सार छंद 1 रचना (ईमेल डन)

💐💐सार छंद (ललित पद)💐💐

[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
प्रथम प्रयास

नये नये छंदों की नैया,काव्य सृजन में तैरे।
ले पतवार सभी दौडे हैं,रचते छंद घनेरे।

गुरू देव ने छक्का मारा,गेंद गगन में डोले।
नये छंद भी समझ आ रहे,हमको हौले हौले।

ललित
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
2 प्रयास

दिल के छाले गिनने वाले,होते दिल के काले।
उनकी बातों में फँस जाते,इंसाँ भोले भाले।
गम को अपने पी जाने का, जज्बा जिसमें होता।
दिल का दर्द सहन कर लेता,लेकिन कभी न रोता।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
3 प्रयास

जिसको हम पूजा करते थे,दिल ही दिल में बरसों।

वो कम्बख्त सितमगर निकला,दिल का दुश्मन परसों।

आज यहीं हम दिल दे बैठे,एक नए दिलबर को।

और कहीं अब क्यूँ जाएंगें,छोड प्यार के
दर को।
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
1 प्रयास

कोटि कोटि ये सूर्य रश्मियाँ,जीवन ज्योत जगाएं।
कनक समान चमक जीवन को,सोने सा चमकाएं।
भूल पुरानी यादों को सब,नई राह अपनाएं।
जीवन धारा सुरभित होती,जैसे नव ललनाएं।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
2 प्रयास

स्नेह सिक्त आलिंगन तेरा,मन को है सहलाता।
माँ तेरी सौरभ से मेरा,तन मन भीगा जाता।
तेरी दो आँखों में मेरी,सारी खुशी समायी।
माँ तेरे आँचल में मैंने,सुख की नींदें पायी।

''ललित''
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
3 प्रयास

नारी के अंतर्मन का दुख,कब किसने है जाना।
जननी है वह इस जीवन की,कहाँ किसी ने माना।
रमणी की नजरों से देखी,मिला जहाँ जब मौका।
इसीलिए है डूब रही अब,मानवता की नौका।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
4 प्रयास

छंदों के धागे में बाँधू,मैं भावों के मोती।
लय में फिर लिख देता हूँ जो,पीर हृदय में होती।
माँ शारद की किरपा से ही,रचना में रस आता।
'राज' समीक्षा कर देते हैं,खुश हो जाती माता।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
5 प्रयास
कृषण दीवाने3.1.17

यमुना जैसा कारा मोहन,राधा माखन जैसी।
मुरली की धुन जैसी प्यारी,राधा नाचे वैसी।
राधा का यूँ हुआ दिवाना,कान्हा हौले हौले।
कान्हा की दीवानी दुनिया,राधे-राधे बोले।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
6 प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत
कृष्ण दीवाने 5.1.17
जादू की ये मुरली कान्हा,कोई समझ न पाया।
अधर लगाता है तू जिसको,किस दुनिया से लाया।
बजा बाँसुरी क्या तू मोहन,करता हेरा फेरी?
चैन छीनती है हम सब का,बैरन वंशी तेरी।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
7 प्रयास

परी कहो बेटी कह लो या,बिटिया रानी बोलो।
प्यारी सी सुंदर गुड़िया के,जीवन में रस घोलो।
उसे पढा दो और लिखा दो,इतना तो तुम भाई।
हँसते-हँसते पार करे वो,जीवन में हर खाई।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
1 प्रयास

नारी की महिमा है न्यारी,कहती दुनिया सारी।
वनिता यों महकाती घर को,जैसे हो फुलवारी।
हर महान मानव के पीछे,इक औरत है होती।
नारी ही जनती जीवन को,पाल कोख में मोती।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
2 प्रयास

ईश्वर की सुंदरतम कृति ये,नारी जग महतारी।
बोझ उठाती है घर भर का,दुख से कभी न हारी।
शिकवा और शिकायत करना,इसने कभी न जाना।
जिस घर में वनिता खुश रहती,वह घर लगे सुहाना।

'ललित'
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चलते चलते
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
सूर्य लंदन

ज्वलित पिण्ड इक प्राची से नित,पश्चिम तक जो जाता।
सात श्वेत अश्वों के रथ पर,हो सवार जो आता।
खुद जलकर जो सारी दुनिया,को जीवन रस देता।
उस सूरज को प्रात अर्घ्य दे,मैं प्रणाम कर लेता।

'ललित'

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[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद

सार बात होती जिसमें वो,सार छंद कहलाता।
सोलह बारह की मात्रा में,लिखा छंद ये जाता।
चार चरण हों दो गुरु से ही,चरण अंत है होता।
समतुकांत दो/चार चरण में,पूर्ण मुग्ध हों श्रोता।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
1

