चार कदम:मुक्तक दिवस

13.12.17
साहित्य सृजक सम्मान 14.12.17 को
चार कदमः मुक्तक दिवस: 232

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीया दीपशिखा सागर जी के सम्मान में सादर निवेदित
मुक्तक
16:14

टूटे सपनों की कुछ किरचें,बाकी हैं अब झोली में।
कैसे कैसे रंग दिखे हैं,सपनों की इस होली में।
स्वप्न सुनहरे खो देते हैं,कब क्यूँ अपने रंगों को?
बेरंगा मन बैठा रहता,क्यूँ सपनों की डोली में?

'ललित'

चार कदमः मुक्तक दिवस: 228

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीया डॉ. सोनिया गुप्ता जी के सम्मान में निवेदित
मुक्तक
14  ..12

ज़िन्दगी से आज हमको,चोट इक प्यारी मिली।
कौन सा मरहम लगाएँ,हर दवा खारी मिली।
ज़ख्म जो दिल में हुआ है,दीखता हरदम नहीं।
घाव पर मरहम लगाती,ख्वाहिशें सारी मिली।

'ललित'

11.10.17

चार कदमः मुक्तक दिवस: 223

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीय बनवारी लाल मूरख जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित

मुक्तक:16:14

अपनों की बस्ती में मैंने,कुछ बेगाने देखे हैं।
बेगानों से प्यार करें जो,वो मस्ताने देखे हैं।
भेद नहीं कर पाता अब मैं,अपनों और परायों में।
पैरों के नीचे दबते कुछ,फूल पुराने देखे हैं।

"ललित"

4.10.17
चार कदम : मुक्तक दिवस : 222

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीय संगीत पाण्डे जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित
मुक्तक:16:14

फूलों ने हँसना छोड़ा है,कलियाँ भी मुरझाई हैं।
माली सींच रहा बगिया पर,पानी भी हरजाई है।
कली-कली पर भौंरे डोलें,प्रेम नहीं कुछ मन में है।
खिलने से पहले रस चूसा,अब केवल तनहाई है।
'ललित'

27.9.17

चार कदम : मुक्तक दिवस : 221

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीय सुशील सरना जी जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित
मुक्तक:16:14
सुख दुख
दिल की हर धड़कन कुछ बोले,पागल मनवा है सुनता।
सुनकर धड़कन की सुर तालें,ख्वाब अनोखे है बुनता।
सुंदर सपनों की वो दुनिया,कब किस को सुख दे पायी।
लेकिन समझ दार मानव तो,दुख में से भी सुख चुनता।

'ललित'

20.9.17
चार कदम : मुक्तक दिवस : 220

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीय जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित
मुक्तक:16:14
सुख दुख
...........
गम हरदम ही देकर जाते,खुशियों की कुछ सौगातें।
खुशियाँ जाते जाते कहतीं,कानों में गम की बातें।
सुख औ' दुख मिलकर इस जीवन,को रंगीन बनाते हैं।
मत उलझो सुख-दुख में यारों,ये तो हैं आते जाते।
************'ललित'*************

13.9.17
चार कदम मुक्तक दिवस:- 219

कार्यक्रम अध्यक्षा आदरणीया डॉ.मीना कौशल  जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित
मुक्तक 16:14

उन सुजान कान्हा को अब मैं,भूल भला सकती कैसे?
जिनकी याद बसी आत्मा में,जीवन प्राणों में ऐसे।
नित्य निरंतर खोया है मन,प्रिय की अनन्य यादों में।
नित्य नवीन लीला की यादें,संचित हैं मन में
जैसे।

'ललित'
2

6.9.17
चार कदम मुक्तक दिवस:- 218

कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीय राजेश श्रीवास्तव 'प्रखर' जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित एक

टूटे सपनों की कुछ किरचें,बाकी हैं अब झोली में।
कैसे कैसे रंग दिखे हैं,सपनों की इस होली में।

स्वप्न सुनहरे खो देते हैं,कब क्यूँ अपने रंगों को?

बेरंगा मन बैठा रहता,क्यूँ सपनों की डोली में?

'ललित'

30.8.17
चार कदम मुक्तक दिवस:- 217
कार्यक्रम अध्यक्ष आदरणीया रश्मि सक्सेना जी के सम्मान में आप सभी मित्रों को निवेदित एक

मुक्तक 16:14

इतनी किरपा कर दे कान्हा,गीत मधुर मैं लिख पाऊँ।
छू कर तेरे अधरों को मैं,धुन मुरली की बन जाऊँ।
राधा जी के चरणों को जो,पायल है हर-पल छूती।
बन वो ही पायलिया निश-दिन,छम-छम-छम-छम-छम गाऊँ।

'ललित'

15.8.17
चार कदम
मुक्तक दिवस 215

समारोह अध्यक्ष आदरणीय प्रदीप कुमार जी एवं सम्माननीय मंच को सादर प्रेषित

मुक्तक 16:14(साहित्य सृजक पुरस्कार)

बिन पतवार चले ये नैया,
    कुछ हिचकोले खाती रे।
नज़र न आये माँझी कोई,
        नदिया भी गहराती रे।
मन कहता है मेरा कान्हा,
         तुम वो अंतर्यामी हो।
पार करे जो नैया सबकी,
    बिना अरज बिन पाती रे।

'ललित'

8.8.17
चार कदम
मुक्तक दिवस:-214
अध्यक्ष सम्माननीय श्री विनोद राजपूत साँवरिया  जी व सम्माननीय मंच को सादर निवेदित

मुक्तक

काले काले बदरा नभ में,रह रह गरज रहे।
ऊँचे पर्वत की चोटी पर,तरुवर लरज रहे।
पत्ता पत्ता खड़क रहा है,बरखा यूँ बरसे।
काम देव साजन सजनी के,मन में बरस रहे।
'ललित'

27.7.17
चार कदम
मुक्तक दिवस:-212
अध्यक्षा सम्माननीया मंजूषा श्रीवास्तव जी व सम्माननीय मंच को सादर निवेदित

मुक्तक  16   ..14

पुष्प बहुत ऐसे देखे हैं,
          काँटों में जोें पलते हैं।
चुभन सहें कंटक की फिर भी,
          मुस्कानों में ढलते हैं।
सौरभ उनकी चहुँ दिशि फैले,
          काँटे बेबस रह जाते।
कंटक चुभ-चुभ थक जाते हैं,
          दिल ही दिल में जलते हैं।

       💖💖'ललित'💖💖

3

11.5.17

चारकदम"मुक्तक दिवस 201
समारोह अध्यक्ष
आदरणीय ओम प्रकाश मेघवंशी जी व सम्माननीय मंच की सेवा में सादर
मुक्तक 16:14

क्यूँ बँधता है रिश्तों में मन,क्यूँ उलझा है रिश्तों में?
प्यार जहाँ मिलता है उसको,छोटी छोटी किश्तों में।
जग से जीत गया जो मानव,रिश्तों से वो है हारा ।
प्यार लुटाने वाला दिल तो,होता खास फरिश्तों में।

'ललित'

3.5.17
"चारकदम"मुक्तक दिवस 200
समारोह अध्यक्षा
आदरणीया रमा प्रवीर वर्मा जी व सम्माननीय मंच की सेवा में सादर
दो मुक्तक

