14.10.17
माहिया
वो खास मुलाकातें
याद करूँ उसकी
वो प्यार भरी बातें।
वो शाम सुहानी सी
याद करूँ उसकी
हर बात रुहानी सी
थी मस्त कलंदर जो
याद करूँ उसकी
थी प्रेम समंदर जो
जो आज पराई है
याद करूँ उसकी
जो हाथ न आई है।
ललित
माहिया
राधा
बेजान मशीनों सा
नाच रहा मानव
खुद गर्ज हसीनों सा।
घुँघरू न बचा पाया
नाच रहा मानव
बेदर्द बड़ी माया।
ले स्नेह भरा दिल वो
नाच रहा मानव
ले आस मरा दिल वो।
चालाक बड़ा बनके
नाच रहा मानव
हर चाल चले तनके।
हर नाच रहा आधा
नाच रहा मानव
भजता न कभी राधा।
ललित
14.10.17
माहिया
हे ईश्वर....!
अब काज नहीं कोई
राह पुरानी में
हम राज नहीं कोई।
विश्वास कहीं टूटा
राह पुरानी में
हर साथ कहीं छूटा।
बस याद बकाया है
राह पुरानी में
बस नाद बकाया है।
धुँधली न बची छाया
राह पुरानी में
सँग छोड़ रही काया।
रब ढूँढ नहीं पाया
राह पुरानी में
अब ढूँढ रहा छाया।
ये मन न सँभल पाया।
राह पुरानी में
जीवन न सँभल पाया।
हे ईश यही विनती
राह पुरानी में
हो जाप बिना गिनती।
ललित
माहिया
कब कौन कहाँ जाने
तीर चला जाए
दिल हाय नहीं माने
वो बाज नहीं आता
तीर चला जाए
दिल समझ नहीं पाता।
बेशर्म करे घायल
तीर चला जाए
बेखौफ बजे पायल
वो रास हमें आता
तीर चला जाए
दिल चीर कहीं जाता।
क्या खूब निशाना है
तीर चला जाए
दिलदार दिवाना है।
ललित
माहिया
क्या खूब दिवाली है
दीप व बाती की
हर आँख सवाली है।
है रात दिवाली की
दीप व बाती की
औकात न माली की।
तम स्वप्न यहाँ बुनता
दीप व बाती की
अब कौन यहाँ सुनता?
घनघोर घटा छाई
दीप व बाती की
अब पीर किसे भाई।
भगवान नहीं सुनते
दीप व बाती की
इंसान नहीं सुनते
त्यौहार दिवाली का
दीप व बाती की
बेज़ार दिवाली का
ललित
ललित
माहिया
भोर
हर पात गिरी शबनम
चमक भरे मोती
हर ओर दिखें चम-चम।
ललित
13.10.17
माहिया
वो दर्द मिला बैरी
प्यार किया जब से
बस याद शकल तेरी।
हम भूल गए सब कुछ
प्यार किया जब से
है याद नहीं अब कुछ।
हम सीख गए जीना
प्यार किया जब से
सुख-चैन गया छीना।
बेबाक मुहब्बत की
प्यार किया जब से
वो पास नहीं फटकी।
ललित
माहिया
वो कार चुरा कर यूँ
चोर खड़ा हँसता
हर चीर लिया हो ज्यूँ
माहिया
सुनसान दिवाली है
साथ नहीं साजन
हर आँख सवाली है?
ललित
माहिया
क्या फूल खिला कोई
भोर हुई अब तो
संदेश मिला कोई?
