16.01.2020
सरसी/कबीर छंद
"छंद का विधान"
1. यह एक सम मात्रिक छंद है।
2. इसके प्रत्येक चरण में 27 मात्राएँ होती हैं तथा 16 ,11 मात्राओं पर यति
होती है।
3. चरणान्त में 21( "गुरु-लघु") अनिवार्य माना गया है।
4. कुल चार चरण होते हैं तथा क्रमागत दो-दो चरण समतुकांत होते हैं।
विशेष : चौपाई का कोई एक चरण और दोहा का सम चरण मिलाने से सरसी/कबीर छंद का एक चरण बन जाता है l
"उदाहरण"
कबीर/सरसी छंद
वाह-वाह
वाह-वाह सब करते उसकी,धन हो जिसके पास।
उससे धन-बल मिल जाने की,रहती है इक आस।
सदा मिलाएँ उसकी हाँ में,हाँ वो दम्भी मीत।
उसके ही दुम-छल्ले बनकर,गाएँ उसके गीत।
ललित किशोर 'ललित'
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16.01.2020
सरसी/कबीर छंद
गीत-भजन
ध्यान तुम्हारा करता हूँ मैं,जग के पालनहार।
श्याम साँवरे मानस पूजा,कर लेना स्वीकार।
मोर-मुकुट पीताम्बर-धारी,नटखट नटवर लाल।
कजरारी काली हैं अँखियाँ,बाँकी तेरी चाल।
मुक्तामणि-वैजंती माला,सोने का गल-हार।
श्याम साँवरे मानस पूजा,कर लेना स्वीकार।
अधरों पर बाँसुरिया छेड़े,कर्ण-मधुर संगीत।
सुन ले जो उस मुरली की धुन,भूले जग की प्रीत।
मटक-मटक कर तेरे नैना,बरसाते हैं प्यार।
श्याम साँवरे मानस पूजा,कर लेना स्वीकार।
रास रचाता राधा के सँग,सारी-सारी रात।
गोप-गोपियाँ नाच-नाच कर,भूलें अपने गात।
सपनों में ही दर्शन दे-दे,ओ कान्हा इक बार।
श्याम साँवरे मानस पूजा,कर लेना स्वीकार।
ललित
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28.01.2020
कबीर छंद
मनमोहन
मनमोहन गोवर्धनधारी ,मुरलीधर घनश्याम।
बजती है तेरी बाँसुरिया,इस दिल में अविराम।
उस मुरली की मधुर धुनों में,बसते अनुपम छंद।
आँख बंद कर सुनूँ उसे तो,आता है आनन्द।
ललित
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कबीर छंद
व्याकुल राधा
फूल बिछा तेरी राहों में,देख रही जो राह।
उस राधा के व्याकुल मन से,निकल रही है आह।
ओ कान्हा इक पल को आजा,तू राधा के पास।
या फिर यादों मे से गायब,कर दे सब मधुमास।
ललित
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कबीर छंद
रोटी
रोज कहाँ ऐसा होता है,मिले उसे कुछ काम।
कई दिनों तक कई बार तो,होता है विश्राम।
मुश्किल रोटी का जुगाड़ है,उस पर महँगा प्याज।
सोच रहा है क्या घर लेकर,जाएगा वो आज?
ललित
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कबीर छंद
निर्मल भोर
कितनी प्यारी कितनी सुंदर,स्वर्णिम निर्मल भोर?
सौरभ सँग मुस्कान बिखेरी,कलियों ने हर ओर।
देवालय में बजें घण्टियाँ,भजन गा रहे लोग।
कुछ बागों में टहल रहे कर,प्राणायामी योग।
ललित
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कबीर छंद
मुस्कान
अधरों पर मुस्कान सजा कर,अँखियों में भर लाज।
नाच रही है राधा छम-छम,कान्हा पर है नाज।
प्रीत-भरी बाँसुरिया घोले,कर्णों में रस-धार।
राधा-कान्हा के नैनों में,चमकें चंद्र हजार।
ललित
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कबीर छंद
शारदा वन्दना 16 नाम
शिवानुजा शारद शतरूपा,सुवासिनी हे मात।
सुरवन्दिता सुरपूजिता माँ,रमा परा विख्यात।
वैष्णवी विमला विंध्यवासा,वसुधा दे-दे ज्ञान।
हे चंद्रलेखा चंद्रवदना,ब्राम्ही कर कल्याण।
ललित
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कबीर छंद
फूल और शूल
फूल कहाँ ऐसे होते जो,चुभते कोमल गात?
शूल कहाँ ऐसे होते जो,चुभें नहीं दिन-रात?
फूल-शूल के संगम से ही,शोभा पाता बाग।
माली फूल शूल दोनों से,रखता सम अनुराग।
ललित
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कबीर छंद
मुस्कुराहट
यूँ मुस्कुराकर आप बोलो,स्वागत है नव-भोर।
जैसे कलियाँ और भ्रमर सब,इठलाते हर ओर।
मादक मंद सुगंध बिखेरें,रंग-बिरंगे फूल।
लम्बी-लम्बी साँस भरो फिर,जाओ सब गम भूल।
ललित
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