राधा गोविन्द

ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक धुन में प्यारी।
झूम उठें सब गोप-गोपियाँ,नाचें सब नर औ' नारी।

कान्हा की वंशी क्या बोले,राधा समझ नहीं पाई?
लेकिन वंशी सुनने को वो,नंगे पाँव चली आई।
मुरली की धुन ऐसी प्यारी,भूल गई दुनिया सारी।
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक
धुन में प्यारी।

कान्हा की बाहों में आकर,सिमट गई गोरी-राधा।
अधर अधर से मिलना चाहें,डाल रही मुरली बाधा।
वंशी ने क्या पुण्य किये थे,अधरों पर जो है धारी?
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक
धुन में प्यारी।

दुनिया में सबसे सुंदर है,राधा कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
इसीलिए राधा-मोहन की,दीवानी दुनिया सारी।
ऐसी सरगम छेड़े नटखट,आलौकिक
धुन में प्यारी।

राधागोविन्द 21.2.17
माँ

दान  किये जप भी किये,तीरथ किये हजार।
माँ को जो बिसरा दिया,सब कुछ है बेकार।।

माँ के आँचल की जिसे,मिली हुई है छाँव।
हरदम सीधे बैठते,उसके सारे दाँव।।

माँ की याद सुवास सी,मन निर्मल हो जाय।
जैसे तुलसी आँगने,हरि की याद दिलाय।।

हरि का सुमिरन जो करे,माँ चरणों में बैठ।
हरि उसको आशीष दें,माँ के उर में पैठ।।

माँ साँसों में बस रही,माँ धड़कन,माँ प्राण।
माँ से उऋण न हो सके,सुत देकर भी जान।

'ललित'

राधागोविन्द 19.2.17
आइए महारास का आभास
करें
शब्दब्रम्ह की मदद से

कान्हा की वंशी रस घोले
गुन-गुन गुन-गुन गुन-गुन-गुन।
मादक गुंजन करते भौंरे
घुन-घुन घुन-घुन घुन-घुन-घुन।

चाँद चाँदनी चमक रहे हैं
चम-चम चम-चम चम-चम-चम।
राधा जी की पायल बोले
छम-छम छम-छम छम-छम-छम।

झिल-मिल तारे ताल मिलाएं
टिम-टिम टिम-टिम टिम-टिम-टिम।
यमुना जी की लहरें बोलें
कल-कल कल-कल कल-कल-कल।

बाँसुरिया के घुँघरू बजते
खन-खन खन-खन खन-खन-खन।
बादल नभ में गरज रहे हैं
घन-घन घन-घन घन-घन-घन।

सूखे पत्ते छनक रहे हैं
छन-छन छन-छन छन-छन-छन।
गोप गोपियाँ ताली देते
तन-तन तन-तन तन-तन-तन।

©ललित©

केडी आरजी 18.2.17
भुजंग प्रयात
दया

बड़ी ही दया है मुरारी तुम्हारी,
दिया आसरा जिन्दगी ये सँवारी।

करूँ माँग आगे गवारा नहीं है।
दुआ का तुम्हारी पिटारा यहीं है।

मिले जो तुम्हारा जरा सा इशारा।
जमीं तो जमीं आसमाँ हो हमारा।

करो आप वासा दिलों में कन्हाई।
नहीं और कोई सुने है दुहाई।

©'ललित'©

17.2.17
राधा गोविंद
कुकुभ छंद
कान्हा की वंशी की सरगम,कानों में मधुरस घोले।
राधा की पायल की छम-छम,सुन कान्हा का मन डोले।
राधा जी का रूप निहारें,मोहन तिरछी अँखियों से।
राधा जी अन्जानी बनकर,बतियाती हैं सखियों से।
'ललित'

राधा गोविंद 16.2.17
कुकुभ छंद

वो ही तो है जो मेरे इस,दिल को हर पल धड़काता।
वो ही तो है जो मेरे हर ,दुश्मन को है हड़काता।
वो ही मेरी नस नस में यूँ,जीवन बनकर बहता है।
जो कान्हा मेरी साँसों में,प्राण वायु बन रहता है।

