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------मधुमालती छंद विधान-----
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विधान ....
1. यह एक मात्रिक छंद है।
2. इस छंद की प्रत्येक पंक्ति में 14 मात्राएँ होती हैं।
3. मात्रिक भार..( मापनी )
2212 2212
लय.. गागालगा गागालगा
अंत में 212 मात्रिक भार होता है।
5 वीं और 12 वीं मात्रा सदैव लघु ही होती है..
4. चार पंक्तियाँ...दो-दो पंक्तियों में तुकांन्त सुमेलन।
**** उदाहरण ****
मधुमालती छंद
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नव वर्ष में है कामना।
माँ हाथ मेरा थामना।
मुश्किल न आए राह में।
हर-पल रहूँ उत्साह में।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद रचनाएँ
2212 2212
1.
मधुमालती छंद
जन्माष्टमी पर विशेष
महारास
वो गोपियाँ का साँवरा।
वंशी बजाता बावरा।
बाँका बिहारी लाल था।
जो दानवों का काल था।
राधा दिवानी श्याम की।
उस साँवरे के नाम की।
उसकी मुरलिया जब बजे।
बस प्रीत के ही सुर सजें।
राधा करे यह कामना।
हो श्याम से जब सामना।
दूजा न कोई पास हो।
मनमोहना का रास हो।
वंशी अधर से दूर हो।
बस राधिका का नूर हो।
इक टक निहारे साँवरा।
इस प्रेयसी को बावरा।
कैसी निराली प्रीत थी।
जिसमें न कोई रीत थी।
वो राधिकामय श्याम था।
या रास का विश्राम था।
हर ओर सुंदर श्याम था।
हर छोर रस मय नाम था।
था राधिका का साँवरा।
या रासमय था बावरा।
वो भूल खुद ही को गई।
बस श्याम में ही खो गई।
चलने लगी पुरवाइयाँ।
बजने लगीं शहनाइयाँ।
वो चाँदनी में रास था।
या चाँद का सहवास था।
मुरली बजाता श्याम था।
या श्याम ही गुमनाम था।
यह प्यार का विश्वास था।
या मद भरा अहसास था।
परमातमा से मेल था।
या आत्म रस का खेल था।
वो आत्म रस का बोध था।
या प्रेम रस का मोद था।
निजतत्व का आभास था।
या तत्व ही अब पास था।
दो ज्योतियाँ थी नाचती।
हर ज्योत में इक आँच थी।
दो रश्मियाँ थी घुल रही।
सब गुत्थियाँ थी खुल रही।
चारों दिशा उल्लास था।
मनमोहना का रास था।
कान्हा दिखे हर ओर था।
चंचल बड़ा चितचोर था।
परमात्म का वह रास था।
यह गोपियों को भास था।
मुरली मनोहर श्याम था।
जो नाचता निष्काम था।
ललित किशोर 'ललित'
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25.8.16
2212 2212
मधुमालती छंद
2
मुरली मनोहर
मुरली मनोहर तू बता।
क्या राधिका को था पता?
तू बस चराता ढोर था।
या खूबसूरत चोर था।
दिल राधिका का ले गया।
सुख चैन भी हर ले गया।
वंशी बजा जादू किया।
मन गोपियों का हर लिया।
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
3
व्रजधाम
क्यूँ आ गया व्रजधाम तू?
बन राधिका का श्याम तू।
मनमोहना निष्काम था।
फिर रास का क्या काम था?
क्यूँ चोर माखन का बना?
क्यूँ मिट्टियों से मुख सना?
मुख में दिखा सारा जहाँ।
लीला निराली की वहाँ।
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
4
प्रश्न
प्रश्नों के उत्तर में श्री कृष्ण महिमा छिपी है
क्यूँ हर गली में शोर था?
कान्हा बड़ा मुँह जोर था।
माता यशोदा का लला।
क्यूँ छोड़ गोकुल को चला?
जिस पूतना ने था छला?
वैकुण्ठ उसको क्यो मिला?
तू पूर्णिमा का चाँद था।
या प्रेम पूरित बाँध था?
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
5
सुुदामा
आया सुदामा द्वारका।
उपहार लेकर प्यार का।
उसको लगाया क्यों गले?
थे पाँव नंगे क्यों चले?
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
6.
प्रकृति
आकाश कुछ नाराज है।
देती धरा आवाज है।
कब मिल सके दो छोर हैं।
दिखता मिलन हर ओर है।
धरती सजी दुल्हन बनी।
आकाश से पर है ठनी।
नभ वो बड़ा इतरा रहा।
जो चाँदनी बिखरा रहा।
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
7.
फूलों भरी क्यारियाँ
फूलों भरी ये क्यारियाँ।
ज्यों प्रीत की फुलवारियाँ।
खुशबू बिखेरें प्यार की।
देती खबर हैं यार की।
मदमस्त सावन की घटा।
रिमझिम फुहारों की छटा।
हर वृक्ष से लिपटी लता।
देती बहारों का पता।
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
8.
नया दौर
आया नया अब दौर है।
बच्चा हुआ मुँह जोर है।
हर आदमी अब मानता।
बच्चा सही है जानता।
अनुभव गया अब भाड़ में।
सब नेट की है आड़ में।
जो सीख बच्चों से रहे।
माँ बाप वो खुश हो रहे।
हर बात उनसे सीख लो।
जजबात की मत भीख लो।
क्या है बुरा क्या है भला?
