चौपई छंद रचना 1


20.06.16

चौपई छंद

1
मिले मान या हो अपमान
नहीं घटे आतम की शान।
अपनी इज्जत अपने हाथ।
दुश्मन से मत खाना मात।

सीमा पर बैठे जो वीर
दुश्मन को वो देंगे चीर।
देश उन्हीं को देता मान।
रखें तिरंगे की जो शान।

देश हमारा हिंदुस्तान
प्यारा जिसका हर इंसान ।
हमने हरदम देखी जीत
खुशियों के हम गाते गीत।

आये भारत माँ को आँच
कभी न हो सकता ये साँच।
हमने ठान लिया ये आज
भारत ही होगा सर ताज।
'ललित'

चौपई छंद
2
केला जामुन केसर आम
अच्छे लगते सुबहा शाम।
खाकर इनको सब इंसान।
चलें सड़क पर सीना तान।

फल खाते जो बच्चे रोज
ढोते नहीं दवा का बोझ।
फल सब्जी खाओ दिल खोल
देते ये ताकत अनमोल।

'ललित'

चौपई छंद
3
बच्चों के लिए

बोल करेले कुछ तो बोल
क्यों है कड़वा तेरा घोल।
इतना मीठा होता आम
लेते हैं सब बाहें थाम।

अंगूरों की देखो शान
सभी लुटायें इन पर जान।
नारंगी इतनी रंगीन।
खा लें इसको बच्चे तीन।

बोल करेले कुछ तो बोल
राज सभी अपनों के खोल।
अनन्नास की मोटी खाल।
रस कर देता मोटे गाल।

मौसम्मी छलकाती प्यार
रस पीते इसका बीमार।
गन्ना मीठे रस की खान
फल हैं ईश्वर का वरदान।

ललित
है कड़वा तेरा घोल।
इतना मीठा होता आम
लेते हैं सब बाहें थाम।

अंगूरों की देखो शान
सभी लुटायें इन पर जान।
नारंगी इतनी रंगीन।
खा लें इसको बच्चे तीन।

बोल करेले कुछ तो बोल
राज सभी अपनों के खोल।
अनन्नास की मोटी खाल।
रस कर देता मोटे गाल।

मौसम्मी छलकाती प्यार
रस पीते इसका बीमार।
गन्ना मीठे रस की खान
फल हैं ईश्वर का वरदान।

ललित

चौपई छंद
4

राम नाम जीवन का सार
भवसागर से करता पार।
अंत समय बोले जो राम
जावे सीधा भगवत धाम।

हनुमत ध्यावें सीताराम
अमर होगये जपकर नाम।
संशय करो न आठों याम
जपलो करते करते काम।

'ललित'

ममता की मूरत हर नार
देवी का जैसे अवतार।
बच्चों को दे प्यार अपार
माँ के बिन सूना संसार।

ललित

चौपई छंद
5

कड़वा सच तू कभी न बोल
मीठा सच भी खोले पोल।
नेताओं के बजते ढोल।
कभी न बोलें बातें तोल।

देखा नेताओं का राज
झूठों के जो हैं सरताज।
आम आदमी पिसता आज
हम को नेताओं पे नाज।

ललित

चौपई छंद

चंदन से लिपटे ज्यों साँप
रोगों से मन जाता काँप।
योग सिखावे ऐसे खेल
रोगों का तो निकले तेल।

जीवन से जो करते प्यार
वही योग हैं करते यार।
भोगों से उपजे जो रोग
मार भगाये उनको योग।

ललित

चौपयी

कुछ यूँ ही

देखी जो मतवाली चाल
बुरा हुआ भौरों का हाल।
गुंजन करना भूले आज
देखे जो गौरी के साज।

लहँगा महँगा पहना खास
साजन जी आए फिर पास।
हुई प्यार में आँखें चार।
वो भी बैठी दुनिया हार।

ललित

लेखन भी है इक सौगात
देती है जो शारद मात।
'राज' बहायें निर्मल ज्ञान
छंद बनें फिर आलीशान।

छंदो की रचना में आज
काव्यसृजन ने पहना ताज।
मोती चुन चुन लाते रोज
काव्यसृजन में आता ओज।

चौपयी

देशी नार विदेशी चाल
बिगड़ी हो चाहे सुरताल।
मटकी जैसे फूले गाल
आँखों में दे आँखें डाल।

सोने जैसे दिखते बाल
लडकी चाहे हो कंगाल।
मजनूँ देख हुआ बेहाल
बदल गयी उसकी भी चाल।

सैंडिल महँगे दिखते लाल
मजनूँ के बिखरे हैं बाल।
लडकी निकली वो दमदार
पापा उसके थानेदार।

ललित

चौपई

जामुन खाने हों या आम
मणि जी की लो बाहें थाम।
बने फिरे हैं वो गुलफाम
पर लेते हैं कम ही दाम।

भाभी जी रहती हैरान
देख देख इनकी मुस्कान।
कहाँ लडा कर आते नैन
रातों को रहते बेचैन।

