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-------ताटंक छंद विधान-----
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1.यह एक मात्रिक छंद है ।
2. इसके कुल चार चरण होते हैं ।
3. इसके चरण में कुल 30 मात्राएँ होती हैं जिसमें 16-14 मात्रा भार के क्रम से यति निश्चित होती है ।
3.इस छंद के लिए अनिवार्य नियम यह है कि प्रत्येक चरण का अंत सिर्फ "मगण" (222) यानि 3 गुरु से ही होना अनिवार्य है और यहाँ गुरु की जगह गुरु ही आएगा न कि दो लघु को मिलकर एक गुरु बनाना है ।
4.इस छंद में समतुकांत दो दो चरणों में ही मिलाया जायेगा न कि चार चरणों में ।
5.यह छंद वैसे तो ओज गुण और वीर रस के लिए ही उपयुक्त है लेकिन इस छंद में समसामयिक मुद्दों , सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक चुनौतियों और चिंतनपरक विषयों पर भी लिखा जा सकता है ।
**** उदाहरण ****
ताटंक छंद
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फूलों की डोली में आई,शर्माती बरखा रानी।
इठलाती इतराती आई,कर बैठी कुछ नादानी।
बादल गरजे बिजली चमकी,झूम-झूम बरसा पानी।
भीग गया गोरी का आँचल,चिपक गई चुनरी धानी।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
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