चाँद-चाँदनी प्रेमांकुर को,रोपित जब करते।
टिम -टिम करते तारे नभ में,प्रेम रंग भरते।
खुले आसमाँ के नीचे तब,प्रीत कमल खिलता।
साजन सजनी के अधरों से,प्रेम पुष्प झरते।

शीतल शांत सरोवर जल में,श्वेत चाँद चमके।
मंद समीर सुगंध बिखेरे,नयन काम दमके।
झीना आँचल भेद चाँदनी,सुंदरता निरखे।
सजनी का तन मन महके है,साजन में रम के।

18.4.17
चारकदम मुक्तक दिवस 198
आदरणीय विनोद राजपूत जी  व मंच की सेवा में सादर
मुक्तक

खिला है चाँद भी पूरा चँदनिया गुनगुनाती है।
सितारों के लगे मेले हवा दामन हिलाती है
तुम्हारे नाम की मेहंदी रचाई आज हाथों में।
चले आओ सजन मेरे तुम्हारी याद आती है।
ललित

11.4.17
चारकदम मुक्तक दिवस 197
आदरणीया रमा प्रवीर वर्मा जी  व मंच की सेवा में सादर
मुक्तक

माँ-बेटी का होता जग में,सबसे सुंदर नाता है।
प्यार दिया जो तू ने मुझको,झोली में न समाता है।
अपनी इस बेटी का दामन,खुशियों से माँ भर देना।
चूमे जब तू माथा मेरा,रोम रोम खिल जाता है।
'ललित'

चारकदम मुक्तक दिवस 195
आदरणीया प्रभा दीपक शर्मा जी  व मंच की सेवा में सादर

जितनी भी सुलझाएँ गाँठें,और उलझती जाती हैं।
गाँठें भी शायद मानव की,चाल समझती जाती हैं।
गाँठ गाँठ में गाँठ लगी हो,तो कैसे सुलझा पाएँ।
थोड़ी ढीली कर दो तो हर,गाँठ सुलझती जाती है।
'ललित'

1.3.17
चारकदम मुक्तक दिवस 191
आदरणीय राम सेवक सिंह गुर्जर जी  व मंच की सेवा में सादर

राही मैं अनजान डगर की,चलना है फितरत मेरी।
मंजिल दूर सफर मुश्किल है,साथ चले किस्मत मेरी।
हार जीत से डरना मैंने, जीवन में है कब सीखा।
मंजिल मुझे जहाँ मिल जाए,वो होगी जन्नत मेरी।

'ललित'

22.2.17
चार कदम मुक्तक दिवस 190
आदरणीया महिमा सोनी जी व मंच की सेवा में सादर
मुक्तक 
14  ..12

आसमाँ में उड़ रहा जो,उड़ कहाँ तक पायगा।
वक्त की इक मार से वो,गिर जमीं पर जायगा।
वक्त तो हरदम किसी का, एक सा रहता नहीं ।
वक्त को कमतर गिने जो,मूर्ख ही कहलायगा।

'ललित'

2
मुक्तक दिवस 114

इस सुन्दर मोती को माँ तू
              रो रो कर मत बहने दे।
अपने दिल के अरमानों को
             आँख के अंदर रहने दे।
तेरी दुआ से इन नैनों में
              खुशी के आँसूभर दूँगा।
तेरी इस पीड़ा को माँ बस
              कुछ दिन मुझको सहने दे।
              

26.07.16
चार कदम मुक्तक दिवस 160
समारोह अध्यक्ष आदरणीया अल्पना सुहासिनी जी की सेवा में सादर...

हवाओं को बदल देंगें,बता दो आसमानों को।
किसी तूफान से कम मत,समझना हम दिवानों को।
असंभव को हमें संभव,यहाँ अब कर दिखाना है।
मिटाकर आज दम लेंगें,सितमगर के ठिकानों को।

'ललित'

02.08.16

चार कदम मुक्तक दिवस 161
समारोह अध्यक्ष आदरणीया अनीता मेहता 'अना' जी की सेवा में सादर...

जब साथ हैं सौ हाथ तो फिर,क्यों डरें हम काल से।
मिलकर रखेंगें हर कदम हम,एक ही सुर ताल से।
है कौनसी मंजिल यहाँ जो,हम न हासिल कर सकें?
हम मुक्त भारत को करेंगें,दुश्मनों के जाल से।

'ललित'

10.8.16

मुक्तक दिवस 162
आदरणीय अमित मालवीय हर्ष जी की सेवा में सादर

रंग बिरंगे ये गुब्बारे,सब के मन को हर्षाते।
पल दो पल का जीवन इनका,फिर भी हरदम मुस्काते।
इनसे ही सीखा है यारों,मैंने हर पल खुश रहना।
हँस कर सबको खुशी लुटाते,नील गगन में उड़ जाते।

'ललित'

25.8.16

मुक्तक  16   ..14

💐💐💐💐💐💐💐

🍇🌿राधे श्री राधे🌿🍇

🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿

😃😃शुभ प्रभात 😃😃

🌿🌺🌿🌺🌿🌺🌿

   💃लोहड़ी पर्व की 💃
☔☔☔☔☔☔☔
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾
    हार्दिक शुभ कामनाएं
✈✈✈✈✈✈✈
31.8.16
चार कदम
मुक्तक दिवस 165
आदरणीय रामसेवक सिंह गुर्जर जी की सेवा में
मुक्तक 

        चलो इक बार फिर से हम,
           नयी दुनिया बसाते हैं।
नयी सुर-ताल सरगम पर,
           नया इक गीत गाते हैं।
गिले-शिकवे दिलों में जो,
           दिलों में ही दफन कर दें।
चलो पतवार बनकर हम,
            भँवर को भी हराते हैं।

'ललित'

21.9.16

चार कदम मुक्तक दिवस 168
समारोह अध्यक्ष आदरणीय कवि अंकुर शुक्ला जी की सेवा में सादर...

मुक्तक 

26 मात्रा भार में
14  ..12 की यति पर

साथ कुछ दिन जो चला था,राह में ही था मिला।
राह अपनी वो गया तो,अब किसी से क्या गिला।
यार जब तूने धरा पर,था कदम पहला रखा।
रो रहा था तू अकेला,दर्द का था सिलसिला।

'ललित'

28.9.16

चार कदम
मुक्तक दिवस 169
आदरणीय रवि पांडेय 'संयम' जी की सेवा में
मुक्तक 
16....14

छोटी सी ये दुनिया मेरी,सारे जग से है न्यारी।
प्यारा सा इक मुन्ना मेरा,और एक मुनिया प्यारी।
लड़ जाऊँगा मैं दुनिया से,इनके सपनों की खातिर।
इनकी साँसों की खुशबू से,महक उठे मन की क्यारी।

'ललित'

13.10.16
चार कदम
मुक्तक दिवस  171
आदरणीय प्रदीप कुमार जी की सेवा में सादर

मुक्तक 16,,,,,14

कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।

'ललित'

20.10.16
चार कदम
मुक्तक दिवस  172
आदरणीय दीपक कुमार शुक्ला जी की सेवा में सादर

अपने मन के सपनों को यूँ,मिट्टी का आकार दिया।
फिर भट्टी में उन्हें पकाकर,एक अनोखा प्यार दिया।
शोख रंगों से फिर रंग डाला,सच होते उन सपनों को।
फल की आशा किये बिना इस,दुनिया को उपहार दिया।

'ललित

23.11.16

चार कदम मुक्तक दिवस 177
आदरणीय सक़लैन जी एवं सम्मानित मंच को सादर समर्पित ।।
***********     *********     *****
मुक्तक 16,,,14

प्यार मुफ्त में कहीं न मिलता,हर दिल में इक दूरी है।
माँ जैसा अहसास नहीं है,माँ की ममता पूरी है।
जीने को तो सब जीते पर,ये जीना भी क्या जीना।
दुनिया बिलकुल रास न आती,पर जीना मजबूरी है।

ललित

चार कदम मुक्तक दिवस  179
समारोह अध्यक्ष आदरणीय विनोद चंद्र भट्ट जी की सेवा में सादर...