देगा तुम्हें घुट्टी पिला।
अब बात मेरी मान लो।
इस दौर को पहचान लो।
जो हो रहा सब ठीक है।
छोड़ो उसे जो लीक है।
'लीक'=पुरानी विचार धारा
ललित किशोर 'ललित'
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मधुमालती छंद
9.
एक आप न बीती
जो बात वो थे कह गए।
सुन दंग उसको रह गए।
किससे कहें दिल की लगी।
वो कर रहे थे दिल्लगी।
पहले दिखाए ख्वाब थे।
जलवे बड़े नायाब थे।
हम थे अदाओं पर फिदा।
सोचा नहीं होंगें जुदा।
लेकिन अचानक ये हुआ।
वो प्यार निकला इक जुआँ।
जब हुस्न पर हम मर मिटे।
सब कुछ लुटा कर खुद लुटे।
हम भूल कर सारा जहाँ।
हर शाम मिलते थे वहाँ।
जिस पर हुए थे हम फिदा।
वो कह रही थी अलविदा।
ललित किशोर 'ललित'
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10.
अप्रेल 2019
मधुमालती छंद
2212 2212
पथिक
जीवन पुकारे ओ पथिक।
रुकना न तू इक पल तनिक।
चलता निरंतर जो रहे।
मंजिल उसी की हो रहे।
हो कंटकों से सामना।
तो पग न अपना थामना।
फूलों भरी राहें मिलें।
सम्भव नहीं ये सिलसिले।
ललित किशोर 'ललित'
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अप्रेल 2019
11.
मधुमालती छंद
2212 2212
नेता निराले
हर आदमी इस देश का।
हर जाति का हर वेश का।
हर राज्य का हर गाँव का।
पूछे पता बस छाँव का।
हर छाँव उससे छिन गई।
बस धूप है हर दिन नई।
अब छाँव भी बिकने लगी।
रोटी कहीं सिकने लगी।
कुछ भाषणों में खो रहे।
कुछ बोझ अपना ढो रहे।
जनता झुकी ही जा रही।
बस स्वप्न में सुख पा रही।
नेता निराले हैं यहाँ।
पग-पग शिवाले हैं यहाँ।
नेता वहीं सुख पा रहे।
निश-दिन शिवाले जा रहे।
है देश की चिन्ता किसे?
नेता बना जो क्या उसे?
ये सोचने की बात है।
नेता करे क्यों घात है?
ललित किशोर 'ललित'
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12.
मधुमालती छंद
कलियाँ
नदिया जहाँ कल-कल बहे।
सुरभित हवा शीतल बहे।
सुख-छाँव वंशीवट करे।
नित भोर गोरी घट भरे।
फूलों भरी सब क्यारियाँ।
मुस्कान की फुलवारियाँ।
कलियाँ सभी खिलने लगें।
प्रेमी हृदय मिलने लगें।
ललित किशोर 'ललित'
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13.
मधुमालती छंद
नव-वर्ष
नव वर्ष में है कामना।
माँ हाथ मेरा थामना।
मुश्किल न आए राह में।
हर-पल रहूँ उत्साह में।
सत्संगियों से नित मिलूँ।
सद्धर्म के पथ पर चलूँ।
करता रहूँ माँ बन्दगी।
पुरुषार्थ मय हो जिंदगी।
ललित किशोर 'ललित'
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14.
मधुमालती छंद
प्यार की दीवानगी
फिर सोचना क्या प्यार में?
जब रब दिखा दिलदार में।
संसार सुंदर हो गया।
जब यार में दिल खो गया।
इस प्यार में क्या बात है?
चंचल हुआ ये गात है।
मन की कली खिलने लगी।
दीवानगी पलने लगी।
ये प्यार की दीवानगी।
जिसकी नहीं कुछ बानगी।
साँसें रुकें रुक-कर चलें।
सुख-स्वप्न नयनों में पलें।
सजना नयन में आ बसा।
छाया बहारों पर नशा।
जब भी मिलें सजना कहें।
हर पल मिलें मिलते रहें।
ललित किशोर 'ललित'
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15.
मधुमालती छंद
धूप-छाँव
कुछ धूप में कुछ छाँव में।
जीवन जिया इस गाँव में।
कुछ प्यार में कुछ खार में।
भटका किया मँझधार में।
अब आ गया वो दौर है।
इक हाशिया हर ओर है।
यूँ ही गुज़ारी ज़िन्दगी।
कुछ हो न पाई बन्दगी।
जो ख्वाब थे दिल में पले ?
वो कब हकीकत में ढले ?
कुछ स्वप्न सपने रह गए।
कुछ आँसुओं में बह गए ।
जो ज़िन्दगी की चाल है।
उलझी हुई हर हाल है।
जैसी मिले स्वीकार है।
जैसी चले स्वीकार है
ललित किशोर 'ललित'
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16
मधुमालती
रास आनंद.
वंशी अधर से ज्यों छुई।
वो चाँदनी शीतल हुई।
मुरली मधुर बजने लगी।
घर गोपियाँ तजने लगी।
जो बाँसुरी की धुन सुने।
वो राह मधु-वन की चुने
चूड़ी बजे पायल बजे।
गजरा सजे वेणी सजे।
जब श्याम से नैना मिले।
गल-हार राधा का हिले।
सब गोप-गोपी झूमते।
बादल धरा को चूमते।
ललित किशोर 'ललित'
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