विष्णु पद रचना(email13.8.16)

13.06.16
विष्णु पद
प्रथम प्रयास
स्वागत गान

नया छंद यह हमको भाया,
इसको प्यार करें।

माँ शारद से विनती करते,
बेडा पार करें।

अपने अपने लेखन से सब, उतरो आज खरे।

मणि जी फिर भेजेंगें सबको,
बक्से आम भरे।

ललित

विष्णुपद छंद
1
अपनो की यह खूबी देखी,हमने साँझ ढले।
बुरे दिनों में कभी नहीं ये, अपने साथ चलें।

खुद अपनी उलझन सुलझाने,की तदबीर करो।
राह नहीं कोई दिखती तो,पर्वत चीर चलो।

विष्णुपद छंद
2
एक प्यार ऐसा भी

दिलदारों ने हरदम हमको,दिल का दर्द दिया।
वही दे गया धोखा हमने,जिससे प्यार किया।
वादा कर के छोड़ गया था,जो मझधार हमें।
आज उसी दिल के दुश्मन पर,आया प्यार हमें।
विष्णुपद छंद
माता पिता
3
मात पिता की सेवा से जो,मन को सुख मिलता।
उस सुख से ही जीवन में हर,राह कमल खिलता।
तात मात को बिसरा कर जो,तीरथ है करता।
तीरथ भी धिक्कारें उसको,जीते जी मरता।

जीवन भर जिन मात पिता ने,प्यार दुलार दिया।
अपने जीवन का हर इक सुख,तुझ पर वार दिया।
आज उन्हीं के चरणों में क्यूँ,शीश नहीं धरता?
उनके दुख को देख अरे क्यूँ,आह नहीं भरता?
विष्णुपद छंद
4

मूढ मना तू आगत की क्यूँ,आहट नहीं सुने?
अपनी वृद्धावस्था की क्यूँ,राहत नहीं चुने?
तेरी संतानें जो तुझसे,आज प्यार करतीं।
देख नहीं पायेगा उनको,पीठ वार करतीं।

विष्णुपद छंद
5
कली नहीं हो जिस उपवन में,वो क्या बाग हुआ?
लय-सुर-ताल नहीं हो जिसमें,वो क्या राग हुआ?
बिटिया बिन जो घर सूना वो,क्या आबाद हुआ?
तोड़े जो कच्ची कलियों को,वो जल्लाद हुआ।

विष्णुपद छंद
6
धरती म्बर पास न आएं,फिर भी खुश रहते।
चँदा तारे अधर में लटके,टिम-टिम कुछ कहते।
जितना जो कुछ मिला भाग्य से,उस में खुश रह लो।
कमी लगे तो अपने प्रभु के,कानों में कह लो।

विष्णुपद छंद
7
दिल के सारे अरमानों को,पल में चूर किया।
उसने हमको अपने जीवन,से यूँ दूर किया।
हर पल हैं तड़पाते दिल के,रिसते घाव हमें।
पहले क्यूँ खिलवाये थे वो,भाजी पाव हमें?

विष्णुपद छंद
8
मनमंदिर में प्रभु की मूरत,कैसे कौन धरे?
काम समाया हो जब मन में,माला कौन करे?
प्रभु जी इतनी किरपा कर दो,मन निष्काम रहे।
राम नाम का जप हो निशदिन,मन में राम रहे।

विष्णुपद
9
बहुत सजाया और सँवारा,इस गोरे तन को।
सुंदर वसन और आभूषण,लगते प्रिय मन को।
चंचल मन को नहीं सँवारा,फिरता यहाँ वहाँ।
ईश करो अब किरपा मुझ पर,मन में बसो यहाँ।

विष्णुपद छंद
प्रकृति चित्रण
10
भोर हुए जो लाली नभ में,दिनकर है भरता।
देख उसे मन मेरा चहका,दिनभर है रहता।
संध्या को भी वो ही लाली,नभ सुंदर करती।
देख वही सुंदरता नारी,नख शिख मद भरती।

चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,अधर मिला मिलता।

शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
झीना आँचल भेद चाँदनी,सुंदरता निरखे।
सजनी का मन कितना चंचल,साजन ये परखे।

नीम निमोरी पग से चटकें,गुलमोहर महके।
रिमझिम बरस रही है बरखा,दादुर भी बहकें।
सजनी की भीगी जुल्फों से,मोती जब टपकें।
हर मोती मुखड़े पर निखरे,पलक नहीँ झपके।

रह रह कर चमके जो बिजली,जियरा है धड़के।
साजन की बाहों में सजनी,चुनरी भी सरके।
चमक चमक चमकें हैं जुगनू,कोयल कूक रही।
साजन सजनी के मन में उठ,चंचल हूक रही।

काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,जम कर बरस रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
चाँद चाँदनी से अपनी अब,मिलने को तरसे।

शांत सरोवर का जल भी अब,ऐसे उफन रहा।
बरखा की बूँदों को जैसे,कर वो नमन रहा।
प्रीत पगी अँखियों से साजन,को चूमे सजनी।
देखा उनका प्यार जवाँ तो,झूम उठी रजनी।

