राधिका छंद
3.1.17
1
मोक्ष
जब तक बाकी है प्यास,काम की मन में।
कैसे आएंगें रास,राम जीवन में।
पाले रख मन में आस,मोक्ष पाने की।
मिल ही जाएगी राह,पार जाने की।
'ललित'
2
नटखट
पकड़े कान्हा के कान,यशोदा मैया।
क्यूँ जाता है हर भोर,चराने गैया।
छोटा सा मेरा लाल,बड़ा नटखट है।
माखन मिश्री का भोग,करे झटपट है।
ललित
3
मुरली
तेरी मुरली ओ श्याम,हरे मन ऐसे।
यमुना के जल में प्यास,जगी हो जैसे।
अधरों से मुरली श्याम,लगाता क्यूँ है?
सोये मेरे जजबात,जगाता क्यूँ है?
'ललित'
13.1.17
राधिका छंद
4
साँवरे प्यारे
है कैसा तेरा प्यार,साँवरे प्यारे?
राधा तरसे दिन रैन,बाँसुरी वारे।
छीने तू सबका चैन,नींद हरता है।
क्यूँ तिरछे करके नैन,हास करता है।
'ललित'
राधिका
5
पाती
मैं लिख दूँ तुम को आज,प्रेम की पाती।
पर दिल को मेरे बात,नहीं ये भाती।
इस दिल से दिल को राह,जहाँ है होती।
तो चिट्ठी की फिर चाह,कहाँ है होती।
ललित'
6
प्यार
इन बागों में हम आज,चले हैं आये।
पर दिल के टूटे साज,संग हैं लाये।
जिन फूलों से ये बाग,जवाँ है होता।
उन पुष्पों से क्या प्यार,रवाँ है होता?
'ललित'
7
दिल की प्रीत
इस दिल की दिल से प्रीत,जहाँ होती है।
फिर वादों की बरसात,वहाँ होती है।
कुछ झूँठे वादे खूब,किया करते हैं।
प्रीतम को धोखे रोज,दिया करते हैं।
'ललित'
8
भावना
जैसा होता है प्यार,भावना जैसी।
वैसा मिलता उपहार,कामना वैसी।
वैसा होता श्रृंगार,चाव हो जैसा।
वैसा दिखता करतार,भाव हो जैसा।
'ललित'
9
पतवार
जब पतवारें ही नाव,डुबाने लगतीं।
जब मीनारें ही छाँव,छुपाने लगतीं।
तब एक नई पतवार,नाव तैराती।
तब एक नई मीनार,छाँव ले आती।
'ललित'
राधिका छंद
10
श्री कृष्ण उवाच
🌿💐🌿💐🌿💐
ये प्रिये हमारा प्रेम,नेक औ' निर्मल।
है नहीं काम दुर्गन्ध,शुद्ध ये हरपल।
ये पूर्ण समर्पित प्रेम,कौन का किस में।
नहीं मिलता कहीं छोर,प्रीत का जिसमें।
'ललित'
🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇
11
सावन
वो सावन जब श्रृंगार,करे धरती का।
हर पोखर,नद औ' ताल,भरे धरती का।
हर पात हरा हर शाख,खुशी से झूमे।
हर फूल खिले हर कली,हुस्न को चूमे।
'ललित'
12
छैल-छबीली
वो छैल छबीली नार,बला की गोरी।
जो साजन को भरमाय,सुना कर लोरी।
फिर शर्माकर वो नैन,बन्द कर लेती।
प्रिय साजन जी के नाम,माँग भर लेती।
'ललित'
13
बेसुध राधा
बेसुध बेकल होगई,श्याम की राधा।
बैरन वंशी डालती,प्यार में बाधा।
मिलना चाहे राधिका,श्याम से ऐसे।
मिलती है वो चाँदनी,चाँद से जैसे।
'ललित'
14
कान्हा
है कान्हा जी नाम,बड़ा सुख कारी।
जो जपने से निष्काम,हरे दुख भारी।
है राधा जी का नाम,कृष्ण को प्यारा।
जो जपता 'राधा' नाम,उसी को तारा।
'ललित'
15
दुश्मन
तुम दुश्मन को तो खूब, छकाते रहना।