'ललित'

राधा गोविंद15-2-17
उल्लाला
राधा-राधा

कान्हा तेरे नाम का,जयकारा चहुँ ओर है।
राधा जी के नाम का,मचा बिरज में शोर है।
राधा-राधा बोलते,कान्हा के सब दास हैं।
राधा-राधा जो जपें,मोहन उनके खास हैं।
ललित

राधा गोविंद 15-2-17
तोटक

जनमा व्रज में जब नंदलला।
सब के दिल में नव प्यार पला।
उस गोप सखा मनमोहन से।
सब प्रेम करें छुटके पन से।

मुखड़े पर है लट यों लटकी।
कलियाँ लतिका पर ज्यों अटकी।
वह चाल चले लहकी लहकी।
यशुदा फिरती चहकी चहकी।

'ललित'

राधा गोविंद 15.2.17
सिंहावलोकन घनाक्षरी

प्रार्थना

थक गये अब नाथ,
नैया खेते मेरे हाथ।
आप ही सँभालो अब,
पतवार नाव की।

पतवार नाव की लो.
थाम करकमलों में।
झलक दिखादो जरा,
दयालु स्वभाव की।

दयालु स्वभाव की वो,
छवि तारणहार की।
दवा आज दे दो प्रभु,
मेरे हर घाव की।

मेरे हर घाव की वो,
दवा श्याम नाम की जो।
लगन लगा दो तव,
चरणों में चाव की।

ललित

ताटंक छंद
राधागोविंद 14.2.17
चितचोर
मेरा तो चितचोर वही है,
             गोवर्धन गिरधारी जो।
बाँका सा वो मुरली वाला,
              मटकी फोड़े सारी जो।
आसानी से हाथ न आवे,
               नटखट नागर कारा है।
राधा जी के पीछे भागे,
               उन पे वो दिल हारा है।

'ललित'

शक्ति छंद14-2-17
मधुर रास
सितारों भरी चाँदनी रात में।
बजी पायलें खूब बरसात में।
गरजते हुए बादलों के तले।
मिले राधिका से कन्हैया गले

बजे बाँसुरी चूड़ियाँ भी बजें।
हँसें गोपियाँ कृष्ण राधा सजें।
कन्हैया सुनाता नये राग वो।
सुनें गोपियाँ तो खुले भाग वो

दसों ही दिशाएं लगी झूमने।
धरा भी गगन को लगी चूमने।
सजे मोगरा वेणियों में जहाँ।
कन्हैया बजाए मुरलिया वहाँ।

बसन्ती हवाएं छुएं गात को।
थिरकने लगीं गोपियाँ रात को।
नथनियाँ हिलें हास के साथ में।
कि झुमके हिलें रास के साथ में।

ललित

उल्लाला 14-2-17
कैसे भूल हमें गया,मथुरा जाकर श्याम तू।
सारे जग में साँवरे,होगा रे बदनाम तू।

तुझ बिन मन को साँवरे,आए कैसे चैन रे?
रो-रो कर हैं थक गए,राधा के दो नैन रे।

झूठी तेरी प्रीत थी,सपनों सा मधुमास था।
पर मन को विश्वास है,सच्चा तेरा रास था।

वन-उपवन औ' वाटिका,लतिकाएं व्रजधाम की।
निश-दिन माला जप रहे,कान्हा तेरे नाम की।

ललित

उल्लाला13-2-17
बरसाने की छोकरी,देती तुझ पर जान है।
सब कुछ है तुझ को पता,क्यूँ बनता अंजान है?

