मधुमालती छंद विधान एवँ रचनाएँ
अक्टूबर 2018 रचनाएँ
[04/10, 4:35 PM] ललित:
दोहा छंद
विषय: माँ
बचपन में था पूछता,माँ से बहुत सवाल।
अब वो माँ से बोलता,काहे करे बवाल।।
दान किये जप भी किये,तीरथ किये हजार।
माँ को जो बिसरा दिया,सब कुछ है बेकार।।
माँ के आँचल की जिसे,मिली हुई है छाँव।
हरदम सीधे बैठते,उसके सारे दाँव।।
माँ की याद सुवास सी,मन निर्मल हो जाय।
जैसे तुलसी आँगने,हरि की याद दिलाय।।
हरि का सुमिरन जो करे,माँ चरणों में बैठ।
हरि उसको आशीष दें,माँ के उर में पैठ।।
माँ साँसों में बस रही,माँ धड़कन,माँ प्राण।
माँ से उऋण न हो सके,सुत देकर भी जान।
'ललित'
[
[11/10, 6:21 PM] ललित:
चौपाई छंद
मोर-मुकुट पीताम्बर धारी,
केशव माधव कृष्ण मुरारी।
अर्जुन जैसे शिष्य तुम्हारे।
सखा सुदामा से हैं प्यारे।
गोप-गोपियों के बनवारी।
जय-जय-जय गोवर्धन-धारी।
तुम राधा के दिल की धड़कन।
महके तुमसे व्रज का कण-कण।
दोहा
बजे सुरीली बाँसुरी,सारी-सारी रात।
कृष्ण तुम्हारे रास में,गोपी भूले गात।
ललित
[12/10, 10:10 PM] ललित:
चौपाईयाँ
ठुमक-ठुमक कर चले कन्हैया।
देख-देख हर्षित हो मैया।
छम-छम-छम पैंजनिया बजती।
अधर मधुर बाँसुरिया सजती।
बजे बाँसुरी हौले-हौले।
आलौकिक मद से व्रज डोले।
मटकी ले जब निकलें सखियाँ।
मट-मट-मट मटकाए अँखियाँ।
मार कंकरी मटकी फोड़े।
गोपी पीछे-पीछे दौड़े।
देख हो रही मटकी खाली।
ग्वाल हँसें सब दे-दे ताली।
दोहे
मनभावन लीला करे,व्रज में माखन-चोर।
गोप-गोपियाँ सब कहें,जय-जय नंदकिशोर।
ललित
[13/10, 2:34 PM] ललित:
आदर्श अतिथि स्वागत
द्वारपाल संदेशा लाया।
मित्र सुदामा द्वारे आया।
सुना कन्हैया ने जैसे ही।
छोड़ दिया आसन वैसे ही।
दौड़ पड़े दर्शन करने वो।
प्रेम-सुधा वर्षण करने वो।
देख मित्र की जर्जर काया।
श्याम नयन में जल भर आया।
तुरत मित्र को गले लगाया।
कहा नहीं क्यों पहले आया?
सिंहासन पर मीत को,बिठा द्वारिकाधीश।
चरणों को निज अश्रु से,धोते हैं जगदीश।
ललित
क्रमशः
[13/10, 7:54 PM] ललित:
चौपाइयाँ
अतिथि भाग दो
सजल नयन थे रुँधे गले थे।
बचपन में वो लौट चले थे।
बात कर रहे दोनों मन की।
रही नहीं सुधि उनको तन की।
कहा कृष्ण ने मत सकुचाओ।
भाभी जी के हाल सुनाओ।
भेजी है क्या भेंट बताओ?
और नहीं अब मुझे सताओ।
मीत सुदामा अब सकुचाए।
तंदुल की क्या भेंट बताए?
दोहा
तंदुल की वो पोटली,कान्हा ने ली छीन।
चकित नयन से देखते,रहे सुदामा दीन।
ललित
[14/10, 3:30 PM] ललित:
चौपाइयाँ
सतरंगी दुनिया को देखा।
देखी बेरंग भाग्य-रेखा।
अपनों ने वो रंग दिखाए।
दूजा कोई रंग न भाए।
रंगों से मनती है होली।
रंग हाथ में बेरँग बोली।
रंग-बिरंगी जवाँ दिवाली।
मात-पिता की झोली खाली।
बदल गए अब सबके ढँग हैं।
रुपयों ने भी बदले रँग हैं।
पार्टी-ध्वज में जैसा रँग है।
वैसा नेता जी का ढँग है।
श्वेत रोशनी सूरज देता।
प्रिज्म उसे रंगीं कर लेता।
ऐसा ही कुछ हम भी कर लें।
नए रंग जीवन में भर लें।
दोहा
धुंधला कोई रंग है,कोई है रतनार।
हर रँग में नौका चला,मत छोड़े पतवार।
ललित
[16/10, 6:00 PM] ललित:
सार छंद
भूल-भुलैया
जीवन की ये भूल-भुलैया,सबको है भटकाती।
आती-जाती साँसों को ये,हौले से अटकाती।
कौन कहाँ कैसे जाएगा,छोड़ जगत का मेला?
