मन के मीत कुकुभ मुक्तक


मुक्तक (कुकुभ आधारित)
26.2.17
1
काव्य सृजन

माँ शारद की किरपा से ये,मन भावों में बहता है।
छंदो की नक्काशी से कवि,सुंदर कविता कहता है।
गुरू ज्ञान की सरिता से ही,'काव्य सृजन' ये निखरा है।
गुरू बिना तो मानो सब कुछ,बिखरा बिखरा रहता है।

2
माँ

माँ तेरे दामन की खुशबू,मन को शीतल कर जाए।
तेरे ये दो नैना मुझ पर,स्नेह सुधा नित बरसाएँ।
पथ में जो काँटे बिखरे माँ,दूर उन्हें तुम कर देना।
तेरे आँचल की छाया माँ,मन में खुशियाँ भर जाए।

3
भोला बाबा

आज बिरज में कान्हा का इक,बाबा ने दर्शन पाया।
मोहन भी रोना भूला जब,भोला बाबा बन आया।
बाबा भूल गया बाबापन,जब मोहन की छवि देखी।
बाबा अपलक देख रहा था,अलख निरंजन हरि माया।

4
रास

रास रचाए रस बरसाए,रसिक रास की इक छोरी।
गोप गोपियों को नचवाए,बरसाने की इक गोरी।
मुरली से पायल बजवाए,वंशी का वादक न्यारा।
मट मट मट आँखें मटका जो,करता सबका दिल चोरी।

5

झूठी प्रीत
प्रेम जगत के सुंदर सुंदर,ख्वाब हमें क्यूँ दिखलाए?
बरखा-सावन के वो नगमे,क्यूँ हमको थे सिखलाए?
झूँठी प्रीत तुम्हारी निकली,झूँठे निकले सब वादे।
हाय हमें बहलाने को तुम,झूँठे खत क्यूँ लिखलाए?

6
रिश्ते-नाते

प्रेम-प्यार औ' रिश्ते-नातों,से अब मानव घबरावे।
मात-पिता,भाई-भावज की,कोई बात न अब भावे।
टूटे दिल के तार यहाँ पर,कोई जोड़ न अब पाता।
अब तो बीबी-बच्चों में ही,सब संसार नजर आवे।

7
प्राची

प्राची ने ओढ़ी है चुनरी,चमके ज्यों केसर क्यारी।
कलियों ने मुस्कान सजाली,अधरों पर निर्मल प्यारी।
तारों ने अम्बर को छोड़ा,डाल रहा दिनकर डेरा।
हर हर हर हर महादेव का,घोष कर रहे नर नारी।

8
माया

कैसी माया प्रभु ने रच दी,कैसा मन को भरमाया
मानव तन की कीमत प्राणी,जीवन भर न समझ पाया।
पैसा खूब कमाने में ही,बीता यह जीवन सारा।
खाली हाथ एक दिन जाना,कभी न मन को समझाया।

9
ममता

सतरंगी दुनिया के सातों,रंग बड़े सुंदर प्यारे।
ममता रूपी रंग जहाँ हो,फीके रंग वहाँ सारे।
जितना प्यार करे माँ सुत को,उतना रंग निखरता है।
लेकिन सुत तो बूढ़ी माँ का,निश्छल रंग न मन धारे।

10
गम

नारंगी कुछ सतरंगी कुछ,बेरंगी कुछ गम होते।
कड़ुवे कुछ तीखे-खट्टे कुछ,गम मीठे कुछ कम होते।
गम ही तो बहलाते दिल को,खुशियाँ कब खुश रख पातीं।
वो सब का दिल हैं बहलाते,जो सुख-दुख में सम होते।

11
काँटे

काँटों की पहरेदारी में,फूल सुगंधित खिलते हैं।
प्यार करें कंटक फूलों से,रोज गले वो मिलते हैं।
दुश्मन के हाथों में चुभकर,शूल पुष्प को सहलाएं।
वो कंटक बदनाम हुए जो,दिल के टुकड़े सिलते हैं।

12
माँ
इस  सुन्दर मोती को माँ तू ,रो रो कर मत बहने दे।
अपने दिल के अरमानों को,आँख के अंदर रहने दे।
तेरी दुआ से इन नैनों में,खुशी के आँसू भर दूँगा।
तेरी इस पीड़ा को माँ बस,कुछ दिन मुझको सहने दे।
              
13
भोला बाबा

भोला-भाला औघड़ बाबा,करे बड़ा गड़बड़ झाला।
शीश शशि गल नील गरल धरे,औ' नागों की गलमाला।
राख-मसानी अंग-अंग में,सिर धारे पावन गंगा।
भांग धतूरा और हलाहल,खुश हो पीता मतवाला।

'ललित'
15
कुकुभ मुक्तक 16 ..14
पुष्प

पुष्प बहुत ऐसे देखे हैं,
काँटों में जोें पलते हैं।
चुभन सहें कंटक की फिर भी,
मुस्कानों में ढलते हैं।
सौरभ उनकी चहुँ दिशि फैले,
काँटे बेबस रह जाते।
कंटक चुभ-चुभ थक जाते हैं,
दिल ही दिल में जलते हैं।

💖💖"

16
दिल

दिल छोटा औ' पीर बड़ी है,
नहीं किसी से कह पाऊँ।
दिल में उठती टीस बड़ी है,
नहीं जिसे मैं सह पाऊँ।
अपनों ने जो घाव दिए वो,
दिल में गहरे उतरे हैं।
घावों का अपनापन प्यारा,
कैसे उन बिन रह पाऊँ।

17
सपने

सपनों से सुख सपने जैसा,
हमको जैसे मिलता है।
अपनों से दुख अपना जैसा,
हमको वैसे मिलता है।
टूट गया इक सपना प्यारा,
अपना हमसे जब रूठा।
क्या बतलाएं अब वो अपना,
हम से कैसे मिलता है?
"
18

नज़रें

मात पिता की नज़रों से जो,
स्नेह सुतों को मिलता है।
उसी प्यार से जीवन बनता,
बच्चों का दिल खिलता है।
मात पिता फिर प्यार ढूँढते,
उन बच्चों की नज़रों में।
मगर प्यार का फल तो हरदम,
दूर पेड़ पर हिलता है।

ललित

कुकुभ मुक्तक
19
नजर

काम कभी ऐसा मत करना,नज़र झुकानी पड़ जाए।
एक बार नज़रों से गिरकर,कभी नहीं फिर उठ पाए।
नज़र रखो अपनी करनी पर,करनी ऐसी कर जाओ।
नाज करे ये दुनिया तुम पर,याद तुम्हारी जब आए।

ललित
20
हँसना

जब भी खुलकर हँसना चाहा,दिल ने अधरों को रोका।
जब भी हँसकर जीना चाहा,अपनों ने ही
तो टोका।
अब तो हमने सीख लिया है,दिल ही दिल में खुश रहना।
चाही दिल ने खुशियाँ तो फिर,मन्दिर में जाकर ढोका।

'ललित'

6.7.17
मुक्तक कुकुभ
किरपा

इतनी किरपा कर दे कान्हा,गीत मधुर मैं लिख पाऊँ।
छू कर तेरे अधरों को मैं,धुन मुरली की बन जाऊँ।
राधा जी के चरणों को जो,पायल है हर-पल छूती।
बन वो ही पायलिया निश-दिन,छम-छम-छम-छम-छम गाऊँ।

'ललित'
राधे राधे

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