फि 68,69,72,73,75,79 ,80, 81,82,84 26.08.15 फि 90 2.9.15 फि 92 3.9.15


फिलबदीह 68

दोस्त

दोस्त को दोस्त का मायना हो पता
दोस्त ऐसा हि हमको सदा  चाहिये।

दोस्त ही दोस्त के काम आ पायेगा
दोस्ती में मगर नाम ना चाहिये।

दोस्त ही दोस्त को सीख दे पायेगा
दोस्ती की मगर इंतिहा चाहिये।

दोस्त ही दोस्त का साथ दे पायेगा
दोस्ती की मगर वो सदा चाहिये।

दोस्त ही दोस्त को आजमाये 'ललित'
आइने को मगर आइना चाहिये ।

'ललित'

फिलबदीह -69(11-08-15)
बह्र  1222  1222  1222  1222
रदीफ          अलना
काफिया      भी जरूरी था
गाना - न झटको जुल्फ से पानी ये मोती फूट जायेंगें

एक छोटी सी कोशिश

न देखी जब जमाने में कदर माता पिताओं की,
जमाने की हवाओं को बदलना भी जरूरी था।

हमारी चाहतों का यूँ जनाजा जो निकाला है,
अधूरी चाहतों का सिर कुचलना भी जरूरी था।

बहारों ने नवाजा था कभी ताजा हवाओं से,
बहारों का फिजाओं से संभलना भी जरूरी था।

बहारों ही बहारों का नजारा आज पाते हो,
फिजाओं के नजारों में टहलना भी जरूरी था।

'ललित'

फिलबदीह  72   दि.14.8.15

मुल्क की आन को वो बचाते रहे
सर कटाते रहे, जाँ गँवाते रहे।

ये हुआ आपकी शायरी का असर
रात जाती रही, लोग गाते रहे।

आप शायर बने तो न रोकी कलम
देश भक्ति की गाथा सुनाते रहे।

शायरों का यही तो फसाना रहा
शेर गाते रहे ,जाँ लुटाते रहे।

शायरी बन गयी वीरता की जुबाँ
सैनिकों को निशाने दिखाते रहे।

जान जाये मगर रोकने ना कदम
सरफरोशी सदा गुनगुनाते रहे।

आज भारत बना दुनिया का गुरू
काम ऐसे किये ,जगमगाते रहे।

'ललित'

फिलबदीह 73  दि.15.8.15

हमारी आरजूओं का यही तो बस सहारा है
जमीं अपनी हवा अपनी समंदर भी हमारा है।

कभी जो हो नहीं संभव हमें करके दिखाना है
बदल देंगें लकीरों को यही बस प्रण हमारा है।

हवाओं को बदल देंगें बता दो आसमानों को
जवाँ इस देश के मिलकर हमारा ये इशारा है।

नया इतिहास लिख देंगें मिटा कर  सितमगारों को
कहे गीता वतन पे जाँ लुटाना काम प्यारा है।

फिलबदीह 75  दि.17.8.15

बागबाँ पा सका ना खुशी का पता
आँख से बह गई हर खुशी दोस्तों।
शायरी अब जमेगी यहाँ रात भर
आपकी रह गयी थी कमी दोस्तों।

फिलबदीह 79  दि.21.8.15

बह्र 1222 1222 1222 1222
काफिया  आती
रदीफ।       है

फिलबदीह ७९ से हासिल

खिला है चाँद भी पूरा चँदनिया गुनगुनाती है।
सितारों के लगे मेले हवा दामन हिलाती है।

पडे हैं बाग में झूले मुदित मन मोर भी झूमे।
चले आओ सजन मेरे तुम्हारी याद आती है।

तुम्हारे नाम की मेहंदी रचाई आज हाथों में।
तुम्हारे प्यार की लाली गुलाबों को लजाती है।

कहे पायल न ठुकराओ कहे कँगना न बिसराओ।
कहे बिंदिया न तरसाओ जुबाँ अब लडखडाती है।

नशीली आँख की तेरी चढी मुझ पर खुमारी यूँ।
जहाँ तक है नजर जाती नजर तू ही तु आती है।

ललित

फिलबदीह 80  दि.22.8.15

बह्र:   212    212    212     212
काफिया          आ
रदीफ               कौन है

आज हर शाख पर बैठता कौन है
शाख सूखी पडी जानता कौन है

शाख को शाख ही जब गिराने लगे।
जान देकर उसे रोकता कौन है?

शाख जोआसमाँ में चढी जा रही
जानती ही नहीँ बागबाँ कौन है?

शाख से आदमी को ये जीवन मिला
आज उस शाख को काटता कौन है?

शाख की शाख से प्रीत हो गर यहाँ
प्रीत की डोर को काटता कौन है?

देश की शाख सारी गले मिल रहें।
जीत का कारवाँ रोकता कौन है?

देश पर जाँ लुटाई है जिसने यहाँ
वो अमर है उसे मारता कौन है?

