ताटंक सृजन 4 राधा जी

ताटंक छंद 3
26.12.16

राधा वियोगी

कान्हा तेरे सुख की खातिर,ये वियोग सह लूँगी मैं।
तेरी बाहों के झूले की,यादों में रह लूँगी मैं।

फूल बिछा दूँगी राहों में,चुन लूँगी पथ के काँटे।
हँस कर झेलूँगी सब दुख जो,किस्मत ने मुझको बाँटे।

ललित

पीर पराई किसने जानी,किसने पर-पीड़ा भोगी।
जो औरों के दुख को समझे,वो होगा कोई योगी।
दु:खों की गंगा में गोता,हर मानव ही खाता है।
हरपल याद रखे जो हरि को,वो भव से तर जाता है।

'ललित'

छोटा सा है जीवन अपना,चार दिनों का है मेला।
इक दिन धोखा दे जाएगा,चलती साँसों का रेला।
कर लो सबसे प्यार जगत में,प्रीत बिना कैसा जीना?
जीवन को संगीत बना लो,गीत बिना कैसा जीना?

'ललित'
नव वर्ष

करने को श्रृंगार धरा का,दिनकर पूरब से आया।
ढकने को धरती का आँचल,स्वर्ण चुनर प्यारी लाया।
नये वर्ष में नये रूप में,नयी उमंगें ले आया।
तूफानों को मायूसी की,कटी पतंगें दे आया।

ताटंक छंद
राधा-उद्धव संवाद
1
उन सुजान कान्हा को उद्धव,भूल भला सकती कैसे?
जिनकी याद बसी आत्मा में,जीवन-प्राणों में ऐसे।
नित्य निरंतर ये मन प्रिय की,मधुरिम यादों मे खोया।
प्राणि,पदार्थ,परिस्थिति-सब को,भूल गया है ये गोया।

क्रमश:

'ललित'

ताटंक छंद
राधा-उद्धव संवाद
2
सुंदरता,माधुर्य,रूप जो,नित्य नऐ धर लेते हैं।
नित नव नेह,प्रेम,प्रीती से,मन मेरा हर लेते हैं।
नित नवीन भावों की यादें,शोभित हैं मन में मेरे।
नित नवीन संगम की यादें,रहें मधुर मन को घेरे।

क्रमश:

'ललित'

नये वर्ष में नयी धुनों पर,मुरली श्याम बजा देना।
मेरे अधरों पर मंगलमय,नित नव गीत सजा देना।
मनमंदिर में मूरत तेरी,संग राधिका प्यारी हो।
दिन तो दिन है कान्हा मेरी,नहीं रात भी कारी हो।
'ललित'

चाट चाट कर अँगुली से जब,चाट आपने खायी थी।
याद करो सोला का वो दिन,जब भाभी बहलायी थी।
अब सतरा में उस भाभी को,भूल नहीं जाना प्यारे।
चाँद नहीं ला सकते तो तुम,ला देना थोड़े तारे।

ललित

कान्हा की वंशी की धुन सुन,

करने को श्रृंगार धरा का,दिनकर पूरब से आया।
ढकने को धरती का आँचल,स्वर्ण चुनर प्यारी लाया।
नये वर्ष में नये रूप में,नयी उमंगें ले आया।
तूफानों को मायूसी की,कटी पतंगें दे आया।

छोटा सा है जीवन अपना,चार दिनों का है मेला।
इक दिन धोखा दे जाएगा,चलती साँसों का रेला।
कर लो सबसे प्यार जगत में,प्रीत बिना कैसा जीना?
जीवन को संगीत बना लो,गीत बिना कैसा जीना?

चाट चाट कर अँगुली से जब,चाट आपने खायी थी।
याद करो सतरा का वो दिन,जब भाभी बहलायी थी।
अट्ठारा में उस भाभी को,भूल नहीं जाना प्यारे।
चाँद नहीं ला सकते तो तुम,ला देना थोड़े तारे।
'ललित'

ताटंक
गीत

देखो री वो कुँवर कन्हाई,अब तक लौट न आयो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

पाँवों में पैंजनियाँ बाजें,मोर मुकुट सिर धारौ है।
वाकी तिरछी चितवन ऊपर, मैंने तो जग वारौ है।
उस नटखट नागर कान्हा ने,सबको नाच नचायो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

गोप-गोपियों का प्यारा जो,गौओं का रखवाला है।
चोरी करता माखन की वो,माखन-चोर निराला है।
एक वही बदनाम हुआ क्यों,माखन सबने खायो री?
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

लीलाधर वंशीधर गिरधर,वैजंती माला धारी।
नाम जपा है जिसने निश-दिन,उसकी ही नैया तारी।
बेड़ा पार करे वो भव से,जाने वाको ध्यायो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।
ललित

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