जान नहीं पाता है कोई,कैसा है ये खेला?
ललित
[18/10, 6:41 PM] ललित:
चौपाई
पंचतत्त्व
पंचतत्त्व की देह बनाई,
आत्मा इक उसमें बिठलाई।
दूर बैठ दाता फिर देखे।
देह लिखे कर्मों के लेखे।
वही लेख फिर भाग्य बनाते।
कर्म समय से फल दिखलाते।
पुण्य करे कितने भी मानव।
नष्ट न हों कर्मों के दानव।
पाप कर्म से आत्मा रोके।
कदम-कदम पर नर को टोके।
पंचतत्त्व की देह से,मत कर इतना प्यार।
जितने इससे कर सके,कर ले तू उपकार।
ललित
[19/10, 7:44 PM] ललित:
चौपाई
जीत सत्य की होती आई,हरी जड़ें सच ने ही पाई।
सुंदर बुरका ओढ़ बुराई,चुपके से नर मन में आई।
कलियुग में दे सत्य दुहाई,विजय झूठ की देत दिखाई।
लेकिन इक दिन बुरका फटता,तभी झूठ से परदा उठता।
सत्य सामने जब आ जाता,झूठ नहीं फिर टिकने पाता।
दोहा
दामन थामे सत्य का,बढ़ मंजिल की ओर।
नहीं झूठ से छू सके,मंजिल का तू छोर।
ललित
[20/10, 7:49 AM] ललित:
चौपाई
जीत सत्य की होती आई,हरी जड़ें सच ने ही पाई।
सुंदर बुरका ओढ़ बुराई,चुपके से नर मन में आई।
कलियुग में दे सत्य दुहाई,विजय झूठ की देत दिखाई।
लेकिन इक दिन बुरका फटता,तभी झूठ से परदा हटता।
सत्य सामने जब आ जाता,झूठ नहीं फिर टिकने पाता।
दोहा
दामन थामे सत्य का,बढ़ मंजिल की ओर।
नहीं झूठ से छू सके,मंजिल का तू छोर।
ललित
[20/10, 8:39 PM] ललित:
चौपाई
अमृतसर दुखान्तिका
मौत कहाँ कैसे आएगी,
साथ किसे कब ले जाएगी?
जान कहाँ मानव है पाता,
दबे पाँव यम है आ जाता ।
साठ जनों को मौत दिखाई,
अमृतसर कैसा वो भाई।
कहीं न कोई पत्ता खड़का,
जलता रावण ऐसा भड़का।
मौत दौड़ती सरपट आई,
कहो कौन था वहाँ कसाई?
किसकी थी ये जिम्मेदारी,
लाशें बिछी धरा पर सारी।
दोहा
रोक सको तो रोक लो,
अनहोनी को आप।
वरना मौत कहाँ कभी,
देती अपनी थाप?
ललित
[21/10, 4:21 PM] ललित:
चौपाइयाँ
नाम राधिका का यदि जपते,
जीवन के ये पथ क्यों तपते?
