कृष्ण दीवाने

एकुकुभ छंद
आर जी 7.2.17
नज़रें

नज़र बचा कर चोरी करता,
          गोपी का माखन कान्हा।
नजर मिलाकर चोरी करता,
          हर गोपी का मन कान्हा।
कान्हा ऐसी किरपा करदो,
          नज़रों में तुम बस जाओ।
पलक बन्द हों फिर भी कान्हा,
          नज़र सदा बस तुम आओ।

ललित

ताटंक
आरजी 5,2,17
छू कर देखे हीरे मैंने,छू कर देखे हैं मोती।
पर तेरे नयनों की जैसी,चमक नहीं उनमें होती।
प्रीत दिखी संसारी जब भी,सजनी का दिल छू देखा।
प्यार अलौकिक पाया कान्हा,जब भी मैंने तू देखा।
'ललित'

गीतिका
आरजी 5,2,17
रास का रसिया रसीला,श्याम सुंदर साँवरा।
राधिका के संग नाचे,नंदलाला बावरा।
जादुई मुरली बजे है,जादुई सुरताल है।
झूमते सब गोप-गोपी,हाथ में करताल है।
ललित

ताटंक़

केडीआरजी5,2,17
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।

ताटंक
केडीआरजी 4-2-17
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधा-कृष्ण की भक्ति कर लो,मिट जाएगी भव बाधा।

ताटंक
केडीआरजी 3-2-17
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।

Kdrg 2.2.17
हरिगीतिका

21.8.17
आल्हा छंद रचना

प्रातकाल ले लेते हैं जो,राम-राम अति पावन नाम।
उन के दुखड़े हर लेते हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम राम।
दीनबंधु दुखहर्ता उसको, सुख-वैभव देते हैं खूब।
राम नाम सुमिरन में जिसका,मन पूरा जाता है डूब।
ललित

21.8.17
आल्हा छंद रचना

छप्पन इंची सीने का तो,हरदम करते रहे बखान। सीने से बाहर निकलो जी,सीमा पर आया तूफान।
दुश्मन अपना ढीठ है ऐसा, नहीं बदल सकता जो चाल।
छलनी कर दो उसका सीना, जो बनता दुश्मन की ढाल।

'ललित'
जो दे नई खुशियाँ सभी को,
नाम उसका भोर है।
जब पूर्व में लाली मचलती,
नाचता मन मोर है।
चिड़ियाँ लगें जब चहचहाने,
घण्ट मंदिर में बजें।
प्रभु राम के सुमिरन भजन के,
भाव तब मन में सजें।
"

केडीआरजी1-2-17
भक्तों का विश्वास,न तोड़ो मुरली वाले।
आ जाओ इक बार,पुकारें गोपी-ग्वाले।।

मुरली की वो तान,सुना दो फिर से प्यारे।
तरस रहे हम श्याम,तुम्हारी राह निहारें।।

'ललित'

31.1.17
प्रार्थना यही है नाथ,
लगो मुझे प्यारे आप।
एक यही मेरी माँग,
हाथ मेरा थामना।

हाथ मेरा थामना यूँ,
चाह करूँ स्वर्ग की तो।
नर्क मुझे भेज देना,
ये है मनोकामना।

ये है मनोकामना जी,
नहीं मिले मुझे चैन।
होय नहीं जब तक,
आप से ही सामना।

आप से ही सामना जी,
आप सिवा कौन मेरा।
कहूँ कासे,कौन सुने,
विनती महामना।

ललित

केडीआरजी 30.1.17
शक्ति छंद
4

दसों ही दिशाएं लगी झूमने।
धरा भी गगन को लगी चूमने।
सजे मोगरा वेणियों में जहाँ।
कन्हैया बजाए मुरलिया वहाँ।

ललित

केडीआरजी29.1.17
सोरठा

ज्यों काँटों के बीच,फूल गुलाबी खिल उठे।
दलदल में अति नीच,कमल पुष्प दल ज्यों खिले।
ज्यों ठोकर की धूल,लगे गगन को चूमने ।
त्यों पूजा के फूल, प्रकट करें घनश्याम को।

