ताटंक छंद सृजन 1

ताटंक छंद सृजन 1
28.03.16

1
कितनीे  भी आवाजें दे लो,बेशर्मों के कानों में।
उनकी नींदें नहीं उड़ेंगी,खोये जो परिधानों में।
राजा और प्रजा दोनों ही,पूरे पूरे दोषी हैं।
लूट रहे जनता को फिर भी,पसरी जो खामोशी है।

जिसकी लाठी भैंस उसी की,सच्ची यही कहानी है।
मतदाता के मन की पीड़ा,शासन ने कब जानी है।
मत दो,मत दो कहते थे जो,हाथ जोड़ते आते थे।
जनता की पीड़ा में भी जो,डुबकी खूब लगाते थे।

आज खोजती जनता उनको,सत्ता के गलियारों में।
लेकिन वो तो घूम रहे हैं,वोटों के बाजारों में।
घर का पूत कुँवारा डोले,पाड़ोसी के फेरे हैं।
ऐसे राजा को तो कोसे,जनता शाम सवेरे है।

'ललित'

2

ताटंक छंद

पूज्य समझते थे जो बेटे,मात पिता के पाँवों को।
अनजाने में भूल चले हैं,मात पिता के गाँवों को।
कंकरीट के जंगल में जब,रुपयों की बू भायेगी।
गाँवों की मिट्टी की खुशबू,उनको याद न आयेगी।

'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
3

सुबह सुबह अपने खेतों में,धूप सुहानी भाती थी।
पनघट से गगरी ले गोरी,ठुमक ठुमक जब आती थी।
उसकी पायल की छम छम तब,नए तराने गाती थी।
दिल जाता था भूल धड़कना,साँसें थम ही जाती थीं।

'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
4

कभी किसी को मत दिखलाओ,अपने दिल के छालों को।
घावों को सहला कर उन पर,नमक लगाने वालों को।
जिसने दिल को चीर दिया है,दौलत की तलवारों से।
उसको भी दो खूब दुआएं,जख्मी दिल के तारों से।

ललित

ताटंक छंद
29.03.16
5

जीवन की इस भाग दौड़ से,फुरसत जब भी पाता हूँ।
मन की गहराई में यारों,डुबकी खूब लगाता हूँ।
मन में जो भी भाव उठें मैं,कागज पर ले आता हूँ।
छंदों की जाजम पर उनकी,लय औ ताल मिलाता हूँ।

ललित

ताटंक छंद
29.03.16
6

अपने होकर भी जो हमसे,मिलते थे बेगानों से।
जिनकी अपनी नींव जमीं में,जुड़ी हुई तहखानों से।।
वो ही हमसे आज मिलें तो,खूब बलैयाँ लेते हैं।
शायद वो अब जान गए हम,बरगद छैयाँ देते हैं।
'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
7

अपनों की बस्ती में मैंने,कुछ बेगाने देखे हैं।
बेगानों से प्यार करें जो,वो मस्ताने देखे हैं।
भेद नहीं कर पाता अब मैं,अपनों और परायों में।
लगें पराये अपने जैसे,अपने मिलें सरायों में।।
'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
8

पंछी उड़ते देख हमारा,उड़ने का मन होता है।
मानव मन में भी इक पंछी,पंख समेटे सोता है।
उड़ने दो मन के पंछी को,छंदों औ' लय तालों में।
कविता तुम्हें नजर आएगी,मन के सभी सवालों में।

'ललित'

ताटंक छंद
29.03.16
9

थोक दुकानें खुली हुई हैं,कुछ बेखौफ दलालों की।
रोज खरीदा करते हैं जो,इज्जत नमक हलालों की।
सत्ता के ऊँचे शिखरों औ',सरपंची चौपालों में।
डूबा राम राज्य का सपना,अनदेखे घोटालों में।

'ललित'

ताटंक छंद
30.03.16
10

श्रीमद्भगवद्गीता
अध्याय दो
22,23वें श्लोक

खोल पुराने कपड़ों को ज्यों,वस्त्र नए नर ये  धारे ।
जीर्ण शरीर त्याग कर धारें,गात नया देही सारे।
इस आत्मा को शस्त्र न भेदें,आग जला कब पाती है।
जल आत्मा को गला न सकता,हवा सुखा कब पाती है।

ललित

ताटंक छंद
30.03.16
11

राम तुम्हारी राह देखती,शबरी साँझ सवेरे है।
आश्रम का पथ रोज बुहारे,माला दिन भर फेरे है।
मीठे मीठे बैर चुने हैं,चख चख तुम्हें खिलायेगी।
आश्रम जब पावन होगा वो,भोर कभी तो आयेगी।

ललित

ताटंक छंद
30.03.16
12

हनुमान जी की भक्ति

राम नाम की माला फेरूँ,उन के ही गुण  गाता हूँ।
सीता राम बसे हैं मन में,नित मैं ध्यान लगाता हूँ।
जो सिन्दूर राम को प्यारा,तन पे वो लिपटाया है।
सीता माता के चरणों में,वो वैकुंठ समाया है।

ललित

ताटंक छंद
31.03.16
13
कृष्ण दीनाने 7.1.17
कान्हा आज तुम्हारी राधा,यमुना तट पर आयी है।
सुध बुध भूले घूम रही है,दुनिया लगे परायी है।
श्याम तुम्हारे आने से ही,मन-उपवन के फूल खिलें।
बंशी की धुन सुने बिना तो,कानों में हैं शूल चलें।

'ललित'

ताटंक छंद
31.03.16
14
कृष्ण दीवाने7.1.17

वृक्षों से लिपटी लतिकायें,
                झूम-झूम मुस्काती हैं।
श्याम तुम्हारी राधा की ये,
                छुप छुप हँसी उड़ाती हैं।
मेरे मन में अगन लगी है,
                शीतल जल बरसा जाओ।
अपनी राधा से मिलने तुम,
                 एक बार तो आ जाओ।

'ललित'

ताटंक छंद
31.03.16

जिसके मन में अगन लगी है,विरहा की चिन्गारी से।
उसकी पीर वही जाने है,घायल जो दो धारी से।
कान्हा तुझ बिन मधुबन सूना,सूनी दिल की क्यारी है।
प्रीत विरह में बदल गई ये,कैसी तेरी यारी है।

'ललित'

ताटंक छंद
31.03.16
16

श्याम तुम्हारी छाया हूँ मैं,पलभर साथ न छोड़ूँगी।
मुरली की हर मधुर तान पर,मधुर गीत बन दौड़ूँगी।

अधरों से मुरली चिपका लो,नयन सुधा तुम बरसाओ।
इस पगली राधा को कान्हा,नहीं मिलन को तरसाओ।

ललित

20-11.16
ताटंक छंद
अपने-बेगाने

अपने होकर भी जो हमसे,मिलते थे बेगानों से।
जिनकी अपनी नींव जमीं में,जुड़ी हुई तहखानों से।।
वो ही हमसे आज मिलें तो,खूब बलैयाँ लेते हैं।
शायद वो अब जान गए हम,नोट बदल कर देते हैं।

'ललित'

ताटंक छंद
नोट

नोट -नोट में भी ऐ यारों,कितना अंतर है होता।
एक चढ़े देवों के दर पर,दूजा नाली में सोता।
एक बना आँखों का तारा,दूजे ने सपने तोड़े।
चोट दे गए वही नोट जो,तनका तिनका कर जोड़े।

'ललित'

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