राधा का जो नाम सुमिरते,
वो नर भवसागर से तरते।
नाम जपे हर पल राधा का।
नहीं उसे डर भव-बाधा का।
उसी कृष्ण को प्यारी राधा।
करे दूर जो सबकी बाधा।
राधा नाम उसे है प्यारा।
जो है जग का तारण-हारा।
जय-जय श्याम-राधिका प्यारे।
ताप-व्याधि हर सब नर तारे।
दोहा
राधा-राधा जो जपे,भव-सागर तर जाय।
दर्शन कान्हा के मिलें,आत्म-ज्ञान फल पाय।
ललित
[22/10, 7:27 PM] ललित:
मुक्तक 14:14
न समझे प्यार की भाषा,न खोले प्यार का खाता।
निगाहों से हसीं दिलवर,नशीले तीर बरसाता।
बना अंजान वो फिरता,चलाकर तीर नजरों के।
यहाँ दिल है हुआ घायल,वहाँ वो गीत है गाता।
ललित
[27/10, 10:51 AM] ललित:
हरिगीतिका छंद
करवा चौथ स्पेशल
है आज करवा चौथ का व्रत,
आप ही तो खास हो।
मैं प्यार करतीे आपसे ही,
आज तो विश्वास हो।
व्रत आज ये मैंने रखा जी,
आपके हित के लिए।
ला दीजिए उपहार कोई,
इस पुजारिन के लिए।
ललित
[27/10, 6:19 PM] ललित:
हरिगीतिका छंद
पूजा करूँगी मैं तुम्हारी,
मान लो मनुहार तुम,
जो बन पड़े तुम से वही कुछ,
आज दो उपहार तुम।
लो सूट ये पहनो नया तुम,
और टाई घाल दो।
सेल्फी खिंचा कर साथ मेरे,
फेस बुक पर डाल दो।
ललित
[27/10, 7:31 PM] ललित:
आधार छंद
नाक नथनियाँ झूमती,अधरों पर मुस्कान।
हार गले में नौलखा,चितवन तीर कमान।
पायल की छम-छम करे,खुशियों की बौछार।
सजनी के इस रूप पर,साजन जी कुर्बान।
ललित
[28/10, 8:06 PM] ललित:
कुण्डल छंद
जिंदगी किताब जान,ध्यान से पढ़ो जी।
शब्दों का गूढ़ अर्थ,जान तुम बढ़ो जी।
मित्र और अमित्र का,भेद जरा जानो।
शत्रु की मिठास भरी,बात नहीं मानो।
ललित
[28/10, 8:11 PM] ललित:
कुण्डल छंद
देख दिवाली मकान,साफ कर लिया है।
फालतू कबाड़ खूब,बेच भी दिया है।
लेकिन मन का न मैल,छूट हाय पाया।
जाए न मन को छोड़ ,अंत हीन माया।
ललित
ताटंक छंद विधान एवँ रचनाएं
1
ताटंक छंद 14.2.17
चितचोर
मेरा तो चितचोर वही है,
गोवर्धन गिरधारी जो।
बाँका सा वो मुरली वाला,
मटकी फोड़े सारी जो।
आसानी से हाथ न आवे,
नटखट नागर कारा है।
राधा जी के पीछे भागे,
उन पे वो दिल हारा है।
ललित किशोर 'ललित'
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2
20.10.15
ताटंक छंद
माँ का आँचल
माता के आँचल में छिपकर,
बच्चे जो सुख पाते हैं।
खोया वो सुख जींंस टाप में,
बच्चे अब न सुहाते हैं।
माता कितनी पावन लगती,
जब साड़ी में होती है।
जींस टाप में सच में भैया,
माता की छवि खोती है।
ललित किशोर 'ललित'
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3
ताटंक छंद
राम
राम आज फिर तुम्हें बुलाता,
मेरा भारत प्यारा है।
राम राज्य का पता नहीं है,
रावण सौ सिर धारा है।
हर आँगन में काँटे बिखरे,
हर सीता कुम्ह लाई है।
असुरों के हाथों में भारत,
की सत्ता अब आई है।
ललित किशोर 'ललित'
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4
21.10.15
ताटंक छंद
कोलाहल
आज मचा है कोलाहल सा,
हर मानव थर्राया है।
भारत माँ की धरती पर ये,
कैसा संकट आया है।
बहू-बेटियाँ आशंकित हैं,
नहीं कोख बच पायी है।
आजादी की कैसी उल्टी,
गंगा बहने आई है।
2
नदियाँ सूखी ,पर्वत रूठे,
बाँधों की तरुणाई है।
वन -उपवन सब खण्डित करके,
नगरी नयी बसाई है।
मानव ही मानव का दुश्मन,
छल में ही वो जीता है।
रावण भी अब घबराया है,
मानव हरता सीता है।
ललित किशोर 'ललित'
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5.
21.10.15
ताटंक छंद
अंग्रेजी
देश हमारा हम परदेशी,
जैसा जीवन जीते हैं।
शर्म नहीं क्यों हमको आती,
अन्दर से क्यों रीते हैं?
अपनी भाषा तरस रही है,
अंग्रेजी क्यों छाई है?
