14.01.2021
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---तोटक छंद विधान---
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1.यह एक वार्णिक छंद है।
2.इसमें कुल चार पंक्तियाँ होती हैं।
3.प्रत्येक पंक्ति में कुल चार सगण अर्थात् लघु लघु गुरू x 4 कुल 12 वर्ण होते हैं।
4.दो या चार समतुकांत होते हैं।
5.यह छंद भक्ति, नीति, तथा आदर्श परक रचनाओं के लिए प्रसिद्ध है।
**** उदाहरण ****
तोटक छंद
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हँसती कलियाँ महकी-चहकी।
नित भोर दिखें बहकी-बहकी।
भँवरे खुश हो कहते बतियाँ।
कलियों बिन सून लगें रतियाँ।
**********रचनाकार**************
ललित किशोर 'ललित'
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तोटक छंद रचनाएँ
1.
सियाराम
सिय राम सदा मन माहिं भरे।
शिव वानर का अवतार धरे।।
दुख दारुण ताप मिटावन को।
धरती पर पाप नसावन को।।
हनुमान करें हरि से विनती।
सिय राम जपूँ बिन ही गिनती।
प्रभु और न चाह रहे मन में।
दिन रात रमूँ बस कीर्तन में।
ललित किशोर 'ललित'
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2.
रवि
धर रूप मनोहर आज उगा।
रवि पूरब से नव प्रीत जगा।।
सब ताप हरे नव जीवन दे।
तम घोर हरे हरि की धुन दे।।
ललित किशोर 'ललित'
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3.नारी
वह आज बनी खुद ही सबला।
अब नार यहाँ न रही अबला।।
करती सच आज सभी सपने।
फिर साथ चलें न चलें अपने।।
ललित किशोर 'ललित'
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4.कान्हा
मुख माखन हैं लिपटाय लिये।
झट से मटकी गुड़काय दिये।।
अब कान्ह खड़े मुसकाय रहे।
सब गोपन को नचवाय रहे।
ललित किशोर 'ललित'
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5.सपने
बुनते बुनते मन के सपने।
कुछ यों पथ में बिछड़े अपने।।
अब हाथ नहीं कुछ साथ नहीं।
रस रंग भरी कुछ बात नहीं।।
ललित किशोर 'ललित'
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6.मीत
कब कौन कहे अपना मुझको।
सब यार कहें सपना मुझको।
इस जीवन की बस रीत यही।
मन से अपने सब मीत नहीं।
ललित किशोर 'ललित'
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7.पतवार
चल आज उठा पतवार नई।
हर बार मिले इक धार नई।।
यह नाव पुरातन पार करा।।
सपने सच हों इस बार जरा।
ललित किशोर 'ललित'
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8.अपने-अपने दुख
सबके अपने अपने दुख हैं।
दुख में सब चाह रहे सुख हैं।।
सुख और कहीं गर पा न सको।
करके उपकार गहो उसको।
ललित किशोर 'ललित'
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9.दुख
कब कौन यहाँ दुख है सुनता।
हर नींव सुखों पर है चुनता।।
दुख भोग खुदी खुद तू अपना।
मत देख सहायक का सपना।।
ललित किशोर 'ललित'
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10. भोर
यह भोर हुयी मनभावन है
सुनके सब सस्वर पावन है।।
सब तोटक छंद सुनाय रहे।
हम ताल मृदंग बजाय रहे।।
ललित किशोर 'ललित'
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11.मनमोहन
तोटक छंद
उस गोप सखा मनमोहन की।
छवि श्यामल की मनभावन की।।
भरले मन में अरु नैनन में।
वह पार करे इक ही छन में।।
पट खोल जरा अपने मन का।
हर रोम जगा अपने तन का।।
हरि नाम जपे हर रोम जहाँ।
खुद आन बसें घनश्याम वहाँ।।
ललित किशोर 'ललित'
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12.राह नयी
अब खोज जरा इक राह नयी।
दुनिया यह दारुण दु:ख मयी।
जग को बिसरा मन को मथ ले।
हरि नाम भरा अपना पथ ले।
ललित किशोर 'ललित'
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13.
जीवन दर्शन
कुछ पुष्प चढें हरि मस्तक हैं।
कुछ कंटक ज्यों अति घातक हैं।।
जब प्रेम मिले हर फूल खिले।
मन मंदिर में मत पाल गिले।।
ललित किशोर 'ललित'
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14.
ईश वंदना
प्रभु राम निवास करो मन में।
मन के सब ताप हरो छन में।।
तव नाम जपूँ नित ही मुख से।
हरि आप निहाल करो सुख से।।
तन का हर रोम उदास प्रभो।
भर दो मन आज उजास प्रभो।।
जग में न दिखे कुछ सार मुझे।
भव से कर दो अब पार मुझे।।
प्रभु नाम सदा जपता रहता।
फिर क्यूँ जग में खपता रहता।।
जगदीश कहा मुख से जब ही।
तम का फिर नाश हुआ तब ही।।
इस जीवन का अब सार यही।
करले हरि नाम से प्यार सही।।
कर थाम लिया प्रभु ने जिसका।
हर काम महान हुआ उसका।।
ललित किशोर 'ललित'
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15.
मुनियाँ
हर द्वार जहाँ मुनियाँ चहकें।
हर आँगन में कलियाँ महकें।।
हर बालक रौशन नाम करे।
लड़की नभ में परवाज भरे।।
अब देख रहा कल का सपना।
यह भारत देश जवाँ अपना।।
कह मात इसे तुम आदर दो।
मत धर्म सनी इक चादर दो।।
ललित किशोर 'ललित'
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16.
