25.3.16
मुक्तक
14 14
समीक्षा हेतु
प्रथम प्रयास
पत्नी
हमारी वो हमें लगती,श्री देवी की मूरत है।
हकीकत में हमें लगती,वही दिल की जरूरत है।
मगर तारीफ करने का,सलीका कौन सिखलाए।
पकड़ कर हाथ कह बैठे,अँगूठी खूबसूरत है।
'ललित'
मुक्तक
14 14
समीक्षा हेतु
द्वितीय प्रयास
सुनो ओ राधिका रानी,नजर मत यूँ चुराओ तुम।
हमारी कीमती बंसी,चुरा मत मुस्कुराओ तुम।
यही मुरली मधुर तानें,सुना तुमको बुलाती है।
हमें देखो नयन द्वारे,न नीचे को गिराओ तुम।
ललित
मुक्तक
14 14
समीक्षा हेतु
तृतीय प्रयास
राधा कृष्ण
इशारों ही इशारों में,हमें तुम छेड़ जाती हो।
हमारा दिल जलाती हो,हमारी जाँ सताती हो।।
इसी दिल मे बसी तुम हो,अरी ओ राधिका प्यारी।
हमें तुम प्यार करती हो,कहो फिर क्यों नचाती हो।।
'ललित'
26.03.16
मुक्तक
बहर
2 2 2 2 1 2 2 2 2 2
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
जिस माँ से प्यार का सागर पाया।
उसके ही प्यार को क्यूँ बिसराया।।
इस माँ का प्यार ना जिसने समझा।
क्या उसको प्यार का मतलब आया।।
ललित
27.03.16
मुक्तक
14 14
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
आज मानव अनमना सा ,
व्यस्त कितना हो रहा है?
क्यूँ ये मानव दिल ही दिल में,
पस्त इतना हो रहा है?
खून के रिश्ते भुला ये,
आज बेगाना हुआ क्यों?
क्यूँ बना दानव सरीखा,
मस्त इतना हो रहा है?
'ललित'
मुक्तक
14 12
प्रथम प्रयास
समीक्षा हेतु
प्रीत पत्थर से करो तो,मोम सा जाए पिघल।
प्रेम काँटों से करो तो,फूल ही आएँ
निकल।
प्यार में जो बल छुपा है,बैर में है वो नहीं।
श्लोक गीता के सुनो तो,शांत होगा मन विकल।
'ललित'
मुक्तक
14 12
द्वितीय प्रयास
समीक्षा हेतु
नेताओं से एक सवाल
चल पड़े हो किस डगर पर,किस नगर को जा रहे?
बीज बोकर बैर के तुम,किस फसल को पा रहे?
एक पल सोचो जरा तुम,आत्म विश्लेषण
करो।
भाइयों को यूँ लड़ा कर,हर नसल को खा रहे।
'ललित'
मुक्तक
14 12
तृतीय प्रयास
समीक्षा हेतु
खोज कर देखा जहाँ में,मीत सच्चा है नहीं।
शांति मन को जो न दे वो,गीत अच्छा है नहीं।
प्यार का प्यासा समंदर,हर नजर में डोलता।
प्यास में ही जो डुबो दे,कूप कच्चा है नहीं।
'ललित'
"चार कदम"
"मुक्तक दिवस 148"
समारोह अध्यक्षा रेनू त्रिवेदी मिश्रा जी को
सादर निवेदित
मुक्तक 16-14
आज मिली है रोटी मुझको,कल का कोई पता नहीं।
भीख माँग कर खाता हूँ मैं,मेरी कोई खता नहीं।
रोज कहाँ ऐसा होता है,रोटी मुझको मिल जाए।
आज सहारा कहीं न मिलता,किसी पेड़ पर लता नहीं।
'ललित'
मुक्तक 16,,,14
प्यार मुफ्त में कहीं न मिलता,हर दिल में इक दूरी है।
माँ जैसा अहसास नहीं है,माँ की ममता पूरी है।
जीने को तो सब जीते पर,ये जीना भी क्या जीना।
दुनिया बिलकुल रास न आती,पर जीना मजबूरी है।
ललित
मुक्तक 16,,,14
बात कहूँ मैं अपने दिल की,औरों की मैं क्या जानूँ।
फूलों में जजबात नहीं हैं,भौंरों की मैं क्या जानूँ।
प्यार बिके अरमान बिकें हैं,आज यहाँ सब कुछ बिकता।
झरनों में आवाज नहीं है,धौरों की मैं क्या जानूँ।
ललित
मुक्तक 14..12
आद्या
एक छोटी बच्ची की सोच
सोचती हूँ बैठ कर मैं,आज इस सोपान पर।
कौन सा गाना जमेगा,जिन्दगी की तान पर?
कौन सा चश्मा लगाकर,साफ आएगा नजर?
जिंदगी की मंजिलें सब,हों फिदा मुस्कान पर।
'ललित'
मुक्तक
जिंदगी से जो मिला कुछ कम नहीं।
पैर काले रह गए कुछ गम नहीं।
या खुदा गम आज इतना ही हमें।
नेक चलनी में रहा कुछ दम नहीं।
'ललित'
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