छद मुक्त मुक्तक
1
गम
बेवजह आसमां हम तकने लगे हैं
गम से गम को ही हम ढकने लगे हैं ।
रंग कितने दिखायेगी अब जिन्दगी
बिन बरखा इंद्रधनुष दिखने लगे हैं ।
प्यार है व्यापार बना मानते हम
गम से है संसार सना मानते हम ।
गमों की दुकान उठा ले जिन्दगी
गम के क्रेता न बनना चाहते हम।
न आसाँ है गमों को भूल जाना
न सम्भव है उनसे मुक्ति पाना
मगर सम्भव है केवल हर समय
गमों की टीस को सहलाते जाना।
रब ने तब तो जरूर सोचा होगा ,
जब गमों को जमीं पर भेजा होगा।
इंसाँ को हजार खुशियों के साथ,
गम का इक डोज तो देना होगा ।
मर जायेगा वरना वो मारे खुशी के,
हर तरफ सुनाई देंगें नारे खुशी के।
खुशी की इंसाँ कदर तब करेगा ,
आसमाँ गमों का सितारे खुशी के।
गम को रब ने किस जगह,
कैसे छिपा कर रख दिया।
जिस दर से चाही थी खुशियाँ,
गम वहीं से मिल गया।
ख्वाब में सोचा न था,
ऐसा कभी हो जायेगा।
जो था खुशियों का समन्दर,
गम उसी से मिल गया।
आदमी ने जो भी चाहा ,
जिन्दगी में पालिया।
एक झटके में ही लेकिन
छीन किस्मत ने लिया।
क्या कहे,किससे कहे,
कौन समझेगा व्यथा?
जिन्दगी ने किस कदर,
गम का समन्दर दे दिया?
'ललित'
2
बागबान
बागबान मौन है,फूल खिलखिला रहे।
कंटकों के बीच भी,देखो लहलहा रहे।
फूल दे रहे हैं आज,बागबाँ को गालियाँ।
कंटकों की सेज पर,बागबाँ को ला रहे।
'ललित'
3
प्यार
जाने क्यों खुदा ने संसार बनाया ,
और उस संसार में प्यार बनाया।
प्यार में धोखे की गाँठ लगाकर,
इंसाँ के गले का पुष्पहार बनाया।
ललित
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