अनुकूला छंद विधान एवँ रचनाएँ

अनुकूला छंद विधान
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1. यह एक वार्णिक छंद है।
2. इसमें  4 चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में ग्यारह वर्ण होते हैं....

[भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111  22

3.क्रमानुसार दो-दो पंक्तियों में समतुकांत सुमेलित किए जाते हैं।

               उदाहरण
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अनुकूला छंद
211 221 111 22

सावन आया मधुर सुहाना।
बादल गाएँ रिम-झिम गाना।
आ सजनी आ झट-पट आ जा।
साजन को सूरत दिखला जा।

ललित किशोर 'ललित'
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अनुकूला छंद रचनाएँ
30.12.19
अनुकूला छंद
211 221 111 22

चंचल श्री माखन-सम गोरी।
श्याम-सखी वो नटखट छोरी।
शाम-सवेरे पनघट जाती।
घूँघट में से नज़र मिलाती।

ललित

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अनुकूला छंद
211 221 111 22

शीतल प्यारी पवन-दुलारी।
शीत निराली सब पर भारी।
काँप रहे मानव सब ऐसे।
ठण्डक हो दानव-सम जैसे।

भूल गए वो गरम हवाएँ।
लू-लपटें जो तन झुलसाएँ।
खूब पसीना तन टपकाते।
कूलर-एसी सब मुरझाते।

ललित
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अनुकूला छंद

छंद दुलारा यह अनुकूला।
मित्र नहीं है यह प्रतिकूला?
छंद बड़ा सुंदर यह भाई।
लेखन को दे यह तरुणाई।

ललित
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अनुकूला छंद
211 221 111 22

शारद माँ वो मति मुझ को दो।
लेखन में वो गति  मुझको दो।
लेखन ज्यों पावन सविता हो।
भाव भरी सुंदर कविता हो।

ललित
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अनुकूला छंद 5
211 221 111 22

कंचन सा सुंदर तन जैसा।
प्रेम भरा अंतरमन वैसा।
दीन-दुखी की बस इक आशा।
श्यामल कान्हा घट-घट वासा।।

ललित

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अनुकूला छंद -1
211 221 111 22

श्याम कृपा हो मुझपर तेरी।
आस यही है भगवन मेरी।
दुःख-घटाएँ जब-जब छाएँ।
नाथ-कृपा से सब छँट जाएँ। 

ललित

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211 221 111 22
भोर

स्वर्णिम लाली नभ-पर छाई।
लें कलियाँ मादक अँगड़ाई।
शीतल भीनी पवन सुहानी।
गौर-मुखों को पढ़कर मानी।

ललित
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अनुकूला छंद
211 221 111 22
स्वप्न

स्वप्न न देखो हर पल झूठे।
वक्त न जाने किस पल रूठे।

काल हमेशा गुप-चुप आता।
दो पल प्राणी सँभल न पाता।
साँस न जाने किस पल टूटे।
वक्त न जाने किस पल रूठे।

प्यार-सहारे हर-पल जी लो।
प्रेम-पियाले भर-भर पी लो।
हाय न जाने कब दिल टूटे।
वक्त न जाने किस पल रूठे।

दान करो जो कुछ कर पाओ।
पुण्य करो तो भव तर जाओ।
प्राण न जाने किस पल छूटे।
वक्त न जाने किस पल रूठे।

ललित
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अनुकूला छंद
211 221 111 22
अस्पताल

जन्म जहाँ ले शिशु मर जाते।
क्लीनिक वो क्यूँ कर कहलाते?
बालक  हाथों जब मर जाता।
रो  उठती  बेबस  हर   माता।

डॉक्टर नेता सच न बताएँ।
मात-पिता को सब बहलाएँ।
हाल हुआ है मरघट जैसा।
हाय हुआ शासन यह कैसा?

ललित

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अनुकूला छंद
211 221 111 22
जग झूठा

दे दिल प्यारा तन-मन प्यारा।
भेज दिया देखन जग सारा।
देख लिया है प्रभु जग तेरा।
ये जग झूठा कबहुँ न मेरा।

ललित
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अनुकूला छंद
211 221 111 22
सपने

क्यों नँद-लाला सपन दिखाता?
बाँसुरिया क्यों मधुर बजाता?
क्यों मुरली से रस बरसाए?
क्यों सखियों पे बलि-बलि जाए?

रास रचाना फितरत तेरी।
प्रेम लुटाना हसरत तेरी।
आत्म-सुधा-पावन-रस-प्याले।
भक्त हुए पी कर मतवाले।

ललित किशोर 'ललित'
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