चौपाई सृजन 2
दर्द दाँत का इतना प्यारा।
तुच्छ लगे है जग ये सारा।
खाने का इक कौर न भाता।
हर पल हरि की याद दिलाता।
मुख सीधा ही कब रह पाता।
सूजे सूजे गाल दिखाता।
आती है अब याद जवानी।
जब हर रग ही थी दीवानी।
जीभ अदा अब खूब दिखाती।
दुखती रग को है सहलाती।
दुखते दाँतों पर फिर जाती।
अपनी नरमाई दिखलाती।
दाँतों के इस दर्द ने,जीना किया हराम।
खाना पीना छोड़ नर,जपे राम का नाम।
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