बोले बच्चा-बच्चा जैसे,
अंग्रेजी ही माई है।
ललित किशोर 'ललित'
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6
21.10.15
ताटंक छंद
अग्नि परीक्षा
नारी की तो अग्नि परीक्षा,
युग-युग से होती आई।
पावनता की मूरत सीता,
खुद को कहाँ बचा पाई।
पुरुषोत्तम जो राम कहाते,
पहुँचे इसी नतीजे थे।
सीता माता के क्रन्दन से,
भी वो कहाँ पसीजे थे।
ललित किशोर 'ललित'
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7
21.10.15
ताटंक छंद
दशरथ राज
दशरथ राज नाम कहलाता,
बेटे पास न प्यारे हैं।
नहीं सूझता अब तो कुछ भी,
पिता 'राम' के हारे हैं।
भाग्य लिखा कब मिटे मिटाये,
कर्मों की बलिहारी है।
तात चार बेटों का रोता,
मरने की लाचारी है।
ललित किशोर 'ललित'
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8.
22.10.15
ताटंक छंद
राम जपे है मुख से लेकिन,
मन में माया का वासा।
ऐसे जापक का तो अक्सर,
उल्टा पड़ता है पासा।
ज्ञानी था वो रावण जिसने,
सतत राम को ध्याया था।
बन कर शत्रु राम का जिसने,
परम मोक्ष को पाया था।
ललित किशोर 'ललित'
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9
22.10.15
ताटंक छंद
कितने अरमानों से बेटे,
मैंने तुझको पाला था।
जग की सारी खुशियाँ तुझको,
देता मैं मतवाला था।
आज उन्हीं खुशियों के बदले,
हार गमों के देता तू।
कब जाओगे दुनिया से तुम,
पूछ प्यार से लेता तू।
ललित किशोर 'ललित'
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10
22.10.15
ताटंक छंद
मेरे घर के छज्जे पर जो,
कौआ हर दिन आता था।
आते हैं मेहमान कोई,
काँव-काँव चिल्लाता था।
अब तो कोई कौआ छत पर,
नहीं दिखाई देता है।
कंकरीट में खोया कौआ,
आज बन गया नेता है।
ललित किशोर 'ललित'
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22.10.15
11
ताटंक छंद
फूँक दिया है उस पुतले को,
जिसको पापी माना था।
निर्दोषी था वो पुतला तो,
रावण जिसको जाना था।
छुपे हुए हैं जीवित रावण,
कई मुखौटों के पीछे।
ढ़ूँढ निकालो उनको अब तो,
क्यों बैठे आँखें मीचे।
ललित किशोर 'ललित'
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23.10.15.
12
राधा गोविन्द12-2-17
ताटंक छंद
नाथ तुम्हारे दर्शन को ये,
भक्त दूर से आते हैं।
मनोकामना पूरी हो ये,
तुमसे आस लगाते हैं।
आया मैं भी द्वार तुम्हारे,
मुझे पिला दो वो हाला।
खो जाऊँ नैनों में तेरे,
भूल सभी कंठी माला।
ललित किशोर 'ललित'
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13.
23.10.15
ताटंक छंद
आदरणीय मित्रों विदुर नीति की पुस्तक में से विदुर जी की नीतियाँ
ताटंक छंद में क्रमश: प्रस्तुत करने की एक तुच्छ कोशिश कर रहा हूँ। आप सब का सहयोग व मार्ग दर्शन अपेक्षित है।
विदुर नीति
श्री गणेशाय नम:
श्री सरस्वती देव्यै नम:
असत् उपायों को अपनाकर,
कपट कार्य जो होते हैं।
उनमें अपना मन न लगाना,
घातक सब वो होते हैं।
सत्य उपायों को अपनाकर,
करते कर्म सदा जो हैं।
सफल नहीं यदि हो पाते तो,
ग्लानि नहीं करते वो हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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14.
ताटंक छंद
विदुर नीति
भाग २
काम नया शुरु करने का जो,
कारण हो पहले जानो।
सोच-समझ कर कार्य करो तुम,
जल्दी बुरी बला मानो।
धीरज से हर काम सँवारो,
फल उसका पहले बाँचो।
कितना वो प्रगति में सहायक,
सोच जरा परखो जाँचो।
ललित किशोर 'ललित'
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15.
