********************************
------सार छन्द (ललित पद)विधान------
********************************
विधान :-
1- यह 28 मात्राओं का एक मात्रिक छन्द
है।
2 -इसमें यति 16, 12 मात्राओं के बीच होती है।
3-चार पँक्तियाँ होती हैं।
4- दो,दो अथवा चारो पक्तियों में तुकान्त सुमेलित किये जाते हैं।
5- अन्त गुरु अथवा दो लघु से होता है।
६- अन्त में दो गुरु वर्ण होने से लय बाधित नहीं होती अतः अंत में दो गुरु वर्ण ही रखना ही चाहिए।
**** उदाहरण ****
सार-छंद
*****************
इक-दिन सब-कुछ छोड़-छाड़ ये,पंछी उड़ जाएगा।
क्या खोया क्या पाया जग में,सोच नहीं पाएगा।
दान-पुण्य-उपकारों से तू,भर ले अपनी झोली।
याद रखेगी दुनिया केवल,तेरी मीठी बोली।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
*******************************
********सार छंद रचनाएँ**********
1.
काव्यसृजन
नये नये छंदों की नैया,काव्य सृजन में तैरे।
ले पतवार सभी दौडे हैं,रचते छंद घनेरे।
श्वेता जी ने छक्का मारा,गेंद गगन में डोले।
सार छंद भी समझ आ रहा,हमको हौले हौले।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
2
दिल का दुश्मन
जिसको हम पूजा करते थे,दिल ही दिल में बरसों।
वो कम्बख्त सितमगर निकला,दिल का दुश्मन परसों।
आज यहीं हम दिल दे बैठे,एक नए दिलबर को।
और कहीं अब क्यूँ जाएंगें,छोड प्यार के
दर को।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
3
दिल के छाले
दिल के छाले गिनने वाले,होते दिल के काले।
उनकी बातों में फँस जाते,इंसाँ भोले भाले।
गम को अपने पी जाने का, जज्बा जिसमें होता।
दिल का दर्द सहन कर लेता,लेकिन कभी न रोता।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
4.
स्नेहसिक्त आलिंगन
स्नेह सिक्त आलिंगन तेरा,मन को है सहलाता।
माँ तेरी सौरभ से मेरा,तन मन भीगा जाता।
तेरी दो आँखों में मेरी,सारी खुशी समायी।
माँ तेरे आँचल में मैंने,सुख की नींदें पायी।
'ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
5.
नारी का अंतर्मन
नारी के अंतर्मन का दुख,कब किसने है जाना?
जननी है वह इस जीवन की,कहाँ किसी ने माना?
रमणी की नजरों से देखी,मिला जहाँ जब मौका।
इसीलिए तो डूब रही अब,मानवता की नौका।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
6.
छंदों के धागे
छंदों के धागे में बाँधू,मैं भावों के मोती।
लय में फिर लिख देता हूँ जो,पीर हृदय में होती।
माँ शारद की किरपा से ही,रचना में रस आता।
'राज' समीक्षा कर देते हैं,खुश हो जाती माता।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
7.
मुरली की धुन
यमुना जैसा कारा मोहन,राधा माखन जैसी।
मुरली की धुन जैसी प्यारी,राधा नाचे वैसी।
राधा का यूँ हुआ दिवाना,कान्हा हौले हौले।
कान्हा की दीवानी दुनिया,राधे-राधे बोले।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
8.
जादू की मुरली
जादू की ये मुरली कान्हा,कोई समझ न पाया।
अधर लगाता है तू जिसको,किस दुनिया से लाया।
बजा बाँसुरी क्या तू मोहन,करता हेरा फेरी?
चैन छीनती है हम सब का,बैरन वंशी तेरी।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
9.
परी
परी कहो बेटी कह लो या,बिटिया रानी बोलो।
प्यारी सी सुंदर गुड़िया के,जीवन में रस घोलो।
उसे पढा दो और लिखा दो,इतना तो तुम भाई।
हँसते-हँसते पार करे वो,जीवन में हर खाई।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
10.
नारी की महिमा
नारी की महिमा है न्यारी,कहती दुनिया सारी।
वनिता यों महकाती घर को,जैसे हो फुलवारी।
हर महान मानव के पीछे,इक औरत है होती।
नारी ही जनती जीवन को,पाल कोख में मोती।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
11.
नारी जग महतारी
ईश्वर की सुंदरतम कृति ये,नारी जग महतारी।
बोझ उठाती है घर भर का,दुख से कभी न हारी।
शिकवा और शिकायत करना,इसने कभी न जाना।
जिस घर में वनिता खुश रहती,वह घर लगे सुहाना।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
12
सूर्य वंदन
ज्वलित पिण्ड इक प्राची से नित,पश्चिम तक जो जाता।
सात श्वेत अश्वों के रथ पर,हो सवार जो आता।
खुद जलकर जो सारी दुनिया,को जीवन रस देता।
उस सूरज को प्रात अर्घ्य दे,मैं प्रणाम कर लेता।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
13.