राम नाम से पत्थर तैरें,मानव क्यों न तरेंगें।
भवसागर के मालिक रामा,सबको पार करेंगें।
राम नाम की माला जपलो,मन में राम बसा लो।
शबरी जैसी सेवा कर तुम,जीवन सफल बना लो।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
प्रीत पागल

याद नहीं आएगी मुझको,
तेरी इस जीवन में।

पहले से तू जमकर बैठा,
है मेरे इस मन में।

आँखों से छवि तेरी ओझल,
होती कभी नहीं है।

तेरी यादों में ये आँखें,रोती कभी नहीं हैं।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद

पायल की रुन-झुन सुन मेरा,मनवा हाले डोले।
कोयल की संगत में कागा,मीठी बोली बोले।
प्रीत परायी देखूँ मैं तोे,मनवा डोल उठे है।
गीत अणू जी के पढ मेरा,यौवन बोल उठे है।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद

प्रीत प्रसूनों की देखें तो,कंटक जल भुन जाएं।
पवन संग सौरभ घुलती तो,मन प्रसून गुन गाएं।
प्यार पतंगे के पाकर वो,शमा खूब शर्माए।और पतंगा सुध-बुध भूला,शमा संग जल जाए।
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
कैसी तेरी प्रीत नशीली,
    कैसा ये जलवा है।
देखूँ तुझको तो लगता है,
    जैसे तू हलवा है।
नहीं ठीक से आता मुझको,
    मन की बात बताना।
लेकिन तू अच्छे से जाने,
    मुझको खूब सताना।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद

प्रीत हुई कान्हा से ऐसी,राधा सुधबुध भूले।
देख अधर से लगी बाँसुरी,नथुने उसके फूले।
सौतन ये वंशी मोहन के,अधरों को क्यूँ चूमे?
कैसे पुण्य किये मुरली ने,श्याम संग जो झूमे?

ललित😀😀😀
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद

दिल का दर्द बयाँ करना भी,कितना मुश्किल होता।
दर्द जुबाँ पर क्यों कर लाए,नीर बहा जो रोता।
अपने अपने दुख हैं यारों,अपनी अपनी दुनिया।
सब अपने दुख में ही खोये,दादी हो या मुनिया।

'ललित'
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[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
2
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

दर्दे दिल की दवा जहाँ में,कहीं नहीं है मिलती।
सूख गई जो कली प्यार में,कभी नहीं फिर खिलती।
दर्द समन्दर जैसा भी जो,हँसकर सहता जाए।
हँसने और हँसाने को वो,कविता कहता जाए।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': अनन्या जी के
जन्म दिन पर शुभाशीष
सहित

🌷🌷🌷🌷🌷🌷
काम सदा सेवा के करना,कोई तुमसे सीखे।
भर आती है आँख तुम्हारी,
दुखी नार जो दीखे।
अन्या तुम अपने जीवन में,
आगे बढती जाओ।
साधन और सफलता की तुम,सीढी चढती जाओ।
🌺💐🌺💐🌺💐
'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
3

राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

मोहन से क्यूँ नैन मिलाए,राधा अब पछताती।
देश छोड़ परदेश बसा जो,लिखे न कोई पाती।
वन उपवन सब सूने लगते,श्याम बिना ब्रज सूना।
सखियाँ जब ताने मारें तो,दर्द बढे ये दूना।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
4
सपनों में कब सोचा था जो,दर्द मिला अपनों से।
अपने ही जो  बन्दे थे वो,आज हुए सपनों से।
अब तो यारों डर लगता है,अपनों की बातों से।
दिल के टुकड़े कर देते जो,रोज नई घातों से।

ललित
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
6

दशरथ से रूठी  कैकेयी,मन की मनवाने को।
राज भरत को दिलवाने को,रामा वन जाने को।
तब हिन्दू धर्म बचाने कोे,माता बदनाम हुयी ।
श्री राम गये वनवास तभी,असुरों की शाम हुयी।

ललित
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
5

जब तू रूठे मुझ से तेरी,सुंदरता बढ जाती।
लाल लाल गालों की लाली,नथुनों पर चढ जाती।
चबा लबों को मन ही मन में,मुझ को कोसा करती।
मेरे हित के भावों को पर,दिल में पोसा करती।

ललित
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': शुभकामना सार
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सागर की लहरों से पूछा,गहराई है कितनी।
वो बोली इतनी गहराई,
नाप न पायें जितनी।
प्रेम प्रीति के भाव हृदय में,
भरे हुए सागर के।
प्रीत गीत मनभावन लिखता,
राधा नटनागर के।

'ललित'

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[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
राधा कृष्ण

मीठी मीठी बातें कर जो,राधा को बहलाए।
हर गोपी के साथ श्याम वो,नित ही रास रचाए।
नटखट कान्हा राधा के उर,में जाकर छुप जाए।
राधा वन-उपवन में ढूँढे,मोहन नजर न आए।