क्रिकेट जीत
जहँ ज्ञान सुधा अविराम बही।
यह भारत देश महान वही।।
हर खेल यहाँ पर जीत लिया।
हर दुश्मन को भयभीत किया।।
ललित किशोर 'ललित'
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17.
तुलसीवन
अब आज मुझे इस जीवन से।
कुछ सीख मिली तुलसीवन से।।
हर आँगन पावन धाम करो।
उपकार भरा कुछ काम करो।।
ललित किशोर 'ललित'
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18.
बिटिया
जिसके घर में बिटिया चहके।
घर स्वर्ग समान सदा महके।।
वह चंचल वायु समान रहे।
बन शीतल प्रेम प्रवाह बहे।
जब मात पिता पर पीर परे।
तब वो बिटिया तदबीर करे।।
मत सोच कभी घटिया रखना।
लछमी सम ही बिटिया रखना।।
ललित किशोर 'ललित'
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19.
मँझधार
जब यौवन बीत गया सुख से।
तब राम नहीं निकला मुख से।।
अब वृद्ध हुआ तब याद करे।
उस ईश्वर से फरियाद करे।।
मत जीवन व्यर्थ गवाँ अपना।
मत राम बिसार लखे सपना।।
जब नाव फँसे मँझधार कभी।
प्रभु राम करें उस पार तभी।।
ललित किशोर 'ललित'
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20.
बहन
कुछ और नहीं मुझको कहना।
मत आज कहो मुझको बहना।।
जब लाज लुटे चुप हो रहते।
तब घाव हरे दिल के बहते।।
ललित किशोर 'ललित'
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21.
सुप्रभात
तम आज अचानक भाग लिया।
जब सूरज ने सुप्रकाश किया।।
सब भूल गये रजनी तम की।
जब भोर भए किरणें चमकी।।
ललित किशोर 'ललित'
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22.
प्रेम भरे दिल
कुछ लोग सदा मुख मोड़ चलें।
कुछ प्रेम भरे दिल तोड़ चलें।
हँसते हँसते कुछ यों कहते।
हम प्यार भरे दिल में रहते।।
ललित किशोर 'ललित'
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23.
मन मंदिर
नभ लाल गुलाल अबीर उड़े।
मन से मन के सब तार जुड़े।।
मनमीत गले मिल आज रहे।
अब बीच नहीं कुछ राज रहे।।
सब के दिल फाग विराज रहा।
किसके मन में अब खाज रहा।
यह प्रीत भरी ऋतु है कहती।
मन मंदिर प्रीत सदा बहती।।
ललित किशोर 'ललित'
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24.
मोहन का नाम
कुछ और नहीं अब काम रहा।
जप मोहन का बस नाम रहा।।
वह छोड़ गये सब आश्रम में।
जिनके मन में हर शाम रहा।।
परिवार प्रभू समझा जिसने।।
यह जीवन व्यर्थ किया उसने।
अपने हित भी कुछ दाम रखो।
कब साथ दिया किसका किसने।।
ललित किशोर 'ललित'
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25.
फागुन
इस फागुन आन मिलो सजना।
यह पायल भूल गई बजना।।
मन चंचल आज नहीं बस में।
अब छोड़ चलो जग की रसमें।।
ललित किशोर 'ललित'
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26.
रात
जब आँख जरा लगती थकती।
तब रात धरा-नभ को ढकती।
यह रात कहे इक बात सही।
बचती मुझसे हर भोर रही।।
ललित किशोर 'ललित'
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27.
धन और मन
कुछ तो समझो इस जीवन को।
कुछ तो समझो अपने मन को।
मन की हर चाल छले तन को।
मन की इक भूल हरे धन को।
चलता फिरता उड़ता मन है
कुछ दोष भरा कुछ पावन है।
जब जीवन सौंप दिया मन को
फिर कौन न प्यार करे धन को।
धन से मन का गठजोड़ बड़ा
धन से तन का हर जोड़ जड़ा।
धन से मुख मोड़ जरा हँस ले
हरि कीर्तन मूढ़ जरा रस ले।
ललित किशोर 'ललित'
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28.
मनमीत हरे सुख चैन जहाँ
मनपीर हरे फिर कौन वहाँ।
इस जीवन की तकदीर यही
मन की मन में हर पीर रही।
हिलती डुलती यह नाव चली
सहती दुख का हर घाव चली।
पतवार हिले तब नाव चले
पतवार दिए कुछ घाव चले।
ललित किशोर 'ललित'
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29.
पायल
यह पायल भूल गयी बजना।
अब आन मिलो हमसे सजना।
घुँघरू दम तोड़ रहे गम से।
सब रौनक साजन के दम से।
ललित किशोर 'ललित'
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30.
छंद
किसने इतने रच छंद दिए
सब छंद बड़े रसमंद दिए।
कवि कौन रहा रचता इनको
हम सीख रहे लिखना जिनको।
ललित किशोर 'ललित'
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31.
जींस
जब जींस बनी तन का गहना
कब शर्म बनी मन का गहना।
अब टॉप हुआ टिपटॉप यहाँ।
अरु साजन का लिपटॉप यहाँ।
ललित किशोर 'ललित'
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धन्यवाद
ReplyDeleteतोटक छन्द
ReplyDeleteतुमसे पहले कुछ है कहना,
मुझसे मिलना जब दो गहना;
मिलना जुलना अब बंद करो,
अपने घर का अब राह धरो।
प्रियसी गहना बनबा कर ही,
समझो तुझसे मिलना तब ही;
हर हाल तुम्हें खुश है रखना,
सर हाज़िर है जब भी कहना।
नरेंद्र सिंह
22.05.2024
बहुत सुंदर सृजन आदरणीय
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