'ललित'

केडीआरजी28.1.17
तोटक छंद

पट खोल जरा अपने मन का।
हर रोम जगा अपने तन का।।
हरि नाम जपे हर रोम जहाँ।
खुद आन बसें घन श्याम वहाँ।।

उस गोप सखा मनमोहन की।
छवि श्यामल की मनभावन
की।।
भरले मन में अरु नैनन में।
वह पार करे इक ही छन में।।

ललित

केडी आरजी28.1.17
सोरठा

बाँकी सी वो चाल,राधा को प्यारी लगे।
घुँघराले हैं बाल,मोर मुकुट सुंदर सजे।

चंचल वो चितचोर,राधा का चित ले गया।
ग्वाल-बाल हर ओर,कान्हा को ढूँढत फिरें।

ललित
सोरठा
केडी आरजी27.1.17

कान्हा जाता हार,राधा की मनुहार से।
छेड़े मन के तार,मुरली की हर तान से।

सखियाँ जाती झूम,मोहन की छवि देखके।
गोकुल में है धूम,लीलाधर के नाम की।

'ललित'

केडीआरजी26*1*17
शक्ति छंद

कहे राधिका श्याम ये तो बता।
बजा के मुरलिया रहा क्यूँ सता?
हसीं गोपियों को रहा यूँ नचा।
सिवा रास के क्या नहीं कुछ बचा?

निगाहें मिलें तो बताए धता।
कन्हैया नहीं कुछ बताए खता।
कहे राधिका श्याम ये ही अदा।
लगे खूब प्यारी हमें है सदा।

अरी बाँसुरी राज तू ही बता।
कन्हैया रहा है मुझे क्यूँ सता
अधर से लगाए रहे वो तुझे।
नहीं प्यार से वो निहारे मुझे।

ललित

7.1.17

जरा खोलो नयन बनवारी,आ गयी राधिका प्यारी।
ये गोप गोपियाँ सब बोलें,
अधर लगाकर बाँसुरिया छेड़ो धुन मतवारी।

हम संग राधिका के नाचें,खुल जायँ भाग्य के ताले।

कृष्ण दीवाने  10.1.17
दुर्मिल सवैया

ललना जनमा ब्रज में सुख से,सुर पुष्प सबै बरसाय रहे

दर नंद यशोमति के सबरे,ऋषि गोपिन रूप धराय रहे।

शिव रूप धरे तब साधुन को,शिशु-दर्शन को ललचाय रहे।

डर मातु मनोहर मोहन को,निज आँचल माँहि छुपाय रहे।

'ललित'

कुण्डलिनी 11.1.17

कान्हा तेरे प्रेम में,बड़ी अनोखी बात।
नाचें प्यारी गोपियाँ,सारी सारी रात।
सारी सारी रात,भूल सुध बुध वो डोलें।
भूलें अपने गात,साँवरी खुद भी हो लें।
                   'ललित'

कृष्ण दीवाने 12.1.17
मुक्तक  16   ..14

बिन पतवार चले ये नैया,
             कुछ हिचकोले खाती रे।
नज़र न आये माँझी कोई,
             नदिया भी गहराती रे।
मन कहता है मेरा कान्हा,
              तुम वो अंतर्यामी हो।
पार करे जो नैया सबकी,
              बिना अरज बिन पाती रे।
       
          💝💝'ललित'💝💝

कृष्ण दीवाने13.1.17
राधिका छंद

है कैसा तेरा प्यार,साँवरे प्यारे?
राधा तरसे दिन रैन,बाँसुरी वारे।
छीने तू सबका चैन,नींद हरता है।
क्यूँ तिरछे करके नैन,हास करता है।

'ललित'