ताटंक छंद
विदुर नीति
भाग ३
नहीं जानता है जो राजा,
हानि-लाभो खजाने को।
राज-दण्ड की विधि नहि जाने।
असफल राज चलाने को।
इनको पूर्ण रूप से जाने,
धर्म-अर्थ का जो ज्ञानी।
प्राप्त राज्य को करता है वो,
राज करें राजा रानी।
ललित किशोर 'ललित'
***********************************
24.10.15
16
ताटंक छंद
विदुर नीति
भाग ४
महाबली से टकराये जो,
दुर्बल बिना सहारों के।
जिसका सब कुछ चोर ले गये,
जागे नीचे तारों के।
चोर तथा कामी जो होवे,
नींद नहीं ले पाता है।
बरबस जागे रातों में वो,
रोग उसे लग जाता है।
'ललित किशोर 'ललित'
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17
ताटंक छंद
अँगना में इक फूल खिला था,
उसको अपना माना था।
रंगों से हमने सींचा था,
खुशबूदार खजाना था।
झोंका एक हवा का आया,
रुख फूलों ने मोड़ा है।
जिस से आशा करता ये दिल,
दिल उसने ही तोड़ा है।
'ललित किशोर 'ललित'
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18
ताटंक छंद
मदिरा की मस्ती में खोना,
काम नहीं है वीरों का।
कहो सोमरस या शराब वो,
करती नाश शरीरों का।
मदिरा पीने वाले का तो,
मुख हरदम होता काला।
श्याम नाम की हाला पी लो,
मिल जाए मुरली वाला।
ललित किशोर 'ललित'
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25.10.15
19
ताटंक छंद
नन्हे-नन्हे हाथों में वो,
लकुटी ले वन जाते हैं।
गैयाँ हैं उनको अति प्यारी,
मुरली मधुर बजाते हैं।
गोप-ग्वाल सब मुग्ध हुए हैं,
दर्शन निपट निराले हैं।
छुटके कान्हा की छवि ऐसी,
बेसुध सारे ग्वाले हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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20
ताटंक छंद
कितने अच्छे कितने सच्चे,
बचपन के दिन होते थे।
चिन्ता फिकर नहीं थी कोई,
तान चदरिया सोते थे।
काश लौट कर फिर आ जाएँ,
वो मदमस्त हँसीं शामें।
एक बार फिर जी लें हँसकर,
हाथ सहेली का थामे।
ललित किशोर 'ललित'
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21
ताटंक छंद
लडते हैं माँ बाप परस्पर,
बच्चा छुप छुप रोता है।
सोच रहा वो नादाँ मन में,
आखिर ये क्यों होता है।
टकराते हैं अहम दिलों के,
जैसे बम ही छूटे हों।
लडते रहते साँझ सवेरे,
जो अन्दर से टूटे हों।
ललित किशोर 'ललित'
***********************************
22
ताटंक छंद
आठ बरस का लाडा देखो,
सात साल की लाडी है।
शादी धूम धाम से होगी,
समधी बड़ा अनाड़ी है।
नेता मंत्री शामिल होंगे,
बाराती जल्लादी हैं।
लाडी भागी सीधी थाने ,
ये कैसी आजादी है?
ललित किशोर 'ललित'
***********************************
22.12.15
23
ताटंक छंद
नहीं सूझता कुछ भी अब तो,लिखने और छपाने को।
न्याय हो रहा केवल अब तो,दिखने और छकाने को।
ऐसी आजादी से अब तो,दिल मेरा घबराता है।
छूट भयंकर अपराधी भी,आज यहाँ इतराता है।
ललित किशोर 'ललित'
***********************************
23.12.15
24
ताटंक छंद
विषय माँ मुक्तक बनाया
क्यूँ होता है अक्सर ऐसा,माँ छुप-छुप कर रोती है?
बेटा नजरें फेर रहा क्यूँ,सोच दुखी वो होती है।
माँ के अरमानों का सूरज,दिन में क्यूँ ढल जाता है?
एक अँधेरे कोने में फिर,बिस्तर क्यूँ डल जाता है?
'ललित किशोर 'ललित'
***********************************
25
ताटंक छंद
माँ की याद में
माँ मैं मूरख समझ न पाया,तेरे दिल की बातों को।
मेरी राह तका करती थी,क्यूँ सर्दी की रातों को?
