चौपाई

चौपाई छंद
वृद्धावस्था

खुशी नजर के पास न आती।
दुख की सदा घटाएं छाती।

ऐसे दुर्दिन उनके आये।
दूर हुए सुख के सब साये।

बूढे मात पिता रोते हैं।
आँसू में अरमाँ खोते हैं।

जिस बेटे को नाजों पाला।
उसने छीना चाबी ताला।

काश बुढापा रहम दिखाता।
आँखों से यूँ नूर न जाता।

काश सोच पाते वो पहले।
बेटे तो हैं होते दहले।

बेटा यूँ न निगोड़ा होता।
यूँ विश्वास न तोड़ा होता।

वृद्धावस्था के लिए,रखलो कुछ धन जोड़।
बेटे तो करते सदा,धन से ही मन जोड़।

ललित

चौपाई छंद
श्वान सेवा

सुबह सैर को निकले थे वो।
चैन हाथ में पकड़े थे जो।

बँधा चैन से इक कुत्ता था।
मत पूछो प्यारा कित्ता था।

कुत्ता भागे आगे आगे।
साहब उसके पीछे भागे।

साहब कुत्ते से कुछ कहते।
कुत्ते जी चुप सुनते रहते।

साहब को अब रोना आया ।
कुत्ते से क्यूँ भाग्य बँधाया।

करते मात पिता की सेवा।
तो शायद मिल जाता मेवा।

बिस्कुट देता श्वान को,मानव अंधा हाय।
मात पिता को रोज जो,रोटी को तरसाय।

ललित

पनघट पर आई नखराली।
गोरी सी वो झुमके वाली।।

चाल चले मतवाली प्यारी।
अँखियाँ हैं काली कजरारी।

पायलिया छम छम छम बजती।
माथे पर है बिंदी सजती।।

पहने वो लहँगा पचरंगी।
हाथों में चूड़े सतरंगी।।

ललित

जिंदे को रोटी

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