'ललित'
                  समाप्त
11
तुम दोनों के बीच प्यार की,हर दम जीत रहे।
डोर नेह की कभी न टूटे,दिल में प्रीत रहे।
घर आँगन में खुशियाँ डोलें,'आद्या' नित चहके।
ऊँची हो परवाज तुम्हारी,जीवन ये महके।

विष्णुपद
12
भूल से भी भूल कर हम तो,
न भूलेंगें उन्हें।
देश में रहकर विदेशी ही, भले दिखते जिन्हें।
भारती का हर सितमगर अब ,हमें पहचानता।
हिन्द का हर इक सिपाही खूँ ,बहाना जानता।
ललित

विष्णु पद
13
जीवन जन्म मोक्ष और मृत्यु,अटल सत्य जग में।
काम क्रोध मद मोह लोभ की,बेड़ी है पग में।
परोपकार सदा जो करता,भवसागर तरता।
अपनी खातिर जिये यहाँ जो,जीते जी मरता।

विष्णु पद
14
सूर्याष्टकम के हिंदी रूपांतर का प्रयास
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

आदिदेव है नमन आपको,मुदित दिवाकर जी।
नमन आपको भास्कर जी है ,नमन प्रभाकर जी।
सप्ताश्वी रथ सवार प्रचण्ड,हे कश्यप सुत जी।
श्वेतपद्मधर सूर्य देव को,नमन करूँ नित जी।

ललित

विष्णु पद
15
मेरे अंदर के तम को अब,हर लो शारद माँ।
ज्ञानसुधामृत की वर्षा अब,कर दो शारद माँ।
पूजा की विधि नहीं जानता,मन अर्पित करता।
मात आपकी किरपा से ये,छंद सृजित करता।

'ललित'

बालकों के लिए
16
साफ साफ अक्षर में लिखना,नकल नहीं करना।
एक पृष्ठ कम से कम बच्चों,हर दिन तुम  भरना।
अच्छे बच्चे कक्षाओं में,शांत सदा रहते।
कभी किसी से झगड़े वाली,बात नहीं कहते।
'ललित'

विष्णु पद
17
खाली पन्नों पर जो खींची,बिटिया लकीर वो।
मात पिता की राजदुलारी,सच में फकीर वो।

बाँट दिया बेटों में सब धन,सुता गुमनाम है।
इक दिन दूजे घर को जाना,महज अंजाम है।
'ललित'

विष्णु पद

बेटी
18
ममता की छाया में पलकर,बेटी यों निखरे।
कर देती चहुँ ओर उजाला,चाहे खुद बिखरे।

ममता की मूरत बनकर वो,जीवन भर चहके।
कभी किसी सूरत में उसके,कदम नहीं बहकें।

विष्णु पद छंद

आद्या
19
आद्या की किलकारी गूँजी,घर सारा चहका।
छम छम बाजी पैंजनिया जब,पग उसका लहका।
चंचल नन्हीं सोन परी वो,सबका दिल हरती।
माँ लक्ष्मी का रूप सुता वो,धन वर्षा करती।

'ललित'

आधार छंद
20
जिस कारण से तू हुआ,गुस्से से भरपूर।
मुझको वो बतला जरा,कर दूँ उसको दूर।
बिन बदरा बरसे नहीं,कभी धरा पर मेह।
फिर हम क्यों कर हो गए, मिलने से मजबूर।

ललित
काव्यसृजन परिवार

25.07.16
'अभिव्यक्ति- मन से कलम तक'
शीर्षक-सावन /बरसात/ विरह /हरियाली

आयोजन अध्यक्ष आदरणी आर.सी.शर्मा साहब को सादर समर्पित

विष्णु पद छंद

चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,अधर मिला मिलता।

शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
झीना आँचल भेद चाँदनी,सुंदरता निरखे।
सजनी का मन कितना चंचल,साजन ये परखे।

नीम निमोरी पग से चटकें,गुलमोहर महके।
रिमझिम बरस रही है बरखा,दादुर भी बहकें।
सजनी की भीगी जुल्फों से,मोती जब टपकें।
हर मोती मुखड़े पर निखरे,पलक नहीँ झपके।

रह रह कर चमके जो बिजली,जियरा है धड़के।
साजन की बाहों में सजनी,चुनरी भी सरके।
चमक चमक चमकें हैं जुगनू,कोयल कूक रही।
साजन सजनी के मन में उठ,चंचल हूक रही।

काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,जम कर बरस रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
चाँद चाँदनी से अपनी अब,मिलने को तरसे।

'ललित'

28.03.17
विष्णुपद

हे मनमोहन हे मुरलीधर,हे घनश्याम हरे।
हे नटनागर हे लीलाधर,पूरणकाम हरे।

गोप गोपियों की विनती पर,कुछ तो कान धरो।
राधा जी की व्याकुलता पर,कुछ तो ध्यान धरो।
ललित

2 comments:

  1. आदरणीय आपके छंद पढ़ कर आनंद आगया ।

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    1. सराहना व उत्साह वर्धन के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीय

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