मुक्तक

जिंदगी से जो मिला कुछ कम नहीं।
पैर काले रह गए कुछ गम नहीं।
या खुदा गम आज इतना ही हमें।
नेक चलनी में रहा कुछ दम नहीं।

'ललित'

28.12.16
चार कदम मुक्तक दिवस  182
समारोह अध्यक्ष आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी की सेवा में सादर...

मुक्तक 14..12

सोचती हूँ बैठ कर मैं,आज इस सोपान पर।
कौन सा गाना जमेगा,जिन्दगी की तान पर?
कौन सा चश्मा लगाकर,साफ आएगा नजर?
जिंदगी की मंजिलें सब,हों फिदा मुस्कान पर।
'ललित'

5.1.17

चार कदम मुक्तक दिवस  183
समारोह अध्यक्ष आदरणीया महर्षि रमा प्रवीर वर्मा जी की सेवा में सादर...

मुक्तक 16,,,,,14

कुछ अपनों में कुछ सपनों में,जीवन के दिन बीत गए ।
कुछ पाने में कुछ खोने में,सुंदर सपने रीत गए।
जीवन का सपनों से रिश्ता,मन क्यूँ समझ नहीं पाया।
जिनके सपनों खोया मन,भूल वही मनमीत गए।

'ललित'

'चार कदम' मुक्तक दिवस  184
समारोह अध्यक्ष आदरणीया मंजूषा  श्रीवास्तव जी की सेवा में सादर...

मुक्तक 16,,,,,14

उतरी है नव-भोर धरा पर,कलियाँ लें अँगड़ाई रे।
पनघट पर पायलिया बाजे,गौरी घट ले आई रे।
चीं चीं चीं चीं करती चिड़ियाँ,कानों में रस घोल रही।
सुरमई ये ओस की बूँदे,मन को दें तरुणाई रे।
'ललित'

चार कदम' मुक्तक दिवस  185
समारोह अध्यक्ष आदरणीया डॉ.साधना 'जोशी' प्रधान  जी व सम्माननीय मंच की सेवा में सादर प्रेषित

मुक्तक
16-14

पूछ रही हैं आज हवाएं,हम मूरख नादानों से।
कैसे अपनी लाज बचाएं,धरती के हैवानों से।
नदियाँ सूखी,पर्वत रूखे,इनकी कारस्तानी से।
कहलाते जो बाग कभी थे,दिखते आज मसानों से।

'ललित'
1.2.17
चार कदम मुक्तक दिवस 187
समारोह अध्यक्षा आद.महिमा सोनी जी को सादर प्रेषित
मुक्तक

सोच रही हूं आज यही मैं,भर लूँ इक ऐसी परवाज।
नीलगगन में मैं उड़ जाऊँ,छेड़ूँ अपने मन के साज।
काम करूँ जग में कुछ ऐसे,ऊँचा होवे मेरा नाम।
बेटी होकर भी कर डालूँ,बेटे जैसा कोई काज।

'ललित'

घर की दीवारों की भाषा,मानव समझ कहाँ पाया?
मौन खड़ी मीनारों से भी,ये मन सुलझ कहाँ पाया?
ताजमहल क्या कभी किसी को,अंदर का सुख दे पाया?
रिश्तों की दुनिया में भी तो,ये मन सहज कहाँ पाया?

पकड़ नहीं पाता क्यों सुख को,मन ये अपनी मुट्ठी में?
माँ भी नहीं पिला सकती क्यों,सुख बचपन की घुट्टी में?
कितना समझाया इस मन को,मत भागो सुख के पीछे।
लेकिन ये तो दीवाना सा,सुख को खोजे छुट्टी में।

दुख में कोई हँसता देखा,कोई सुख कम ही आँके।
खुद के सुख को भूला कोई,दूजे के सुख में झाँके।
दूजे का दुख हरकर कोई,अंदर का सुख पाता है।
अंदर का सुख पाकर मानव,इत उत कभी नहीं ताँके

सुख दुख के बादल इस नभ में,रह रह कर यूँ छाते हैं।
बिन बरसात किये ही बादल,दूर कहीं उड़ जाते हैं।
पर मानव क्यूँ डर जाता है,देख बादलों को आया।
सूरज पर विश्वास करें तो,घन छाया ले आते हैं।

रंग चढ़ा सुख दुख के मन को,रब ने खूब निचोड़ा है।
सुख दुख में गोते खाता ये,मानव तभी निगोड़ा है। 
मन हरदम उलझा रहता है,सुख दुख की परिभाषा में।
सुख हाथों से निकला जाए,हर सुख लगता थोड़ा है।

24
सुख-दुख 7

मन्दिर की दीवारों से भी,सुख का संदेशा आये।
मूरत वो ही रूप दिखाये,मन में तू जैसा ध्याये।
मन मंदिर में बस वो मूरत,भीतर सुख उपजाती है।
जीवन सुख से रौशन होवे,दारुण-दुख कम हो जाये।

'ललित'
............................................................
25

पूछ रही हैं आज हवाएं,हम मूरख नादानों से।
कैसे अपनी लाज बचाएं,धरती के हैवानों से।
नदियाँ सूखी,पर्वत रूखे,इनकी कारस्तानी से।
कहलाते जो बाग कभी थे,दिखते आज मसानों से।

26

खोल रहे हैं सारे नेता,एक दूसरे की पोलें।
लेकिन भारत के विकास के,ताले कौन यहाँ खोलें।
जितने सीधे हैं ये नेता,वोटर उतने ही टेढ़े।
पैसे लेकर नेताओं की,जय जय जय जय जो बोलें।

27
डूबी जीवन नैया उसकी,उथले उथले पानी में।
जीवन भर जो रहा तैरता,यौवन की नादानी में।
जीने की जो कला सीख ले,नदिया के उन धारों से।
क्यों डूबेगी नौका उसकी,किसी नदी अनजानी में?