ललित
माहिया
यूँही लिख दिया
शायद अर्थ हीन
दिल आज कहीं गुम है
बात नहीं कोई
आवाज कहीं गुम है।
हर ओर मची हल चल
बात नहीं कोई
मन आज हुआ चंचल।
है ताल न है सरगम।
बात नहीं कोई
पर साँस हुई मध्यम।
वो दूर खड़ी लड़की
बात नहीं कोई
पर देख मुझे भड़की।
ललित
12.10.17
माहिया
221 1222
21 1222
221 1222
वृषभानु लली आई
श्याम अधर से वो
वंशी न छुड़ा पाई।
काहे न अधर छोड़े
श्याम मुरलिया ये
क्यों सौत बनी दौड़े।
11.10.17
माहिया
1
घनश्याम बिना आधा
नाम रहे तेरा
वृषभानु सुता राधा।
क्यूँ भोर भए आती
दौड़ चली राधा
घनश्याम नजर भाती।
11.10.17
माहिया
2
221 1222
21 1222
221 1222
जो प्यार करे तुझसे
शर्त बिना कोई
ले जान उसे मुझसे।
जो प्यार करे हरदम
शर्त बिना कोई
तू मान उसे हमदम।
जो दूर करे सब गम
शर्त बिना कोई
कर प्यार उसे हरदम।
जो प्यार करे सब से
शर्त बिना कोई
कर प्यार उसी रब से।
"ललित"
11.10.17
माहिया
3
221 1222
21 1222
221 1222
मैं द्वार खड़ी तेरे
दर्श दिखा दे तू।
ओ श्याम पिया मेरे।
बस एक झलक तेरी
देख चली जाऊँ
घनश्याम न कर देरी।
'ललित'
9.10.17
माहिया
पाषाण लरजते हैं।
चाक हृदय होते
जब नैन बरसते हैं।
ये दिल जब टूटा था
काश तुम्हें दिखता
हमसे रब रूठा था।
किस कारण रब रूठा?
काश बता पाते।
किस कारण दिल टूटा?
दिल टूट गया ऐसे
पायल से घुँघरू
हो छूट गया जैसे।
आवाज नहीं आई।
ये दिल टूटा तो
बस आँख डबडबाई।
ललित
9.10.17
माहिया छंद
2
समीक्षा हेतु
221 1222
21 1222
221 1222
पाषाण लरजते हैं।
चाक हृदय होते
जब नैन बरसते हैं।
ललित
9.10.17
माहिया छंद
2
समीक्षा हेतु
221 1222
21 1222
221 1222
क्या बात करें तुमसे
प्यार खुदाया जो
तुम ही न करो हमसे
ललित
20.01.2020
माहिया
221 1222
21 1222
221 1222
क्या प्यार किया उसने
दर्द लिया दिल दे
व्यापार किया उसने।
जीवन भर पछताया
दर्द भरा दिल ले
वो लौट के घर आया।
क्यों दर्द नहीं रुकता।
खोज रहा अब वो
क्या चैन कहीं बिकता?
क्यों प्यार किया उसने
प्रीत भरा दिल क्यों
यों वार दिया उसने?
कश्ती न किनारा है
दर्द भरे दिल का
रब एक सहारा है।
ललित
21.01.2020
माहिया
221 1222
21 1222
221 1222
हर भोर नहाई है।
शीत दिवानी की
हर ओर दुहाई है।
शबनम सब कलियों को।
फूल बना देती
पागल कर अलियों को।
ललित
चुपके से आती है।
चैन चुरा चिंता
दिल में बस जाती है।
दिल कितना पागल है।
संशय से उपजी
चिंता से घायल है।
ललित
माहिया
पायल बजती छम-छम।
नाच रही राधा
नंदन-वन में धम-धम।
मधु-रास रचैया की
बाँसुरिया प्यारी
उस धेनु चरैया की।
ललित
माहिया
धड़कन की,साँसों की
आज जरा कर लें
बातें अहसासों की।
सावन के झूलों की
बात निराली है
सरसों के फूलों की।
ललित
25.01.2020
माहिया
ससुराल विदा होती
नाज पली बिटिया
पितु आँख रही रोती।
बाबुल चुपचाप खड़ा
मौन अधर थे पर
आँसू इक बोल पड़ा।
बेटी खुश रहना तू।
पीर सदा दिल की
बाबुल से कहना तू।
ललित
माहिया
क्या खूब निराला है
जीवन-पथ प्यारा ये
आशा की माला है।
ग़म और खुशी भरते।
मानव की झोली
अंजान सफर करते।
कट-कट कर वृक्ष बढ़े।
गिर ऊँचाई से
चींटी सौ बार चढ़े।
जो हार नहीं माने
इंसान वही है।
जो जीत सदा ठाने।
ललित
माहिया
क्या प्यार कहीं मिलता?
मन-फुलवारी में
क्या फूल कभी खिलता?
लो भोर हुई प्यारी।
जीवन की बगिया
गुलजार हुई न्यारी।
हर ओर उजाला है।
नभ स्वर्णिम प्यारा
इस भोर निराला है।
भ्रमरों में है हलचल।
कलियाँ मुस्काती
वो देख हुए चंचल।
सौरभ मदमाती है
संग हवा के जो
उड़-उड़ कर आती है।
ललित
No comments:
Post a Comment