फिलबदीह  81  दि.23.8.15

मुँह में राम बगल में खंजर देखे हैं।
जाने कैसे कैसे मंजर देखे हैं।

देशी घोडी चाल विदेशी जब चले
घायल होते लोग सडक पर देखे हैं।

बेटी बेटा होते दोनों इक जैसे
अंतर करते लोग अक्सर देखे हैं।

बेटी करती है जो सेवा माता की
बेटे कर ना पाते अक्सर देखे हैं।

अर्थी लेके जाते जब शमशान में
जल्दी करते लोग जमकर देखे हैं।

चिता न पकडे आग जब शमशान में
चिंता करते लोग अक्सर देखे हैं।

चिता जले शमशान में जो यार की
बातें करते यार हँसकर देखे हैं।

जीवनसाथी जीवन से जब हार गया
झूठे रोने रोते दिलबर देखे हैं।

जिनको मान रहे थे आँखों का तारा
वो ही कहते आँख का कंकर देखे  हैं।

दिखता नहीं है पर दिल में चुभता है
हमने ऐसा भी इक खंजर देखा है।

फिलबदीह  82  दि.24.8.15

मिसरा : वक्त आने पे वो वादों से मुकर जाएगा।

बह्र  2122   1122  1122  22(112)

फाइलातुन। फियलातुन। फियलातुन  फैलुन (फअलुन)

काफिया।    अर
रदीफ          जाएगा

गाना
१  दिल कीआवाज भी सुन ....
२  रंग औ नूर की बारात...

...................

घाव इस जिस्म का तो वक्त से भर जायेगा।
घाव इस दिल का मगर और उभर आयेगा।

अपना गम दिल में ही रहने दे किसी को न सुना।
गम तेरा सुन के ये वक्त ठहर जायेगा।

वक्त हर मोड पे आवाज लगायेगा तुझे।
वक्त से बच के तु ए यार किधर जायेगा।

वक्त ऐ काश  कभी मुझ पे महरबां हो तो।
मेरा आँसू तेरी आँखों मे नजर आयेगा।

जाम पर जाम भी पीने से न आयेगा नशा
गम अगर सीधा सीने में उतर जायेगा।

फिलबदीह 84   दि. 26.8.15

आज वो ही गुलाम है तेरा
जिसके दम पर नाम है तेरा।

प्यार में तू वफा करे कैसे
बेवफाई मुकाम है तेरा।

आज मेरे लबों पे रहता क्यूँ
हर सुबह शाम नाम है तेरा।

तू जिसे बेवफा समझ बैठी
चाहता वो सलाम है तेरा

फिलब 90    2.9.15

221   2121  1221   212
काफिया।   आस
रदीफ।        देखिये

गीत
यूँ जिन्दगी की राह में मजबूर होगये

दिल ढूंढता है फिर वही....

यूँ आ रहा बिछोह उन्हें  रास देखिये।
तोड़ा यहाँ किसी ने है विश्वास देखिये।

वो प्यार को मजाक बनाकर चला  गया।
करके मुझे हताश औ 'निरास देखिये।

यूँ आज हम जहाँ में मशहूर होगये।
रब ने यही कमाल किया खास देखिये।

घर का चिराग दूर विदेशों में जल रहा।
बेबस पिता विलाप करे त्रास देखिये

दिल का मेरे करार चुरा कर चला गया।
अब खुद बना रहा है उपहास देखिये।

फि।   92     3.9.15

      2122      1212        22

वक्त सब कुछ बदल चुका होगा।

काफिया      आ
रदीफ           होगा

चाँद भी जब जवाँ हुआ होगा
चाँदनी सा हँसीं रहा होगा।

हर लहर पूछती है सागर से
कब किनारों से सामना होगा।

आपके प्यार में हुआ घायल
वक्त उसका बुरा रहा होगा।

जिन्दगी में सफल वही होगा
वक्त के साथ जो चला होगा।

हमने की थी कभी वफा जिससे
याद उसने नहीं किया होगा।

हुस्न वाले वफा नहीं करते
उसको भी ये गुमाँ रहा होगा।

आपका वास्ता नहीं जिससे
वो खयालों में छा रहा होगा।

फूल गुलशन में खिल खिलाये तो
बागबाँ मुस्कुरा रहा होगा।

आप आयें मेरी पनाहों में
वो नजारा बड़ा जुदा होगा।

आप खोये हो किन खयालों में
वक्त सब कुछ बदल चुका होगा।
***********************
फि  93     ४.९.१५

1222   1222   1222    1222
जिसे दुश्मन समझता हूँ वही अपना निकलता है।
मुझे तेरी मुहब्बत का....

कुछ शेर

1222    1222    1222   1222
काफिया         आ
रदीफ              निकलता है

मेरी जिंदादिली का अब नतीजा ये निकलता है
जिसे सच्चा समझता हूँ वही सपना निकलता है

न जाने कब उसे अपना समझ बैठा दिले नादाँ
जिसे हमदम समझता हूँ वही धोखा निकलता है।

दिखाकर आज आईना मुझे वो मुझसे कहता है
किया जो प्यार का वादा सदा झूठा निकलता है।

जमाने में फसाने हैं तुम्हारी बेवफाई के
जिसे देखो तुम्हारे प्यार का मारा निकलता है।

बहारों ने नजारों ने सितारों ने सिखाया है
लुभाता है नजर को जो निरा धोखा निकलता है।

निकम्मे लोन वालों ने हमारा दम निकाला है
जमा किश्तों को करने में नशा सारा निकलता है।

न हो कोई यहाँ जिसका मोहन को याद करता है।
भला करता हमेशा जो वही कान्हा निकलता है।

नवसृजन
24.10.16
2122  2122  21
काफिया (आना-स्वर)
रदीफ   -चाहिए

या खुदा सबको ठिकाना चाहिए।
प्यार का इक आशियाना चाहिए।
"ललित"
आशियाना

आसमानों में उड़ा जो उम्र भर।
नाम उसका जगमगाना चाहिए।

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