होली
1
होली को कब किसने जाना,किसने माना होली को।
होली का सब नाम दे रहे,गुपचुप आँख मिचोली को।
प्रेम प्यार से गले मिलें जो,भूल शिकायत शिकवों को।
होली का मतलब वो समझें,समझें दिल की बोली को।
2
दिल की ये बगिया है सूनी,बाहर खूब मची होली।
कुछ पी कर वो झूम रहे हैं,जो हैं गम के हमजोली।
हुडदंगी जो घूम रहे हैं,गलियों और बजारों में।
उनके दिल का दर्द दबाने,ढोल बजाता है ढोली।
3
कुछ तो भेद छुपा है यारों,इन होली के रंगों में।
बेशर्मी से समा गए हैं,जो गोरी के अंगों में।
दूर सदा हम से रहती थी,जो शर्माई गुड़िया सी।
आज हुई खुश हो के शामिल,इन होली के पंगों में।
इश्क का भूत
इश्क बहुत महँगा है हमने,प्यार किया तब ये जाना।
रोज देखना पिक्चर विक्चर,मॉल उन्हें फिर ले जाना।
पिज्जा का भी शौक उन्हें है,होटल पाँच सितारा हो।
घबराकर अब छोड़ दिया है,उनकी गलियों में जाना।
पडोसन से होली
रंग भरी पिचकारी हमसे,हाय पड़ोसन ने छीनी।
रंग हमारा हम पर मारा,पहन रखी साड़ी झीनी।
हमने मग्गा भर पानी का,उनके ऊपर ज्यों डाला।
शर्माकर वो दुबक गई यों,नजरें नीची कर लीनी।
होली या होला
होली है या होला यह तो,हम भी नहीं समझ पाये।
बाजारों का हाल हुआ जो,पत्नी को क्या बतलायें।
नोट भरा थैला ले जाकर,मुट्ठी में हैं कुछ लाते।
अब तो केवल पैठा लाकर,होली घर में मनवायें।
'ललित'
युगों-युगों से राजा-महाराजा 'योगी' संत
आते रहे हैं।
अपनी अपनी ढपली बजा
अपना अपना राग
गाते रहे हैं।
मगर न ये दुनिया बदली
न बदले यहाँ के वाशिंदे।
हाँ बदल रही हैं तारीखें,
दिन-रात-माह और साल
आ-आ कर जाते रहे हैं....
स्वच्छता
स्वच्छता
भूमि निर्मल स्वच्छ हो यह,भावना मन में रखें।
गंद कचरा-पात्र में हो,पात्र आँगन में रखें।।
नागरिक इस देश के यह,बात मन में ठान लें।
हर गली हर गाँव अपना,साफ रखना जान लें।।
स्वच्छता मन में रखें हम,आचरण भी स्वच्छ हो।
स्वस्थ तन हो स्वस्थ मन हो,आवरण भी स्वच्छ हो।।
मन प्रफुल्लित तन प्रफुल्लित,स्वच्छता से भासते।
देश भारत चल पड़ा है,स्वच्छता के रास्तेे।।
'ललित'
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