आधारछंद रचना(ईमेल13.8.16)

27.06.16

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आधार छंद रचनाएँ
1
जिस कारण से तू हुआ,गुस्से से भरपूर।
मुझको वो बतला जरा,कर दूँ उसको दूर।
बिन बदरा बरसे नहीं,कभी धरा पर मेह।
फिर हम क्यों कर हो गए, मिलने से मजबूर।
2
याद मुझे माँ आ रहा,तेरा निश्छल प्यार।
वो ममता की छाँव वो,प्यार भरी मनुहार।।
क्या तू बैठी है कहीं,नील गगन में दूर?
क्या अब भी सुन पायगी,मेरी करुण पुकार?
3
जनता की सब सम्पदा,नेता मंत्री खायँ।
पतवारों के बोझ से,नौका डूबी जाय।
कंचन किश्ती में चढे,नेता मंत्री चार।
पतवारें ही बेच दी,डूबी नैया हाय।
4
बूँद बूँद बरखा गिरे,शीतलता बरसाय।
लगे धरा को झूमके,बदरा चूमें आय।
हर्षाती नवयौवना,आयी पिय के पास।
बाहों में भर ले मुझे,नैनों से समझाय।
5
सावन बरसे आँगना,पायल करती शोर।
नैना चंचल हो रहे,देख पिया की ओर।
बैरी पिय समझे नहीं,बना धीर गंभीर।
कविता रचने में मगन,उसके मन का मोर।
6
बाहों में भर ले मुझे,सजना मेरे आज।
बरखा ने मन को नयी,दे दी है परवाज।
शीतल मंद सुगंध से,महका हर इक अंग।
दिल चंचल बस में नहीं,झंकृत हैं सब साज।
7
सतरंगी नभ से चलें,कामदेव के बाण।
धीर मना चंचल हुए,कामुक है पाषाण।
हिरणी सी नवयौवना,झूला झूले बाग।
साजन के दिल की बढी,धड़कन बे परिमाण।
8
बरसात

बेशरम बैरी बरखा ,गौरी को नहलाय।
ज्यों ज्यों भीगे गात त्यों,छमियाँ सिमटी जाय।
तन से चिपका है वसन,छाँव नहीं है पास।
शीतलहर ऐसी चले,तन मन सिहरा जाय।
9
लातूर

सूख सूख पापड़ हुआ,कल तक जो लातूर।
इंद्रदेव ने दे दिया,जल उसको भरपूर।
जीवन देता है वही,नारायण हर बार।
मानव समझ न पा रहा,कुदरत का दस्तूर।

10
आधार छंद
प्रीत और मीत

कौन  सगा अपना यहाँ,और कौन है मीत?
इस दुविधा को छोड़ दे,गाये जा तू गीत।
सब को खुश कैसे रखे, एक अकेली जान।
मतलब के सब यार हैं,स्वारथ की है प्रीत।

फूल और भँवरे दिखें,इक दूजे के मीत।
भौंरा बस रस चूसता,झूँठी उसकी प्रीत।
प्यार भरे व्यवहार के,पीछे ये ही राज।
जो है अपने काम का,गाओ उस के गीत।

समझ न आता है यहाँ,प्रीत मीत का खेल।
लिपटी है क्यों वृक्ष से,वह कोमल सी बेल?
क्या ये सच्चा प्यार है,या स्वारथ की प्रीत?
मतलब के सब मीत हैं,नहीं प्यार का मेल।

मीरा जैसी प्रीत हो,राधा जैसा प्यार।
गोपी जैसा प्रेम तो,कान्हा जाते हार।
प्रीतम के दुख में दुखी,सुख में सुखिया होय।
पावन बंधन नेह का,क्या जाने संसार।

11
कुछ तो है इस देश में,जो है सबसे खास।
हर मन में उमगे यहाँ,रोज नया उल्लास।

वीरों की ये भारती,जननी है कहलाय।
कोई दुश्मन भूल के,आए कभी न पास।
12
एक अकेला चल पड़ा,सत्याग्रह की राह।
गीता के उपदेश ले,लड़ने की थी चाह।

प्रबल आत्म विश्वास था,उस गाँधी के पास।
'भारत छोड़ो' घोष सुन,भरते गोरे 'आह'।
13
छप्पन का सीना यहाँ,तू ले अपना नाप।
फुँफकारेगा इण्डिया,जाएगा तू काँप।

फूँकों से तू मत बजे,ओ रे मूरख शंख।
भारत की तू शक्ति को,कम करके मत माप।

'ललित'

आधार छंद

खाने यारों हम गये,बूफे में इक बार।
इक मैडम से होगयी,हलवे पर तकरार।

छीना झपटी से नहीं,मैडम आयी बाज।
हमने शादी को कहा,कर बैठी इकरार।

ललित

आधार छंद

जय बोलो नारायणा,जय जय सीताराम।
राधे की जय बोलिये,मिल जाएं घनश्याम।

सुमिरो हरि जगदीश को,निशि दिन बारम्बार।
भव बाधा सब दूर हो,टले न कोई काम।

ललित
आधार

प्यार हमारा बन गया,आज गले का हार।
प्यारी बीबी जी हमें,ले आयीं बाजार।
फिर साड़ीदूकान में,साड़ी देखी खूब।
ले ही ली दो साडियाँ,उमड़ा ऐसा प्यार।

ललित

आधार छंद

मीठे सुर में कोकिला,कहती मन की बात।
कावं कावं करता सदा,वो कौए की जात।
कड़ुए मीठे बोल का,मिश्रण होती नार।
बाहर मिश्री माखना,घर में तीखा भात।

'ललित'

आधार छंद

माँ का आशीष

जब माँ आँखें बन्द कर,चूमे शिशु का भाल।
विधि से पूछे ही बिना,लिख दे भाग्य विशाल।
बच्चों को आशीष दे,माँ का पावन हाथ।
टल जाए हर आपदा,काँपे काल कराल।

'ललित'

आधार छंद
समय

बजे समय की बाँसुरी,बिना रुके दिन रात।
मुरली की धुन को सुनो,सुनो समय की बात।
ऊँचे नीचे राग में,समता रखना आप।
काल चक्र को रोक ले,किसकी है औकात।

बेपेंदे का है घड़ा,कालचक्र ये देख।
एक जगह रुकता नहीं,चाहे खींचो रेख।

बदले करवट कब कहाँ,नहीं किसी को भान।
पल में मिट जाते यहाँ,कर्मों के भी लेख।

रुकना जो जाने नहीं,नाम उसी का काल।
रोक सको तो रोक लो,सिर के झड़ते बाल।

कभी दिलाए राज तो,कभी बनाए रंक।
समझ न पाए नर कभी,ढीठ समय की चाल।

'ललित'
आधार छंद

समय समय की बात है,कहते हैं सब कोय।
समय बड़ा बलवान है,ये भी कहते रोय।
बलिहारी है समय की,कोय बलैयाँ लेत।
उन्नत होने का समय,कोय बिगाड़े सोय।

'ललित'

आधार छंद

समय पाय भर जात हैं,गहरे गहरे घाव।
समय आय तर जात है,शुभ कर्मों की नाव।
क्रूर कर्म में रत रहें,जो नर आठों याम।
इक दिन दिखलाये उन्हें,समय बड़ा ही ताव।
ललित

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