विधाता छंद विधान एवँ रचनाएँ 19.08.15


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     -------विधाता छंद विधान-----

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1. सम मात्रिक छन्द,कुल चार चरण।

2. हर चरण में 14-14 की यति से कुल 28 मात्रा।

3. प्रत्येक चरण में 1 , 8 ,15 , व 22 वीं मात्रा अनिवार्यतः लघु ही (1) होती है ।

4..दो अथवा चार चरणों में समतुकांत।

5. मापनी- 1222/1222/1222/1222

6. धुन- लगागागा लगागागा लगागागा लगागागा

नोट :- चरण में गुरु की जगह दो लघु (1 1) को विकल्प के रूप में एक गुरु ( 2 ) माना जा सकता है 

             **** उदाहरण ****

                    विधाता छंद

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बजे जब बाँसुरी प्यारी,कहाँ कुछ होश रहता है।

चली सब गोपियाँ आएँ,अजब सा जोश रहता है।

नज़र भर कृष्ण को देखें,यही इक सोच रहती है।

कन्हैया की निगाहों से,अलौकिक प्रीत बहती है

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          ललित किशोर 'ललित'

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विधाता छंद रचनाएँ



1

विधाता छंद

तुम्ही हो प्रीत इक मेरी,तुम्ही हो रास की रानी।
सितारे आज हँसते हैं,करे जब चाँद मनमानी।
न बंसी को सखी माना,न कोई गोपिका जानी।
न रूठो और अब राधा,करो ना और नादानी।

2
चित्र आधारित विधाता छंद

सुनो ओ राधिका रानी,सभी हम प्रेम में हारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।
नशीली आँख का तेरी,चढा मुझ पर नशा वो है।
न मुझको याद अब कुछ भी,बता मेरी खता जो है।

चित्रा धारित विधाता छंद

बिठालो माँ हमें अपनी,निगाहों की पनाहों में।
न जानें हम किसी रब को,छुपालो आज बाहों में।
तुम्हारी सब करें पूजा,जगत ये जानता है माँ।
हमारी हर खुशी तुम से,तुम्हीं से है हमारी जाँ।
.......................................................
4
चित्र आधारित विधाता छंद

माँ से शुरु होकर वतन को छूती ये पंक्तियाँ

दुआ माँ साथ हो तेरी,सितारे तोड लाऊँगा।
जहाँ होंगें सितम तुझ पर,वहीं मैं दौड आऊँगा।
न कोई भी सितमगर अब ,तुझे आँखें दिखा पाये।
नहीं पैदा हुआ कोई ,नजर तुझसे मिला पाये।

'ललित'

5.
21.08.15
विधाता छंद

बहारें आज गुलशन में,बिखेरें प्यार के मोती।
चले आओ सजन मेरे ,तुम्हारी राह मैं जोती।

पडे हैं बाग में झूले,मुदित मन मोर भी झूमे।
सितारों के लगे मेले,लताओं पे भ्रमर घूमे।

6.
21.08.15
तुम्हारे नाम की मेहंदी,रचाई आज हाथों में।
तुम्हारे प्यार की मारी,लजाई आज रातों में।
कहे पायल न ठुकराओ,कहे कँगना न बिसराओ।
कहे बिंदिया न तरसाओ,तडपते हैं चले आओ।

7 -  ( 22.08.15)

मिली है रोशनी उनको,लडे जम कर तमों
से जो।
डिगे डर कर तमों से जो,तमों में खो गये हैं वो।
उजाला है उसी घर में,जहाँ बेटी चहकती है।
हवायें गुन गुनाती हैं,दिशायें सब महकती हैं

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विधाता छंद

8
हवाओं को बदल देंगें,बता दो आसमानों को।
किसी तूफान से कम मत,समझना हम जवानों को।
असंभव को हमें संभव,यहाँ अब कर दिखाना है।
न रोकेंगें कदम अपने,सितमगर को मिटाना है।
9
विधाता छंद
काव्योदय 27.08.15
न करते जो जमाने में,कदर माता पिताओं की।
जरा वो सोच लें खुद ही,सजा अपनी खताओं की।
बुजुर्गों की दुआओं का ,असर जो देखना चाहो।
करो सम्मान सब उनका,महर जो देखना चाहो।
10
27-08-15 काव्योदय
विधाता छंद

हमारी चाहतों का तुम,जनाजा यूँ निकालोगे।
न सोचा था कभी हमने ,हमें दिल से निकालोगे।
हमें तुम ही कभी ऐसा, पराया पन दिखाओगे।
न दोगे फोन पे घंटी,न ही कुछ बोल पाओगे।

ललित
18.08.15
विधाता छं
11
हमारी आरजू का ये, फकत इतना इशारा है
जमीं अपनी हवा अपनी, समंदर भी हमारा है।
नया इतिहास लिखने का, इरादा आज न्यारा है।