28
उन सुजान कान्हा को अब मैं,भूल भला सकती कैसे?
जिनकी याद बसी आत्मा में,जीवन प्राणों में ऐसे।
नित्य निरंतर खोया है मन,प्रिय की अनन्य यादों में।
नित्य नवीन भावों की यादें,संचित हैं मन मे
जैसे।

Posted 4 weeks ago by ललित किशोर गुप्ता

  

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FEB

23

होली 

होली
1

होली को कब किसने जाना,किसने माना होली को।
होली का सब नाम दे रहे,गुपचुप आँख मिचोली को।
प्रेम प्यार से गले मिलें जो,भूल शिकायत शिकवों को।
होली का मतलब वो समझें,समझें दिल की बोली को।

2

दिल की ये बगिया है सूनी,बाहर खूब मची होली।
कुछ पी कर वो झूम रहे हैं,जो हैं गम के हमजोली।
हुडदंगी जो घूम रहे हैं,गलियों और बजारों में।
उनके दिल का दर्द दबाने,ढोल बजाता है ढोली।

3

कुछ तो भेद छुपा है यारों,इन होली के रंगों में।
बेशर्मी से समा गए हैं,जो गोरी के अंगों में।
दूर सदा हम से रहती थी,जो शर्माई गुड़िया सी।
आज हुई खुश हो के शामिल,इन होली के पंगों में।

इश्क का भूत

इश्क बहुत महँगा है हमने,प्यार किया तब ये जाना।
रोज देखना पिक्चर विक्चर,मॉल उन्हें फिर ले जाना।
पिज्जा का भी शौक उन्हें है,होटल पाँच सितारा हो।
घबराकर अब छोड़  दिया है,उनकी गलियों में जाना।

पडोसन से होली

रंग भरी पिचकारी हमसे,हाय पड़ोसन ने छीनी।
रंग हमारा हम पर मारा,पहन रखी साड़ी झीनी।
हमने मग्गा भर पानी का,उनके ऊपर ज्यों डाला।
शर्माकर वो दुबक गई यों,नजरें नीची कर लीनी।

होली या होला

होली है या होला यह तो,हम भी नहीं समझ पाये।
बाजारों का हाल हुआ जो,पत्नी को क्या बतलायें।
नोट भरा थैला ले जाकर,मुट्ठी में हैं कुछ लाते।
अब तो केवल पैठा लाकर,होली घर में मनवायें।

'ललित'

Posted 4 weeks ago by ललित किशोर गुप्ता

  

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FEB

22

होली 

होली

कुछ तो भेद छुपा है यारों,इन होली के रंगों में।
बेशर्मो से समा गए हैं,जो गोरी के अंगों में।
दूर सदा हम से रहती थी,जो शर्माई गुड़िया सी।
आज हुई खुश हो के शामिल,इन होली के पंगों में।

इश्क का भूत

इश्क बहुत महँगा है हमने,प्यार किया तब ये जाना।
रोज देखना पिक्चर विक्चर,मॉल उन्हें फिर ले जाना।
पिज्जा का भी शौक उन्हें है,होटल पाँच सितारा हो।
घबराकर अब छोड़  दिया है,उनकी गलियों में जाना।

पडोसन से होली

रंग भरी पिचकारी हमसे,हाय पड़ोसन ने छीनी।
रंग हमारा हम पर मारा,पहन रखी साड़ी झीनी।
हमने मग्गा भर पानी का,उनके ऊपर ज्यों डाला।
शर्माकर वो दुबक गई यों,नजरें नीची कर लीनी।

होली या होला

होली है या होला यह तो,हम भी नहीं समझ पाये।
बाजारों का हाल हुआ जो,पत्नी को क्या बतलायें।
नोट भरा थैला ले जाकर,मुट्ठी में कुछ लाते हैं।
अब तो केवल पैठा लाकर,होली घर में मनवायें।

'ललित'

Posted 2nd August 2015 by ललित किशोर गुप्ता

Labels: कावयांजलि 10.11.15

Posted 4 weeks ago by ललित किशोर गुप्ता

  

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FEB

7

विष्णुपद सृजन 3 

1
विष्णु पद
श्रृंगार रस
प्यार मुहब्बत की पुरवाई,छूती जब मन को।
सजनी की मादक अँगड़ाई,छेड़े साजन को।
छन छन छन छन छनकर आती,चँदा की सजनी।
चाँद चँदनिया की मस्ती से,बहक रही रजनी।
2
विष्णु पद
श्रृंगार रस
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

वृक्षों से आलिंगन करती,लतिकाएं महकें।
सावन के झूलों में सजनी,का मन भी बहके।
अधनींदी अँखियों से घर को,लौट रही सजनी?
साजन की बाहों में अब तो,बीते है रजनी।

विष्णु पद
कृष्ण

राधा के नयनों से आँसू,छलक छलक छलकें।
मनमन्दिर में कान्हा दिखते,खुलें नहीं पलकें।
क्यों रूठे हैं श्याम साँवरे,सखियाँ पूछ रहीं।
कान्हा जी दर्शन कब देंगें,अँखियाँ पूछ रहीं।
ललित
विष्णुपद
राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

अंतर में जो उथल पुथल है,सागर नहीं कहे।
पीकर खुद अपने ही आँसू,खारा बना रहे।
सागर की उन्मुक्त तरंगें,हर तदबीर करें।
छूने को उत्तुंग शिखर वो,नभ को चीर धरें।

ललित

Posted 7th February by ललित किशोर गुप्ता

  

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JAN

30

गीतिका छंद 2 

गीतिका छंद 2
1
राकेश जी व माँ शारदा को नमन

काव्य गंगा की लहर हो,सृजन की पतवार हो।
'राज' सा नाविक जहाँ हो,फिर वहाँ क्यूँ हार हो।
अनवरत लेखन जहाँ हो,हर हृदय में प्यार हो।
क्यूँ न शारद माँ वहाँ पर,आपका दरबार हो।
'ललित'
2
राधिका के नाम से क्यूँ,बाँसुरी के सुर सजें?
बाँसुरी की तान पर क्यूँ,गोपियाँ घर को तजें?
क्यूँ लताएं झूमती हैं,साँवरे के नाम से।
क्यूँ भ्रमर गुंजन करे व्रज,वाटिका में शाम से?
ललित
3
नींद रातों की चुराई,चैन दिन का ले गया।
बाँसुरी का वो बजैया,सुर गमों के दे गया।
फूल सब मुरझा गए हैं,हर भ्रमर खामोश है।
आँसुओं से आँख नम है,सब दिलों में रोष है।
'ललित'

क्यूँ बहारों के नजारे,श्याम तू दिखला गया।
आँसुओं को नैन का क्यूँ

"

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
"गीतिका4" ललित

गीतिका छंद
2
समीक्षा हेतु

श्याम सुन्दर नाचता है,माथ कालिय नाग के।
और छेड़े बाँसुरी पर,सुर अनोखे राग के।
नाग के सिर पर चढा वो,मुस्कुराता शान से।
जीत लेता जो दिलों को,बाँसुरी की तान से।
"00

"

बालकों को ज्ञान देना,आप माता शारदे।
बुद्धि,बल औ' तेज दे माँ,इक यही उपहार दे।
राह में कंटक बिछे जो,चुभ न पाएँ वो इन्हें।
पुष्प ये महकें सदा जो,आप सौरभ दो इन्हें।

"
"आगये तेरी शरण में,श्याम हम जग छोड़ के।
प्रेम की ले लो परीक्षा,हम खड़े कर जोड़ के।
आपने गीता सुनाकर,ज्ञान अनुपम दे दिया।
देह नश्वर है जगत में,जान देही ने लिया।"

पीर भक्तों की हरी है,आपने हरदम हरे।
दीनदुखियों के सदा ही,आपने सब गम हरे।
आज याचक बन खड़ा हूँ,द्वार पर मैं आपके।
दूर बादल आप कर दो,पाप के संताप के।

