कुण्डलिया सृजन 3
कुण्डलिया
जय माखन चोर की
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खोजत हारीं गोपियाँ,वन-उपवन हर छोर।
नन्दभवन में जा छुपा,वो माखन का चोर।
वो माखन का चोर,बड़ा बनता है भोला।
घट माखन के देख,सदा जिसका मन डोला।
कहे 'ललित' कविराय,विविध ढँग सोचत हारीं ।
छुप गयो नंदकिशोर, गोपियाँ खोजत हारीं।।
ललित
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हर लो हे मनमोहना,मेरे मन का राग।
मान और यशकामना,विषय सुखों की आग।
विषय सुखों की आग,बुझा दो किरपा जल से।
मिलें आत्म-परमात्म,तुम्हारे ही दल-बल से।
कहे 'ललित' कर जोड़,मुझे बाहों में भर लो।
दे दो दर्शन श्याम,सभी पापों को हर लो।
'ललित'
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