कुकुभ छंद
कृष्ण दीवाने 13.1.17
कानहा की मानस पूजा

कान्हा मेरे मन मन्दिर में,
            आकर तुम यूँ बस जाओ।
जब भी बन्द करूँ पलकों को,
             रूप मनोहर दरशाओ।
गंगाजल-पंचामृत से प्रभु,
              रोज तुम्हें मैं नहलाऊँ।
वस्त्र और गहने अर्पण कर,
              केसर-चन्दन घिस लाऊँ।

धूप-दीप नेवैद्य चढ़ाकर,
             पुष्प-हार सुन्दर वारूँ।
त्र-गुलाल लगाकर कान्हा,
             चरणों की रज सिर धारूँ।
मन ही मन फिर करूँ आरती,
             चरण-कमल में झुक जाऊँ।
जग की झूठी प्रीत भुलाकर,
              प्यार तुम्हीं से कर पाऊँ।

'ललित'
 आल्हा छंद14.1.17  

कृष्ण कहें अर्जुन से रण में,खास बात ये तू ले जान।
सुख दुख लाभ हानियों को तू ,मान सदा ही एक समान।
स्वर्ग मिलेगा मरने पर तो,राज्य मिलेगा पाकर जीत।
मन में कर ले निश्चय रण का,युद्ध पुकारे तुझ को मीत।

ललित

कृष्ण दीवाने 14.1.17
जलहरण

नाच रही राधा-रानी
साथ घनश्याम के तो।
सखियाँ भी झूम रही
बाँसुरिया की तान पे।

झूम रही लतिकाएं
पादपो की बाहों में तो।
मोरपंख नाज करे
साँवरिया की शान पे।

चाँद भूला चाँदनी को
रास में यूँ रम गया।
राधिका का रास भारी
चँदनिया के मान पे।

सुरमई उजालों में
रेशम से अंधेरों में।
राधा श्याम नाच रहे
मुरलिया है कान पे।

'ललित'

दुर्मिल सवैया
कृष्ण दीवाने14.1.17

भज नदं  यशोमति के सुत को,मुरलीधर पूरण काम मिले।

मनमोहन कृष्ण दयामय को,जिस की किरपा अविराम मिले।

जिस की करुणा पल में हरले,सब मोह निशा सुख धाम मिले।

तर कंस गया जब पाप मयी,तब क्यों न तुझे घनश्याम मिले।

'ललित'

कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने15.1.17
राधा गोविंद 15.1.17

कुसुम करें अठखेलियाँ,कलियाँ झूमी जायँ।
जब मुरली की तान पर,गीत गोपियाँ गायँ।

गीत गोपियाँ गायँ,भूल सुध-बुध वो झूमें।
हर गोपी के साथ,रास का रसिया घूमे।
ललित

16.1.17
जय श्री कृष्णा

नींद लगे तो तुझको देखूँ,आँख खुले तो तुझको।
ऐसा जादू वाला चश्मा,दे दे कान्हा मुझको।
ऐसी ही तो थी वो ऐनक,राधा पहने जिसको।
क्यों तू चश्मा देकर कान्हा,भूल गया था उसको।
'ललित'
मदिरा सवैया
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17
गोप रहे करताल बजा मुरलीधर माधव
नाच रहा।
ग्वाल सखा हर एक वहाँ मन ही मन श्याम उवाच रहा।
तत्त्वगुणी नटनागर वो निज ज्ञान कथा सब बाँच रहा।
गोपिन रास सुहाय रहा मनमोहन बोलत साँच रहा।

रुबाई
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17
मोहन

रात सखी मेरे सपने में,श्यामल वो मोहन आया।
दिनकर से तपती धरती कोे, दे दी हो ज्यों घन छाया।
मुरली की आलौकिक धुन पर,झूम रहा था मतवाला।
वंशी की वो मधुर तान दिल,भूल नहीं अब तक पाया।

ललित

कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17

विष्णु पद

काश राधिका मोहन से यूँ,प्यार नहीं करती।
अपने चंचल नैनों में वो,प्यास नहीं भरती।
अगन विरह की उसके दिल में,आज नहीं जलती।
उस छलिया की यादों में हर,शाम नहीं ढलती।
'ललित'
KD&RG19.1.17
जलहरण घनाक्षरी