साँझ सवेरे छेड़ता,धुन मुरली से प्रीत की।
लौकिक तो लगती नहीं,लय तेरे संगीत की।

प्रेम तरंगें उठ रहीं,यमुना की रसधार से।
सुरभित शीतल ये हवा,छूती कितने प्यार से।

इतना निष्ठुर क्यूँ भला,मोहन होता आज है।
ज्यादा क्या तुझ से कहूँ,आती मुझको लाज है।

ललित

उल्लाला
13-2-17
छोड़ो भी ये बाँसुरी,राधा बोली श्याम से।
तेरी राह निहारती,बैठी हूँ मैं शाम से।

मुझ को अधरों से लगा,घूँघट के पट खोल दो।
बाहों में भर लो मुझे,कानों में कुछ बोल दो।

ब्रज का कण कण बोलता,अमर हमारी प्रीत है।
यमुना का जल बोलता,जीवन ये संगीत है।

तेरी नीयत में मुझे,लगता है कुछ खोट है।
नाचे गोपी संग तू,वंशी की ले ओट है।

ताटंक12.2.17
नाथ तुम्हारे दर्शन को ये,
             भक्त दूर से आते हैं।
मनोकामना पूरी हो ये,
              तुमसे आस लगाते हैं।
आया मैं भी द्वार तुम्हारे,
               मुझे पिला दो वो हाला।
खो जाऊँ नैनों में तेरे,
               भूल सभी कंठी माला।
'ललित'

राधा गोविंद 12-2-17
विधाता छंद
नया संदेश लेकर फिर,नई इक भोर है आई।
प्रभू का नाम लेकर तुम,करो कुछ प्रार्थना भाई।।
बढे बरकत मिले ताकत,किसी के काम हम आयें।
दुखी जन को हँसाने के,तराने रोज हम गायें।।

'ललित'

राधा गोविंद 11-2-17
जलहरण

नाच रही राधा-रानी
साथ घनश्याम के तो।
सखियाँ भी झूम रही
बाँसुरिया की तान पे।

झूम रही लतिकाएं
पादपो की बाहों में तो।
मोरपंख नाज करे
साँवरिया की शान पे।

चाँद भूला चाँदनी को
रास में यूँ रम गया।
राधिका का रास भारी
चँदनिया के मान पे।

सुरमई उजालों में
रेशम से अंधेरों में।
राधा श्याम नाच रहे
मुरलिया है कान पे।

'ललित'

राधा गोविंद 11-2-17

राधा-राधा नाम का,रसना में रस घोल।
कान्हा जी मिल जायंगें,राधे-राधे बोल।

राधे-राधे हर घड़ी,जिसकी जिव्हा गाय।
उसके पीछे साँवरा,दौड़ा-दौड़ा आय।

राधा जी के नाम में,वृन्दावन दिख जाय।
वृन्दावन में साँवरा,मनमोहन दिख जाय।

राधा गोविंद 11-2-17
कुण्डलिनी छंद

लट

उलझा सब संसार है,तेरी लट में श्याम।
नाचें सारी गोपियाँ,भूल घरों के काम।।
भूल घरों के काम,लटकती लटें निहारें।
राधा जी हर शाम,संग ब्रजधाम गुजारें।

'ललित'

दुर्मिल सवैया
9.2.17

ललना जनमा ब्रज में सुख से,सुर पुष्प सबै बरसाय रहे

दर नंद यशोमति के सबरे,ऋषि गोपिन रूप धराय रहे।

शिव रूप धरे तब साधुन को,शिशु-दर्शन को ललचाय रहे।

डर मातु मनोहर मोहन को,निज आँचल माँहि छुपाय रहे।

'ललित'

मुक्तक
मधुर-मधुर

मधुर-मधुर है मधुर-मधुर तू, मधुर-मधुर तू है कान्हा।
मधुर-मधुर है मुरली तेरी,मधुर-मधुर तेरा गाना।
मधुर-मधुर मुस्काना तेरा,मधुर-मधुर माखन चोरी।
मधुर-मधुर वो मोर-मुकुट है,मधुर-मधुर माटी खाना।
ललित

कैसे करूँ तुम्हारी पूजा,कैसे करूँ तुम्हारा ध्यान।
पूजा की विधियों से कान्हा,मैं तो हूँ बिल्कुल अंजान।
राधा-राधा नाम जपूँगा,कान्हा मैं तो आठों याम।
भव से तर जाते हैं मानव,राधा जी का लेकर नाम।
ललित

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