नारी शक्ति

1

सिंहावलोकन घनाक्षरी

नारी से ही ये समाज,
नारी से ही शोभे-साज।
नारी से ही जिन्दगी में,
प्यार की रवानियाँ।

प्यार की रवानियाँ जो,
जीवन सरस करें।
मधुर सुहास भरें,
प्रेम की दिवानियाँ।

प्रेम की दिवानियाँ ये,
प्रेम रस बरसायें।
सजन को हरषायें,
घर की ये रानियाँ।

घर की ये रानियाँ जो,
घर को सजा के रखें।
खुश रहें जहाँ सभी,
सास-देवरानियाँ।

ललित

2

कुण्डलिया छंद

जितने हैं गिरगिट यहाँ,अरु जितने हैं साँप।
दुर्गा माँ भी देखके,लेती है सब भाँप।

लेती है सब भाँप,गरल मय हवा चली है।
मान बड़ा अभिशाप,कली नाजुक मसली है।

कहे 'ललित' परिणाम,कहर ढायेंगें इतने।
रहें कुआँरे पूत,जनम अब लेंगे जितने।

'ललित'
नारी शक्ति
21.04.16

3
तोटक छंद

जिसके घर में बिटिया चहके।
घर स्वर्ग समान सदा महके।।
वह चंचल वायु समान रहे।
बन शीतल प्रेम प्रवाह बहे।

जब मात पिता पर पीर परे।
तब वो बिटिया तदबीर करे।।
मत सोच कभी घटिया रखना।
लछमी सम ही बिटिया रखना।।

'ललित'
नारी शक्ति
19.4.16
4
तोटक छंद

कुछ और नहीं मुझको कहना।
मत आज कहो मुझको बहना।।
जब लाज लुटे चुप हो रहते।
तब घाव हरे दिल के बहते।।

'ललित'
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आज अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष
दो कविताएं
1
परी कहो बेटी कह लो या,बिटिया रानी बोलो।
प्यारी सी सुंदर गुड़िया के,जीवन में रस घोलो।
उसे पढा दो और लिखा दो,इतना तो तुम भाई।
हँसते-हँसते पार करे वो,जीवन में हर खाई।
'ललित'

2
सुर साज सजे बजता तबला।
अब नार कहो न कहो अबला।।
करती सच आज सभी सपने।
फिर साथ चलें न चलें अपने।।
'ललित'

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6

जलहरण घनाक्षरी

कन्या भ्रूण हत्या
अजन्मी की व्यथा

मुख मत मोड़ना माँ,मुझे मत मारना माँ।
तेरी परछाई हूँ मैं,कातिल ये जहान है।

चलती है पुरवाई,बरखा है बरसती
दुनिया है फुलवारी,गायब बागबान है

लहराता समंदर,ऊपर नीला अम्बर।
सतरंगी बहार है,ये प्यारा गुलिस्तान है।

घूमी लख चौरासी मैं,मानुष योनि पाने को।
मुझको भी देखने दे,दुनिया आलीशान है।

'ललित'
नारी शक्ति
3.4.16
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7

रोला छंद
बेटी

देखा ये संसार,देख ली बातअनोखी।
बेटे से है प्यार,लगे बेटी कब चोखी।

कुदरत का उपहार,सुता से बड़ा न देखा।
बेटी से बलवान,भाग्य की होती रेखा।

पाल पोस कर एक,दान कन्या का करता। है वह इंसाँ नेक,पुण्य से झोली भरता।

'ललित'

8

10

मुक्तक 

28 मात्रा भार में
14  ..14 की यति पर
       
चलो इक बार फिर से हम,
           नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,
           नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,
           दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,
            भँवर को भी हराते हैं।

'ललित'

हरिगीतिका छंद
16:12
बाल विवाह

बाली उमर में ब्याह जीवन ,नष्ट मत कर दीजिए।
पढ़-लिख बनूँ मैं आत्म-निर्भर,नेक अवसर दीजिए।
नाजुक कली हूँ बाग की मैं,रौंद यूँ मत डालिये।
सौरभ बनूँ इस बाग की मैं,नेह से यूँ पालिये।।

ललित

हरि गीतिका
बाल विवाह
क्या भूल मुझसे होगयी माँ,त्याग जो मुझको रही।
यदि प्यार करती है मुझे तू,ज्ञान दे मुझको सही।
बाली उमर में ब्याह मत माँ,दे मुझे परवाज तू।
इस बाग की नाजुक कली को,दे विदा मत आज तू।
देखा नहीं जाना नहीं है,जिंदगी के खेल को।
तू दे सहारा बेसहारा,बाग की इस बेल को।
देखे निराले स्वप्न मैं ने,क्या बताऊँ माँ तुझे।
हों स्वप्न वो साकार माँ दे,एक मौका तू मुझे।

'ललित'

दोहे
1 अजन्मी बेटी की व्यथा

मैया तेरी कोख का,मैं इक नन्हा बीज।
बनने दे पौधा मुझे,मत तू मुझ पर खीज।।

बेटा-बेटी हैं सदा,इक डाली के फूल।
बेटी दो कुल तारती,कभी न जाना भूल।।

दुनिया मैं भी देखना,चाहूँ मैया तात।
कैसे होते फूल हैं,कैसे होते पात।।

आँगन पावन हो वहाँ,सुता रखे जहँ पाँव।
सब का मन शीतल करे,ज्यों तुलसी की छाँव।।
ललित

सार छंद
3 प्रयास

नारी के अंतर्मन का दुख,कब किसने है जाना?
जननी है वह इस जीवन की,कहाँ किसी ने माना?
रमणी की नजरों से देखा,मिला जहाँ जब मौका।
इसीलिए तो डूब रही अब,मानवता की नौका।
'ललित'

[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
3 प्रयास

नारी के अंतर्मन का दुख,कब किसने है जाना।
जननी है वह इस जीवन की,कहाँ किसी ने माना।
रमणी की नजरों से देखी,मिला जहाँ जब मौका।
इसीलिए है डूब रही अब,मानवता की नौका।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
7 प्रयास

परी कहो बेटी कह लो या,बिटिया रानी बोलो।
प्यारी सी सुंदर गुड़िया के,जीवन में रस घोलो।
उसे पढा दो और लिखा दो,इतना तो तुम भाई।
हँसते-हँसते पार करे वो,जीवन में हर खाई।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
1 प्रयास

नारी की महिमा है न्यारी,कहती दुनिया सारी।
वनिता यों महकाती घर को,जैसे हो फुलवारी।
हर महान मानव के पीछे,इक औरत है होती।
नारी ही जनती जीवन को,पाल कोख में मोती।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
2 प्रयास

ईश्वर की सुंदरतम कृति ये,नारी जग महतारी।
बोझ उठाती है घर भर का,दुख से कभी न हारी।
शिकवा और शिकायत करना,इसने कभी न जाना।
जिस घर में वनिता खुश रहती,वह घर लगे सुहाना।

'ललित'
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