कुण्डलिया सृजन 26-06-16 सेकुण्डलिया आगे आगे जा रही,एक अनोखी नार। कूल्हे थी मटका रही,पहने थी सलवार। पहने थी सलवार,चाल उसकी मतवाली। करने को दीदार,जरा सी चाल बढ़ाली। 'ललित' रहा मुरझाय,जोर से झटके लागे। वो था मजनूँ हाय,जा रहा आगे आगे। 'ललित'

कुण्डलिया

बोली वो मुस्काय के,प्यारी पत्नी आज।
नये वसन ले लीजिए,कुछ तो अपने काज।

कुछ तो अपने काज,सजनवा मेरे प्यारे।
सूट बूट में आप,लगोगे कितने प्यारे।
रहा ललित पछताय,खाय के मीठी गोली।
साड़ी भी हो जाय,यही मुस्का के बोली।

'ललित'

कुण्डलिया

आगे आगे जा रही,एक अनोखी नार।
कूल्हे थी मटका रही,पहने वो सलवार।
पहने थी सलवार,चाल उसकी मतवाली।
करने को दीदार,जरा सी चाल बढ़ाली।
'ललित' रहा मुरझाय,जोर से झटके लागे।
वो था मजनूँ हाय,जा रहा आगे आगे।

'ललित'

चौप

बेलन निदान
सभी पुरुषों के लिए उपयोगी

बेलन का सह सकता वार
नहीं कहीं वो सकता हार।
कहे बेलनी बारम्बार
बेलन से मैं करती प्यार।

बेलन बेले रोटी चार
मर्दों पर क्यूँ खाता खार।
इक दिन ऐसा होगा यार।
मर्द मिलेगा जब दमदार।

कर के इस बेलन से वार
देगा भार्या को ही मार।
बेलन के कर टुकड़े चार
फेंकेगा वो बीच बजार।

फिर मशीन रोटी की लाय
देगा बीवी को सँभलाय।
झगड़े में कब कोई सार
होगा फिर दोनों में प्यार।

'ललित'

No comments:

Post a Comment