07.03.16
12
विधाता छंद

जटाओं में बसी गंगा,गले में नाग की माला।
अघोरी सा दिखाई दे,निगाहों में लिए ज्वाला।।
शिवा भोला लगे तू तो,मुझे बस नाम का भोला।
चढाये तू सदा रहता,धतूरे भांग का गोला।।

ललित
13
विधाता छंद

न जानूँ मैं कहाँ खोई,निराली वो हँसी मेरी।
चुरा कर ले गई मुझसे,मुझी को वो हँसी तेरी।।
तुम्हारी कातिलाना वो,अदा कब भूल पायेंगें।
भुलाना जो कभी चाहा,खुदी को भूल जायेंगें।।

'ललित'
14
विधाता छंद

जहाँ माता पिता सुत से,दुखी हो रोज रोएंगें।
वहाँ कैसे कभी बेटे,सुखों के बीज बोेएंगे।

कदर माता पिता की जो,करे यदि पूत हो ऐसा।
करे सेवा बना घर वो,प्रभू के धाम के जैसा।।

'ललित'
15
विधाता छंद

कभी जालिम कभी भोली,कभी नादान वो
दिखती।
नशीली आँख से खुद की,बड़ी अनजान वो दिखती।
न जाने क्यूँ हमें उसकी,अदा पे प्यार आया है?
हमारा दिल चुरा उसने,कहाँ जाने छिपाया है?

'ललित'
16
विधाता छंद

जहाँ पुजती सदा नारी,उसी घर में उजाला है।
सजाती है जिसे बेटी,उसी घर में शिवाला है।।

जहाँ पुजती सदा माता,उसी घर में निवाला
है।
जहाँ आती नहीं लक्ष्मी,उसी घर में दिवाला है।।

'ललित'
17
विधाता छंद

कभी वो वोट हैं माँगें,कभी शासन चलाते हैं।
कभी लगते हमें अपने,कभी वो बरगलाते हैं।।
सुना था वो बड़े नेता,मसीहा हैं गरीबों के।
दिखाई अब मगर देते,भिखारी वो नसीबों के।।

'ललित'
18
विधाता छंद

पुकारे चाँद भी नभ से,सुनो ओ चाँदनी रानी।
न जाओ रूठकर हम से,करो मत आज मनमानी।।
तुम्हारे रूप पर मरते,जमीं औ'आसमाँ तारे।
सदा से ही दिवाने हैं,रजत से रूप के सारे।।

'ललित'
19
विधाता छंद

नहीं है हाथ में चूड़ी,नहीं कँगना नहीं पायल।
बता ऐ चाँदनी तूने,किए कैसे सभी घायल।।
वही है साजना तेरा,लिए है दाग जो मुख पे।
बता दे राज ये गहरा,अनोखा तेज क्यों रुख पे।।

'ललित'
20
विधाता छंद

सजा कर फूल बालों में,लगाकर गाल पर लाली।
चली वो खूब इतरा कर,पहन कर कान में बाली।।
बड़ी तीखी नजर वाले,मियाँ इक झूम कर बोले।
इमारत ये पुरानी सी,हसीना सी सजी डोले।।

'ललित'
21
विधाता छंद

लुभाते हैं,रिझाते हैं,हँसीं सपने बहारों के।
न जाने क्यूँ हमें ठगते,नजारे रहगुजारों के।।
नजर भगवान पर रखकर,सफर अपना शुरू कर लो।
नहीं मिलता अगर रस्ता,किसी को तुम गुरू करलो।।

'ललित'
22

कभी बहना कभी बेटी,कभी भार्या कभी पोती।
कभी वो माँ हमारी बन,खुशी के बीज है बोती।
पिला कर दूध बच्चों को,बड़े अरमान से पाले।
मगर बच्चे उसे देते,बड़े ही दुख भरे छाले।

'ललित'
23

सुखों को भोगने में ही,जवानी तू बिताता क्यूँ।
बुढापे के दुखों का डर,नहीं तुझको सताता क्यूँ।।
जवानी के दिनों में ही,प्रभू का नाम चख ले रे।
बुढापे के सुखों की तू,अभी से नींव रख ले रे।।
'ललित'

वाहह्ह्ह ललित जी.....लाज़वाब सृजन...सर्वकालिक...श्रेष्ठ रचना...हार्दिक बधाई....
24
विधाता छंद

भला क्या है बुरा क्या है,नहीं तू जो समझ पाये।
लगा ले आत्म में गोता,वहीं से ज्ञान ये आये।।
जरा तू मौन रहने की,अदा भी सीख ले प्यारे।
जमीं,आकाश औ' तारे,सदा से मौन हैं सारे।
'
ललित'
25
विधाता छंद

नया संदेश लेकर फिर,नई इक भोर है आई।
प्रभू का नाम लेकर तुम,करो कुछ प्रार्थना भाई।।
बढे बरकत मिले ताकत,किसी के काम हम आयें।
दुखी जन को हँसाने के,तराने रोज हम गायें।।

