चार कदम
मुक्तक दिवस -111
इस जीवन की धूप छाँव से ये जाना है,
इन राहों पर अकेले ही चलके जाना है।
यहाँ साथ नहीं देती है अपनी काया भी,
बडा जालिम है, बडा बेदर्द ये जमाना है।
'ललित'
इस जीवन की धूप-छाँव से,हमने इतना जाना है।
जीवन में सब बाधाओं से,पार अकेले पाना है।
साथ नहीं देती है जग में,अपनी सुंदर काया भी।
हाय बड़ी जालिम ये दुनिया,औ' बेदर्द जमाना है । ******
👌🙏
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