सार बात
सार बात होती जिसमें वो,सार छंद कहलाता।
सोलह बारह की मात्रा में,लिखा छंद ये जाता।
चार चरण हों दो गुरु से ही,चरण अंत है होता।
समतुकांत दो/चार चरण में,पूर्ण मुग्ध हों श्रोता।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
14
राम नाम
राम नाम से पत्थर तैरें,मानव क्यों न तरेंगें।
भवसागर के मालिक रामा,सबको पार करेंगें।
राम नाम की माला जपलो,मन में राम बसा लो।
शबरी जैसी सेवा कर तुम,जीवन सफल बना लो
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
15
प्रीत पागल
याद नहीं आएगी मुझको,
तेरी इस जीवन में।
पहले से तू जमकर बैठा,
है मेरे इस मन में।
आँखों से छवि तेरी ओझल,
होती कभी नहीं है।
तेरी यादों में ये आँखें,रोती कभी नहीं हैं।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
16.
पायल
पायल की रुन-झुन सुन मेरा,मनवा हाले डोले।
कोयल की संगत में कागा,मीठी बोली बोले।
प्रीत परायी देखूँ मैं तोे,मनवा डोल उठे है।
गीत अणू जी के पढ मेरा,यौवन बोल उठे है।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
17.
प्रीत प्रसूनों की
प्रीत प्रसूनों की देखें तो,कंटक जल भुन जाएं।
पवन संग सौरभ घुलती तो,मन प्रसून गुन गाएं।
प्यार पतंगे का पाकर वो,शमा खूब शर्माए।और पतंगा सुध-बुध भूला,शमा संग जल जाए।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
18
प्रीत नशीली
कैसी तेरी प्रीत नशीली,कैसा ये जलवा है।
देखूँ तुझको तो लगता है,जैसे तू हलवा है।
नहीं ठीक से आता मुझको,मन की बात बताना।
लेकिन तू अच्छे से जाने,मुझको खूब सताना।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
19.
सुधबुध
प्रीत हुई कान्हा से ऐसी,राधा सुधबुध भूले।
देख अधर से लगी बाँसुरी,नथुने उसके फूले।
सौतन ये वंशी मोहन के,अधरों को क्यूँ चूमे?
कैसे पुण्य किये मुरली ने,श्याम संग जो झूमे?
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
20.
दिल का दर्द
दिल का दर्द बयाँ करना भी,कितना मुश्किल होता।
दर्द जुबाँ पर क्यों कर लाए,नीर बहा जो रोता।
अपने अपने दुख हैं यारों,अपनी अपनी दुनिया।
सब अपने ही दुख में खोये,दादी हो या मुनिया।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
21.
दर्दे-दिल
दर्दे दिल की दवा जहाँ में,कहीं नहीं है मिलती।
सूख गई जो कली प्यार में,कभी नहीं फिर खिलती।
दर्द समन्दर जैसा भी जो,हँसकर सहता जाए।
हँसने और हँसाने को वो,कविता कहता जाए।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
22.
मोहन
मोहन से क्यूँ नैन मिलाए,राधा अब पछताती।
देश छोड़ परदेश बसा जो,लिखे न कोई पाती।
वन उपवन सब सूने लगते,श्याम बिना ब्रज सूना।
सखियाँ जब ताने मारें तो,दर्द बढे ये दूना।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
23.
दिल के टुकड़े
सपनों में कब सोचा था जो,दर्द मिला अपनों से।
अपने ही जो बन्दे थे वो,आज हुए सपनों से।
अब तो यारों डर लगता है,अपनों की बातों से।
दिल के टुकड़े कर देते जो,रोज नई घातों से।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
24.
रूठना
जब तू रूठे मुझ से तेरी,सुंदरता बढ जाती।
लाल लाल गालों की लाली,नथुनों पर चढ जाती।
चबा लबों को मन ही मन में,मुझ को कोसा करती।
मेरे हित के भावों को पर,दिल में पोसा करती।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
25.
दशरथ
दशरथ से रूठी कैकेयी,मन की मनवाने को।
राज भरत को दिलवाने को,रामा वन जाने को।
तब हिन्दू धर्म बचाने कोे,माता बदनाम हुयी ।
श्री राम गये वनवास तभी,असुरों की शाम हुयी।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
26.
राधा कृष्ण
मीठी मीठी बातें कर जो,राधा को बहलाए।
हर गोपी के साथ श्याम वो,नित ही रास रचाए।
नटखट कान्हा राधा के उर,में जाकर छुप जाए।
राधा वन-उपवन में ढूँढे,मोहन नजर न आए।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
सार छंद
27.
नटवर नागर
मोहन कान्हा श्याम साँवरा,नटवर नागर तू ही।
वृन्दावन का कृष्ण कन्हैया,रस का सागर तू ही।
रस सागर तू प्रेम पाश में,मुझको अपने ले ले।
कहे राधिका बदले में तू,सारे सपने ले ले।
ललित किशोर 'ललित'
**************************************
अद्भुत👌👌👌 🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteआपके सार छंदों को पढ़कर ंमन पुलकित हुआ ।
ReplyDeleteसराहना और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार आदरणीय
Deleteआपका हार्दिक आभार आदरणीया
ReplyDeleteज्ञानवर्धक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसराहना व उत्साह वर्धन के लिए आपका हृदयतल से आभार आदरणीय
Deleteसार छंदबद्ध खण्ड काव्य लेखन हेतु मार्गदर्शन दें
ReplyDeleteआपको सादर नमन डाक्टर प्रेम लता जी
Deleteक्षमा करें मैंने स्वयं भी कभी कोई खण्ड काव्य नहीं लिखा।