ललित

चौपई छंद

सबकी अपनी अपनी नाव
सबके अपने अपने घाव।
हाथों से छूटी पतवार
मरहम कौन लगाए यार।

नाव लगाती है उस पार।
घाव लगाता है संसार।
पार लगानी गर हो नाव
भूलो अपने सारे घाव।

देख लिया सारा संसार
नहीं रखा इसमें कुछ सार।
देखी हमने सबकी प्रीत
मतलब के हैं सारे मीत।

हार मिली हो या हो जीत
झूम खुशी से गाओ गीत।
गूँजे फिर ऐसा संगीत
दुश्मन भी बन जाए मीत।

'ललित'

चौपयी छंद
प्यार

सूझ गया इक ऐसा गीत
सा रे गा मा सा संगीत।
परदेसी कर बैठा प्रीत
मन मिलने से बनते मीत।

सबके सुर हैं सुंदर यार
एक बेसुरा मैं किरदार।
जो मिल जाए सबका प्यार
सबको मैं पहनाऊँ हार।

दीवाना होता है प्यार
क्या समझेगा ये संसार।
समझे नहीं प्यार का सार
जीवन है उसका निस्सार।

सोच सोच जो करते प्यार
अक्सर डूबे वो मझधार।
मत सोचे तू कुछ भी यार
प्यारों की है नैया पार।

प्यार सदा से सदाबहार
पहनाए अपनों को हार।
जिसका प्यारा है व्यवहार
उसने जीता है संसार।

ललित

ललित

चौपई

पीली मुर्गी चूजे लाल
नरम नरम हैं उनके बाल।
उड़ने को अब हैं तैयार
मुर्गी के वो बच्चे चार।

ललित

चौपई

जंगल में जब चारों ओर
बंदर लगे मचाने शोर।
दौड़ा आया राजा शेर
बंदरों की अब नहीं खैर।

ललित

चौपईचौपई

गुलाब जामुन आइसक्रीम
खाने बैठा देखो भीम।
खाये कैसे खट्टे आम
केला खाए वो हर शाम।

ललित

गुलाब जामुन आइसक्रीम
खाने बैठा देखो भीम।
खाये कैसे खट्टे आम
केला खाए वो हर शाम।

ललित

चौपई छंद

भारत में है कितना शोर
इतने रावण इतने चोर।
अंधकार छाया हर ओर
नेताओं का चलता जोर।

नेता करते टालम टोल
बोलें मीठे मीठे बोल।
घोटाले करते गंभीर।
जनता बैठी है धर धीर।

हमने सोचा है इस बार
नेता बन जाएं हम यार।
कर लें कुछ सेवा व्यापार
तर जाएं पीढी दो चार।

खादी का कुर्ता जो एक
पहने वो कहलाता नेक।
खादी पर अब लगते दाग
नेता सब बन बैठे काग।

ललित
काव्यसृजन परिवार

22.06.16
चौपयी

बागों में झूले हर ओर
मोर पपीहे करते शोर।
सावन की पहली बरसात
भीग रहा गौरी का गात।

ललित

चौपई

श्रृंगार रस

कानों में झुमके मुँहजोर
पाँवों में पायल बरजोर।
मुखमण्डल यौवन की आभ
चंचल चितवन मनहर नाभ।

गौरी तेरा रूप कमाल
मधुर सुरों की मधुरिम ताल।
लटके लट मुख पर चितचोर
शीश नहीं हो जैसे ठौर।

नखशिख अनुपम तेरा रूप
सावन की ज्यों पहली धूप।
एक नजर देखे जिस ओर
सुंदर सुमन खिलें उस ओर।

ललित

चौपयी

नयनो में सुरमे की रेख
नथनी शान लबों की मेख।
दंतावलि मोती की माल
ठोड़ी का तिल करे कमाल।

ललित

चौपयी
बिना रस का श्रृंगार

जींस टॉप में करे धमाल
सुंदरता में वो कंगाल।
ऐसी छोरी देखी आज
सोचूँ मै तो आवे लाज।

बाल कटे हैं बेसुरताल
कंधों पर टैटू हैं लाल।
मटक मटक यूँ चलती चाल
मजनूँ हो जाएँ बेहाल।

ललित

चौप ई छंद

बरसातों की करते बात
साजन जी परसों की रात।
आज होगयी है बरसात
रोके नहीं रुकें जज्बात।

सौंधी सौंधी खुशबू साथ
बूँदे गिरती सजनी माथ।
आँचल भीगा भीगे गात
पायल भी छेड़े सुर सात।

साजन ले हाथों में हाथ
सजनी की भर लेते बाथ।
बादल गर्जें नाचें मोर
साँसें खूब मचाती शोर।

झूले की लम्बी है डोर
सजनी ने पकड़ा इक छोर।
झूल रही साजन के साथ
सजनी दे हाथों में हाथ।

बरस रहे मेघा चहुँ ओर
मन मयूर भी करते शोर।
गर लम्बी होती ये रात
करते रहते मीठी बात।

