दोहे
1
मन ही मन सुमिरन करो,धरो रैन दिन ध्यान।
जाके मन में राम हैं,वाको है कल्यान।
मूरत सीताराम की,मन में लीनि बसाय।
हनुमत नाचें प्रेम से,राम नाम मन लाय।
राम नाम जपते हुए,तन से निकलें प्रान।
यह वर मोहे दीजिये,रघुवर कृपा निधान।
साथी इस संसार में,झूठा है हर एक।
केवल रब है आपना,साथी सब से नेक।
कहे विभीषण राम हैं,श्री भगवत अवतार।
रावण सच माने नहीं,राम उतारें पार।
बाँधी हनुमत पूँछ से,जलती हुयी मशाल।
वानर ने इक मूँज से,लंका दीनी बाल।
काम क्रोध मद लोभ से,बिगडें सारे काज।
धू-धू करके जल रही,निसिचर नगरी आज।
धर्मराज खेलें जुआँ,लगा द्रोपदी दाँव।
वो दरख्त भी चुप रहे,जो देते थे छाँव।
2
गुंजन जी
प्रिंस के लिए
करते हम ये कामना,
उदित रहो खुशहाल।
बाँका कर न सके कभी,
कोय तुम्हारा बाल।
जीवन में हर भोर ही,
लाये खुशी अपार।
आगे तुम बढते रहो,
पाओ सबका प्यार।
ललित
28.12.15
3
दोहा छंद
ईश प्रार्थना
प्रभु जी चाकर राख लो,मुझको अपने काज।
जैसे हनुमत को रखा,चाकर चुटकी बाज।।
सुन लो मेरी प्रार्थना,निज जन मोहे जान।
निशिदिन मन में जाप हो,जिस से हो कल्यान।।
मेरे मन की गागरी,भरी मैल से नाथ।
भर दो गीता ज्ञान से,सिर पर रख दो हाथ।।
मन है मेरा कलियुगी,तन पर काम-प्रभाव।
हर लो पापी काम को,कर दो राम-सुभाव।।
ललित
4
काव्यांजलि परिवार ये,रचे नये नित गीत।
कृपा करो माँ शारदे,प्रेरित हों सब मीत।
सब के मन के भाव यों,छंदों में घुल जायँ।
मनवा को शीतल करें,बंदों के मन भायँ।
'ललित'
5
दोहा
माया ऐसी चाशनी,लिपटे देकर नेह।
चाखन में मीठी लगे,फल देती मधुमेह।।
कहने वाले कह रहे,मर्जी प्रभु की होय।
टूटी जिसकी सूइ वो,दर्जी बैठा रोय।।
मन का चैन चुरा गये,कान्हा तेरे नैन।
कुंज गलिन में राधिका,भटकत है दिन रैन।
29.12.15
6
दोहा छंद
राधे राधे जो जपे,कान्हा उसका दास।
मन में होना चाहिए,प्रेम और विश्वास।।
बड़भागी वो गोपियाँ,कान्हा जिनके पास।
ब्रम्ह जीव मिल नित रचें,मुक्ति का महा रास।।
ललित
30.12.15
7
दोहा छंद
विषय: माँ
बचपन में था पूछता,माँ से बहुत सवाल।
अब वो माँ से बोलता,काहे करे बवाल।।
दान किये जप भी किये,तीरथ किये हजार।
माँ को जो बिसरा दिया,सब कुछ है बेकार।।
माँ के आँचल की जिसे,मिली हुई है छाँव।
हरदम सीधे बैठते,उसके सारे दाँव।।
माँ की याद सुवास सी,मन निर्मल हो जाय।
जैसे तुलसी आँगने,हरि की याद दिलाय।।
हरि का सुमिरन जो करे,माँ चरणों में बैठ।
हरि उसको आशीष दें,माँ के उर में पैठ।।
माँ साँसों में बस रही,माँ धड़कन,माँ प्राण।
माँ से उऋण न हो सके,सुत देकर भी जान।
'ललित'
8
दोहा छंद
बेटी की व्यथा
तेरे आँगन की कली,थी बगिया की शान।
मुझको तू क्यों भेजती,अनजाने बागान।।
इस घर में पैदा हुई,भूलूँ कैसे तात?
