प्रकाशन 2 हरिगीतिका छंद

हरिगीतिका छंद

ये आज जो आया जमाना,देख प्रभु हैरान है।
पैसा बना ईमान सबका,और पैसा जान है।
हर नर यहाँ भगवान अब तो,मान पैसे को रहा।
जिसके नहीं है पास पैसा,मान वो है खो रहा।

हर आदमी बिकता यहाँ पर,बहुत सस्ते मोल में।
जिसने खरीदा आदमी को,काम हो बस बोल में।
क्यों बेचता ईमान अपना,आदमी हर पल खड़ा।
जब जानता है उस खुदा का,फैसला होगा बड़ा।

माया बड़ी मन मोहनी है,भासती सबको यहाँ।
घर-बार सुंदर चाहता है,आदमी हर-दम जहाँ।
बाकायदा,बेकायदा,वो,कुछ नहीं है जानता।
बस नाम अपना हो बड़ा ये,चाह सच्ची मानता।

बस एक नाता पारखी तो,मान-दौलत से रखे।
निर्धन तथा कमजोर प्राणी,बस अकेला पन चखे।
माँ-बाप अपना आज बेटा,कर रहे नीलाम हैं।
वो आम के तो आम खाएँ,गुठलियों के दाम हैं।

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