कुण्डलिनी सृजन 2

कुण्डलिनी सृजन 2श
11.12.16
1
कान्हा तेरी प्रीत में,यही बात है खास।
आत्मा का होता मिलन,चले रात भर रास।
चले रात भर रास,अलौकिक है ये रीती।
नाचा तेरे साथ,उसी ने दुनिया जीती।

'ललित'
2
फूलों को रब से मिली,काँटों की सौगात।
फिर भी वो महकें सदा,दिन हो चाहे रात।

दिन हो चाहे रात,सदा मुस्काते रहते।
प्रेम-प्रीत के भाव,सदा बिखराते रहते।

'ललित'
3
खूब किये जिसने सितम,छीना चैन करार।
उस कातिल की हर अदा,हमें गयी है मार।

हमें गयी है मार,चलाए दिल पर आरी।
भूले हम संसार,हँसे है दुनिया सारी।
ललित
4
कान्हा तेरी बाँसुरी,छेड़े अद्भुत तान।
जिसको सुनने के लिए,तरसें सबके कान।

तरसें सबके कान,गोपियाँ घर को त्यागें।
बरसाने को छोड़,राधिका व्रज को भागें।
ललित

5
कैसा ये अन्याय है,कैसी है ये रीत?
मैया भी सुनती नहीं,जीवन का संगीत।

जीवन का संगीत,अजन्मी कन्या गाए।
इक बेटी का जन्म,नहीं क्यों माँ को भाए?
ललित

6
मिलते नित नव मीत हैं,बिछुड़े हैं कुछ मीत।
रोज बदलता साज ये,जीवन का संगीत।
जीवन का संगीत,भोर में पंछी गाते।
समझें इसका सार,वही आगे बढ़ पाते।

'ललित'

7
अपनी-अपनी है व्यथा,अपने-अपने घाव।
अपनी ही पतवार से,पार लगेगी नाव।
पार लगेगी नाव,मिलेगा उसे किनारा।
देख डोलती नाव,नहीं जो हिम्मत हारा।

'ललित'
8
शीतल सुरभित ये हवा,पिय की याद दिलाय।
छम-छम-छम-छम बाज के,पायल नीद उड़ाय।
पायल नीद उड़ाय,हो रहे नैन गुलाबी।
साजन बैरी हाय,ले गया दिल की चाबी।

ललित

9
कृष्ण दीवाने 15.1.17
राधा गोविंद 15.1.17
कुसुम करें अठखेलियाँ,कलियाँ झूमी जायँ।
जब मुरली की तान पर,गीत गोपियाँ गायँ।

गीत गोपियाँ गायँ,भूल सुध-बुध वो झूमें।
हर गोपी के साथ,रास का रसिया घूमे।
ललित
10

12

कृष्ण दीवाने 22.1.17
राधा गोविंद 22.1.17
कंकर से घट फोड़ता,नटखट माखन चोर।
गोपी पीछे दौड़ती,पकड़ न पाए छोर।

पकड़ न पाए छोर,कन्हैया घर को भागे।
सोये चादर ओढ़,उनींदा सा वो जागे।

'ललित'
13
हे गणनाथ गजानना,नित मैं जोड़ूँ हाथ।
घर मे सदा विराजिए,ऋद्धि सिद्धि के साथ।

ऋद्धि सिद्धि के साथ,कृपा बरसाते रहना।
जो भी आएं विघ्न,उन्हें टरकाते रहना।
ललित
14
जीने की आशा लिए,जीवन बीता जाय।
मौत उसे लगती सगी,जो नर गीता गाय।

जो नर गीता गाय,उसे जीना है आता।
मन में लेता जान,मौत से पक्का नाता।
ललित

15

अदरक वाली चाय से,जिसे नहीं परहेज।
वो दूल्हा स्वीकारता,दुल्हन बिना दहेज।

दुल्हन बिना दहेज,चाँदनी जैसी प्यारी।
देती जो हर रोज,पिया को खुशियाँ सारी।

ललित
16

17
कृष्ण दीवाने 23.1.17
राधा गोविंद 23.1.17
फूल सुगंधित खिल रहे,बगियन में हर ओर।
राधा जी से आ मिले,साँवरिया चितचोर।
साँवरिया चितचोर,आँख से करें इशारे।
जग के सारे फूल,राधिका तुझ पर वारे।

ललित

18
यमुना की लहरें थमीं,सुन मुरली की तान।
तरु-पल्लव सब झूमके,कहते कृपानिधान।

कहते कृपानिधान,नजर भर हमको देखो।
बन जाए कुछ बात,पलट कर हमको देखो।

ललित

19
सूख गयी नदियाँ सभी,लुप्त हुए तालाब।
मानव ने छोड़ा नहीं,आँखों में भी आब।

आँखों में भी आब,नही क्यों अब है दिखता?
क्यों कोड़ी के मोल,यहाँ मानव है बिकता?

'ललित'
20
ममा मुझे है खेलना,मोबाइल मे खेल।
चाबी वाली ये मुझे,नहीं चलानी रेल।

नहीं चलानी रेल,मुझे बहलाना छोड़ो।
मेरे नाजुक गाल,ममा सहलाना छोड़ो।

'ललित'
21

लेडी फिंगर जी कहें,भिण्डी से सब लोग।
और टमाटर से कहें,कर ले बेटा योग।

कर ले बेटा योग,तभी भिण्डी से शादी।
होगी तेरी और,नहीं होगी बरबादी।

'ललित'

22
बित्ते भर की छोकरी,पहने चूड़ी लाल।
सारी गलियों में फिरे,करती खूब धमाल।

करती खूब धमाल,बाग में झूला झूले।
पाठ किए जो याद,उन्हें पलभर में भूले।

'ललित'

बूफे पार्टी में गये,बंदर जी इक रोज।
इमली की चटनी लिए,रहे समोसा खोज।

रहे समोसा खोज,मगर फिर सू सू आई।
इक कोने को खोज,वहीं पर धार लगाई।

'ललित'

जंगल में मंगल हुआ,नाच रहे सब मोर।
बन्दर जी शादी करें,बाजे का है शोर।

बाजे का है शोर,कोयलें गाती गाना।
भालू चीते शेर,खा रहे जमकर खाना।

'ललित'

No comments:

Post a Comment

छद श्री सम्मान