क्या कहूँ कैसे कहूँ मैं,आप से मन की व्यथा।
प्रभु सुनी है खूब मैंने,आपकी पावन कथा।
पापियों को तार देते,आप भव से जब प्रभो।
क्य़ों न मुझको तार सकते,आप भव से तब प्रभो।

ललित
गीतिका
हड्डियों का एक ढाँचा,आज बनकर रह गया।
जिन्दगी ने यूँ बजाया,साज बनकर रह गया।
स्वप्न सब आँसू बने अब,आँख से हैं बह रहे।
साथ छोड़ा चाम ने भी,लब न कुछ भी कह रहे।

जिन्दगी जी भी न पाया,हाय यौवन खो गया।
भीग तन मन भी न पाया,और सावन खो गया।
ख्वाब खुश्बू के दिखा कर,फूल सब ओझल हुए।
बीज बोए आम के थे,नीम के क्यूँ फल हुए।

ललित

देश की धरती पुकारे,क्या कहे सुन लो जरा?
देश का हो नाम रौशन,राह वो चुन लो जरा।
शौर्य पुरखों का रहा जो,याद वो कर लो जरा।
गर्व हो इतिहास को भी,काम वो कर लो जरा।

ललित

गीतिका
आरजी 5,2,17
रास का रसिया रसीला,श्याम सुंदर साँवरा।
राधिका के संग नाचे,नंदलाला बावरा।
जादुई मुरली बजे है,जादुई सुरताल है।
झूमते सब गोप-गोपी,हाथ में करताल है।
ललित

"

क्या हुआ जो आज अपने,दूर तुझ से हो गए?
भूल जा उनको खुशी से,जो मिले औ' खो गए।
है बसा परमातमा जो,आज तेरी देह में।
ले शरण बस एक उसकी,खो उसी के नेह में।

""

Posted 30th January by ललित किशोर गुप्ता

  

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JAN

9

तोटक सृजन 2 

35-6
2600
619 किमी

चले1..17
तोटक छंद
1
महका महका गजरा सजता।
बहका बहका कँगना बजता।
सजनी कहती सुन रे सजना।
मनभावन पायल का बजना।

'ललित'

मुरली बजती यमुना बहती।
सुन बाँसुरिया

जब सावन में बरसे बदरी।
तब यौवन की छलके गगरी।

जितना समझा जितना परखा।
इस जीवन को जितना निरखा।
गम का दरिया उतना गहरा।
हर साँस करे जिस पे पहरा।

ललित

तोटक

जनमा व्रज में जब नंदलला।
सब के दिल में नव प्यार पला।
उस गोप सखा मनमोहन से।
सब प्रेम करें छुटके पन से।

मुखड़े पर है लट यों लटकी।
कलियाँ लतिका पर ज्यों अटकी।
वह चाल चले लहकी लहकी।
यशुदा फिरती चहकी चहकी।

'ललित'

हर मानव की बस नींव यही।
जिसने उसकी सब पीर ही।
जब वो नर नींव बिसार रहे।
चुप नींव रहे बस नीर बहे।

'ललित'

तोटक छंद

राकेश जी के सुझाव से परिष्कृत

हिलती डुलती हर नाव चले।
सहती अपनों के घाव चले।
यह नाव हिले परवाह नहीं।
कुछ घाव मिल़ें परवाह नहीं।

जब नाम जपे दिनरात यहाँ।
तब पार लगे यह नाव वहाँ।।
हरि की मरजी खुश हो सह ले।
जब नाव हिले सुमिरो पहले।।

'ललित'
💐💐💐💐💐💐

बरसे बदरा हमरे अँगना।
अब आन मिलो कहता कँगना।
तब चैन मिले जब नैन मिलें।
मन मन्दिर के सब फूल खिलें।

'ललित'

छमियाँ छलिया छलती छलसे।
बलमा बलखाय बड़े बल से।
चमके चिहुँके चुटकी भर से।
नित रास रचाय नए नर से।

'ललित'

घट-माखन फोड़ दिया झट से।
फिर माखन चाट गया घट से।
सब गोप पसार रहे कर को।
पर माखन-चोर भगा घर को।

'ललित'

जब प्रीत हुयी मन फूल खिला।
जिस राह चले इक शूल मिला।
जब प्यार किया तब क्या डरना?
जग की परवाह नहीं करना।

कब कौन न प्रीत करे जग में?
सुनते सब प्यार भरे नगमे।
सुन साजन ताल मिला मुझसे।
करना मत आज गिला मुझसे।

ललित

अब तो परिवर्तन हो प्रभु जी।
अब तो मन मर्दन हो प्रभु जी।
अब काम विकार निकाल धरो।
अब राम विचार दिमाग भरो।

🌿तोटक छंद🌿

सब देख लिये हमने अपने।
दिल तोड़ गए बनके सपने।
हम आज कहें जिनको अपना।
सब वो दिखलाय रहे सपना।

ललित

🌺🌿तोटक छंद🌿🌺

😃😃😃😃😃😃

जब 'राज' यहाँ कविता लिखते।
हर रोज नए मुखड़े दिखते।
अब काव्य यहाँ नव रूप धरे।
मन का हर भाव यहाँ निखरे।

'ललित'

✈✈✈✈✈✈
1
अब नूतन भाव भरो मन के।
कविता हर याम लिखो तनके।
अरु 'राज' सुधार करें नित ही।
कविता लिखलो मनवांछित ही।
2
जब मात पिता तदबीर करें।
तब ही सुत के सब काज सरें।।
जब मात पिता सिर हाथ धरें।
सुत की विपदा भगवान हरें।

3
सीता माता कहिन
(दीनदयाल विरिदु..)

प्रभु दीन दयाल कहावत हैं।
अरु दीनन पीर मिटावत हैं।
पर दुःख मुझे यह घोर मिले।
दुख राम हरें सुख छोर मिले।

4
बस नाम मुलायम था जिसका।
सुत बाप बना अब है उसका।
अखिलेश रहा समझा उसको।
पतवार नहीं दिखती जिसको।

Posted 9th January by ललित किशोर गुप्ता

  

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JAN

7

कृष्ण दीवाने 

कुकुभ छंद
आर जी 7.2.17
नज़रें

नज़र बचा कर चोरी करता,
          गोपी का माखन कान्हा।
नजर मिलाकर चोरी करता,
          हर गोपी का मन कान्हा।
कान्हा ऐसी किरपा करदो,
          नज़रों में तुम बस जाओ।
पलक बन्द हों फिर भी कान्हा,
          नज़र सदा बस तुम आओ।

ललित

ताटंक
आरजी 5,2,17
छू कर देखे हीरे मैंने,छू कर देखे हैं मोती।
पर तेरे नयनों की जैसी,चमक नहीं उनमें होती।
प्रीत दिखी संसारी जब भी,सजनी का दिल छू देखा।
प्यार अलौकिक पाया कान्हा,जब भी मैंने तू देखा।
'ललित'

गीतिका
आरजी 5,2,17
रास का रसिया रसीला,श्याम सुंदर साँवरा।
राधिका के संग नाचे,नंदलाला बावरा।
जादुई मुरली बजे है,जादुई सुरताल है।
झूमते सब गोप-गोपी,हाथ में करताल है।
ललित