'ललित'

😀😀😀😀😀😀
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
राधा कृष्ण

मोहन कान्हा श्याम साँवरा,नटवर नागर तू ही।
वृन्दावन का कृष्ण कन्हैया,रस का सागर तू ही।
रस सागर तू  प्रेम पाश में,मुझको अपने ले ले।
कहे राधिका बदले में तू,सारे सपने ले ले।

'ललित'
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
राधा कृष्ण

कान्हा वंशी मुझे बना तू,अधरामृत बरसा दे।
कहे राधिका मत ऐ मोहन ,मुझको यूँ तरसा दे।
याद करूँ आलिंगन तेरा,सुधबुध मैं बिसराऊँ।
लगकर तेरे सीने से मैं,तुझ में ही खो जाऊँ।

ललित
[12/06 19:13] L K. Gupta 'ललित': सार छंद
राधा कृष्ण

स्व परिष्कार

पत्थर दिल बन बैठा कान्हा,तू तो मथुरा जा के।
रख ले अपनी राधा का दिल,एक बार तो आ के।
तेरी यादों में पागल हो,राधा वन-वन डोले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।

'ललित'

सार छंद

रचना सबको वो ही भाती,भाव भरी जो होती।
सबके दिल को जो हर्षाती,बीज प्रीत के बोती।
लिखने में जो धीरज रखता,भावों में खो जाता।
संयोजन की माला में फिर,शब्दों को पो जाता।
ललित
सार छंद
गीत

तेरी यादों में पागल हो,राधा वन-वन डोले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।

पत्थर दिल बन बैठा कान्हा,तू तो मथुरा जा के।
रख ले अपनी राधा का दिल,एक बार तो आ के।
मीठी मीठी टीस उठे है,दिल मे हौले-हौले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।

मोहन से क्यूँ नैन मिलाए,मन ही मन पछताती।
देश छोड़ परदेश बसा जो,लिखे न कोई पाती।
यमुना तट का वंशीवट भी, उगल रहा है शोले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।

वन उपवन सब सूने लगते,श्याम बिना ब्रज सूना।
सखियाँ जब ताने मारें तो,दर्द बढे ये दूना।
बैरी दुख कम करने को ये,राधा छुप छुप रो ले।
आजा कान्हा आजा अब तो,व्रज का कण-कण बोले।

'ललित'

सार छंद

प्रीत हुई कान्हा से ऐसी,राधा सुधबुध भूले।
देख अधर से लगी बाँसुरी,नथुने उसके फूले।
सौतन ये वंशी मोहन के,अधरों को क्यूँ चूमे?
कैसे पुण्य किये मुरली ने,श्याम संग जो झूमे?

कहे राधिका मत ऐ मोहन ,मुझको यूँ तरसा दे।
कान्हा वंशी मुझे बना तू,अधरामृत बरसा दे।
याद करूँ आलिंगन तेरा,सुधबुध मैं बिसराऊँ।
लगकर तेरे सीने से मैं,तुझ में ही खो जाऊँ।

ललित

आज खिला वो फूल चमन में,गुलशन को महकाये।
अपनी प्यारी मुस्कानों से,सबका दिल चहकाये।
दादा दादी झूम रहे हैं,न्यौछावर लुटवाएं।
नाना नानी खुश हैं इतने,लड्डू हैं बँटवाए।

सार छंद
गीत
वियोग श्रृंगार
सम्पूर्ण गीत

कैसे भूल गया साजन तू,वो कसमें वो वादे?
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?

फूलों की खुशबू सा तेरा,नटखट रूप सलोना।
औरों के दिल को तू समझे,नाजुक एक खिलौना।
मैंने दिल में सँजो रखी हैं,तेरी सारी यादें।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?

सावन की बूँदों से मेरा,तन मन भीगा जाए।
तुझसे मिलने की चाहत में,नैना नीर बहाएं।
अब तो सुन ले बैरी साजन,मेरी ये फरियादें।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?

आज तुझे क्यूँ याद नहीँ हैं,वो मादक बरसातें।
सारी रात किया करते थे,जब हम प्यारी बातें।
सपनों में ही आकर मुझको,हाला वही पिलादे।
क्यों मैं पहले समझ न पायी,तेरे नेक इरादे?

ललित
समाप्त

अनन्या जी

'नारी तू कल्याणी' लगती,
             हर नारी को प्यारी।
माहवार ये लेकर आती,
             अद्भुत ज्ञान पिटारी।
दीन-दुखी महिलाओं को ये,
              राह उचित दिखलाती।
तूफानों से टकराने की,
               विधियाँ सब सिखलाती।
'ललित'

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