हरदम ही उसको धूल,चटाते रहना।
जो हरकत सीमा पार,यार तुम देखो।
तो इक के बदले चार,मार तुम देखो।
'ललित'
16
मुलायम
तुम नहीं सीट की दौड़,मुलायम छोड़ो।
जीतोगे तुम ही रेस,जोर से दौड़ो।
बेटे से देखो हार,नहीं तुम मानो।
हर बाप तुम्हारे साथ,सही तुम जानो।
'ललित'
17
मन
है कोई तो जो रोज,मथे है मन को।
जो होने दे संतोष,नहीं जीवन को।
जो खोजो उसको डूब,जरा तुम मन में।
तो पाओगे संतोष,इसी जीवन में।
'ललित'
18
सेवा
कुछ तो सेवा के काम,करो जीवन में।
कुछ संतों के उपदेश,भरो इस मन में।
ये धन दौलत कुछ साथ,नहीं जाएगा।
जो पुण्य करोगे काम,वही आएगा।
'ललित'
19
नुक्ता
बेटे-बेटी दोहिते,और पोते ये।
जब मरता है इंसान,खूब रोते ये।
जिन्दे की सेवा करें,पूत कब ऐसे?
मरने पर नुक्ता करें,पूत सब जैसे।
'ललित'
20
नाम की माला
देता है वो ही साथ,आसमाँ वाला।
है जपता जब इंसान,नाम की माला।
दुनिया दिखलाए खूब,सुखों के सपने।
हो जाते दुख में दूर,यहाँ सब अपने।
'ललित'
21
मन की बात
सुन लेती है दीवार,गुणी हैं कहते।
दीवारों के भी कान,यहाँ है रहते।
उस्तादों के उस्ताद,वही रहते हैं।
जो अपने मन की बात,नहीं कहते हैं।
'ललित'
22
हालात
कुछ ऐसे भी हालात,पेश आते हैं।
जो दु:खोंं की सौगात,साथ लाते हैं।
पर पाना दुख से पार,वही है जाने।
जो कभी दुखों से हार,नहीं है माने।
'ललित'
23
शेर
वो छोटा सा इक शेर,सभी से डरता।
जो चुभ जाए इक फाँस,शोर है करता।
वो नानी से भी फाँस,नहीं निकलाता।
जो ममा निकाले फाँस,बड़ा चिल्लाता।
'ललित'
24
राधिका छंद
यशोदा
है कैसा नटखट लाल,यशोदा तेरा।
है दर्शन के बिन हाल,बुरा अब मेरा।
है दर्शन की बस आस,अरी ओ मैया।
अब पार लगादे मात,डोलती नैया।
25
मुरली
छेड़े मुरली की तान,श्याम मतवाला।
राधिका के संग रास,करे लट वाला।
गोपियाँ रही हैं नाच,संग साँवरिया।
पायलें बनी हैं साज,हुई बावरिया।
राधिका छंद
26
रास
कान्हा के मन की बात,राधिका जाने।
राधा जो बोले बात,कन्हैया माने।
परमात्म-आत्म के बीच,प्यार पलता है।
तब सारी सारी रात,रास चलता है।
ललित
[26/03 19:22]
राधिका छंद
27
आस
कैसी ये बदली चाल,हवाओं की है।
हर साँस जो मोहताज,दवाओं की है।
जीने की दिल में आस,टूटती ऐसे।
मरने से पहले साँस,छूटती जैसे।
ललित
[26/03 19:32]
राधिका छंद
28
आवाज
टूटे दिल की आवाज,कहाँ है सोई?
करने को अब अफसोस,कहाँ है कोई?
खुशियों का क्यूँ दीदार,नहीं है होता?
दु:खों का क्यूँ अहसास,नहीं है सोता?
ललित
राधिका छंद
29
वादे
ये वादों का संसार,खूब सुख देता।
टूटे वादों का तार,खूब दुख देता।
करते हैं वादे रोज,राज नेता ये।
वादों के हैं सरताज,बाज नेता ये।
ललित
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