।
आँख में आँसू भी अब
                 ग्लिसरिन से आने लग गये।
प्यार जो करते थे हरदम
                      अब सताने लग गये।
प्यार से वो पीठ में
                    खंजर चुभाने लग गये।
देख कर जिनकी खुशी को
                       हम सराने लग गये।
आज वे ही हर खुशी
                        हम से छिपाने लग गये।
'ललित'

 4

दोस्ती

 दोसतों ने निभाई जो है दोसती
आसमाँ झूमकर देखता रह गया।

बादलों ने जमीं को किया तर-बतर
दाग दामन का वो भागता रह गया।

चाँद ने चाँदनी को जो छू भर दिया
रूप उसका जहाँ देखता रह गया।

चाँदनी ने जमीं को जो रोशन किया
आसमाँ देखकर देखता रह गया।

दोसतों ने जो दी हैं मिसालें यहाँ
ये जहाँ देखकर देखता रह गया।

ये जो 'काव्योदय' ने दिया आशियाँ
कवियों को जहाँ देखता रह गया।

अब छुएंगें कवि इक नया आसमाँ
रब हमें देखकर सोचता रह गया।

'ललित'

5

शादी

कैसा लगता है ?
जब आप
किसी शादी में जायें ,
गेट पर मेज़बान को ,
बड़ा सा बैग लिये ,
स्वागत करता पायें ,

किसी सजायाफ्ता की तरह ,
खड़े - खड़े बेस्वाद भोजन
आधापेट  खायें ,
गिफ्ट दे आयें
और
वापसी में
पेट भरने,
चौपाटी पर जायें ।

'ललित'

6

चाँदनी

कभी जो सोचा न था वो आज हो गया
खुशी रूठी हमराह गम आज हो गया ।
अमावस की रात बनी तमों की रानी
चाँद से चाँदनी को चुरा सूरज ले गया ।

कहे ये चाँदनी हूँ मैं सूरज की माया
चाँद  भी सदा से ही मुझे देख शरमाया ।
चाँद की चँदनिया हूँ मैं चाँद की रानी
चाँद को छू कर ही मैंने ये रूप पाया ।

'ललित'

7

छंद मुक्त मुक्तक

दिल के छाले
जो   छिपालें।
कहाँ   हैं   वे
अब   निराले।

नन्हा सा छाला
दिखा ही डाला।
मरहम के जैसा
काव्य रस हाला।

दर्द की ये दवा है
प्रगति की हवा है।
कविता न समझो
माँ की ये दुवा है।

'ललित'

8

अंतिम विचार

आता है याद , जीवन का नाद ।
आया खाली हाथ,कुछ न लाया साथ ।
बचपन की नादानी,अल्हड जवानी ।
घर - परिवार , नाते - रिश्तेदार ।
दो स्त - यार , प्यार - मनुहार ।
जमीन - जायदाद , बरकत - इमदाद ।
पूजा - पाठ , तीरथ - धाम ।
नौकरी - व्यापार , उत्सव - त्यौहार ।
सावन - भादो , बसन्त - बहार ।
मण्डल - बारात , शादी - सौगात ।
सजनी का साथ , प्यारे दिन - रात ।
महीने - साल , यही जंजाल ।
बिजली - फोन , लकडी,तेल,नोन ।
होली - दिवाली , राखी भी मनाली ।
टी वी - फ्रिज , बंगला - कार - एसी ।
जी ली जिंदगी , राजाओं जैसी ।
नेता को वोट , दे कर खाई चोट ।
बेटी - दामाद , बेटा और बहू ।
नाती - पोते , परदेसी होते ।
अधूरे जजबात , पुराने खयालात ।
अब है खाली हाथ , नहीं कुछ साथ ।
सोचता 'ललित' , यह जीवन - चरित ।
फिर वही बात , क्या जायेगा साथ ?

सद्गुरु के द्वारे , मिले ये इशारे ।
धन वो कमाओ प्यारे , जो जाये साथ तुम्हारे ।

'ललित'

9

ममता का रंग

सात रंगों से रब ने सारी,जगती को जब रंग दिया ।
एक अनोखा, जीवन दाता ,ममता का वो रंग  दिया।
कैसे मैजिक रंग को  रब ने,भरा है माँ की ममता में।
भाता हैसबको  बचपन में ,पर न भाये  युव रंग में।

माँ की ममता से रंग लेकर ,भरा है जिसने जीवन में ।
नहीं कोई ग़म उसको व्यापा ,खुशियाँ हैं घर-आंगन में।
'ललित' करे यह विनती रब से ,हमको केवल यह वर दो ।
माँ की ममता के रंगों को भर दो मेरे जीवन में ।

'ललित'

10

मोबाइल

काश, यह मोबाईल ईज़ाद न होता,
किसी के फोन का इंतज़ार न होता।
खुलकर साँस लेते सुकून से जीते
गर कम्बख्त फोनावतार न होता ।

जीवन इस कदर बेजार न होता
इंसाँ सरेराह गिरफ्तार न होता ।
अपनों की यादों में खोये ही रहते
गर यह जी का जंजाल न होता ।

'ललित'

मुक्तक
साया

वो अपने साये के पीछे भागता रहा,
नहीं समझ आया उसे क्या मुगालता रहा।
एक दिन ऐसा आया उसकी जिन्दगी में,
साया पीछे छूटा औ' वो भागता रहा।

भारी भीड में खुद को ही अकेला पाया।
तब कहीं जाकर उसे ये राज समझ या।
अकेले चलना पडेगा उसे जिन्दगी में,
साथ नहीं देता अपना ही प्यारा साया ।

'ललित'

No comments:

Post a Comment