ताटंक

केडीआरजी5,2,17
श्याम तुम्हारे नयनों का ये,कजरा मुझे सताता है।
कान्हा की आँखों में रहता,कहकर ये इतराता है।
आज तुम्हीं सच कहना कान्हा,देखो झूँठ नहीं बोलो।
गर मैं हूँ कजरे से प्यारी,अपने नयन अभी धोलो।

ताटंक
केडीआरजी 4-2-17
सबसे सुंदर है इस जग में,राधा-कान्हा की जोड़ी।
जिसने हृदय बसा ली ये छवि,प्रीत वही समझा थोड़ी।
चौंसठ कला निपुण हैं कान्हा,शक्ति स्वरूपा हैं राधा।
राधा-कृष्ण की भक्ति कर लो,मिट जाएगी भव बाधा।

ताटंक
केडीआरजी 3-2-17
राधा तू नयनों में बसती,दिल ये तेरा दीवाना।
तेरे सिवा किसी को मैंने,अपना कभी नहीं माना।
चाहे तो ये दिल मैं रख दूँ ,कदमों में तेरे राधा।
जिससे होता पूरा होता,प्यार नहीं होता आधा।

Kdrg 2.2.17
हरिगीतिका

जो दे नई खुशियाँ सभी को,
नाम उसका भोर है।
जब पूर्व में लाली मचलती,
नाचता मन मोर है।
चिड़ियाँ लगें जब चहचहाने,
घण्ट मंदिर में बजें।
प्रभु राम के सुमिरन भजन के,
भाव तब मन में सजें।
"

केडीआरजी1-2-17
भक्तों का विश्वास,न तोड़ो मुरली वाले।
आ जाओ इक बार,पुकारें गोपी-ग्वाले।।

मुरली की वो तान,सुना दो फिर से प्यारे।
तरस रहे हम श्याम,तुम्हारी राह निहारें।।

'ललित'

31.1.17
प्रार्थना यही है नाथ,
लगो मुझे प्यारे आप।
एक यही मेरी माँग,
हाथ मेरा थामना।

हाथ मेरा थामना यूँ,
चाह करूँ स्वर्ग की तो।
नर्क मुझे भेज देना,
ये है मनोकामना।

ये है मनोकामना जी,
नहीं मिले मुझे चैन।
होय नहीं जब तक,
आप से ही सामना।

आप से ही सामना जी,
आप सिवा कौन मेरा।
कहूँ कासे,कौन सुने,
विनती महामना।

ललित

केडीआरजी 30.1.17
शक्ति छंद
4

दसों ही दिशाएं लगी झूमने।
धरा भी गगन को लगी चूमने।
सजे मोगरा वेणियों में जहाँ।
कन्हैया बजाए मुरलिया वहाँ।

ललित

केडीआरजी29.1.17
सोरठा

ज्यों काँटों के बीच,फूल गुलाबी खिल उठे।
दलदल में अति नीच,कमल पुष्प दल ज्यों खिले।
ज्यों ठोकर की धूल,लगे गगन को चूमने ।
त्यों पूजा के फूल, प्रकट करें घनश्याम को।

'ललित'

केडीआरजी28.1.17
तोटक छंद

पट खोल जरा अपने मन का।
हर रोम जगा अपने तन का।।
हरि नाम जपे हर रोम जहाँ।
खुद आन बसें घन श्याम वहाँ।।

उस गोप सखा मनमोहन की।
छवि श्यामल की मनभावन 
की।।
भरले मन में अरु नैनन में।
वह पार करे इक ही छन में।।

ललित

केडी आरजी28.1.17
सोरठा

बाँकी सी वो चाल,राधा को प्यारी लगे।
घुँघराले हैं बाल,मोर मुकुट सुंदर सजे।

चंचल वो चितचोर,राधा का चित ले गया।
ग्वाल-बाल हर ओर,कान्हा को ढूँढत फिरें।

ललित
सोरठा
केडी आरजी27.1.17

कान्हा जाता हार,राधा की मनुहार से।
छेड़े मन के तार,मुरली की हर तान से।

सखियाँ जाती झूम,मोहन की छवि देखके।
गोकुल में है धूम,लीलाधर के नाम की।

'ललित'

केडीआरजी26*1*17
शक्ति छंद

कहे राधिका श्याम ये तो बता।
बजा के मुरलिया रहा क्यूँ सता?
हसीं गोपियों को रहा यूँ नचा।
सिवा रास के क्या नहीं कुछ बचा?

निगाहें मिलें तो बताए धता।
कन्हैया नहीं कुछ बताए खता।
कहे राधिका श्याम ये ही अदा।
लगे खूब प्यारी हमें है सदा।

अरी बाँसुरी राज तू ही बता।
कन्हैया रहा है मुझे क्यूँ सता
अधर से लगाए रहे वो तुझे।
नहीं प्यार से वो निहारे मुझे।

ललित

7.1.17

जरा खोलो नयन बनवारी,आ गयी राधिका प्यारी।
ये गोप गोपियाँ सब बोलें,
अधर लगाकर बाँसुरिया छेड़ो धुन मतवारी।

हम संग राधिका के नाचें,खुल जायँ भाग्य के ताले।

कृष्ण दीवाने  10.1.17
दुर्मिल सवैया

ललना जनमा ब्रज में सुख से,सुर पुष्प सबै बरसाय रहे

दर नंद यशोमति के सबरे,ऋषि गोपिन रूप धराय रहे।

शिव रूप धरे तब साधुन को,शिशु-दर्शन को ललचाय रहे।

डर मातु मनोहर मोहन को,निज आँचल माँहि छुपाय रहे।

'ललित'

कुण्डलिनी 11.1.17

कान्हा तेरे प्रेम में,बड़ी अनोखी बात।
नाचें प्यारी गोपियाँ,सारी सारी रात।

सारी सारी रात,भूल सुध बुध वो डोलें।
भूलें अपने गात,साँवरी खुद भी हो लें।

"ललित'

कृष्ण दीवाने 12.1.17
मुक्तक  16   ..14

बिन पतवार चले ये नैया,
             कुछ हिचकोले खाती रे।
नज़र न आये माँझी कोई,
             नदिया भी गहराती रे।
मन कहता है मेरा कान्हा,
              तुम वो अंतर्यामी हो।
पार करे जो नैया सबकी,
              बिना अरज बिन पाती रे।
        
          💝💝'ललित'💝💝

कृष्ण दीवाने13.1.17
राधिका छंद

है कैसा तेरा प्यार,साँवरे प्यारे?
राधा तरसे दिन रैन,बाँसुरी वारे।
छीने तू सबका चैन,नींद हरता है।
क्यूँ तिरछे करके नैन,हास करता है।

'ललित'

कुकुभ छंद
कृष्ण दीवाने 13.1.17
कानहा की मानस पूजा

कान्हा मेरे मन मन्दिर में,
            आकर तुम यूँ बस जाओ।
जब भी बन्द करूँ पलकों को,
             रूप मनोहर दरशाओ।
गंगाजल-पंचामृत से प्रभु,
              रोज तुम्हें मैं नहलाऊँ।
वस्त्र और गहने अर्पण कर,
              केसर-चन्दन घिस लाऊँ।

