प्रकाशन 7 गीतिका छंद

गीतिका छंद

वो दुआएं ही फली जो,दी मुझे हैं मात ने।
और सब संसार की हैं,तालियाँ खैरात में।।
माँ तुम्हारी हर दुआ से,भाल चमका है सदा।
भूल सकता मैं नहीं माँ,अब तुम्हारी आपदा।।

कौन सी माटी लगाकर,देह माँ की है घड़ी।
कौन सी विद्या लगाकर,पूत में तृष्णा जड़ी।।
दो जहाँ का प्यार माँ से,पूत को मिलता यहाँ।
मात की सेवा करे जो,पूत वो मिलता कहाँ।।

राह सीधी छोड़कर तू,चाल टेढ़ी चल रहा। राम को भूला अरे तू,काम मन में पल रहा।।
काम जो मन में बसे तो,आत्म को दे घाव रे।।
राम जो मन में बसे तो,पार कर दे नाव रे।।

दो दिशाओं को मिलाना,कौन मुश्किल काम है।
चाँद तारों को हिलाना,कौन दुष्कर काम है।
जो दिलों में ठान लें वो,मंजिलें तय कर सकें।
जोड़ कर टूटे दिलों को,घाव गहरे भर सकें।

No comments:

Post a Comment