प्रकाशन 3 भुजंग प्रयाति छंद


भुजंग प्रयाति छंद

बड़ा ढीठ गोपाल  बंसी बजैया,बिना राधिका के न आये कन्हैया।
कहे श्याम राधा दुहाई तुम्हारी,जहाँ राथिका है वहीं है मुरारी।
बड़ी दूर है श्याम तेरा बसेरा,यहीं दूर से मैं जपूँ नाम तेरा।
बुलाले हमें श्याम तेरे ठिकाने,कहीं रूठ जाएं न तेरे दिवाने।
दसों ही दिशा गूँजता नाम मेरा,न कोई किसी धाम है खास डेरा।
पुकारे मुझे जो दिलो जान से है,जपे जो सदा नाम ईमान से है।
उसी का सदा मैं बना हूँ खिवैया,बड़े प्रेम से जो पुकारे कन्हैया।
कभी नाम मेरा जुबाँ से न लेता,निरा मूर्ख है वो डुबा नाव देता।

निराकार ओंकार साकार देवा,चहौं हाथ माथे न बादाम मेवा।
दया कौन चाहे न दातार तेरी,करो आस पूरी जगन्नाथ मेरी।
गले से लगाया सुदामा यहीं था।लिया चावलों के अलावा नहीं था।
मिला जो सुदामा नहीं जान पाया।दुआएं मिली और सम्मान पाया।
वही यार संसार में है निराला।करे दोसतों के घरों में उजाला।
चलेगा न कोई बहाना पुराना,पुकारूँ तुझे तू गले से लगाना।
मिले जो तुम्हारा जरा सा इशारा।जमीं तो जमीं आसमाँ हो हमारा।
करो आप वासा दिलों में कन्हाई।नहीं और कोई सुने है दुहाई।

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