मेरे सारे सपनों को माँ,तू ही तो पर देती थी।
मेरी हर इक चिन्ता को तू,आँचल में भर लेती थी।
आज अकेला भटक रहा हूँ,मैं इस जग के मेले में।
तेरी कमी अखरती है माँ,जब भी पड़ूँ झमेले में।
माँ तेरी यादों में मेरी,आँखें नीर बहाती हैं।
तेरी सीखें अब भी मुझको,राह सदा दिखलाती हैं।
'ललित किशोर 'ललित'
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24.12.15
26
ताटंक छंद
श्रृद्धा से सिर झुक जाता है,पढ़कर गाथा वीरों की।
भारत माँ का ताज सुशोभित,करने वाले हीरों की।
हर रिश्ते को पीछे छोड़ा,आजादी दिलवाने को।
भूल उन्हें हम घूम रहे क्यूँ,सूट-बूट सिलवाने को।
ललित किशोर 'ललित'
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25.12.15
27
ताटंक छंद
सड़कें सारी खाली कर दो,नेता जी अब आयेंगें।
चिड़िया भी पर मार न पाये,नेता जी जब आयेंगें।
नेता जी के राज दुलारे,खोटे बंदे होते हैं।
नेता जी के दम पर सारे,खोटे धंधे होते हैं।
ललित किशोर 'ललित'
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27.12.15
28
ताटंक छंद
समसामयिक: शिक्षा अव्यवस्था
नेता से जब लड़ता नेता,जनता सिर को पीटे है।
कैसा है ये देश जहाँ सब, नेता चाहें सीटें हैं।
विद्यालय शिक्षक को तरसें,बच्चे बड़े अभागे हैं।
नेता सारे सुस्त पड़े हैं,बच्चे खुद ही जागे हैं।
दोपहरी में मिलता दाना,शिक्षक ही हलवाई है।
मंत्री जी से बच्चे कहते,हम से क्या रुसवाई है।
खाने की जब करी व्यवस्था,शिक्षा से क्यूँ
नाराजी।
शिक्षित सबको करना है अब,देते केवल नारा जी।
'ललित किशोर 'ललित'
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29
ताटंक छंद
समसामयिक : अप्रत्यक्ष समस्या
कानों पर क्यूँ जूएँ रेंगें,बहरे जब नेता जी हैं।
बीन कहाँ सुनती हैं सारी,भैंसेंं सब नेता ही हैं।
भेड़ चाल क्यूँ चलते नेता,जनता सारी पूछे है।
लंका इनकी नहीं जले क्यूँ,जलती देखी पूँछें हैं।
'ललित किशोर 'ललित'
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30
ताटंक छंद
समसामयिक : अच्छे दिन?
देखो जी ये मोदी जी भी,सबको खूब छकाते हैं।
दुश्मन हो या दोस्त सभी को,भैरव नाच नचाते हैं।
पर मैं मूरख समझ न पाया, इनकी न्यारी घातों को।
अच्छे दिन का सपना देखूँ,जाग-जागकर रातों को।
'ललित किशोर 'ललित'
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31.
ताटंक छंद
देखी दुनिया दारी हमने,देख लिये दुनियावाले।
माँ की सूनी आँखें देखी,देख लिये दिल के छाले।
चार चार बेटों की माँ को,रोते भी हमने देखा।
बेटों की आँखों को क्रोधित,होते भी हमने देखा।
माँ की आँखो की कोरें अब,टूटे ख्वाब सँजोती हैं।
रानी बनकर आई थी अब,लगती एक पनोती है।
जिस घर की ईंटो को उसने,रात रात भर था सींचा।
आज उसी घर से बेटों ने,हाथ पकड़ कर है खींचा।
'ललित किशोर 'ललित'
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ताटंक छंद विधान व उदाहरण
वामा छंद विधान एवँ रचनाएँ
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-------वामा छंद विधान-----
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1. यह एक मात्रिक छंद है...
2. इसके प्रत्येक चरण में कुल 16 मात्राएँ होती हैं।
3. हर चरण का अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है।
4. इसमें कुल चार चरण होते हैं।
5. क्रमागत दो-दो चरण समतुकांत रखे जाते हैं।
मापनी - 221 122 2112
**** उदाहरण ****
वामा छंद
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कुछ स्वप्न अधर में हैं लटके।
कुछ खूब गए देकर फटके।
जब चूर हुए सुंदर सपने।
सब दूर हुए हमदम अपने।
**********रचनाकार*************
ललित किशोर 'ललित'
*******************************
माहिया
14.10.17
माहिया
वो खास मुलाकातें
याद करूँ उसकी
वो प्यार भरी बातें।
वो शाम सुहानी सी
याद करूँ उसकी
हर बात रुहानी सी
थी मस्त कलंदर जो
याद करूँ उसकी
थी प्रेम समंदर जो
जो आज पराई है
याद करूँ उसकी
जो हाथ न आई है।
ललित
माहिया
राधा
बेजान मशीनों सा
नाच रहा मानव
खुद गर्ज हसीनों सा।
घुँघरू न बचा पाया
नाच रहा मानव
बेदर्द बड़ी माया।
ले स्नेह भरा दिल वो
नाच रहा मानव
ले आस मरा दिल वो।
चालाक बड़ा बनके
नाच रहा मानव
हर चाल चले तनके।
हर नाच रहा आधा
नाच रहा मानव
भजता न कभी राधा।
ललित
14.10.17
माहिया
हे ईश्वर....!
