चौपयी
आकर बोली मेरे पास
नारी सुंदर बड़ी झकास।
ओ मेरे प्यारे मनमीत
सुन ले मेरे प्यारे गीत।
पीछे से आई आवाज
जैसे कोई कर्कश साज।
कब तक सोना है दिलदार
उठ जाओ मेरे सरकार।
'ललित'
चौपयी
श्रृंगार में ज्ञान
कभी दिखे जो सुंदर नार
मन में अपने सोचो यार।
कितना सुंदर वो करतार
जो है इसका रचनाकार।
ललित
चौपयी
काव्य सृजन बहार
काव्यसृजन पर कविता बाज
रंग बिरंगे सब सरताज।
कोई लिखता दिल की पीर
कोई घाव भरे गंभीर।
किसी हृदय मे छलके प्यार
कोई दिल से है बेजार।
दिखती नेताओ में खोट
नेता भागें ले लंगोट।
कोई समधन का बीमार
कुछ को समधी से ही प्यार।
कलम सियाही की दरकार
कागज लेकर सब तैयार।
राज रोज करते मनुहार
छंदों की कर दो भरमार।
काफी पी कर सारे यार
करते लेखन बारम्बार।
'ललित'
चौपयी
बेटी को मत मानो शाप
वो तो लक्ष्मी जी की छाप।
बिटिया से रौशन घर द्वार
सुता करे जग में उजियार।
रानी झाँसी को ही देख
छोड चली चाँदी की मेख।
तानी उसने थी तलवार
मानी नहीं कभी भी हार।
[24/06 12:32] L K. Gupta: चौपयी
रिक्शा में जब बैठो आप
थोडा सा लो मन में नाप।
उसके जीवन का संताप
जो माँगे दे दो चुपचाप।
ललित
[24/06 12:44] L K. Gupta: चौपयी
पसीना बहाये मजदूर
ठेके दार देखता घूर।
एक गरीबी से मजबूर
दूजा हुआ नशे में चूर।
ललित
चौपयी छंद
बाल दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
बच्चों के लिए एक विशेष रचना
शेरों का जंगल में राज
जंगल में मंगल है आज।
बंदर जी लाये बारात
बंदरिया से फेरे सात।
आज दोपहर होगा भात
डाँस चलेगा सारी रात।
बंदरिया का लहँगा लाल
सखी सहेली करें धमाल।
बंदर सारे हैं उस्ताद
चम्मच से खा रहे सलाद।
सखियाँ दिखा रही है नाच
बंदर भी भर रहे कुलाँच।
पंडित जी हैं धोती बाज
झूठ बोलते आवे लाज।
हँसकर बोले मंतर चार
दूल्हे को दुल्हन से प्यार।
'ललित'
काव्य सृजन परिवार
चौपयी छंद
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
नभ में बादल करते शोर
तभी नाचते वन में मोर।
जब होती है पावन भोर
कुकड़ू कूँ मुर्गे हर ओर।
चिड़ियाँ जब चहकें चहुँ ओर
मन को भाता है वह शोर।
बकरी की मैं मैं आवाज
बछिया यहाँ रंभाती आज।
कुत्ता भौंके भागे चोर
गधा करे ढेंचूँ का शोर।
बिल्ली की म्याऊँ आवाज
चूहे भागे बिन ही काज।
अपने सुंदर मुख को खोल
बोलो मीठे मीठे बोल।
बात सदा मन में लो तोल
तभी बढेगा जग में मोल।
'ललित'
चौपई
जंगल में पहुँचा शमशेर
खाने मीठे मीठे बेर।
काँटों में फिर उलझा पैर
सबसे रखता था वो वैर।
भीम नाम का बालक एक
सबसे सुंदर सबसे नेक।
आया सुनकर उसकी चीख
मदद करी उसको दी सीख।
करो सभी से हँसकर बात
कभी नहीं करना तुम घात।
सेवा के नित करना काम
तभी मिलेंगें तुमको राम।
'ललित'
चौपई छंद
उड़ती पतंग नभ की ओर
लेती है सबका दिल चोर।
ऊपर से देखे संसार
उसे नहीं पंछी से प्यार।
डोरी पतंग की बेकार
उड़ते पंछी देती मार।
इसीलिए मैं देता सीख
सुनो जरा पक्षी की चीख।
जान किसी की लेना पाप
मत लेना पंछी का शाप।
नहीं करो अब ऐसा खेल
करलो हर पक्षी से मेल।
'ललित'
सुंदर और सुहानी भोर
नवयौवन की पकड़े डोर।
हर मुख को देती मुस्कान
चढ़ती हैं खुशियाँ परवान।
[26/06 07:36] L K. Gupta: चौपयी
सुंदर मन के सुंदर साज
सुंदर बरखा का आगाज
शीतल सौम्य सजन का साथ
भीगें ले हाथों में हाथ
ललित
[26/06 07:44] L K. Gupta: चौपयी
चौपई छंद
भौंरों की फूलों में जान
फूलों के खुशबू में प्रान।
खुशबू को है भाता रास
सौरभ सुंदरता के पास।
चंचल मन के मादक साज
मनहर बरखा का आगाज।
शीतल सौम्य सजन का साथ
भीगें ले हाथों में हाथ।
'ललित'
चौपई
बेलन निदान
सभी पुरुषों के लिए उपयोगी
बेलन का सह सकता वार।
नहीं कहीं वो सकता हार।
कहे बेलनी बारम्बार
बेलन से मैं करती प्यार।
बेलन बेले रोटी चार
मर्दों पर क्यूँ खाता खार।
इक दिन ऐसा होगा यार।
मर्द मिलेगा जब दमदार।
कर के इस बेलन से वार
देगा भार्या को ही मार।
बेलन के कर टुकड़े चार
फेंकेगा वो बीच बजार।
फिर मशीन रोटी की लाय
देगा बीवी को सँभलाय।
झगड़े में कब कोई सार
होगा फिर दोनों में प्यार।
'ललित'
चौपई
पहन टोपियां निकले यार
आम आदमी की छवि धार।
निकले सबके सब ही चोर
धरने में ही चलता जोर।
कितने दिन चलता व्यापार
छोड चले कुछ तो मझधार।
मतदाता पर दुगनी मार
बैठ गया चुप मानी हार।
'ललित'
चौपयी
बेलन ही है तारन हार
समझ न आए हमको यार।
हम भी ले आएंगें चार
बेलन नये जरा दम दार।
बेलन से गर बढता प्यार
जीना हो जाता दुश्वार।
दुनिया के सब नर औ' नार
बेलन के भरते भण्डार।
ललित
चौपयी
इसकी टोपी उसपे वार
लिख डाली कविताएं चार।
होगा कैसे बेडा पार
ऐसे कवियों का अब यार।
धरे शारदा माँ का ध्यान
कर देता जो सत्य बखान।
सब देते हैं उसको कान
उसकी कविता में है जान।
ललित
भारत माँ के वीर सपूत।
चाचा नेहरू शांति दूत।।
किया गरीबों का उद्धार।
बच्चों से था उनको प्यार।।
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