रोक न पाऊँ आज मैँ,आँसू की बरसात।
'ललित'
9
दोहा छंद
पन्द्रह का सूरज उगा,आज आखिरी बार।
नव वर्ष कल आयेगा,जैसे इक त्यौहार।।
बीती ताहि बिसार कर,हो जाओ तैयार।
स्वागत हो नव वर्ष का,मन का रूप निखार।
ललित
10
जल-थल-वायु-अगन मिले,और मिला आकास।
पंच-तत्त्व की देह ले,मानव करता रास।
ललित
11
नव वर्ष का उत्साह
आज लुभाता है हमें,नये वर्ष का 'राज'।
'निश्छल' भी चुप क्यों रहे,बनना है सरताज।
आओ सब मिल कर रचें,एक नया इतिहास।
छंदों में रस घोल कर,लिखें नया कुछ खास।।
ललित
12
दोहा छंद
वर्ष 2015 के मन की बात
भीतर तक घायल हुआ,मेरा दिल है आज।
जनता है दासी यहाँ,नेताओं का राज।।
जनता छोड़े सब्सिडी,नेता खाएँ माल।
जनता देती टोल है,काली सारी दाल।
ले आओ जाकर जरा,एक नया सा साल।
झेल सके नेतागिरी,जो हो कर बदहाल।।
ललित
13
एक प्रयास
चंचल मन को चाहिए,गुरु की कड़ी निगाह।
निगुरा मन भागा फिरे,काम मोह की राह।।
ललित
14
प्रयास एक और
पति के मन की हर व्यथा,लेती है जो भाँप।
उस पत्नी के सामने,रही व्यथा भी काँप।।
पत्नी के जैसा नहीं,जग में कोई मीत।
फिर भी जाँचें आग में,जग की ये ही रीत।।
'ललित'
2.1.2016
15
दोहा छंद
मन में प्रभु वासा करें,जिव्हा पे हरिनाम।
ऐसे जापक को करूँ,बारम्बार प्रणाम।।
प्रेम सुधा बरसाय जो,नयनों से अविराम।
मुरलीधर, मनमोहना,कान्हा उसका नाम।।
जिसके हाथों में सजे,प्रेम रूप पतवार।
भवसागर से सहज हो,उसकी नौका पार।।
'ललित'
16
जीवन सादा जो जिए,रखकर उच्च विचार।
दुनिया में होती सदा,उसकी जय जय कार।।
तन सुंदर बेकार जो,मन सुंदर नहिं होय।
मन सुंदर जो होय तो,प्रीत करें सब कोय।।
ललित
17
गंजे को देता नहीं,नख वो दीन दयाल।
पर धन-दौलत खूब दे,गंजा होय निहाल।।
गंजे जन पर होत है,फिदा आज की नार।
धोखे का खतरा नहीं,नहीं होय तकरार।।
ललित
18
बहुत हुआ अब मान जा,ओ रे धोखेबाज।
आतंकी के भेष में,क्यूँ करता परवाज।।
पल भर में मिट जायगा,नक्शे से ये मान।
बहुरूपियां देश जिसे,कहते पाकिस्तान।।
19
दोहे
करुण रस
मानव मानव को यहाँ,देखो ढोता जाय।
रिक्शा में इक बैठता,दूजा उसे चलाय।।
विनती सभी समाज से,मेरी है कर जोड़।
रिक्शे वाले को कभी,देना नहीं निचोड़।।
ललित
22.03.16
सुप्रभात काव्य सृजन परिवार
प्राणों को बल दे गई,रात अँधेरी घोर।
नई दिशा में उड़ चलो,पंछी करते शोर।।
ललित
पागल हाथी देखके,हट जाते सब श्वान।
क्यों रस्ते में आगया,मूरख पाकिस्तान?
सभी मित्रों को
शुभ दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं
लक्ष्मी जी करती रहें,सबको मालामाल।
जिस पर वो किरपा करें,चमके उसका भाल।
'ललित'
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