ताटंक छंद सृजन 2 (31.03.16)
1
केडीआरजी5,2,17
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।
2
केडीआरजी 3-2-17
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।
3
केडीआरजी 4-2-17
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधा-कृष्ण की भक्ति कर लो,मिट जाएगी भव बाधा।
4
डूब गये जब सिर तक उनके,ख्वाबों और खयालों में।
तब दिल ने आवाज लगाई,घेरा हमें सवालों में।
खुद खोई है जो सपनों में,और किसी दिलवाले के।
घास कहाँडालेगी आगे,हम जैसे मतवाले के?
5
बाँट सको तो खुशी बाँट दो,गम अपने खुद ही झेलो।
फुरसत कहाँ किसी को इतनी, करले जो तुमसे हैलो।
आँख चुराकर निकलें सारे,अपने खास सगे जो हैं।
उनकी कद्र नहीं है कोई,गम में आज पगे जो हैं।
6
और किसी से आस करें क्या,अपना सिक्का ही खोटा।
पढ लिख कर सुत बड़ा हुआ तो,पत्थर दिल बन वो लौटा।
हर ग़म सहकर बेटे हमने,मुश्किल से तू पाला है।
बस माँ तुमने फर्ज निभाया, मेरी किस्मत आला है।
7
पत्थर पत्थर में भी देखो,कितना अन्तर होता है।
इक मूरत बन पूजा जाता,इक नाली में रोता है।
इक पर बैठी शोख हसीना,इक को लहरें ठोकें हैं।
इस किस्मत का खेल निराला,कर्मों ने सब झोंके हैं।
8
कर्म बने सत्कर्म तुम्हारा,हर पल ऐसे जी जाओ।
दीन दुखी की सेवा कर लो,उनके सब गम पी जाओ।
गौमाता की रक्षा कर लो,गौसेवा में मेवा है।
अपनी खातिर जिये मरे तो,कोई नाम न लेवा है।
9
जय मत बोलो जय मत बोलो,जय को धर्म नहीं माना।
गंगा को माता माना है,धरती को माता जाना।
लेकिन अब भारत में कोई,जय कारा मत ही बोलो।
यही हमारी आजादी है,अपना मुँह मत ही खोलो।
10
हिम्मत देखो,जीनत देखो,ताकत उड़ने की देखो।
सबको गगन उड़ाता था जो,खुद उड़ आज गया है खो।
नेता लूटें,माल्या लूटे,जनता का पैसा जानो।
पुल टूटें या दुनिया छूटे,ईश्वर की मर्जी मानो।
11
अब तो काँप उठी ये धरती,ऐसे झंझावातों से।
जिनके जिम्मे पुल था उनकी,उल्टी सीधी बातों से।
बनते बनते पुल गिर जाता,ईश्वर की मर्जी होती।
जिन माँओं की गोदें उजड़ी,जीवन भर रहतीं रोती।
12
कितनी चीखें निकल रही हैं,निर्दोषों की राखों से।
घड़ियाली आँसू बहते हैं,नेताओं की आँखों से।
पुल टूटा या दिल टूटे हैं,खामोशी बतला देगी।
इक दिन लावा फूट पड़ेगा,सरगोशी बदला लेगी।
13
दीया बाती
करने नाम दीप का रौशन,बाती खुद जल जाती है।
तन मन अपना सौंप दिये को,मनवा शीतल पाती है।
पर विडम्बना कैसी है ये,दिये तले तम है छाया।
सीता की ली अग्नि परीक्षा,शक ऐसा मन में आया
14
पलकें झपका भोर रही है,निशा चली मुँह फेरे है।
कली-कली ने घूँघट खोला,तितली रंग बिखेरे है।
आसमान पर छायी लाली,गोरी ले अँगड़ाई रे।
पनघट पर बाजें पैंजनियाँ,चूड़ी बजे कलाई रे।
15
शहर की भोर की
एक तस्वीर
कुछ को बिस्तर-चाय चाहिए,कुछ बागों में जाते हैं।
कुछ चाटें अखबार सुबह का,कुछ मन्दिर हो आते हैं।
ऐसी सुबह शहर की देखो,बच्चे बिस्ते ढोते हैं।
कुछ बीनें कचरे में थैली,कुछ कचरे में खोते है
16
4.4.16
कन्या भ्रूण हत्या
माँ तू नारी होकर इतनी,निष्ठुर क्यूँ बन जाती है।
कन्या की आहट सुन तेरी,चिन्ता क्यूँ बढ़ जाती है।
तेरी हिम्मत से ही माता,युग परिवर्तन आएगा।
तू आवाज उठाएगी तो,कोई दबा नहीं पाएगा।
17
नारी शोषण
मन ही मन में खुश होकर हम, नारा खूब लगाते हैं।
जहाँ होय नारी की पूजा ,देव वहीं रम जाते हैं।
नारा देने वाले ने यह,सपने में कब सोचा है।
नारी के अधिकारों को तो,हर युग में ही नोंचा है।
18
बेटी
बेटी बनकर जन्मी हो तुम,बेटा बनकर जी जाओ।
अपनी रक्षा करने के गुर,घुट्टी में ही पी जाओ।
हार किसी से नहीं मानना,आगे बढ़ते जाना है।
जिसने मन में ठानी उसके,कदमों तले जमाना है।
19
कन्या भ्रूण हत्या
माँ के गर्भ में से कन्या की पुकार
माँ मै तुझ सी प्यारी सूरत,लेकर जग में आऊँगी।
किलकारी से घर भर दूँगी,पैंजनियाँ छनकाऊँगी।
तेरी गोद हरी कर दूँगी,साँस मुझे भी लेने दे।
जीवन रूपी रथ की ऐ माँ,रास मुझे भी लेने दे।
जब तू मुझको छूती है माँ,अपने मन की आँखों से।
मन करता है उड़ जाऊँ मैं,तेरे मन की पाँखों से।
माँ इतना ही वादा कर ले,मुझको जग में लाएगी।
किसी दुष्ट की बातों में आ,मुझको नहीं मिटाएगी।।
2
गर्भवती माँ का उत्तर
मेरे अन्दर पनप रही जो,एक कली अरमानों की।
नजर न लगने दूँगी उसको,इन बेदर्द सयानों की।
बेटी मेरी माँ बनने की,आस तभी पूरी होगी।
गोदी में खेलेगी जब तू,नहीं तनिक दूरी होगी।
लड़ जाऊँगी मैं दुनिया से,बेटी तुझे बचाने को।
सीखूँगी सब दाँव पेंच मैं,ताण्डव नाच नचाने को।
मेरे आँगन में किलकारी,भरने तू ही आएगी।
तेरी जान बचाने में ये,जान भले ही जाएगी।
ललित किशोर'ललित'
नारी शक्ति
5.4.16
ताटंक
आर जी 8.2.17
मोक्ष नहीं मैं चाहूँ कान्हा,वंशी बन जीना चाहूँ।
तेरे मधुर मधुर अधरों का,अधरामृत पीना चाहूँ।
क्या मैं ऐसा पुण्य करूँ जो,बन मुरली तेरी पाऊँ।
लगी रहूँ अधरों से तेरे,गुण राधा जी के गाऊँ।
'ललित'
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