गीतिका छंद 2

गीतिका छंद 2
1
राकेश जी व माँ शारदा को नमन

काव्य गंगा की लहर हो,सृजन की पतवार हो।
'राज' सा नाविक जहाँ हो,फिर वहाँ क्यूँ हार हो।
अनवरत लेखन जहाँ हो,हर हृदय में प्यार हो।
क्यूँ न शारद माँ वहाँ पर,आपका दरबार हो।
'ललित'
2
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से।
क्यूँ भ्रमर गुंजन करे व्रज,वाटिका में शाम से?
ललित
3
नींद रातों की चुराई,चैन दिन का ले गया।
बाँसुरी का वो बजैया,सुर गमों के दे गया।
फूल सब मुरझा गए हैं,हर भ्रमर खामोश है।
आँसुओं से आँख नम है,सब दिलों में रोष है।
'ललित'

क्यूँ बहारों के नजारे,श्याम तू दिखला गया।
आँसुओं को नैन का क्यूँ

"

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
"गीतिका4" ललित

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
"00

"

बालकों को ज्ञान देना,आप माता शारदे।
बुद्धि,बल औ' तेज दे माँ,इक यही उपहार दे।
राह में कंटक बिछे जो,चुभ न पाएँ वो इन्हें।
पुष्प ये महकें सदा जो,आप सौरभ दो इन्हें।

"
आगया कान्हा शरण मैं,आपकी जग छोड़ के।
प्रेम की ले लो परीक्षा,मैं खड़ा कर जोड़ के।
आपने गीता सुनाकर,ज्ञान अनुपम दे दिया।
देह नश्वर है जगत में,जान देही ने लिया।"

पीर भक्तों की हरी है,आपने हरदम हरे।
दीनदुखियों के सदा ही,आपने सब गम हरे।
आज याचक बन खड़ा हूँ,द्वार पर मैं आपके।
दूर बादल आप कर दो,पाप के संताप के।

क्या कहूँ कैसे कहूँ मैं,आप से मन की व्यथा।
है सुनी हरि खूब मैंने,आपकी पावन कथा।
पापियों को तार देते,आप भव से जब प्रभो।
क्य़ों न मुझको तार सकते,आप भव से तब प्रभो।

ललित
गीतिका
हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,लब न कुछ भी कह रहे।

जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
बीज बोए आम के थे,नीम के क्यूँ फल हुए।

ललित

देश की धरती पुकारे,क्या कहे सुन लो जरा?
देश का हो नाम रौशन,राह वो चुन लो जरा।
शौर्य पुरखों का रहा जो,याद वो कर लो जरा।
गर्व हो इतिहास को भी,काम वो कर लो जरा।

ललित

गीतिका
आरजी 5,2,17
रास का रसिया रसीला,श्याम सुंदर साँवरा।
राधिका के संग नाचे,नंदलाला बावरा।
जादुई मुरली बजे है,जादुई सुरताल है।
झूमते सब गोप-गोपी,हाथ में करताल है।
ललित

"

क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा उनको खुशी से,जो मिले औ' खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।

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