कान्हा से नजर मिली,राधा सुध भूल चली।सरकी जाए चुनरी,पायलिया बेजान है।।

सखियाँ इशारे करें, मुख फेर फेर हँसे।
राधा छवि देख रही,साँवरिया नादान है।।

बाँसुरी बजाए कान्हा,गइयाँ है चरा रहा।
राधाजी को प्यारी लगे,बाँसुरिया की तान है।।

राधा जी की सखी संग,मोहन करे बतियाँ।
राधे रानी रूठे कैसे,मनवा बेईमान है।।

दोहा छंद
KD & RG 20.1.17

प्रेम सुधा बरसाय जो,नयनों से अविराम।
मुरलीधर, मनमोहना,कान्हा उसका नाम।
'ललित'

KD & RG 21.1.17
रुबाई

छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा।
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।

रुबाई
थोड़ा सा जीवन दर्शन
केडी/आरजी 21.1.17
प्रेम भरा हो दिल में जितना,उतना ही वो छलकेगा।
नैन झरोखे से वो शीतल,मोती बनकर ढलकेगा।
जिसके सीने में नाजुक सा,प्यार भरा इक दिल होगा।
उसकी उठती गिरती पलकों,में हरदम वो झलकेगा।
ललित

कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने 22.1.17
राधा गोविंद 22.1.17
कंकर से घट फोड़ता,नटखट माखन चोर।
गोपी पीछे दौड़ती,पकड़ न पाए छोर।

पकड़ न पाए छोर,कन्हैया घर को भागे।
सोये चादर ओढ़,उनींदा सा वो जागे।

'ललित'
1
कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने 23.1.17
राधा गोविंद 23.1.17
फूल सुगंधित खिल रहे,बगियन में हर ओर।
राधा जी से आ मिले,साँवरिया चितचोर।
साँवरिया चितचोर,आँख से करें इशारे।
जग के सारे फूल,राधिका तुझ पर वारे।

ललित

जलहरण
KD and RD 23.1.17

जले दिन रात जिया,
कहाँ है तू श्याम पिया।
याद तुझे करती ये,
राधा व्रज में डोलती।

पूछती है गलियों से
बाग वन लियों से।
बाँसुरी वाले का पता
राज दिल के खोलती।

अँखियों में वास करे
दिल पे जो राज करे।
निंदिया चुराके गया
छलिया श्याम बोलती।

करी साँवरे से प्रीत
भूल दुनिया की रीत।
गलती तो नहीं करी
आज मन टटोलती।

'ललित'
KD /RG 24.1.17
सार छंद
कान्हा वंशी मुझे बना तू,अधरामृत बरसा दे।
कहे राधिका मतमोहन ,मुझको यूँ तरसा दे।
याद करूँ आलिंगन तेरा,सुधबुध मैं बिसराऊँ।
लगकर तेरे सीने से मैं,तुझ में ही खो जाऊँ।

ललित

भुजंग प्रयात
केडी/आरजी 24.1.17
कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।
चुरा भागता है जिया ये हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।
कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।

कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।
कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।
कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।
ललित

केडीआरजी25.1.17
जलहरण घनाक्षरी
मीरा

मीरा जपे कान्हा नाम,कान्हा ही सुखों का धाम।
अपनी साँसों के तार,कान्हा संग जोड़ दिए।

महलों को छोड़ चली,श्याम की दीवानी मीरा।
श्याम रंग ओढ चली,सब रंग छोड़ दिए।

अपना ही आपा भूली,श्याम चरणों में खोई ।
भगती की राह चली,सारे बंध तोड़ दिए।

राणा जी ने विष दिया,सेवन सहज किया।
विष बना सोम रस,पुण्य ज्यूँ निचोड़ दिए।

'ललित'

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छद श्री सम्मान