ललित

चौपयी की चौप

है पडोस में ऐसी नार
सारे नर टपकाते लार।
भूले जाना आफिस आज
घर से ही निपटाते काज।

तभी रसोई से आवाज
बेलन चकला जैसे साज।
चाकू जैसे हो तलवार
मैडम जी से आँखें चार।

स्नान ध्यान की आई याद
डर के मारे निकला नाद।
पहने कपडे जूते साथ
पड ही जाते जूते माथ।

ललित

बहना का भाई से प्यार
क्या समझेगा ये संसार।
समझे नहीं प्यार का सार
जीवन है उसका निस्सार।

23.10.16
चौपयी
नेता भरते खूब उड़ान।
कुर्सी पर हैं सब कुर्बान।
देश और दुनिया को भूल।
खुद के सपनों मे मशगूल।

नेताओं की रेलम पेल।
जनता भी नित देखे खेल।
कुल्हड़ ने अब छोड़ा चाक।
लोकतंंत्र बन गया मजाक।

ललित

🙏🌺🙏

धरती कहे गगन से आज।
तारों पर मेरा है राज।
मीठे ऐसे मेरे आम।
चंदा करता मुझे सलाम।

सूरज करता सुबहा शाम।
फसल उगाना मेरा काम।
पेड़ हरे मैं पालूँ खूब।
अच्छी लगती मुझको दूब।

ललित

चौपयी

नहीं सूझता कोई गीत।
गाए जा तू फिर भी मीत।
साजन से मिलने की आस।
मन ही मन में होता रास।

खुश रहना जीवन का सार।
हँस ले और हँसा ले यार।
वक्त कहाँ तक देगा साथ?
वक्त कहाँ आएगा हाथ?

पड़ता है तू क्यों कमजोर?
अरे कभी तो होगी भोर।
जीवन से तम जाएं भाग।
जाती है जब किस्मत जाग।

ललित
नापाक-पाक

पहले पाले काले साँप।
अब क्यों पाक रहा तू काँप?
बोए तूने खूब बबूल।
अब क्यों चाह रहा तू फूल?

खूब दिया दुनिया को जूल।
पड़े भुगतनी अब ये भूल।
खूब मचाई बन्दर बाँट।
अब सुन ले दुनिया की डाँट।

'ललित'

चौपयी
मेरी आज की प्रस्तुति

कैसी जनता कैसे लोग?
नेता को बस प्यारा भोग।
कुर्सी में अटकी है जान।
कुर्सी से नेता की शान।

पढ़े लिखे सब चाटें धूल।
नेता जी पर वारें फूल।
वाह हमारा देश महान।
नेताओं का हो गुणगान।

नहीं किसी नेता में खोट।
हाथ जोड़ सब माँगें वोट।
जब नेता जी जाते जीत।
फिर गाते अपना ही गीत।

मैं हूँ ताकतवर इंसान।
खद्दर कुर्ता है पहचान।
गाड़ी पर है बत्ती लाल।
नाचें चमचे दे दे ताल।

पक्का है जो बेईमान।
उसे कहें सब ही भगवान।
जय जय जय जय जय श्रीराम।
नेता जी हैं झण्डू बाम।

'ललित'

चौपयी छंद

हर चैनल पर है अखिलेश।
अखिलेशों में खोया देश।
मंचों पर है इनकी धाक।
लोकतंत्र रगड़े है नाक।

पढ़े लिखे सब चाटें धूल।
नेता जी पर वारें फूल।
वाह हमारा देश महान।
नेताओं का हो गुणगान।

कैसी जनता कैसे लोग?
नेता को बस प्यारा भोग।
कुर्सी में अटकी है जान।
कुर्सी से नेता की शान।

'ललित'

चौपयी छंद

पावन है बेटी का पाँव।
घर में ज्यों तुलसी की छाँव।
बेटी होती घर की शान।
चलती फिरती लक्ष्मी मान।

बेटी बदले भाग्य लकीर।
मात पिता की समझे पीर।
बेटी ईश्वर का वरदान।
रखती जो दो घर की आन।

बिल्कुल सच्चे हैं ये बोल।
बेटी एक रतन अनमोल।
शिक्षा पाकर बने महान।
होने दो उसका उत्थान।

करने दो उसको तदबीर।
बदलेगी इक दिन तकदीर।
देखोगे तुम ये परिणाम।
जग में होगा रौशन नाम।

'ललित'

चौपयी छंद

खास दिवाली का त्यौहार।
खुशियाँ लाया अपरम्पार।
करता हो जो तुमसे प्यार।
उसके ही घर जाना यार।

दिल को दिल से होती राह।
प्रेम प्रीत की होती चाह।
जिसकी आँखों में हो प्यार।
उसके ही घर जाना यार।

लब पर जिसके हो मुस्कान।
करता हो सबका सम्मान।
बातें करता हो रसदार।
उसके ही घर जाना यार।

ले जाना प्यारा मिष्ठान।
साथ लबों पर तुम मुस्कान।
नहीं करे जो कटु व्यवहार।
उसके ही घर जाना यार।

'ललित'

No comments:

Post a Comment