'ललित'
26
विधाता छंद

चलो इक दूसरे से हम,जरा कुछ बात ही कर लें।
कहें कुछ पीर मन की औ',किसी के घाव
हम भर लें।।
लुटा दें हर खुशी अपनी,किसी के गम मिटाने में।
यही बस सोच हो मन में ,नहीं सुख दूर जाने में।।

27
विधाता छंद

नया इक नीड़ बुनने को,चली बुलबुल महारानी।
नहीं जंगल दिखा कोई,भरा तब आँख में पानी।।
जरा सी छाँव पाने को,तरसते आज ये प्राणी।
भरी दारुण दुखों से अब,सुनेगा कौन ये वाणी।।

'ललित'

28
विधाता छंद

उसी गुलशन उसी घर से,विदा वो मात है होती।
सँवारा था कभी जिसको,जड़े थे प्यार के मोती।
नहीं वो पूछ पाती है,गई क्यों आज मैं ताड़ी।
जरा बेटे बता दे तू  ,उजाड़ी आज क्यूँ बाड़ी।।

'ललित'

29

कहीं झोली भरी तूने,कहीं फाके बताता है।
किसी के नाम खुशियाँ हैं,किसी को गम सताता है।
30

तुम्हारे नाम के चर्चे,सुने भगवन हजारों से।
तुम्हारे नाम के पत्थर,मिला देते किनारों से।।
हजारों दीपकों की लौ,सजायी है कतारों में।
प्रभू के दीद की खबरें,सुनाई जब नजारों ने।।
ललित

31
विधाता छंद

न समझे प्रेम की भाषा,दिवानी श्याम की राधा।
छुड़ाकर बाँसुरी पूछे,किया है प्रेम क्यूँ आधा।।
अधर मुरली लगाते हो,मुझे दिल में बसाते हो।
यही मुरली बजाकर तुम,मुझे पागल बनाते हो।।
'ललित'

32
विधाता छंद

अनाड़ी एक ऐसा था,जिसे लिखना न आता था।
यहीं पर छंद कविताएं,तथा लय ज्ञान पाता था।।
तराशा प्यार से सादर,सुधारी वर्तनी सारी।
गुरू राकेश जी का मैं,हृदय से आज आभारी।।

'ललित'

22.03.16

26.07.16
किसी की आँख मे पानी,किसी के नैन हैं सूखे।
हँसा देता हमें कोई,किसी के बोल हैं रूखे।
चलो सबसे निभालें हम,सभी के साथ है जीना।
खुशी को बाँट दें सब में,गमों को है हमें पीना।

'ललित'

सुनो ओ राधिका रानी,सभी हम प्रेम में हारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।

तुम्ही हो प्रीत इक मेरी,तुम्ही हो रास की रानी।
सितारे आज हँसते हैं,करे जब चाँद मनमानी।
न बंसी को सखी माना,न कोई गोपिका जानी।
न रूठो और अब राधा,करो मत और नादानी।

बहारें पूजती तुमको,नजारे चुप हुए सारे।
चली क्यूँ फेर कर नजरें,नजर के तीर क्यूँ मारे।

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दिसम्बर 2019 की रचनाएँ

विधाता छंद

बुढ़ापा झूमकर आए,जवानी सिमटती जाए।
सफेदी रंग दिखलाए,कि एड़ी घिसटती जाए।
वही नदिया वही धारा,वही तालाब है प्यारा।
लगे मीठा नहीं पानी,समंदर की तरह खारा।

ललित


विधाता छंद

सुना मझधार से हमने,कि झरने खूबसूरत हैं।
महकते हैं चहकते हैं,नज़ारों की ज़रूरत हैं।
छलाँगे मारते आते,फुदक-कर झील से मिलते।
मिलन से झील-झरने के,नवल-गुल प्यार के खिलते।

ललित

06.12.19

विधाता छंद

किनारों में बँधी नदिया,चली है झूमती गाती।
मिलूँ जल्दी समन्दर से,सुनाऊँ प्रेम की पाती।
लगाए हर लहर ठुमके,छनन-छन-छन बजे पायल।
नदी की इन अदाओं का,समंदर भी हुआ कायल।

ललित

विधाता छंद
मुस्कान/खिड़की/झरोखा

लिए मुस्कान अधरों पर,बड़ी दिलकश मनोहारी।
हँसे बिंदास खिड़की में,पड़ोसन हूर सी प्यारी।
न जाने कौन सी मदिरा,झरे नैना-झरोखे से।
नहीं कुछ होश है रहता,मिलें जब नैन धोखे से।

ललित


04.12.19
विधाता छंद

ज़रा दिल के झरोखे से,हमारी ओर तो देखो।
नयन की खोलकर खिड़की,गगन का छोर तो देखो।
हवा में प्यार की खुशबू,ज़रा महसूस तुम कर लो।
खुली बाहें हमारी हैं,हमें आगोश में  भर लो।

ललित


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छद श्री सम्मान