धूप-दीप नेवैद्य चढ़ाकर,
             पुष्प-हार सुन्दर वारूँ।
त्र-गुलाल लगाकर कान्हा,
             चरणों की रज सिर धारूँ।
मन ही मन फिर करूँ आरती,
             चरण-कमल में झुक जाऊँ।
जग की झूठी प्रीत भुलाकर,
              प्यार तुम्हीं से कर पाऊँ।

'ललित'
 आल्हा छंद14.1.17  

कृष्ण कहें अर्जुन से रण में,खास बात ये तू ले जान।
सुख दुख लाभ हानियों को तू ,मान सदा ही एक समान।
स्वर्ग मिलेगा मरने पर तो,राज्य मिलेगा पाकर जीत।
मन में कर ले निश्चय रण का,युद्ध पुकारे तुझ को मीत।

ललित

कृष्ण दीवाने 14.1.17
जलहरण

नाच रही राधा-रानी
साथ घनश्याम के तो।
सखियाँ भी झूम रही
बाँसुरिया की तान पे।

झूम रही लतिकाएं
पादपो की बाहों में तो।
मोरपंख नाज करे
साँवरिया की शान पे।

चाँद भूला चाँदनी को
रास में यूँ रम गया।
राधिका का रास भारी
चँदनिया के मान पे।

सुरमई उजालों में
रेशम से अंधेरों में।
राधा श्याम नाच रहे
मुरलिया है कान पे।

'ललित'

दुर्मिल सवैया
कृष्ण दीवाने14.1.17

भज नदं  यशोमति के सुत को,मुरलीधर पूरण काम मिले।

मनमोहन कृष्ण दयामय को,जिस की किरपा अविराम मिले।

जिस की करुणा पल में हरले,सब मोह निशा सुख धाम मिले।

तर कंस गया जब पाप मयी,तब क्यों न तुझे घनश्याम मिले।

'ललित'

कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने15.1.17
राधा गोविंद 15.1.17

कुसुम करें अठखेलियाँ,कलियाँ झूमी जायँ।
जब मुरली की तान पर,गीत गोपियाँ गायँ।

गीत गोपियाँ गायँ,भूल सुध-बुध वो झूमें।
हर गोपी के साथ,रास का रसिया घूमे।
ललित

16.1.17
जय श्री कृष्णा

नींद लगे तो तुझको देखूँ,आँख खुले तो तुझको।
ऐसा जादू वाला चश्मा,दे दे कान्हा मुझको।
ऐसी ही तो थी वो ऐनक,राधा पहने जिसको।
क्यों तू चश्मा देकर कान्हा,भूल गया था उसको।
'ललित'
मदिरा सवैया
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17
गोप रहे करताल बजा मुरलीधर माधव
नाच रहा।
ग्वाल सखा हर एक वहाँ मन ही मन श्याम उवाच रहा।
तत्त्वगुणी नटनागर वो निज ज्ञान कथा सब बाँच रहा।
गोपिन रास सुहाय रहा मनमोहन बोलत साँच रहा।

रुबाई
कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17
मोहन

रात सखी मेरे सपने में,श्यामल वो मोहन आया।
दिनकर से तपती धरती कोे, दे दी हो ज्यों घन छाया।
मुरली की आलौकिक धुन पर,झूम रहा था मतवाला।
वंशी की वो मधुर तान दिल,भूल नहीं अब तक पाया।

ललित

कृष्ण दीवाने18.1.17
राधा गोविंद 18.1.17

विष्णु पद

काश राधिका मोहन से यूँ,प्यार नहीं करती।
अपने चंचल नैनों में वो,प्यास नहीं भरती।
अगन विरह की उसके दिल में,आज नहीं जलती।
उस छलिया की यादों में हर,शाम नहीं ढलती।
'ललित'
KD&RG19.1.17
जलहरण घनाक्षरी

कान्हा से नजर मिली,राधा सुध भूल चली।सरकी जाए चुनरी,पायलिया बेजान है।।

सखियाँ इशारे करें, मुख फेर फेर हँसे।
राधा छवि देख रही,साँवरिया नादान है।।

बाँसुरी बजाए कान्हा,गइयाँ है चरा रहा।
राधाजी को प्यारी लगे,बाँसुरिया की तान है।।

राधा जी की सखी संग,मोहन करे बतियाँ।
राधे रानी रूठे कैसे,मनवा बेईमान है।।

दोहा छंद 
KD & RG 20.1.17

प्रेम सुधा बरसाय जो,नयनों से अविराम।
मुरलीधर, मनमोहना,कान्हा उसका नाम।
'ललित'

KD & RG 21.1.17
रुबाई

छोड़ चले तारे अम्बर को,कान्हा की बंसी बोले।
गोप-गोपियाँ लें अँगड़ाई,मोहन की छवि मन डोले।
यमुना तीरे से बाँसुरिया,देती है ये संदेशा। 
उसकी बंसी बजे मधुर जो,बातों में मधु-रस घोले।

रुबाई
थोड़ा सा जीवन दर्शन
केडी/आरजी 21.1.17
प्रेम भरा हो दिल में जितना,उतना ही वो छलकेगा।
नैन झरोखे से वो शीतल,मोती बनकर ढलकेगा।
जिसके सीने में नाजुक सा,प्यार भरा इक दिल होगा।
उसकी उठती गिरती पलकों,में हरदम वो झलकेगा।
ललित

कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने 22.1.17
राधा गोविंद 22.1.17
कंकर से घट फोड़ता,नटखट माखन चोर।
गोपी पीछे दौड़ती,पकड़ न पाए छोर।

पकड़ न पाए छोर,कन्हैया घर को भागे।
सोये चादर ओढ़,उनींदा सा वो जागे।

'ललित'
1
कुण्डलिनी
कृष्ण दीवाने 23.1.17
राधा गोविंद 23.1.17
फूल सुगंधित खिल रहे,बगियन में हर ओर।
राधा जी से आ मिले,साँवरिया चितचोर।
साँवरिया चितचोर,आँख से करें इशारे।
जग के सारे फूल,राधिका तुझ पर वारे।

ललित

जलहरण
KD and RD 23.1.17

जले दिन रात जिया,
कहाँ है तू श्याम पिया।
याद तुझे करती ये,
राधा व्रज में डोलती।

पूछती है गलियों से
बाग वन लियों से।
बाँसुरी वाले का पता
राज दिल के खोलती।

अँखियों में वास करे
दिल पे जो राज करे।
निंदिया चुराके गया
छलिया श्याम बोलती।

करी साँवरे से प्रीत
भूल दुनिया की रीत।
गलती तो नहीं करी
आज मन टटोलती।

'ललित'
KD /RG 24.1.17
सार छंद
कान्हा वंशी मुझे बना तू,अधरामृत बरसा दे।
कहे राधिका मत ऐ मोहन ,मुझको यूँ तरसा दे।
याद करूँ आलिंगन तेरा,सुधबुध मैं बिसराऊँ।
लगकर तेरे सीने से मैं,तुझ में ही खो जाऊँ।

ललित

भुजंग प्रयात
केडी/आरजी 24.1.17
कहें गोपियाँ माँ दुलारा तुम्हारा।
चुरा भागता है जिया ये हमारा।
कभी ये नचाता कभी ये लजाता।
कभी बाँसुरी को सुरों से सजाता।

कभी फोड़ जाता हमारे घटों को।
कभी नाच के वो लजा दे नटों को।
करे क्या यशोदा न माने कन्हैया।
कभी डाँट दे औ' कभी ले बलैया।
ललित

