गीत संग्रह 3

ताटंक
गीत

देखो री वो कुँवर कन्हाई,अब तक लौट न आयो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

पाँवों में पैंजनियाँ बाजें,मोर मुकुट सिर धारौ है।
वाकी तिरछी चितवन ऊपर, मैंने तो जग वारौ है।
उस नटखट नागर कान्हा ने,सबको नाच नचायो री।
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

गोप-गोपियों का प्यारा जो,गौओं का रखवाला है।
चोरी करता माखन की वो,माखन-चोर निराला है।
एक वही बदनाम हुआ क्यों,माखन सबने खायो री?
भोर भये जो नंदनवन में,मुरली मधुर बजायो री।

ललित

दोधक छंद
प्रार्थना

राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो गलती कितनी है।

मोह-मयी ममता छलती है।
काम-क्षुधा मन में पलती है।
लोभ दिनों दिन खूब बढ़े है।
क्रोध नसों में खूब चढ़े है।
कंचन देह यहीं गलनी है।
राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो...

रैन-दिना बस राम जपूँ मैं।
चाह नहीं अब काम खपूँ मैं।
दूर करो मन का सब मैला।
देख लिया तन का सब खेला।
प्यास नहीं इसकी बुझनी है।
राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो...

पूजन-पाठ-विधान न जानूँ।
शास्त्र -विचार पुरान न जानूँ।
भक्ति-प्रभो मन में भर देना।
पार मुझे भव से कर देना।
पीर हरो मरजी जितनी है।
राम-लला अरजी इतनी है।
ध्यान न दो....

ललित

दोधक छंद
गीत

बाँसुरिया मधु तान सुना रे।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

यूँ हम से मुख तो मत मोड़ो।
यूँ  व्रज-वासिन को मत छोड़ो।
गोप-सखा  सब राह निहारें।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

नित्य सुभोर भए बज जावे।
वो मुरली सब के मन भावे।
नंद-जसोमति के तुम प्यारे।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

माखन के घट फूट न पाते।
गोपिन-माखन लूट न पाते।
सून पड़े वन बाग बहारें।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

रास नहीं व्रज में अब होते।
नाच बिना घुँघरू अब रोते।
नैन करें कब दर्श तुम्हारे?
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

मोहन ये रज भूल गए क्या?
गैयन का व्रज भूल गए क्या?
वो वृषभानु सुता न भुला रे।
आन मिलो अब श्याम सखा रे।

ललित

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