अब काज नहीं कोई
राह पुरानी में
हम राज नहीं कोई।
विश्वास कहीं टूटा
राह पुरानी में
हर साथ कहीं छूटा।
बस याद बकाया है
राह पुरानी में
बस नाद बकाया है।
धुँधली न बची छाया
राह पुरानी में
सँग छोड़ रही काया।
रब ढूँढ नहीं पाया
राह पुरानी में
अब ढूँढ रहा छाया।
ये मन न सँभल पाया।
राह पुरानी में
जीवन न सँभल पाया।
हे ईश यही विनती
राह पुरानी में
हो जाप बिना गिनती।
ललित
माहिया
कब कौन कहाँ जाने
तीर चला जाए
दिल हाय नहीं माने
वो बाज नहीं आता
तीर चला जाए
दिल समझ नहीं पाता।
बेशर्म करे घायल
तीर चला जाए
बेखौफ बजे पायल
वो रास हमें आता
तीर चला जाए
दिल चीर कहीं जाता।
क्या खूब निशाना है
तीर चला जाए
दिलदार दिवाना है।
ललित
माहिया
क्या खूब दिवाली है
दीप व बाती की
हर आँख सवाली है।
है रात दिवाली की
दीप व बाती की
औकात न माली की।
तम स्वप्न यहाँ बुनता
दीप व बाती की
अब कौन यहाँ सुनता?
घनघोर घटा छाई
दीप व बाती की
अब पीर किसे भाई।
भगवान नहीं सुनते
दीप व बाती की
इंसान नहीं सुनते
त्यौहार दिवाली का
दीप व बाती की
बेज़ार दिवाली का
ललित
ललित
माहिया
भोर
हर पात गिरी शबनम
चमक भरे मोती
हर ओर दिखें चम-चम।
ललित
13.10.17
माहिया
वो दर्द मिला बैरी
प्यार किया जब से
बस याद शकल तेरी।
हम भूल गए सब कुछ
प्यार किया जब से
है याद नहीं अब कुछ।
हम सीख गए जीना
प्यार किया जब से
सुख-चैन गया छीना।
बेबाक मुहब्बत की
प्यार किया जब से
वो पास नहीं फटकी।
ललित
माहिया
वो कार चुरा कर यूँ
चोर खड़ा हँसता
हर चीर लिया हो ज्यूँ
माहिया
सुनसान दिवाली है
साथ नहीं साजन
हर आँख सवाली है?
ललित
माहिया
क्या फूल खिला कोई
भोर हुई अब तो
संदेश मिला कोई?
ललित
माहिया
यूँही लिख दिया
शायद अर्थ हीन
दिल आज कहीं गुम है
बात नहीं कोई
आवाज कहीं गुम है।
हर ओर मची हल चल
बात नहीं कोई
मन आज हुआ चंचल।
है ताल न है सरगम।
बात नहीं कोई
पर साँस हुई मध्यम।
वो दूर खड़ी लड़की
बात नहीं कोई
पर देख मुझे भड़की।
ललित
12.10.17
माहिया
221 1222
21 1222
221 1222
वृषभानु लली आई
श्याम अधर से वो
वंशी न छुड़ा पाई।
काहे न अधर छोड़े
श्याम मुरलिया ये
क्यों सौत बनी दौड़े।
11.10.17
माहिया
1
घनश्याम बिना आधा
नाम रहे तेरा
वृषभानु सुता राधा।
क्यूँ भोर भए आती
दौड़ चली राधा
घनश्याम नजर भाती।
11.10.17
माहिया
2
221 1222
21 1222
221 1222
जो प्यार करे तुझसे
शर्त बिना कोई
ले जान उसे मुझसे।
जो प्यार करे हरदम
शर्त बिना कोई
तू मान उसे हमदम।
जो दूर करे सब गम
शर्त बिना कोई
कर प्यार उसे हरदम।
जो प्यार करे सब से
शर्त बिना कोई
कर प्यार उसी रब से।
"ललित"
11.10.17
माहिया
3
221 1222
21 1222
221 1222
मैं द्वार खड़ी तेरे
दर्श दिखा दे तू।
ओ श्याम पिया मेरे।
बस एक झलक तेरी
देख चली जाऊँ
घनश्याम न कर देरी।
'ललित'
9.10.17
माहिया
पाषाण लरजते हैं।
चाक हृदय होते
जब नैन बरसते हैं।
ये दिल जब टूटा था
काश तुम्हें दिखता
हमसे रब रूठा था।
किस कारण रब रूठा?