केडीआरजी25.1.17
जलहरण घनाक्षरी
मीरा

मीरा जपे कान्हा नाम,कान्हा ही सुखों का धाम।
अपनी साँसों के तार,कान्हा संग जोड़ दिए।

महलों को छोड़ चली,श्याम की दीवानी मीरा।
श्याम रंग ओढ चली,सब रंग छोड़ दिए।

अपना ही आपा भूली,श्याम चरणों में खोई ।
भगती की राह चली,सारे बंध तोड़ दिए।

राणा जी ने विष दिया,सेवन सहज किया।
विष बना सोम रस,पुण्य ज्यूँ निचोड़ दिए।

'ललित'

Posted 7th January by ललित किशोर गुप्ता

  

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DEC

19

कुण्डलिया सृजन 2 E MAIL 

19.12.16
कुण्डलिया सृजन 2
1
मोहन

प्यारे मोहन देखलो,हमको भी इक बार।
माखन घट स्वीकार लो,करदो अब उद्धार।

कर दो अब उद्धार,पिलादो प्रेम पियाले।
मुरली की अब तान,सुना दो मुरली वाले।

आज ललित की पीर,हरो ओ ग्वाल सखा रे।
नटखट नटवर श्याम, अरे ओ मोहन प्यारे।

कुण्डलिया सृजन 2
2
नाते

नाते-रिश्तेदार भी,देखे हमने खूब।
जो नोटों के भँवर में,रहे गले तक डूब।

रहे गले तक डूब,खड़े हम नदी किनारे।
टूटी हर पतवार,तेज हैं इतने धारे।
कहे 'ललित' ए काश,अकेले हम चल पाते।
झूठे हैं अब यार,यहाँ सब रिश्ते-नाते।

'ललित'
3
जीवन

जीवन की तस्वीर में,रग भरे हर कोय।
किस्मत करे मजाक तो,बदरंगा सब होय।

बदरंगा सब होय,नहीं फिर कुछ भी भाता।
उड़ जाता हर रंग,तोड़ कर उस से नाता।
कहे 'ललित' पछताय,उधड़ जाती हर सीवन।
जितना रखो सँभाल,बिखरता उतना जीवन।
'ललित'

4
दोस्ती

जीवन भर की दोसती,पल में देता छोड़।
मानव मन का आज भी,नहीं दीखता तोड़।

नहीं दीखता तोड़,फिरे ऐसा मदमाता।
दूजे का सुख देख,न जाने क्यों जल जाता?
कहे 'ललित' कविराय,करे मन ऐसी छीजन।
खूब बिगाड़े काम,दुखी कर देता जीवन।

'ललित'
5
राधा
कृषण दीवाने10.1.17
राधा की पायल बजे,छम-छम-छम जब श्याम।
तब तेरी मुरली बजे,मधुर मधुर अविराम।

मधुर मधुर अविराम,कान में रस वो घोले।
मन ही मन में नाम,राधिका का तू बोले।
कहे 'ललित' है श्याम,राधिका के बिन आधा।
करे उसे भव पार,रटे जो राधा-राधा।

'ललित'

6

अपनापन

पाया है जो आपसे,अपनापन सौ बार।
दीवानापन ये नहीं,ये है सच्चा प्यार।

ये है सच्चा प्यार,हमारा दिल है कहता।
दिल में ही तो यार,सदा दिलवर है रहता।

सुनो 'ललित' की बात,विष की खान ये काया।
बन गईअमृत खान,ऐसा प्यार जो पाया।
'ललित'
7
पायल

छम-छम-छम-छम बज रही,पायलिया मुँह जोर।
प्रीतम से मिलने न दे,पनघट के उस छोर।

पनघट के उस छोर,पुकारे साजन प्यारा।
गोरी का दुख देख,हँसे हर झिलमिल तारा।

कहे 'ललित' कविराय,प्रीत की दुश्मन हरदम।
सखियाँ हँसती खाँस,बजे जब पायल छम-छम।

ललित
8
नव दुल्हन
खन-खन खनकें चूड़ियाँ,नव-दुल्हन के हाथ।
अधरों पर नथनी सजे,टीका सोहे माथ।

टीका सोहे माथ,कान में झूले बाली।
पहने मंगल सूत्र,लिये अँखियन में लाली।
कहे 'ललित' सिंगार,करे नव दुल्हन बन-ठन।
घर होता गुलजार,बजे जब चूड़ी खन-खन।

ललित
9
बरगद

देते शीतल छाँव थे, जो बरगद के पेड़।
भूल गए बच्चे उसे,याद रही बस मेड़।

याद रही बस मेड़,न सींचे बरगद पीपल।
बोते हैं जो आज,वही काटेंगें वो कल।
कहे 'ललित' वो छाँव,नहीं बरगद की लेते।
छोड़ो अब ये ठाँव,सीख बरगद को देते।

'ललित'
10
चाँद चाँदनी

होने टिम-टिम-टिम लगे,तारों की चमकार।
चाँद चँदनिया का तभी,करता है श्रृंगार।

करता है श्रृंगार,चाँदनी का वो ऐसे।
दुल्हन नई नकोर,सजी हो कोई जैसे।

देख 'ललित' ये प्यार,चँदनिया लगती रोने।
बूँदों की बरसात,लगे टिम-टिम-टिम होने।

'ललित'
11

बादल बिजली

बादल बिजली में दिखे,बड़ा अनोखा प्यार।
घन का पथ रोशन करे,शम्पा की चमकार।

शम्पा की चमकार,लगे नीरद को प्यारी।
बरसादो रसधार,कहे बिजुरी उजियारी।

'ललित' गाज के अधर,चूमता वारिद का दल।
करने को बौछार,मिलें बिजली औ' बादल।

'ललित'
12
सावन

मदमाती बूँदे गिरें,सावन की चहुँ ओर।
दादुर टर-टर कर रहे,नाचे वन में मोर।

नाचे वन में मोर,पपीहा पिहु पिहु गाए।
अमरबेल तज लाज,वृक्ष से लिपटी जाए।

'ललित' चंचला नार,कहे कुछ कुछ शर्माती।
हाय भिगोती गात,गिरें बूँदें मदमाती।

'ललित'
13
लीला

तेरी लीला को प्रभो,मन ये समझ न पाय।
मन चाहा होता नहीं,अनचाहा हो जाय।

अनचाहा हो जाय,नहीं जो मन को भाता।
सुख की होती चाह,मगर दुख फिर फिर आता।
कहे 'ललित' कविराय,देख ली ये अंधेरी।
पापी सब सुख पाय,अजब है लीला तेरी।

'ललित'
14
काला पीला धवल

काले धन को ढूँढने,निकला 'मोदी' राज।
काला पीला हो गया,बिगड़े सब के काज।

बिगड़े सब के काज,रंग सब हुए पराए।
बैंकर से ही श्वेत,जब काले भी राए।

'ललित' रहा सहलाय,काले दे गये छाले।
धवल खड़े पछतायँ,सयाने थे सब काले।

'ललित'

Posted 19th December 2016 by ललित किशोर गुप्ता

Labels: अपनापन कालाकुण्डलिया चाँद चाँदनी जीवनदोस्ती नव दुल्हन नाते पायलबरगद बादल बिजली मोहनलीला सावन

  

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