रुबाई सृजन 2


रुबाई छंद
16.1.17
1
फूल
फूल महकते जब बगिया में,झूमे खुश होकर माली।
गजरे में कुछ गुँथ जाएंगें,पहने कोई मतवाली।
कुछ माला में बँध महकेंगें,मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे।
कुछ मरने वाले की अर्थी,की हर लेंगे बदहाली।
2
मोहन
रात सखी मेरे सपने में,श्यामल वो मोहन आया।
दिनकर से तपती धरती कोे, दे दी हो ज्यों घन छाया।
मुरली की आलौकिक धुन पर,झूम रहा था मतवाला।
वंशी की वो मधुर तान दिल,भूल नहीं अब तक पाया।

ललित
3.
माखन-चोरी

मैया तेरा वो नटखटिया,करता है माखन चोरी।
नैन मटक्का करता है जब,दिखे कहीं सुंदर छोरी।
जादू की बाँसुरिया से वो,तान मधुर मनहर छेड़े।
सुन जिसको छम-छम नाचे वृषभानु सुता चंचल गोरी।

ललित
4.
दिल

प्रेम भरा हो दिल में जितना,उतना ही वो छलकेगा।
नैन झरोखे से वो शीतल,मोती बनकर ढलकेगा।
जिसके सीने में नाजुक सा,प्यार भरा इक दिल होगा।
उसकी उठती गिरती पलकों,में हरदम वो झलकेगा।
ललित
5
नेता

बदल रहे हैं नेता पाला ,बदल रहे हैं अब चोला।
क्या जनता सब समझ रही है,क्या है ये घोटम घोला?
नीति नहीं है नियम नहीं हैं,क्या है ये गड़बड़ झाला।
जनता से सब वोट छीनने,निकल पड़ा है हर टोला।
'ललित,

6.
सपने
सपनों में रँग भरने वाले,थोड़ा सा तू रुक जा रे।
बहुत सुनहरे रँग सपनों में,मत भरना तू सुन प्यारे।
सपनों का जब उड़ता है रँग,वो पल बड़ा दुखद होता।
बदरँग सपनों में रँग भरना,सीख जरा तू मतवारे।
ललित

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