काश बता पाते।
किस कारण दिल टूटा?
दिल टूट गया ऐसे
पायल से घुँघरू
हो छूट गया जैसे।
आवाज नहीं आई।
ये दिल टूटा तो
बस आँख डबडबाई।
ललित
9.10.17
माहिया छंद
2
समीक्षा हेतु
221 1222
21 1222
221 1222
पाषाण लरजते हैं।
चाक हृदय होते
जब नैन बरसते हैं।
ललित
9.10.17
माहिया छंद
2
समीक्षा हेतु
221 1222
21 1222
221 1222
क्या बात करें तुमसे
प्यार खुदाया जो
तुम ही न करो हमसे
ललित
20.01.2020
माहिया
221 1222
21 1222
221 1222
क्या प्यार किया उसने
दर्द लिया दिल दे
व्यापार किया उसने।
जीवन भर पछताया
दर्द भरा दिल ले
वो लौट के घर आया।
क्यों दर्द नहीं रुकता।
खोज रहा अब वो
क्या चैन कहीं बिकता?
क्यों प्यार किया उसने
प्रीत भरा दिल क्यों
यों वार दिया उसने?
कश्ती न किनारा है
दर्द भरे दिल का
रब एक सहारा है।
ललित
21.01.2020
माहिया
221 1222
21 1222
221 1222
हर भोर नहाई है।
शीत दिवानी की
हर ओर दुहाई है।
शबनम सब कलियों को।
फूल बना देती
पागल कर अलियों को।
ललित
चुपके से आती है।
चैन चुरा चिंता
दिल में बस जाती है।
दिल कितना पागल है।
संशय से उपजी
चिंता से घायल है।
ललित
माहिया
पायल बजती छम-छम।
नाच रही राधा
नंदन-वन में धम-धम।
मधु-रास रचैया की
बाँसुरिया प्यारी
उस धेनु चरैया की।
ललित
माहिया
धड़कन की,साँसों की
आज जरा कर लें
बातें अहसासों की।
सावन के झूलों की
बात निराली है
सरसों के फूलों की।
ललित
25.01.2020
माहिया
ससुराल विदा होती
नाज पली बिटिया
पितु आँख रही रोती।
बाबुल चुपचाप खड़ा
मौन अधर थे पर
आँसू इक बोल पड़ा।
बेटी खुश रहना तू।
पीर सदा दिल की
बाबुल से कहना तू।
ललित
माहिया
क्या खूब निराला है
जीवन-पथ प्यारा ये
आशा की माला है।
ग़म और खुशी भरते।
मानव की झोली
अंजान सफर करते।
कट-कट कर वृक्ष बढ़े।
गिर ऊँचाई से
चींटी सौ बार चढ़े।
जो हार नहीं माने
इंसान वही है।
जो जीत सदा ठाने।
ललित
माहिया
क्या प्यार कहीं मिलता?
मन-फुलवारी में
क्या फूल कभी खिलता?
लो भोर हुई प्यारी।
जीवन की बगिया
गुलजार हुई न्यारी।
हर ओर उजाला है।
नभ स्वर्णिम प्यारा
इस भोर निराला है।
भ्रमरों में है हलचल।
कलियाँ मुस्काती
वो देख हुए चंचल।
सौरभ मदमाती है
संग हवा के जो
उड़-उड़ कर आती है।
ललित
अनुकूला छंद विधान एवँ रचनाएँ
कबीर छंद विधान एवँ रचनाएँ(जनवरी 2020)
शुभ नव -वर्ष
शुभ-नव-वर्ष मित्रों....!
~~~~💝~~~~💝~~~~💝~~~~
सभी मित्रों को नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
********************कुण्डलिनी छंद
चमेली चम्पा कमल गुलाब,
मोगरा जूही हरसिंगार।
रात की रानी नरगिस और,
गुढल गेंदा खस सदाबहार।
मोतिया नीलकमल के संग,
लिए मधु सौरभ का संसार।
वर्ष-नव इक्किस में सब पुष्प,
महकते रहें आपके द्वार।
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ललित किशोर 'ललित'
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********************* --दुर्मिल सवैया छंद विधान--- ********************* 1. यह एक वार्णिक छंद है। 2.इसमें चार चरण होते हैं। 3.चार ...
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18.07.16 प्रणाम मित्रों 13.01.2021 ******************************** - ---- आल्हा छंद विधान--- ********************************* 1.सममात्र...
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******************************** ------मदिरा सवैया छन्द विधान------ ******************************** 1. यह एक वार्णिक छंद है 2. इसकी हर ...